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1 जुलाई 2017 से लागू किए गए जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 16(4) की समय सीमा को लेकर केरल उच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। 𝘔/𝘴 𝘔. 𝘛𝘳𝘢𝘥𝘦 𝘓𝘪𝘯𝘬𝘴 𝘝/s. 𝘜𝘯𝘪𝘰𝘯 𝘰𝘧 𝘐𝘯𝘥𝘪𝘢 [𝘞𝘗(𝘊) 𝘕𝘰. 31559 𝘰𝘧 2019 केस में न्यायालय ने धारा 16(2)(c) और 16(4) की संवैधानिक वैधता पर विचार करते हुए करदाताओं के पक्ष में महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। इस लेख में, हम इस केस का विश्लेषण करेंगे और उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रमुख बातों को समझेंगे। 

Issue ?

क्या जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 16(2)c और धारा 16(4 ) संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती है। स्वीकार योग्य है या नहीं?

यह कि दिनांक 4 जून 2024 को माननीय केरल उच्च न्यायालय ने उपरोक्त रिट पिटीशन में जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 16(2)(c) के और 16(4) के संबंध में दाखिल याचिका m/s एम. ट्रेड .लिंक्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया & others  के संबंध में उपरोक्त धारा के संबंध में उसके संवैधानिक प्रावधानों का समर्थन किया है ।लेकिन साथ ही करदाता के पक्ष में धारा 16(4) की समय अवधि को विस्तारित किया गया हैI तथा माननीय न्यायालय ने विभिन्न टिप्पणियों से इस रिट का समर्थन किया हैI इस WRIT  के माध्यम से हम इस  का मूल्यांकन करते हुए न्यायालय की टिप्पणियों का निष्कर्ष निकालने की कोशिश करेंगे –

सर्वप्रथम हम याचिका कर्ता द्वारा प्रस्तुत रिट में किन बिंदुओं को घोषित किया है ।और किस आधार पर धारा 16(2)( सी )और धारा 16(4) के संवैधानिक पहलुओं पर विचार करेंगेI याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में सारांश रूप में निम्न तथ्यों को प्रस्तुत किया है

याचिका के आधार :-

1. याचिका कर्ता ने सर्वप्रथम रिट में निवेदन किया है। कि यह प्रोसीजर प्रावधान है। जो धारा 16(4) में आता है। प्रकिया प्रावधान का सहारा लेकर किसी करदाता के मूल अधिकार अर्थात इनपुट सप्लाई पर आईटीसी के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता।

2. जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 16(4) के प्रावधान मनमाने हैं I इसलिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (संविधान केअनुच्छेद14 के तहत गारंटीकृत समानता का मौलिक अधिकार,)भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत नागरिकों को कोई भी पेशा अपनाने या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करने का मौलिक अधिकार दिया गया है।. यह अधिकार नागरिकों को आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की आज़ादी देता हैI) का उल्लंघन करते हैं। तथा धारा 155 का मनमाने तरीके से प्रयोग गलत है।

3. यदि जीएसटी r3b जीएसटी r 1 विलंब शुल्क और ब्याज के साथ रिटर्न दाखिल करने से उसका दोष दूर हो जाता है ।तो एक बार विलंब शुल्क के साथ रिटर्न दाखिल करने के बाद करदाता का आईटीसी के संबंध में दावा असफल नहीं होना चाहिए अन्यथा अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत उसे स्वीकार करना चाहिए। जब रिटर्न विलंब शुल्क के साथ स्वीकार किया गया। तो डीलर आईटीसी के लिए पात्र होगा ।जब एक बार देरी को नियमित कर दिया जाता है। तो ऐसे रिटर्न को निर्धारित तिथि के भीतर माना जाना चाहिए।

4.आपूर्तिकर्ता कर एकत्र करने के लिए सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करता है। यह कि  आपूर्तिकर्ता डीलर प्राप्तकर्ता डीलर से कर (Tax)एकत्र करने के लिए सरकार के एजेंट(Agent )के रूप में कार्य करता है। प्राप्तकर्ता डीलर आपूर्तिकर्ता डीलर से माल या सेवाओं की आपूर्ति प्राप्त करते समय उसे कर(Tax )का भुगतान किया गया है।, और आपूर्तिकर्ता डीलर सरकार की ओर से कर(Tax )एकत्र करता है। जिसे वह सरकार के पास जमा करवाता है। यह प्रस्तुत किया गया है। कि यद्यपि कर (Tax)सरकार द्वारा आपूर्तिकर्ता डीलर के माध्यम से एकत्र किया गया है। लेकिन प्राप्तकर्ता डीलर को ITC इस आधार पर अस्वीकार कर दिया जाएगा । कि वह समय पर GSTR-3B में रिटर्न दाखिल नहीं कर सका और उसने धारा 16(4) के तहत निर्दिष्ट समय के भीतर ITC का दावा नहीं किया।

