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कानूनी पेशे ने हमेशा न्याय को बनाए रखने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, पूरे भारतवर्ष में वकीलों पर हमलों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है। इन हमलों की बढ़ती संख्या और गंभीरता हिंसा और धमकी से कानूनी समाज की रक्षा के लिए अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की तत्काल आवश्यकता है।

अधिवक्ताओं के लिए बढ़ता खतरा?

देश में, वकील अक्सर अग्रिम पंक्ति में होते हैं, विवादास्पद मामलों में क्लाइंट का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कड़ी प्रतिक्रियाएँ भड़का सकते हैं। चाहे वह आपराधिक बचाव, नागरिक विवाद या जनहित याचिका हो, अधिवक्ताओं को अक्सर असंतुष्ट पक्षों के गुस्से का सामना करना पड़ता है जो धमकी या हिंसा का सहारा ले सकते हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार, देश भर में अधिवक्ताओं पर शारीरिक हमले, धमकी और यहाँ तक कि हत्या की कई घटनाएँ हुई हैं। हर दिन, समाचार पत्र /आउटलेट ऐसे मामलों की रिपोर्ट करते हैं जहाँ वकीलों पर उनके पेशेवर काम के लिए हमला किया जाता है, जो एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति को दर्शाता है जो कानूनी प्रणाली के मूल ढांचे को खतरे में डालता है?

उदाहरण

हाल में प्रयागराज में कोर्ट जाते समय अधिवक्ता के साथ पुलिस द्वारा मार पीट /उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में 2023 में पुलिस द्वारा निहत्थे अधिवक्ताओं पर लाठी चार्ज,/  गाजियाबाद जिला न्यायालय में अधिवक्ताओं पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज,/ उत्तर प्रदेश में एक वकील पर हाल ही में एक मामले के परिणाम से नाखुश व्यक्तियों के एक समूह द्वारा बेरहमी से हमला किया गया था। एक अन्य उदाहरण में, गुजरात में एक वरिष्ठ अधिवक्ता की हत्या एक हाई-प्रोफाइल कानूनी मामले में शामिल होने के कारण की गई थी। /और हाल ही में होसुर (तमिलनाडु) न्यायालय से बाहर आते अधिवक्ता की निर्मम हत्या हुई। /हाल ही में प्रयागराज में अखिलेश शुक्ला नामक अधिवक्ता पर  हमला कर हत्या की गई। ऐसी घटनाएँ अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि वकीलों के खिलाफ हिंसा के व्यापक आधार का हिस्सा हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मौजूदा कानूनी ढाँचा उनकी सुरक्षा के लिए अपर्याप्त है।

वर्तमान परिदृश्य में, भारत में एडवोकेट के लिए कोई अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम (Advocate Protection Act) नहीं है, हां राजस्थान सरकार ने एडवोकेट  के लंबे विरोध/हड़ताल के बाद विधानसभा के विशेष सत्र के जरिए प्रदेश में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लेकर आने वाला पहला प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में भी बार काउंसिल आफ यूपी अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के लिए प्रयासरत है, जिसके लिए श्री शिव किशोर गौड़,  चेयरमैन,बार काउंसिल ऑफ यूपी द्वारा एक समिति का गठन किया गया है ,जिसकी रिपोर्ट राज्य के मुख्यमंत्री श्री योगी को प्रस्तुत की गई है ,तथा जल्द से जल्द एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग की गई है।(सन 2023 में हापुड़ में हुए अधिवक्ता पुलिस विवाद के पश्चात यह कार्रवाई की गई)

विभिन्न अवसरों पर,बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ-साथ कई स्टेट बार काउंसिल/एसोसिएशनों ने केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों से एक अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाने का अनुरोध किया है।

एक निडर और मजबूत बार समाज में न्याय प्रशासन का आधार है। इसलिए, अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए एक विधायी ढांचा समय की मांग है,

वकीलों द्वारा दी गई सार्वजनिक सेवा की प्रकृति और इसमें शामिल जोखिम को ध्यान में रखते हुए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वकीलों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक कानून बनाया जाना चाहिए।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 न्यायाधीशों और लोक सेवकों को पेशेवर कर्तव्य के निर्वहन के दौरान किए गए कार्यों के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से बचाती है। लेकिन इसके विपरीत अधिवक्ता जो न्यायिक व्यवस्था का अभिन्न अंग हैं,उन्हें कानून के तहत कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं है।

ज्यादातर मामलों में, वकीलों को उनके द्वारा उठाए गए मामलों के कारण हमले का सामना करना पड़ता है, लेकिन अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। कानून की कमी के कारण एक वकील को उन मामलों को लेने से बचने के  लिए मजबूर करता है, जहां उन्हें अपनी जान का डर होता है या जहां आरोपी बलात्कारी, आतंकवादी आदि होते हैं , और  एडवोकेट को जनता से आलोचना मिलती है।

अधिवक्ता सुरक्षा अधिनियम क्यों आवश्यक है?

