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28 फरवरी 2006 को वार्षिक बजट में भारत में पहली बार वस्तु व सेवा कर की प्रणाली का उल्लेख किया गया था। जिसका प्राथमिक उद्देश्य एक एकीकृत कर समाधान लागू करके अप्रत्यक्ष प्रणाली में बहुत बड़ा बदलाव लाना था।

1 जुलाई 2017 से संपूर्ण भारतवर्ष में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम लागू किया गया । जिसमें जीएसटी एक दोहरी संरक्षण है ।जिसके अनुसार माल और सेवाओं की आपूर्ति पर कर लगाने की शक्ति केंद्र और राज्यों को दी गई ।केंद्र के द्वारा केंद्रीय जीएसटी और एकीकृत जीएसटी कर लगाया गया ।जबकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास स्टेट जीएसटी और केंद्र शासित प्रदेशों के पास जीएसटी लगाने का अधिकार है।

जीएसटी एकल कर है ।जिसमें सभी कर शामिल हैं ।तथा बहुत अधिक टैक्स दर ना होकर जीएसटी में 0% 5% 12% 18% और 28% की दर रखी गई है ।इससे पूर्व कर की बहुत अधिक दरें थी ।जिसके कारण व्यापार जगत पर काफी प्रभाव पड़ता था।

जीएसटी एक्ट  में एकरूपता लाने के लिए भारत सरकार ने एक निष्ठापूर्ण कार्य किया था। पहले आपको माल और सेवा की डिलीवरी में शामिल हर स्तर पर टैक्स का भुगतान करना पड़ता था ।जबकि जीएसटी में एक ही प्रोडक्ट पर बड़े टैक्स सिस्टम को हटा दिया गया है ।और सिंगल टैक्स का सिस्टम लागू किया गया है।

जीएसटी को लगे हुए भारतवर्ष में 6 वर्ष पूरे हो गए हैं ।आज हम जीएसटी पर उसके लाभ और उसकी हानियां पर एक समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं ।जिसमें नौकरशाही, कर सलाहकार और करदाता के लिए क्या-क्या लाभ और हानि है ।उसकी विस्तार पूर्वक चर्चा करते हैं

जीएसटी के लाभ

1. एकल कर प्रणाली

 जीएसटी लागू करने से पूर्व भारतवर्ष में वस्तु और सेवा के लिए अनेक कर प्रणाली थी ।जिस कारण करदाता परेशान रहता था ।कभी उसे एक्साइज डिपार्टमेंट में ,कभी सेल टैक्स विभाग में और कभी अन्य विभागों में अपने कागजात प्रस्तुत करने पड़ते थे ।जिसका सीधा लाभ करदाता को एकल कर प्रणाली से हुआ है।

2. एकीकृत बाजार

समान कर प्रणाली होने के वजह से करदाता को एकीकृत बाजार तैयार करने का रोड मैप तैयार हो सका है। तथा आर्थिक प्रतिबंधों को समाप्त किया गया है। जिस कारण सभी राज्यों को भी लाभ का भागीदार बनाया गया है।

3. विभागीय कार्रवाई कम होना

जीएसटी से पहले करदाता को विभिन्न कार्यालय में विभिन्न अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होना पढ़ता था ।जिस कारण उसे आर्थिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता था ।लेकिन इसके लागू होने से कम नियामक की स्थापना हुई है।

4. ऑनलाइन व्यापार में प्रगति

जीएसटी लागू होने से ऑनलाइन व्यापार में जबरदस्त उछाल आया है ।इसके कारण व्यापार बाजार के अतिरिक्त ऑनलाइन मार्केट के द्वारा भी काफी व्यापार होने लगा है ।जिसका सीधा लाभ करदाता को ,सामान खरीदने वाले को और सरकार को कर के रूप में भरपूर सहयोग मिल रहा है।

जीएसटी से नुकसान

जुलाई 2017 से जीएसटी लगा है। उससे जहां कहीं लाभ हुए हैं ।तो कई नुकसान भी हुए हैं। जिसकी भरपाई अभी तक भी नहीं हो पाई है ।जीएसटी के नुकसान के रूप में हम निम्न तथ्यों को शामिल कर सकते हैं

1. खर्चो का बढ़ना

2. एमएसएमई यूनिटों पर अधिक टैक्स की दर का लागू होना।

3. ऑनलाइन मार्केट होने से छोटे उद्यमी और व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है। क्योंकि उनके पास कम पूंजी होती है ।जिस कारण व्यापार के ग्लोबल होने के कारण वह उसका भार सहन नहीं कर पा रहे हैं।

