जिन करदाताओं ने मार्च 2024 के आयकर रिटर्न अभी भरे थे और उनकी आय में केपिटल गेन की आय है तो इस समय उनमें से अधिकांश करदाता को मांग जमा करवाने के नोटिस आ रहे हैं . ऐसा क्या हुआ है कि इनमें से हर करदाता ने गलत ही रिटर्न भरा या बनने वाला कर नहीं चुकाया है . क्या ऐसा हो सकता है कि ये सभी गलत थे जो कि संभव नही है . आइये देखें कि आखिर हुआ क्या है जो आयकर कानून के इतिहास में इतने अतिरिक्त मांग कर जमा करवाने के नोटिस जारी हुए है .
ये मामला जुडा है आयकर की धारा 87 A से जिसके तहत 7 लाख रूपये की कुल आय तक के करदाता को 25 हजार रूपये की बनने वाले कर में से छूट मिलती है और उस कारण उसे कोई कर नहीं चुकाना होता है या कम कर चुकाना होता है और इसी का पालन करते हुए इन करदाताओं ने अपने रिटर्न भरे थे और आज भी कई विशेषज्ञों की राय यही है कि कि इस सम्बन्ध में कोई मांग कायम नहीं होनी चाहिए तो फिर एकाएक क्या हुआ जो अब इन करदाताओं पर कर जमा कराने का बोझ डाला जा रहा है .
5 जुलाई 2024 तक विभाग की भी यही राय थी जो ऊपर लिखी है और आयकर पोर्टल की यूटिलिटी भी इसी धारणा पर काम कर रही थी . देश में कार्यरत सभी आयकर सॉफ्टवेयर भी इसी धारणा के आधार पर कार्य कर रहे थे. 5 जुलाई 2024 अचानक विभाग ने की इस धारा 87 A जिसके तहत 7 लाख की कुल आय पर 25 हजार रूपये की कर में छूट मिलती थी के बारे में अपनी राय और व्याख्या बदल दी और इसमें से वो आय निकाल दी जिन पर एक विशिष्ट कर की दर से कर लगाया जाता था जिसमें मुख्य रूप से शेयर्स पर होने वाला शोर्ट टर्म केपिटल गेन और शेयर्स को छोड़कर अन्य सम्पति जैसे मकान , जमीन इत्यादि पर होने वाला लॉन्ग टर्म केपिटल गेन शामिल है. इस सभी पर अब चूँकि 25 हजार रूपये की छूट ख़त्म कर दी गई है इसलिए उन सभी को अब इस आय पर मांग जमा कराने के नोटिस प्राप्त हो रहें है .
अब आप सोचिये कि क्या देश का आयकर कानून क्या विभाग की समय -समय पर बदलती व्याख्याओं पर आधारित होगा ? यह एक विचारणीय प्रश्न है . जब यह धारा 87 A परिवर्तित रूप में लागू की गयी थी तब भी ऐसी कोई धारणा या कानून की भावना व्यक्त नहीं की गई थी . इस वर्ष के जब रिटर्न भरे जा रहे थे तब भी विभागीय राय करदाता के पक्ष में थी तभी तो विभाग की यूटिलिटी भी इसी आधार पर बनाई गयी थी. आज भी अधिकाँश कर विशेषज्ञों के अनुसार अभी भी विभाग की राय सही नहीं है और यह कार्यवाही कानून की अचानक की गई गलत व्याख्या पर आधारित हो सकती है . 5 जुलाई 2024 को ना तो कोई कानून में कोई परिवर्तन हुआ था ना ही कोई नयी अधिसूचना उस दिन जारी हुई थी फिर इस तरह से कानून की व्याख्या में परिवर्तन का अधारा क्या है ? क्या 5 जुलाई से पूर्व कानून की गलत व्याख्या की गई थी और यदि ऐसा भी है तो इसकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए ना कि करदाताओं को इसका दंड दिया जाए.
सरकार को ध्यान देना चाहिए कि इस तरह की कार्यवाही छोटे कर दाताओं में पूरे सिस्टम पर एक अविश्वास उत्पन्न करती है. ये सभी करदाता छोटे करदाता ही हैं क्यों कि धारा 87 A केवल 7 लाख की आय के करदाताओं पर ही लागू है और इसीलिये इन छोटे करदाताओं को राहत दी जानी चाहिए.