5. याचिका कर्ता ने यह भी प्रश्न उठाया कि  आईटीसी क्रेडिट जीएसटी अधिनियम में करदाता के लिए एक सुविधा है। जिसके हित अधिकारों की प्रकृति करदाता के पक्ष में है अर्थात अर्जित आईटीसी करयोग  व्यक्ति की संपत्ति है ।इसलिए आईटीसी से इनकार करना। भारत के संविधान के अनुच्छेद 300 ए (कानून के अधिकार के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। वंचित करने के लिए उचित प्रक्रिया एवं विधि के अधिकार का पालन करना होगा) का उल्लंघन होगा।

6. जी.एस.टी.आर.-3बी में आई.टी.सी. का खुलासा न करना केवल एक प्रक्रियागत चूक है।चूंकि आई.टी.सी. का ब्यौरा जी.एस.टी.आर.-2ए में पहले से ही उपलब्ध है।जो कि धारा 16(4) के तहत निर्धारित तिथि से पहले विभाग के पास उपलब्ध है। और आई.टी.सी. का लाभ जी.एस.टी.आर.-3बी में खुलासा मात्र होगा।इसलिए जी.एस.टी.आर.-3बी में तय तिथि के भीतर खुलासा न करने मात्र की प्रक्रियागत चूक के कारण पर्याप्त लाभ से इनकार नहीं किया जा सकता है।

7. एक्ट का उद्देश्य: धारा 16(4) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है ।कि पंजीकृत करदाता के खातों की पुस्तकों में निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर समय पर आईटीसी लिया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 16(4) अगले वर्ष के सितंबर महीने के जीएसटीआर-3बी को देरी से दाखिल करने की स्थिति में पिछले वित्तीय वर्ष से संबंधित आईटीसी का लाभ उठाने की अनुमति नहीं देती है। जीएसटी के शुरुआती वर्षों के दौरान रिटर्न दाखिल करने से जुड़ी पेचीदगियों और जटिलताओं, तकनीकी गड़बड़ियों(जीएसटी विभाग द्वारा बार बार संशोधन नोटिफिकेशन जारी करना पोर्टल का क्रश होना पोर्टल पर समय से कार्यालय होना), बार-बार संशोधनों, पात्र आईटीसी का पता लगाने में अपनाई जाने वाली सावधानीपूर्वक प्रक्रिया, गतिशील रिटर्न जीएसटीआर-2ए के माध्यम से क्रेडिट के प्रवाह को समझने में करदाता के ज्ञान के स्तर और अन्य संबंधित कारणों पर विचार किया जाना चाहिए।  इसलिए, यदि रिटर्न विलंब शुल्क के साथ निर्धारित समय से परे दाखिल किया गया है।तो करदाता  को जीएसटीआर-2ए में दर्शाए गए आईटीसी के लिए उस के दावे से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।

उपरोक्त तथ्य रिट पिटीशन में प्रस्तुत किए गए। जिस पर माननीय केरल हाई कोर्ट द्वारा टिप्पणी करते हुए निम्न बिंदु के द्वारा अपना निर्णय दिया।

8. आईटीसी (ITC) न देने से दोहरा कराधान होता है: यह भी कहा गया है। कि यह दोहरा कराधान है।प्राप्तकर्ता डीलर ने आपूर्तिकर्ता डीलर के माध्यम से सरकार को प्राप्त आपूर्ति पर कर का भुगतान पहले ही कर दिया होगा।लेकिन यदि उसने किसी कारण से समय पर आईटीसी का दावा करते हुए जीएसटीआर-3बी पर रिटर्न दाखिल नहीं किया है। तो उसे ब्याज और जुर्माने के साथ पूरा कर चुकाना पड़ता हैं। इसलिए, यह भी कहा गया है। कि समय पर जीएसटीआर-3बी दाखिल करके आईटीसी का दावा करने की ऐसी शर्त अनुचित और जीएसटी व्यवस्था की भावना के विरुद्ध मनमानी है।

उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय:

(a) केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया ।कि इनपुट टैक्स क्रेडिट वैधानिक योजना के तहत डीलर को दिए जाने वाले लाभ या रियायत की प्रकृति का है। यह 𝒏𝒐𝒕 𝒂𝒏 𝒂𝒃𝒔𝒐𝒍𝒖𝒕𝒆 𝒓𝒊𝒈𝒉𝒕, 𝒃𝒖𝒕 𝒊𝒕 𝒄𝒂𝒏 𝒃𝒆 𝒔𝒂𝒊𝒅 𝒕𝒉𝒂𝒕 𝒊𝒕 𝒊𝒔 𝒂𝒏 𝒆𝒏𝒕𝒊𝒕𝒍𝒆𝒎𝒆𝒏𝒕  𝒔𝒖𝒃𝒋𝒆𝒄𝒕 𝒕𝒐 𝒕𝒉𝒆 𝒄𝒐𝒏𝒅𝒊𝒕𝒊𝒐𝒏𝒔 𝒂𝒏𝒅 𝒓𝒆𝒔𝒕𝒓𝒊𝒄𝒕𝒊𝒐𝒏𝒔 𝒂𝒔 𝒆𝒏𝒗𝒊𝒔𝒂𝒈𝒆𝒅 𝒊𝒏 𝑺𝒆𝒄𝒕𝒊𝒐𝒏𝒔 16(2) 𝒕𝒐 16(4), 𝑺𝒆𝒄𝒕𝒊𝒐𝒏 43, 𝒂𝒏𝒅 𝑹𝒖𝒍𝒆𝒔 𝒎𝒂𝒅𝒆 𝒕𝒉𝒆𝒓𝒆𝒖𝒏𝒅𝒆𝒓.

