जीएसटी एक्ट में धारा 129/130, नियम 138 गुड्स/वाहन को रोकना, अभिग्रहण और अवमुक्त की प्रक्रिया-
ई-वे बिल का एक मुख्य उद्देश्य रास्ते में माल की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करना है। माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की प्रक्रिया में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं पर विचार करें। एक बार जब माल परिवहन के लिए तैयार हो जाता है।, तो ट्रांसपोर्टर को यह सुनिश्चित करना होगा। कि माल के साथ निम्न 2 document होने चाहिए हैं:
i. ई-वे बिल या ई-वे बिल नंबर
ii. चालान/टैक्स इनवॉइस/डेबिट नोट/अन्य
♦ प्रॉपर ऑफिसर द्वारा गुड्स को रोकना या उसका निरीक्षण करना
जब गुड्स परिवहन किया जा रहा है। तो एक प्रॉपर ऑफिसर उस गुड्स को किसी वाहन में होने के कारण रोक सकता है या उसका निरीक्षण कर सकता है। जिसे जीएसटी एक्ट 2017 की धारा 68 के अंतर्गत अधिकार दिया गया है ।वह किसी वाहन को उसके दस्तावेज के सत्यापन या गुड्स के निरीक्षण के लिए रोक सकता है। वह ई वे बिल /चालान आदि सहित ट्रांसपोर्टर के पास मौजूद सभी दस्तावेजों का सत्यापन या निरीक्षण करेगा। यदि गुड्स का जब किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में सत्यापन पहले से ही किया जा चुका हो ।तो उसे अधिकारी को इस सामान का या गुड्स का दूसरा सत्यापन भौतिक सत्यापन नहीं कर सकता ।जब तक के अपवाद स्वरूप अधिकारी के पास किसी चोरी कर अपवंचन की जानकारी ना हो।
माल के रोकने निरीक्षण करने पर दाखिल किए जाने वाले दस्तावेज-
जब प्रॉपर ऑफिसर गुड्स को रोकता है। तो निम्नलिखित डॉक्यूमेंट दाखिल या दिखाए जाएंगे
निरीक्षण के 24 घंटे के अंदर फॉर्म जीएसटी ई 03 भाग 1 में एक सारांश रिपोर्ट
निरीक्षण के तीन दिन के भीतर फॉर्म जीएसटी ई 03 भाग B में एक अंतिम रिपोर्ट
यदि ट्रांसपोर्टर डॉक्यूमेंट उपलब्ध कराने में असफल होता है ।तो-
तो उचित अधिकारी निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन करेगा फॉर्म जीएसटी MOV 01 में ट्रांसपोर्टर का विवरण रिकॉर्ड करेगा।
प्रक्रिया 2 में फॉर्म जीएसटी MOV 02 में माल के निरीक्षण के लिए आदेश जारी करेगा तथा तीसरे चरण में यदि समय अवधि बढ़ानी है ।तो वह फॉर्म जीएसटी MOV 03 के द्वारा अतिरिक्त अवधि बढ़ा सकता है ।निरीक्षण के उपरांत प्रॉपर ऑफिसर फॉर्म जीएसटी MOV 04 में एक रिपोर्ट पोर्टल पर अपडेट करेगा।
यदि रोकने पर निरीक्षण करने में कोई गड़बड़ी नहीं मिलती है ।तो प्रॉपर ऑफिसर फॉर्म जीएसटी MOV 05 में वाहन और सामान जारी करने का एक आदेश पारित करेगा और वहां आगे बढ़ सकता है ।उपरोक्त पूरी प्रक्रिया एक साथ होनी चाहिए। निरीक्षण के आदेश से तीन दिन के भीतर यह प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।
यदि निरीक्षण में गड़बड़ी मिलती है तो प्रॉपर ऑफिसर फार्म जीएसटी MOV 06 के माध्यम से माल को रोक लेगा और एक आदेश पारित करेगा ।तथा फॉर्म जीएसटी MOV 07 के माध्यम से टैक्स और जुर्माना लगाने का नोटिस जारी करेगा।
जीएसटी MOV 7 जारी होने के बाद माल के स्वामी के पास दो विकल्प हैं–
जिसमें वह टैक्स और जुर्माने को स्वीकार करें।
या
टैक्स और जुर्माने पर विवाद करें।
यदि टैक्स और पेनाल्टी स्वीकार किया-
करदाता टैक्स और पेनाल्टी को जमा करे। या Bank Guarantee दे। 7दिनों की अवधि में। उसके बाद फार्म GST MOV 05 जारी किया जाएगा।
विवाद पर प्रॉपर ऑफिसर फार्म GST MOV 09 में आदेश जारी करेगा। जिसमे टैक्स और पेनाल्टी को शामिल करेगा।
टैक्स और जुर्माना ना चुकाने का प्रभाव-
यदि उपरोक्त राशि का भुगतान करने में करदाता असफल होता है।
या
प्रॉपर ऑफिसर को लगता है। कि टैक्स की चोरी हुई है ।तो वह गुड्स /परिवहन को जब्त करने का प्रस्ताव करते हुए ।एक नोटिस जारी करेगा जिसमें नोटिस में भुगतान की जाने राशि जब तक के बदले टैक्स ,जुर्माना जुर्माना की राशि अंकित करेगा। यह रकम तीन माह के अंदर चुकानी होगी। अंतिम आदेश पारित होने से पहले प्रॉपर ऑफिसर को करदाता को सुनवाई का अवसर प्रदान करना अनिवार्य है।