जैसा कि आपने अभी जीएसटी के लाभ हानि के बारे में अध्ययन क्या है। अब हमें इसे तीन भागों में विभक्त करते हैं। जो निम्न प्रकार हैं

1. सरकारी तंत्र अर्थात नौकरशाही

जीएसटी लागू होने से सरकारी तंत्र या नौकरशाही पर किसी प्रकार का नुकसान उसे नहीं हुआ है ।उसकी सेवाएं यथावत हैं ।तथा पहले के मुकाबले अधिक अधिकार दिए जाने के कारण वह अधिक निर्भीक भी हो गया है।

2. कर सलाहकार

जीएसटी लागू होने से सबसे अधिक कर सलाहकार प्रभावित हुए हैं ।निसंदेह कर सलाहकार विभाग और करदाता के मध्य सेतु के रूप में कार्य करते हैं ।लेकिन जीएसटी की सबसे अधिक मार कर सलाहकारों पर ही पड़ी है ।कर सलाहकारों को अपना इंफ्रास्ट्रक्चर चेंज करना पड़ा ।सरकार द्वारा कई सौ संशोधन जीएसटी एक्ट में अब तक किए गए हैं ।जो कर सलाहकार के मस्तिष्क से ऊपर की बातें हैं ।शायद कर सलाहकार रात को सोने के बाद जब सुबह उठना है ।तो एक नया संशोधन उसके सामने होता है ।जो  सलाहकार के लिए विकट समस्या है। साथ ही सारी प्रणाली ऑनलाइन की गई है। जिस कारण उसे अपने कार्यालय में सभी संसाधन उपलब्ध कराने पड़े हैं ।जिसके लिए वह आर्थिक मंदी का भी शिकार हो गया है ।साथ ही कोरोना काल में भी जीएसटी के कर सलाहकारों को मुसीबत में डाला है।

3. करदाता की मुसीबत

जीएसटी लागू करने के बाद कर दाता को अर्थात जो जीएसटी में रजिस्टर्ड कर देयता है ।उन्हें कई विकट समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ।जीएसटी में बहुत अधिक संशोधन होने के कारण उसे पूंजी का नुकसान काफी मात्रा में हो रहा है ।जिस कारण छोटे व्यवसाय और उद्यमी पूंजी के लिए जूझ रहे हैं। जीएसटी में करदाता के स्तर पर कुछ समस्याओं से हम रूबरू कराते हैं

जीएसटी में अधिक पेनल्टी का प्रबंध

जीएसटी में यदि पंजीकृत कर दाता ने नोटिस जारी होने के बाद छोटी से छोटी मांग जमा न करने पर उसे पर सीजीएसटी और एसजीएसटी में रुपए 20000=00 की पेनल्टी का प्रावधान किया गया है ।जो एक अनुचित प्रावधान है। इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं ।यदि किसी व्यवसायी को सीजीएसटी और एस जीएसटी में क्रमशः सो सो रुपए की डिमांड की जाती है ।और वह डिमांड जमा करने में असफल होता है ।तो उसे रुपए 20000=00 की पेनल्टी लगाई लगाई जाती है।

B पंजीकृत करदाता को आईटीसी की दिक्कतें

जीएसटी में एक पंजीकृत करदाता को अपनी आईटीसी प्राप्त करने के लिए इस एक्ट में इतने अधिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। जिसके कारण सप्लायर और परचेज़र के बीच में अविश्वास की दीवार खड़ी हो गई है ।क्योंकि जब क्रेता व्यापारी विक्रेता को कर दे कर आया है ।और उचित टैक्स इनवॉइस उसके पास है ।यदि किन्हीं कारणसे सेलर अपनी रिटर्न और टैक्स जमा नहीं करता है ।तो क्रेता व्यापारी को आईटीसी प्राप्त नहीं होती है ।जिसके कारण उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इस कानून में कहीं भी क्रेता व्यापारी की खरीद को सत्यापित नहीं किया गया है ।केवल उसे पर यह भार डाल दिया गया है। यदि सप्लायर ने अपना जीएसटी 3b दाखिल नहीं किया है ।तो क्रेता व्यापारी को आईटीसी नहीं मिलेगी ।जो बहुत ही अधिक है अव्यवहारिक और असंभव कानून है। कानून दोषी सप्लायर पर कोई कार्रवाई नहीं करता है। जिसका दंड क्रेता व्यापारी को उठाना पड़ता है।