(b) न्यायालय ने माना कि शर्तें, प्रतिबंध और 𝐭𝐢𝐦𝐞 𝐥𝐢𝐦𝐢𝐭 𝐚𝐫𝐞 𝐜𝐫𝐮𝐜𝐢𝐚𝐥 𝐟𝐨𝐫 𝐠𝐫𝐚𝐧𝐭𝐢𝐧𝐠 𝐈𝐓𝐂 और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए कर का संग्रह, अन्यथा, यह राजस्व संग्रह, बजटीय आवंटन को प्रभावित करेगा और राजस्व घाटे का परिणाम होगा। इसलिए, धारा 16 (2) (सी) और धारा 16 (4) की संवैधानिक वैधता को चुनौती खारिज की जाती है।

(c) न्यायालय ने जीएसटी के कार्यान्वयन के दौरान करदाताओं के सामने आने वाली चुनौतियों को भी संबोधित किया और माना कि 𝑰𝑻𝑪 𝒄𝒂𝒏 𝒃𝒆 𝒂𝒗𝒂𝒊𝒍𝒆𝒅 𝒃𝒚 𝒕𝒉𝒆 𝒓𝒆𝒄𝒊𝒑𝒊𝒆𝒏𝒕 𝒇𝒐𝒓 𝒃𝒐𝒏𝒂 𝒇𝒊𝒅𝒆 𝒔𝒄𝒆𝒏𝒂𝒓𝒊𝒐𝒔 𝒍𝒊𝒔𝒕𝒆𝒅 𝒊𝒏 𝒕𝒉𝒆 𝑪𝒊𝒓𝒄𝒖𝒍𝒂𝒓𝒔 संख्या 183/15/2022- जीएसटी दिनांक 27.12.2022 और संख्या 193/05/2023- जीएसटी दिनांक 17.07.2023 𝒐𝒏 𝒔𝒖𝒃𝒎𝒊𝒕𝒕𝒊𝒏𝒈 𝒑𝒓𝒐𝒐𝒇 𝒐𝒇 𝒑𝒂𝒚𝒎𝒆𝒏𝒕 I

(d) जीएसटी व्यवस्था के कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में कठिनाइयों को देखते हुए, न्यायालय ने  30 𝑵𝒐𝒗𝒆𝒎𝒃𝒆𝒓 𝒊𝒏 𝒆𝒂𝒄𝒉 𝒔𝒖𝒄𝒄𝒆𝒆𝒅𝒊𝒏𝒈 𝒇𝒊𝒏𝒂𝒏𝒄𝒊𝒂𝒍 𝒚𝒆𝒂𝒓, 𝒓𝒆𝒕𝒓𝒐𝒔𝒑𝒆𝒄𝒕𝒊𝒗𝒆𝒍𝒚 𝒇𝒓𝒐𝒎 𝑱𝒖𝒍𝒚 2017.

लेखक का मूल्यांकन

उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है। कि जीएसटी अधिनियम में विभिन्न विवादों के बिंदु पर न्यायालय द्वारा विभिन्न प्रकार के निर्णय दिए जा रहे हैं। केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय करदाता के पक्ष में है ।और प्रश्न यह होता है ।कि यह निर्णय करदाता के लिए वर्तमान में किस प्रकार उपयोगी होगा ।मेरे मतनुसार इस निर्णय का उल्लेख अपीलीय प्राधिकारी के पास साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं ।लेकिन वह इसे स्वीकार करेंगे या नहीं यह विचारणीय विषय है ।क्योंकि इस आदेश के के संबंध में जीएसटी काउंसिल ,जीएसटी विभाग या सरकार जब तक एक्ट में संशोधन नहीं करेगी या कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं करेगी ।उस समय तक करदाता द्वारा केवल संभावनाओं पर कार्य करना होगा । माननीय केरल उच्च न्यायालय द्वारा वित्त अधिनियम 2022 के द्वारा धारा 39 के अंतर्गत सितंबर मास को नवंबर मास में संशोधित किया है।

अर्थात वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2020-21 तक धारा 16(4 )में आईटीसी क्लेम करने के लिए 30 नवंबर अंतिम तिथि निर्धारित की है ।क्योंकि वित्तीय वर्ष 2022 -23 से आईटीसी क्लेम के लिए 30 नवंबर अंतिम तिथि है। करदाता को इस निर्णय के संबंध में अपने टैक्स प्रोफेशनल से सलाह करनी चाहिए।

यह लेखक के निजी विचार हैं।

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