यह कि अधिवक्ता सुरक्षा अधिनियम तथ्यों के आधार पर बनाना आवश्यक है जैसे

1. कानून के शासन को बनाए रखना -अधिवक्ताओं पर हमले कानून के शासन को कमजोर करते हैं। जब अधिवक्ताओं को उनके मुवक्किलों का बचाव करने या न्याय पाने के लिए निशाना बनाया जाता है, तो यह भय का माहौल बनाता है और कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास खत्म करता है। अधिवक्ता सुरक्षा अधिनियम ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ एक निवारक के रूप में काम करेगा, इस विचार को पुष्ट करेगा कि न्याय सर्वोपरि है और इसका प्रतिनिधित्व करने वालों की सुरक्षा की जानी चाहिए।

2. न्याय में बाधा को रोकना-अधिवक्ताओं पर कई हमले कानूनी प्रक्रिया में बाधा डालने की इच्छा से प्रेरित होते हैं। अधिवक्ताओं को डराने या खत्म करने से, अपराधी परिणामों में हेरफेर करने या कार्यवाही में देरी करने का लक्ष्य रखते हैं। अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम ऐसे अपराधों को गंभीर अपराधों के रूप में वर्गीकृत करेगा, जो न्याय को नष्ट करने का प्रयास करने वालों के खिलाफ त्वरित और निर्णायक कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।

3. बढ़ती हिंसा को संबोधित करना-वकीलों पर हमलों की बढ़ती संख्या एक लक्षित कानूनी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। हमले और उत्पीड़न से संबंधित मौजूदा कानून अक्सर अधिवक्ताओं द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट कमजोरियों को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त होते हैं। अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम पेशे से जुड़े अद्वितीय जोखिमों को पहचानेगा और उन्हें कम करने के लिए व्यापक उपाय प्रदान करेगा, जिसमें पुलिस सुरक्षा, आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र और पीड़ितों के लिए मुआवजा शामिल है।

4. न्यायिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करना-अधिवक्ताओं सरकारी कार्यों को चुनौती देकर और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराकर न्यायिक स्वतंत्रता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, पर्याप्त सुरक्षा के बिना, अधिवक्ता ऐसे मामलों को लेने से हिचक सकते हैं जो उन्हें खतरे में डाल सकते हैं। अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम वकीलों को प्रतिशोध के डर के बिना न्याय करने के लिए सशक्त करेगा, जिससे लोकतांत्रिक शासन और कानून का शासन मजबूत होगा।

5. सुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना-अधिवक्ताओं न्याय वितरण प्रणाली के लिए आवश्यक हैं, और उनकी सुरक्षा सीधे उनके कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती है। विशिष्ट कानूनी सुरक्षा की अनुपस्थिति उन्हें शारीरिक नुकसान, मनोवैज्ञानिक आघात और पेशेवर असफलताओं के प्रति संवेदनशील बनाती है। अधिवक्ता सुरक्षा अधिनियम उन लोगों के लिए कठोर दंड स्थापित करेगा जो अधिवक्ताओं को धमकाते हैं या उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे एक सुरक्षित कार्य वातावरण बनता है।

अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम में आवश्यकप्रावधान-

यह कि अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम में कई प्रमुख प्रावधान शामिल होने चाहिए, जिससे इसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाए।जैसे

1. फास्ट-ट्रैक कोर्ट: अधिवक्ताओं के विरुद्ध हिंसा के मामलों से निपटने के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना करना, त्वरित न्याय सुनिश्चित करना और लंबित मामलों को कम करना।

2. जागरूकता और प्रशिक्षण: अधिवक्ताओं की सुरक्षा और कानून के शासन के महत्व के प्रति उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।

3. कठोर दंड:अधिवक्ताओं  के विरुद्ध किसी भी प्रकार की हिंसा या धमकी के लिए कठोर दंड लगाना, जिसमें कारावास और जुर्माना शामिल है।

