जीएसटी एक्ट 2017 ने डिमांड सेक्शन 73 ,74, 75 ,76,77और 78 हैं। इन सेक्शन के द्वारा किसी भी करदाता से टैक्स ,इंटरेस्ट ,तथा पेनल्टी में जो धनराशि है ।उस की डिमांड की जा सकती है ।आजकल कर निर्धारण वर्ष 2017-2018 के संदर्भ में सेक्शन 61 की कार्रवाई चल रही है। तथा इसी के आधार को मानते हुए सेक्शन 73 की कार्रवाई अपेक्षित है ।आज हम सेक्शन 73 के संदर्भ में एक सामान्य चर्चा कर रहे हैं।
सेक्शन 73 जीएसटी एक्ट में
सेक्शन 73 में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी करदाता ने कर का भुगतान नहीं किया है या कम भुगतान किया है या गलती से रिफंड किए गए या गलत तरीके से लिए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट उपभोग किया है ।तो जीएसटी एक्ट में प्रॉपर ऑफिसर द्वारा सेक्शन 73 की कार्रवाई की जा सकती है।
प्रॉपर ऑफिसर से आशय
जीएसटी एक्ट के अंतर्गत किसी भी कार्य के संबंध में उचित अधिकारी का अर्थ है आयुक्त या केंद्रीय पदाधिकारी जिसे बोर्ड में आयुक्त द्वारा वह कार्य सौंपा गया है।
एससीएन जारी करने की अवधि
जीएसटी एक्ट में सेक्शन 73 के आदेश जारी करने से 3 महीने पहले जारी किया जाना चाहिए। SCN जारी करते समय सेक्शन 73 के अंतर्गत उस आधार का भी उल्लेख होना आवश्यक है ।जिस के संबंध में यह नोटिस जारी किया जा रहा है।
सेक्शन 73 के अंतर्गत जुर्माना कर का 10% या रुपए 10000 जो दोनों में अधिक हों । जुर्माना लगाया जा सकता है।
सेक्शन 73 के अंतर्गत सेक्शन 50 के अनुसार इंटरेस्ट PA 18% प्रतिवर्ष होगी
सेक्शन 73 के अंतर्गत यदि करदाता कर के भुगतान की देयतिथि से 30 दिन के अंदर कर का भुगतान नहीं करता है। तो उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।
कर निर्धारण वर्ष 2018-18 के लिए सेक्शन 73 में आदेश करने की समय सीमा दिसंबर 2023 कर दी गई है ।जिसमें सेक्शन 73 की कार्रवाई दिसंबर 2023 तक पूर्ण करनी है ।तथा SCN 3 माह पूर्व में जारी करना है।
कर निर्धारण वर्ष 2017-18 के लिए उपयोगी कुछ निर्णय की व्याख्या निम्नलिखित है
उपरोक्त बाद में डिप्टी कमिश्नर केंद्रीय माल और सेवा कर ने बैंक के शाखा प्रबंधक को सूचित किया कि उपरोक्त फर्म के मालिक युसूफ फौजदार के खिलाफ दायर कार्रवाई को देखते हुए वह बैंक से किसी भी प्रकार की धनराशि किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरण नहीं करें।
निर्णय
माननीय न्यायालय ने डिप्टी कमिश्नर केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम के आदेश को अवैध माना तथा मात्र जांच के लिए जीएसटी एक्ट की धारा 83 की कार्रवाई नहीं की जा सकती ।यदि जीएसटी विभाग द्वारा सेक्शन 62, 63. 64, 67, 73 और 74 के अंतर्गत कार्रवाई प्रारंभ कर दी है ।तो मात्र कार्रवाई के आधार पर सेक्शन 83 के अंतर्गत संपत्ति/ बैंक खाते की कुर्की गलत है।
लेखक का विचार।
माननीय न्यायालय ने निर्णय सही दिया है ।मात्र जीएसटी एक्ट के किसी सेक्शन में जांच के आधार पर सेक्शन 83 के अंतर्गत संपत्ति/ बैंक खाता की कुर्की/आदेश के आदेश नहीं दिए जा सकते।
उपरोक्त बाद में जून 2018 से दिसंबर 2018 की अवधि के लिए आईजीएसटी /सीजीएसटी का भुगतान न करने के लिए सेक्शन 73 के अंतर्गत करदाता को नोटिस जारी किया गया था। समय के लिए करदाता के प्रार्थना पत्र का जवाब दिए बिना और करदाता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिए बिना आदेश पारित किया गया था। जिसे उपरोक्त उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