प्रॉपर ऑफिसर द्वारा अंतिम आदेश पारित करना प्रॉपर ऑफिसर फॉर्म जीएसटी MOV 11 में आदेश पारित करेगा ।और फॉर्म जीएसटी MOV 09 वापस ले लेगा। आदेश का सारांश भी जीएसटी पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। जब वाहन भी जब्त किया जाता है ।तो माल सहित वहां का स्वामित्व केंद्र सरकार या राज सरकार को स्थानांतरित कर दिया जाता है ।और जुर्माना अदा करने पर स्वामित्व बदलता है ।उपरोक्त मामलों के लिए जब करदाता अपंजीकृत है ।तो भुगतान के लिए एक अस्थाई आईडी बनाई जाती है ।और उसी पर सभी कार्य किए जाते हैं।
गुड्स के रोके जाने या निरीक्षण के लिए जीएसटी अधिनियम में जो प्रक्रिया अपनाई गई है। निम्न लिखित प्रक्रिया सारांश रुप में
फ़ार्म का नाम | विवरण फार्म विषय सहित |
GST MOV-01 | वाहन के मालिक, चालक या प्रभारी व्यक्ति का बयान |
GST MOV-02 | माल, वाहन या दस्तावेजों के भौतिक सत्यापन और निरीक्षण के लिए आदेश |
GST MOV-03 | निरीक्षण के लिए 3 दिन से अधिक समय बढ़ाने का आदेश |
GST MOV-04 | भौतिक सत्यापन रिपोर्ट |
GST MOV-05 | गुडस अवमुक्त करने के आदेश |
GST MOV-06 | गुडस रोकने का आदेश। धारा 129(1)/IGST धारा 20के अंतर्गत |
GST MOV-07 | कर और जुर्माना राशि निर्दिष्ट करने वाली सूचना धारा 129(3) |
GST MOV-08 | माल/वाहन की अनंतिम रिहाई के लिए बांड |
GST MOV-09 | कर एवं शास्ति की मांग का आदेश और मांग पत्र DRC 07जारी |
GST MOV-10 | माल जब्त करने की सूचना टैक्स और जुर्माना धारा 130के अंतर्गत |
GST MOV-11 | माल और परिवहन की जब्ती का आदेश और कर, जुर्माना और जुर्माना की मांग GST MOV 09वापस होगा।DRC 10 नीलामी धारा 79(1)(b) या धारा 129(6) के अंतर्गत। |
धारा 129 के अंतर्गत माल को रोकना /निरीक्षण करना/ जब्त करने के संदर्भ में फॉर्म जीएसटी MOV 01 से लेकर MOV 11 तक को नियम में शामिल नहीं किया गया है। केवल सर्कुलर संख्या 41/15/2018 GST/DATE 13.04.2018द्वारा इसके फॉर्म को जारी किया गया है। जिसे नियम 138 से 138D तक परिभाषित किया गया है।
माननीय हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा ई वे बिल से संबंधित कुछ निर्णय
1. Different route
कमर्शियल स्टील कंपनी v/s असिस्टेंट कमिश्नर जीएसटी 2020 पर GSTJ Online 94 T G 2020 38 GSTJ 332
दूसरे रास्ते पर जाने के कारण माल रोक नहीं जा सकता ।इस पर माननीय हाईकोर्ट तेलंगाना द्वारा माल को मुक्त करते हुए जमा धनराशि वापस करने के आदेश दिए।
2. Wrong name
Robbins Tunneling & Trenchless Technology India (Pvt)Ltd v/s स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 20215 GSTJ ONLINE 81 एमपी 2021 140 GSTJ 427
उपरोक्त वाद में पेटीशनर द्वारा विदेश से मशीन मंगाई गई ।लेकिन क्लीयर एजेंट द्वारा त्रुटि वश कस्टम पर रजिस्टर्ड ऑफिस जो उसका कटनी (एमपी)में था .।ई वे बिल में अपना नाम दर्ज कर दिया गया ।इसको आधार मानते हुए एमपी जीएसटी अधिकारी द्वारा माल रोका गया तथा पेनल्टी लगाई गई इसके संबंध में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा पिटीशन स्वीकार करते हुए ।सर्कुलर दिनांक 14 नवंबर 2018 का संदर्भ ग्रहण किया और माल / जमा राशि को और अवमुक्त किया। इसके संबंध में SLP माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा डिसमिस कर दी गई। और स्पष्ट किया गया कि टैक्स की कोई चोरी नहीं हुई मात्र नाम गलत लिखने से कर चोरी प्रमाणित नहीं हुई।
3. Expiry of e way bill
राजनीतिक कारण से ट्रैफिक बंद होने के कारण ई वे बिल की समय अवधि निकल जाने के कारण जीएसटी अधिकारियों द्वारा माल रोका गया ।टैक्स और पेनल्टी लगाई गई जिस पर हाईकोर्ट तेलंगाना ने स्पष्ट किया। कि इसमें करदाता का क्या दोष है ।और माल और जमा धन राशि को अब मुक्त किया गया। इस आदेश के विरुद्ध जीएसटी विभाग द्वारा एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई ।जिस पर मान्य सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए एसएलपी को निरस्त किया।