4. मुआवजा और पुनर्वास: हमलों के पीड़ितों को मुआवजा देना और उन्हें ठीक होने में मदद करने के लिए चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना।

5. सुरक्षा उपाय: उच्च जोखिम वाली स्थितियों में अधिवक्ताओं को पुलिस सुरक्षा प्रदान करना और सुरक्षित न्यायालय परिसर सुनिश्चित करना।

अधिवक्ता संरक्षण विधेयक 2021  संक्षेप में

यह है कि बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा जारी अधिवक्ता संरक्षण विधेयक 2021 का उद्देश्य अधिवक्ता और उनके परिवार को उनके पेशेवर करते हुए का निर्भय करते समय आने वाली विभिन्न प्रतिकूलताओं से बचाना है यह विधेयक अधिवक्ताओं द्वारा अपने कर्ताओं के पालन में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक 7 सदस्य समिति द्वारा यह विधेयक तैयार किया गया था।

यह कि  विधेयक  का प्राथमिक उद्देश्य अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनके काम में बाधा डालने वाली किसी भी बाधा को दूर करना है, यह अधिवक्ताओं की भूमिका पर बुनियादी सिद्धांतों को लागू करने का प्रयास करता है ।जिसे 1990 में अपराध की रोकथाम और अपराधियों के उपचार पर संयुक्त राष्ट्र की आठवीं कांग्रेस के दौरान स्वीकार किया गया था, तथा घोषणा की गई थी कि सरकार को अधिवक्ताओं की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें अपने कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम बनाना चाहिए।

यह कि इस विधेयक में 16  धाराओं के रूप में पहचान की गई ।यह अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अनुसार अधिवक्ता या वकील को परिभाषित करता है और अधिवक्ताओं के खिलाफ किए जाने वाली हिंसा के विभिन्न विकृति  की रूपरेखा भी बनता है।इनको कृत्य धमकी ,उत्पीड़न ,जबरदस्ती, हमला, दुर्भाग्यपूर्ण अभियोजन और संपत्ति का नुकसान शामिल किया गया था ।ऐसे अपराध संज्ञा और गैर जमानती माने गए हैं। इन अपराध के लिए 6 माह से लेकर 5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है और इसके बाद के अपराधों के लिए 10 साल तक की सजा और जुर्माना जो ₹50000 से लेकर 10 लाख तक हो सकता है। का प्रावधान किया गया है, इसके अतिरिक्त अदालतों को गलती पर अधिवक्ताओं को मुआवजा देने का अधिकार देता है। इस विधेयक में प्रस्ताव है कि अपराधों की जांच पुलिस अधीक्षक स्तर से ऊपर के अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए और फिर दर्ज होने के 30 दिन के भीतर इसकी जांच पूरी होनी चाहिए यह उचित जांच के अधीन अधिवक्ताओं के लिए पुलिस सुरक्षा की भी सिफारिश करता है।

यह कि इस विधेयक में एक महत्वपूर्ण प्रावधान जिला, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय सहित प्रत्येक स्तर पर एक निवारण समिति की स्थापना पर बल देता है और अपने-अपने स्तर पर न्यायपालिका की अध्यक्षता वाली समिति अधिवक्ताओं और बार एसोसिएशन की शिकायत का समाधान करेगी। इन समिति की बैठक में बार काउंसिल के अध्यक्ष भी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल हो।

यह कि इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य अधिवक्ताओं को मुकदमे से बचने का प्रयास करता है अधिवक्ता और उनके ग्राहकों के बीच संचार की गोपनीयता सुनिश्चित करता है इसमें कहा गया है कि किसी भी पुलिस अधिकारी को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के विशिष्ट आदेश के बिना किसी वकील को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए या जांच नहीं करनी चाहिए यदि किसी अधिवक्ता के खिलाफ दुर्भाग्यपूर्ण  से FIR दर्ज की जाती है। तो मुख्य  न्यायिक मजिस्ट्रेट    प्रारंभिक जांच के बाद जमानत दे सकता है।

इस विधेयक में अधिवक्ताओं के लिए सामाजिक  सुरक्षा के प्रावधान का प्रस्ताव किया गया है इसमें कहा गया है कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को प्राकृतिक आपदाओं या महामारी जैसी अप्रत्याशित स्थिति में जरूरतमंद अधिवक्ताओं को न्यूनतम 15000 रुपए प्रति माह की वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में जहां एक लोक सेवक को जांच के दौरान किसी अधिवक्ता से प्राप्त विशेषाधिकार प्राप्त संचार या सामग्री का उपयोग करते हुए पाया जाता है तो यह माना जाएगा कि जबरदस्ती शामिल था।