C  कर देरी से चूकने पर अधिक ब्याज दर

जीएसटी एक्ट में किसी रजिस्टर्डपर्सन  यदि अपनी रिटर्न और टैक्स विलंब से दाखिल किया गया। तो उसे 18% से ब्याज भी देना होता है ।यह ब्याज दर भारत के इतिहास में सबसे अधिक ब्याज दर है ।जो व्यावहारिक नहीं है ।इस पर सरकार को विचार करना चाहिए।

D  पंजीयन निरस्त होने के बाद आईटीसी पर विवाद

क्रेता व्यापारी ने विक्रेता से माल खरीदा और उसे जीएसटी दिया  गया ।लेकिन किसी कारण से विक्रेता व्यापारी का जीएसटी रजिस्ट्रेशन अधिकारियों द्वारा पिछली तारीख से निरस्त किया जाता है ।उसे स्थिति में क्रेता व्यापारी से टैक्स और ब्याज की मांग की जाती है ।जो न्याय उचित नहीं ।सरकार को इसे व्यवहारी  बनाया जाना चाहिए।

E जीएसटी में एमनेस्टी स्कीम

जीएसटी विभाग द्वारा जिन व्यापारी ने पिछली रिटर्न दाखिल नहीं की है। उनके रजिस्ट्रेशन बहाल करने के संबंध में एक एमनेस्टी स्कीम निकाली ।ऐसी स्कीम में सरकार ने उन रजिस्टर डीलर से टैक्स , ब्याज ,लेट फीस जमा करने के बाद उनके रजिस्ट्रेशन बहाल कर दिए गए। लेकिन क्रेता व्यापारी ने उनसे माल खरीदा था। और उन्हें जीएसटी दिया था ।उन्हें धारा 16  अंतर्गत लाभ नहीं दिया गया। जिसे सरकार को सोचना चाहिए ।कि वह विक्रेता और क्रेता दोनों से तीन बार टैक्स जमा कर रहे हैं। जो अनुचित और अव्यावहारिक है।

F आरसीएम का विवाद

जीएसटी लागू होने के बाद रिवर्स चार्ज की परेशानियां बहुत अधिक बढ़ गई है। जिसके कारण एक करदाता को आरसीएम के साथ-साथ उसे पर ब्याज भी देना पड़ रहा है। जो शायद नया कानून होने के कारण ज्ञान ना होना। जिसके कारण वह कर जमा नहीं कर पाया। जिसका सीधा-सीधा नुकसान उसकी पूंजी पर हो रहा है ।यदि समय से आरसीएम जमा किया जाता है ।तो वह आईटीसी में दर्ज किया जा सकता है ।लेकिन वित्तीय वर्ष 2017-18 में बहुत अधिक विवाद हो गया है। नया कानून होने के कारण विभाग ने पहले आरसीएम का प्रावधान किया ।उसके पश्चात 12 अक्टूबर 2017 से आरसीएम के प्रावधान में परिवर्तन किया गया है । जिसकी खामियां करदाता को उठाना पड़ रहा है।

निष्कर्ष

जीवन में परिवर्तन होना अति आवश्यक है ।लेकिन परिवर्तन एक सीमा तक अच्छा होता है ।जब से जीएसटी का प्रावधान किया गया है ।उसे पर गंभीर चिंतन नहीं हुआ है ।जीएसटी से जहां सरकार को बहुत अधिक राजस्व की प्राप्ति हुई है ।वहीं करदाता को पूंजी का अत्यधिक नुकसान हुआ है ।कई ऐसे प्रावधान है। जिसके कारण छोटे व्यवसाय और उद्यमी को पूंजी के लिए गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ।सरकार से निवेदन है ।कि वह क्रेता व्यापारी के लिए आईटीसी के प्रावधानों में परिवर्तन करें ।तभी व्यापार सुचारू रूप से चल पाएगा ।जीएसटी लागू होने के बाद भारत के आम नागरिक के जीवन में अत्यधिक महगाई होने का एक कारण जीएसटी भी है।

 जीएसटी ने कर सलाहकारों के लिए अत्यधिक पीड़ा के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया है। क्योंकि दिन प्रतिदिन नए-नए परिवर्तन करके जीएसटी कानून को परिवर्तन कानून में ला दिया गया है ।इसलिए सरकार को परिवर्तन केवल वर्ष में एक बार करना चाहिए। तथा उसका प्रचार प्रसार भी खूब करना चाहिए।

उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार है।

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