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जीएसटी के दौरान रिटर्न देरी से पेश किये जाने के लिए लेट फीस के प्रावधान बनाये गये थे उनके बारे में जीएसटी विशेषज्ञ प्रारम्भ से ही सहमत की नहीं थे क्यों कि जीएसटी कानून नया था और ये लेट फीस के कानून ना सिर्फ सख्त थे बल्कि लेट फीस की राशि का डीलर द्वारा भुगतान किये जाने वाले कर की राशी से भी कोई संबंध नही था और इसके कारण हुआ यह कि जिन कर दाताओं के कोई कर की मांग नहीं थी उन्हें भी लेट फीस के रूप में हजारों रूपये की लेट फीस जमा करानी पड़ी थी.
जीएसटी के दौरान ई –वे बिल का एक प्रावधान है जिसके अनुसार 50 हजार से अधिक के माल की सप्लाई पर ई –वे बिल जारी करना होता है और इस प्रावधान को लेकर व्यापार और उध्योग प्रारम्भ से ही असहज महसूस करता रहा है और इस सम्बन्ध में प्रारम्भ से ही दो तरह की मांग की गई उनमें से एक तो थी कि इस फॉर्म की अनिवार्यता को 50 हजार रुपये से बढ़ा कर 2 लाख कर दिया जाए और दूसरी थी कि इस केवल एक राज्य से दूसरे राज्य को गई गई सप्लाई के दौरान ही लागू किया जाए अर्थात राज्य के भीतर की सप्लाई पर पर ई-वे से या तो मुक्ति दी जाए या कोई छूट दी जाये .
जीएसटी 2017 में भारत वर्ष में लागू किया गया था और अब हम आज नए वर्ष 2019 में प्रवेश कर रहें है और जुलाई 2017 से अभी तक जीएसटी में क्या –क्या हुआ इसके बारे में हम लगातार चर्चा करते रहें हैं आइये आज देखें कि 2019 में आप जीएसटी से क्या आशा और उम्मीद रख सकते हैं:-
In this article we will analyse what are the reasons of this chaos but first of all we should be agree on one fact of GST that whatever may be respect we all Indian Citizens have in their mind about the IT company handling GSTN , it is the fact that GSTN is a total failure in these 18 Months
जिस समय भारत में जीएसटी लगाया गया था उस समय भी यही बताया गया था कि जीएसटी की प्रक्रियाएं जिस प्रकार से कठिन से कठिन बनाई जा रही है और व्यापार एवं उध्योग के लिए इन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा . इसका एक बहुत बड़ा कारण था कि जीएसटी भारत में लाया तो एक बहुत अच्छे उद्देश्य से था लेकिन इसे जिन लोगों ने प्रारम्भ में बनाया उनका एक ही ख्याल था कि जीएसटी में कर की चोरी किस तरह से रोकी जाये और इसी एक मात्र उद्देश्य ने जीएसटी की सरलीकरण की राह में बहुत बड़ी बाधा खड़ी कर दी जो कि जीएसटी का मुख्य उद्देश्य था और इस सख्ती ने आज हालात यहाँ तक पहुचा दिए है कि अब ये सवाल पूंछा जा रहा है कि क्या अब भी जीएसटी को बचाया जा सकता है ?
जीएसटी कौंसिल की 31वीं मीटिंग जो 22 दिसम्बर 2019 को हुई है इससे आम करदाता एवं कर विशेषज्ञों को बहुत अधिक उम्मीद थी . आइये एकबार देखें कि क्या ये उम्मीदें पूरी हुई या फिर से उन्हें निराश होना पडा. आइये देखें कहाँ तक करदाता की उम्मीदें पूरी हुई है और जहां नहीं हो पाई उनमें आगे क्या उम्मीद है और जहाँ नहीं हुई है वहां सरकार की क्या मजबूरियां थी .
जीएसटी कौंसिल की 31वीं मीटिंग 22 दिसंबर 2018 अर्थात इससे सप्ताह में होनी है और इस समय जीएसटी जिस हालात से गुजर रहा है ,आप समझ सकते हैं कि यह मीटिंग बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण हो गई है क्यों कि हमने अपने पहले लेख में आपको बताया था कि जीएसटी में ना सिर्फ बहुत अधिक सुधार की गंजाइश है बल्कि अब यह जीएसटी के अस्तित्व के लिए अनिवार्य भी है .
इस समय भी जीएसटी सिस्टम सही से काम नहीं कर रहा है और रिटर्न भरनी की अंतिम तिथी जब भी होती है तब यह सिस्टम फ़ैल हो जाता है लेकिन अभी हाल ही मै अंतिम तिथी के कई दिन पहले भी बंद होना प्रारम्भ हो गया है .
After writing few articles of the intricacies of the E-filing of Tax audit report we are receiving regular queries from various fellow professionals , out of which we have selected some of the common questions which are being answered here for the benefit of other readers and fellow professions.
The Journey of GST in India is now completing one year and it is the time to analyse the impact of GST on all the stakeholders viz. The Law makers- Government of India, The Taxpaying Public- the dealers and the professionals managing the GST- The Tax Professional, Tax advocates and the CAs.