यह कि अधिवक्ता संरक्षण विधेयक 2021 का उद्देश्य अधिवक्ता और उनके परिवार की रक्षा करना है सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है और विधिक सेवाओं की प्रभावी और निर्वाण डिलीवरी सुनिश्चित करना है जो अधिवक्ता के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करता है और समाज में वकीलों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श –

यह कि संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकार परिषद के 35वें सत्र में न्यायाधीशों,अधिवक्ताओं , अभियोग और मानव अधिकार से जुड़े अन्य अधिकारियों की सुरक्षा के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था । इसके कुछ अंश निम्न प्रकार पारित है

प्रस्ताव संख्या 1 में

सभी राज्यों से न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता और अभियोजकों की निष्पक्षता और निष्पक्षता की गारंटी देने के साथ-साथ प्रभावी विधि कानून परिवर्तन और अन्य उचित उपाय करने सहित अपने कार्यों को करने की उनकी क्षमता की गारंटी देने का आह्वान किया गया है ,जिसे कार्य करने में सक्षम बनाया जाएगा। किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप उत्पीड़न या धमकी के बिना उनके पेशेवर कार्य को प्रभावित ना करें।

प्रस्ताव संख्या 7 में

इस बात पर जोर दिया गया कि अधिवक्ताओं को स्वतंत्र रूप से  और प्रतिशोध के किसी भी डर के बिना अपने कार्यों का निर्वहन करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए।

प्रस्ताव संख्या के 9 में

यह कि न्यायाधीशों, अभियोजकों और अधिवक्ताओं के खिलाफ किसी भी कारण से किसी भी ओर से हिंसा धमकी या प्रतिशोध के सभी को कुकर्त की निंदा करता है और राज्यों को न्यायाधीश ,अभियोग  और अधिवक्ताओं की अखंडताओं को बनाए रखने और उनकी रक्षा करने के उनके कर्तव्य की याद दिलाता है तथा अधिवक्ताओं के परिवार और पेशेवर सहयोग के रूप में उनके कार्यों के निर्वहन में परिणाम स्वरुप होने वाली सभी प्रकार के हिसा , धमकी, प्रतिशोध उत्पीड़न  के खिलाफ चाहे राज्य अधिकारी हो या गैर राज्य अधिकारी हो और ऐसे कृयायो की निंदा करें और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करें।

प्रस्ताव संख्या 10 में

यह कि अधिवक्ताओं के खिलाफ बड़ी संख्या में हमले और उनके पेशे के मुक्त अभ्यास में मनमाने या गैर कानूनी हस्तक्षेप या प्रतिबंध के मामले में अपनी गहरी चिंता व्यक्त की, और राज्यों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया, कि अधिवक्ताओं के खिलाफ किसी भी प्रकार के हमले  पर तुरंत कार्रवाई की जाए और पूरी तरीके से और निष्पक्ष रूप से जांच की जाए और अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाए।

उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव के आधार पर भारत सरकार को ऐसा कानून बनाने में कोई बाधा नहीं है। रिपोर्ट को एक स्वतंत्र और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए अधिवक्ता और न्यायाधीशों को गारंटी की सुरक्षा प्रदान करने की सिफारिश करती है। इसलिए केंद्र में राज्य सरकारों को अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाना चाहिए हालिक कुछ राज्य सरकारों ने एक्ट को मंजूरी दी है लेकिन इसके क्रियान्वयन की कार्रवाई शुरू नहीं हुई है।

निष्कर्ष-

यह कि देश  में वकीलों के विरुद्ध बढ़ती हिंसा के वर्तमान माहौल में अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम न केवल एक आवश्यकता है, बल्कि एक अत्यावश्यक अनिवार्यता भी है। हाल में प्रयागराज में अधिवक्ता के साथ हुई घटना पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक पत्र याचिका को अपराधिक जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया है, जिस पर दिनांक 6 फरवरी 2024 को सुनवाई सुनिश्चित की गई है ।अब देखना होगा की मान्य न्यायालय इस विषय पर क्या कार्रवाई करेगा?कानूनी प्रणाली के सुचारू संचालन और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अधिवक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस कानून को लागू करके देश अपनी न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने और नियमों को कायम रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा सकता हैं।

डिस्क्लेमर

यह लेखक के निजी विचार हैं ।जो विभिन्न स्रोतों के आधार पर तैयार किया गया है।

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