घर में कितना सोना हो? – परिवार की हैसियत और माता- पिता के पास रखा होने को पर्याप्त आधार माना गया :
आयकर अपीलीय प्राधिकरण दिल्ली ने वर्ष २०२१-२२ से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में माना की आयकर सर्कुलर में मान्य सोने से अधिक मात्रा में यदि घर में सोना है तो परिवार के रहन सहन के आधार पर इसकी मान्यता तय की जावेगी.
दिल्ली आयकर प्राधिकरण ने कीर्ति सिंह वि. एसीआईटी, आईटीए ९७७ एवं १०६७/दिल्ली/२०२३ निर्धारण वर्ष २१-२२ के संदर्भ में अपने ०७/१२/२३ के फैसले में माना की आयकर विभाग के घर में गोल्ड रखने के मामले में दिए गए सर्कुलर नम्बर १९१६ दिनांक ११/०५/१९९४ के पैरा ३ में साफ तौर पर इंगित किया गया है कि व्यक्ति की आय और हैसियत के हिसाब से घर में लिमिट से ज्यादा सोना होना मान्य किया जा सकता है.
ऐसा ही फैसला दिल्ली हाईकोर्ट के केस अशोक चढ्ढा वि. आईटीओ (२०११) टैक्समेन ५७ (दिल्ली) में भी दिया गया, जिसके आधार पर प्राधिकरण ने माना कि करदाता के पास ४१४.७० ग्राम अधिक सोना ( ५०० ग्राम की लिमिट से ज्यादा) होना उसके आय एवं पारिवारिक ठाठ-बाट के हिसाब से उचित है और मान्य किया गया.
इसके अलावा करदाता की शादी शुदा बहनों का सोना मां बाप के पास रखा होने को पर्याप्त आधार माना गया. करदाता द्वारा बताया गया कि करीब ७६४ ग्राम सोना उसकी दो शादी शुदा बहनों का है जो उन्होंने अपने मां बाप के पास घर में रखा है जिसे आयकर अधिकारी ने अमान्य कर दिया था.
आयकर अपीलीय प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए कहा कि प्रतिभा रानी वि. सूरज कुमार (१९८५) (२) एससीसी ७० में माननीय उच्चतम न्यायालय ने साफ तौर पर कहा कि स्त्री के पास सोना होना स्त्रीधन की श्रेणी में आता है जिसका उपयोग वह चाहे किसी भी रूप में करें या चाहे कहीं भी रखें. इसलिए अपने मायके में या मां-बाप के पास रखें सोने को भी स्त्री धन माना जावेगा और वह मान्य होगा.
इसी तरह यह भी माना गया कि हमारे देश में रीति रिवाज के अनुसार पारिवारिक हैसियत के हिसाब से विभिन्न समारोहों तीज त्योहारों पर सोना चांदी गिफ्ट देने की पंरपरा है और इसलिए किसी स्त्री के पास उसके ठाठ-बाट के हिसाब से ५०० ग्राम की लिमिट से अधिक सोना होने को भी पर्याप्त आधार माना.
निष्कर्ष
दिल्ली आयकर अपीलीय प्राधिकरण का यह निर्णय घर में रखे सोने की मात्रा और उसकी मान्यता के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मिसाल है। यह निर्णय न केवल करदाताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि पारिवारिक परंपराओं और समाज में स्त्रीधन के महत्व को भी मान्यता देता है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों को आधार बनाते हुए, इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आयकर अधिकारियों को केवल आयकर सर्कुलर की सीमाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि करदाता की व्यक्तिगत हैसियत और पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखना चाहिए। इस निर्णय से निश्चित रूप से भविष्य में आयकर मामलों में एक नया दृष्टिकोण विकसित होगा और करदाताओं को उचित न्याय मिल सकेगा।
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