4. Technical ground no penalty
टैक्स चोरी के इरादे के सबूत के बिना ई-वे बिल पते में तकनीकी त्रुटि पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। ऋद्धि सिद्धि ग्रेनाइट और टाइल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहबाद उच्च न्यायालय (रिट टैक्स नंबर – 298 ऑफ़ 2024; 01-मार्च-2024)*
5. E way bill generate before seizure proceeding no penalty
जहां जब्ती की कार्यवाही और जब्ती आदेश से पहले ई-वे बिल तैयार किया जाता है। वहां जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय आधुनिक व्यापारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (रिट टैक्स संख्या 763/2018; 09-मई-2018)*
6. Clerical mistake/विसंगति को दूर किया जाता है।तो पेनल्टी नहीं लग जा सकती जहां लिपिकीय त्रुटि और विसंगतियों को हिरासत/जब्ती आदेश से पहले ठीक कर लिया गया था, वहां जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। गैलेक्सी एंटरप्राइजेज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (रिट टैक्स संख्या 1412/2022; 06-नवंबर-2023)
7. वहां जब्त करने से पूर्व सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक है
मैसेज अकबर अली ट्रांसपोर्ट सर्विस बनाम स्टेट ऑफ़ यूपी और अदर रिट पिटीशन नंबर 1524/2023 निर्णय दिनांक 9 जनवरी 2024
8.. वाहन संख्या गलत डालने पर पेनल्टी नहीं लगाई जा सकती
जहां ई-वे बिल में टाइपोग्राफ़िकल त्रुटि के कारण वाहन संख्या DL1 AA 5332 को DL1 AA 3552 के रूप में उल्लिखित किया गया था, कर चोरी करने का कोई इरादा नहीं है, जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। हिंदुस्तान हर्बल कॉस्मेटिक्स बनाम यूपी राज्य में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (2019 का रिट टैक्स नंबर 1400; 02-जनवरी-2024) जहां ई-वे बिल में टाइपोग्राफ़िकल त्रुटि के कारण वाहन संख्या HR-73/6755 को UP-13T/6755 के रूप में उल्लेखित किया गया है, कर चोरी का कोई इरादा नहीं है, जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। वरुण बेवरेजेज लिमिटेड बनाम यूपी राज्य में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (रिट टैक्स संख्या 958/2019; 02-फरवरी-2023)*
9. आपराधिक मनःस्थिति”(Mens Rea)
सुप्रीम कोर्ट ने माना है। कि दंड लगाने के लिए हर अपराध में “आपराधिक अपराध” एक आवश्यक घटक है। *[बिक्री कर आयुक्त, उत्तर प्रदेश बनाम संजीव फैब्रिक्स; 10-सितंबर-2010]* आम तौर पर जुर्माना तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि कोई व्यक्ति जानबूझकर एक्ट की अवहेलना नहीं करता
या
अपमानजनक या बेईमान आचरण का दोषी नहीं होता,
या
अपने दायित्वों के प्रति सचेत उपेक्षा में काम नहीं करता। जुर्माना केवल इसलिए नहीं लगाया जाएगा कि ऐसा करना वैध है।छोटे-मोटे उल्लंघनों के लिए या यह मानते हुए कि कानून द्वारा इसकी आवश्यकता नहीं है,। सद्भावनापूर्वक कार्य करते समय कोई दंड नहीं। *हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड बनाम उड़ीसा राज्य में सर्वोच्च न्यायालय; 04-अगस्त-1969
निष्कर्ष
उपरोक्त समीक्षा से स्पष्ट है ।कि जीएसटी एक्ट 2017 के अंतर्गत धारा 129 और 130 दोनों अलग-अलग धाराएं हैं ।दोनों की प्रक्रिया अलग-अलग है ।जहां धारा 129 समाप्त होती है ।वहां धारा 130 शुरू होती है अर्थात धारा 129 से ही धारा 130 का जन्म होता है। यह स्पष्ट है ।कि कर अधिकारियों का केवल ध्यान केवल कर संग्रह करना है ।और करदाता को प्रथम अपील या हाई कोर्ट से ही लाभ मिलता है। जीएसटी एक्ट में धारा 129 /130 को 1 जनवरी 2022 से अलग-अलग विभक्त किया गया ।इस संदर्भ में माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कई writ में अपना मत व्यक्त किया है। कि पेनल्टी लगाने के समय Mens Rea सिद्ध करना जरूरी है। लेकिन धारा 129 में बहुत ही छोटी-छोटी त्रुटी पर टैक्स और पेनाल्टी लगाई जा रही है ।अर्थात केवल कर का संग्रह किया जा रहा है।
यह लेखक के निजी विचार हैं।