निर्णय
माननीय उच्च न्यायालय ने दाखिल याचिका का अवलोकन करने के बाद स्पष्ट किया ।कि जब भी दंड के साथ आदेश पारित किया जाए ।तो करदाता को सुनवाई के लिए अवसर दिया जाना अत्यंत आवश्यक है । उक्त वाद में करदाता ने व्यक्तिगत सुनवाई के लिए भी अनुरोध किया था। लेकिन अधिकारी द्वारा आदेश पारित किया गया जो प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के विपरीत पारित किया गया ।अतः कर अधिकारी द्वारा पारित आदेश को समाप्त किया जाता है।
लेखक का विचार
किसी भी करदाता को सुनवाई का समुचित अवसर दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि करदाता सरकार का ही एक एजेंट है ।जो सरकार के आधार पर उपभोक्ता से कर वसूली करके जमा करता है। अतः प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के अनुसार किसी भी दंडात्मक कार्रवाई के लिए सुनवाई का अवसर दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।
उपरोक्त बाद में करदाता महीने के 20वे दिन के भीतर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदाई था ।जिसके लिए वह अपना मासिक रिटर्न जीएसटीआर 3B दाखिल करने के लिए उत्तरदाई था ।फरवरी 2018 और मार्च 2018 के लिए जीएसटीएन पोर्टल पर GSTR-3B फाइल करने की 31 मार्च 2019 दिखाई जा रही थी ।करदाता ने 31 मार्च 2019 से पूर्व अपने मासिक रिटर्न फाइल कर दिए। जिस के संबंध में कर अधिकारी ने जीएसटीआर 3B के रिटर्न लेट फाइल करने के लिए ब्याज का भुगतान करने का आदेश पारित किया और जीएसटी एक्ट 2017 की धारा 79 के अंतर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए ।ब्याज की वसूली के लिए करदाता के बैंक को आदेश जारी किया।
निर्णय
उपरोक्त बाद में माननीय उच्च न्यायालय ने पक्ष विपक्ष के तर्क सुनने के बाद जीएसटी अधिकारियों के द्वारा सेक्शन 79 को निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया की करद ता ने ने अपने रिटर्न समय अवधि में दाखिल किए हैं यदि सेक्शन 73 के अंतर्गत प्रदाता द्वारा कर का भुगतान या कम भुगतान किया था तो जीएसटी अधिनियम सेक्शन 50 के अंतर्गत ब्याज के लिए नोटिस जारी किया जाना आवश्यक था। जीएसटी एक्ट के सेक्शन 73 उपधारा धारा 5 ,6,7 का संयुक्त निर्णय यह बनता है ।कि यदि करदाता ने अपने रिटर्न फाइल की है निर्धारण कर का भुगतान किया है और ब्याज का भुगतान करता है ।लेकिन करदाता द्वारा भुगतान की गई राशि वास्तव में देयराशि से कम है। अधिकारी को कम भुगतान या कर की राशि की वसूली के लिए सेक्शन 73 उपधारा 1 के अंतर्गत कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकता थी। इसलिए उचित अधिकारी द्वारा जारी किए आदेश का हम समर्थन नहीं करते।
लेखक के विचार। उपरोक्त बाद में माननीय न्यायालय का निर्णय उचित है। जीएसटी एक्ट के सेक्शन 73 उपधारा 2 के अनुसार उचित अधिकारी आदेश जारी करने के लिए उप धारा 10 में निर्धारित समय सीमा से कम से कम 3 महीने पूर्व सेक्शन 73 उप धारा 1 के अंतर्गत नोटिस जारी किया जायेगा।
उपरोक्त वाद में पेटीशनर एक वर्क्स कांट्रेक्टर है तथा खनन संबंधी गतिविधियों में कारोबार करता है वित्तीय वर्ष 2018-19 में वित्तीय विसंगति पाए जाने पर जो जीएसटीआर 2a और gstr3b के बीच अंतर के कारण था। यह विवादित राशि रुपए 6,17,000 थी। जिस के संबंध में जीएसटी ASMT 10 दिनांक 18 अगस्त 2019 को जारी किया गया था ।याचिकाकर्ता ने इस अंतर के संबंध में 4-11-2019 को जवाब दिया कि केवल रुपए 44,303 का अंतर है ना कि रुपए 6,17,000 का जैसा कि विभाग दावा करता है। 1 साल से अधिक समय तक विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया और याचिकाकर्ता पर फार्म जीएसटी drc-01 दिनांक 20 /10/2020 में कारण बताओ नोटिस का सारांश जारी किया जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने अप्रैल 2018 से 2019 की अवधि के लिए आईटीसी का जो दावा किया है। उसे जवाब देने के लिए कर और ब्याज रुपए 14, 36,896 ।उस पर मांग की गई ।झारखंड जीएसटी एक्ट 2017 की धारा 73 के अंतर्गत एक नोटिस भी याचिकाकर्ता को उसी दिन दिनांक 20 /10/2020 जारी किया गया जिसके लिए उसे सहायक दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था ।याचिकाकर्ता ने 29/10/2020 को जवाब प्रस्तुत किया और अधिकारी से gstr2a और GSTR 3B की अंतर की गणना करने का अनुरोध किया और उनके द्वारा किए गए किसी भी अतिरिक्त कर का भुगतान करने पर अपनी सहमति दी।याचिकाकर्ता के मुताबिक जीएसटी कारण बताओ नोटिस के अंतर्गत कारण बताओ नोटिस में मांग विवरण से भिन्न है। विभाग द्वारा याचिकाकर्ता के अनुसार उसके जवाब पर ध्यान नहीं दिया गया 14 /12 /2020 को जीएसटी में DRC 07 में एक सारांश आर्डर जारी किया तथा याचिकाकर्ता के इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में भी जमा राशि 12,30,238 को 5/03/2020 को तथा रुपए 4,21,604 को ब्लॉक कर दिया गया ।इसी के विरोध मे याचिकाकर्ता झारखंड हाईकोर्ट में अपनी writ फाइल करता है।
निर्णय
माननीय न्यायालय ने याचिकाकर्ता की WRIT को स्वीकार किया और झारखंड जीएसटी के अधिकारियों को आदेश दिया कि उपरोक्त WRIT में drc-07 को रद्द किया जाता है। तथा 4 सप्ताह में जीएसटी एक्ट के अंतर्गत निर्धारित नियमों का पालन करते हुए नई कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।
लेखक का विचार
उक्त बाद में न्यायालय द्वारा उचित कार्रवाई के लिए जीएसटी अधिकारियों को स्पष्ट किया कि विधि द्वारा प्रतिपादित विधि और नियमों का पालन किया जाना अति आवश्यक है ।उपरोक्त WRIT में याचिकाकर्ता को asmt-10 जारी करने के बाद याचिकाकर्ताओं द्वारा अपना जवाब प्रेषित किया ।लेकिन एसएमटी ASMT 10 मे कोई कार्रवाई नहीं की गई और उसी तारीख को सेक्शन 73 का नोटिस दिया गया तथा स्पष्टीकरण मांगा गया जिसके लिए समय अवधि कम थी और याचिकाकर्ता को उचित समय अवधि/ उचित नोटिस जारी नहीं किया गया और जीएसटी drc-07 सारांश मांग पत्र के रूप में जारी किया गया जो अनुचित था।
निष्कर्ष
उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है। कि कर निर्धारण वर्ष 2017/18 के लिए यदि सेक्शन 73 ने कोई कार्रवाई की जाती है ।तो हमें वर्तमान में जारी निर्णय का अध्ययन करते हुए करदाता के लिए कार्यवाही सुनिश्चित करनी है।
उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार है
Sir,
Here one thing that when we apply for adjournment in SCN issued in Section 73 DRC01 which provides minimum time 30 days as per Act than no response by PO and after that we pay or reply all taxes with interest after 30 days but in adjournment date as apply -why penalty be imposed .
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