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सारांश: सुप्रीम कोर्ट ने दो संबंधित सिविल अपीलों राजेंद्र कुमार बड़जात्या और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद (सिविल अपील संख्या 14604/2024) और राजीव गुप्ता और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद (सिविल अपील संख्या 14605/2024) पर अपना निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि अधिकारियों की निष्क्रियता या देरी के कारण अनधिकृत निर्माण को वैध नहीं ठहराया जा सकता है। यह मामला मेरठ के शास्त्री नगर के एक आवासीय प्लॉट से जुड़ा था, जहां व्यावसायिक निर्माण बिना अनुमति के किया गया था। 2011 में ध्वसीकरण आदेश जारी होने के बावजूद, अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण इन निर्माणों को हटाया नहीं गया और यह 24 वर्षों तक चलते रहे। अपीलकर्ताओं ने इन अवैध संपत्तियों को खरीदा और देरी और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन का हवाला देते हुए ध्वसीकरण आदेश को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की देरी अवैध निर्माण को वैध नहीं बना सकती, और खरीदारों को संपत्ति खरीदने से पहले उसकी कानूनी स्थिति की जांच करनी चाहिए थी। कोर्ट ने अधिकारियों की मिलीभगत को शहरी नियोजन के लिए नुकसानदायक बताया और स्थानीय निकायों से अवैध निर्माण के खिलाफ कठोर नीति अपनाने की अपील की। कोर्ट ने आदेश दिया कि ध्वसीकरण के लिए अपीलकर्ताओं को तीन महीने के भीतर संपत्ति खाली करनी होगी, और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

(संदर्भ -राजेंद्र कुमार  बड़जात्या और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद  सिविल अपील संख्या 14604/ 2024 और राजीव गुप्ता और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद सिविल अपील 14605 /2024)

अपील की पृष्ठभूमि –

यह मामला मेरठ के शास्त्री नगर योजना संख्या 7 में प्लॉट संख्या 661/ 6 से जुड़ा है, जिसे 1986 में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद द्वारा वीर सिंह प्रतिवादी संख्या 5 को आवासीय प्लॉट के रूप में आवंटित किया गया था ।व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने वाली स्पष्ट शर्तों के बावजूद श्री वीर सिंह ने अपने पावर अटॉर्नी धारक विनोद अरोड़ा प्रतिवादी संख्या 6 के साथ मिलकर बिना मंजूरी के प्लाट पर व्यावसायिक दुकानों का निर्माण किया था । उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने  2011 में ध्वसीकरण के आदेश जारी किए गए थे। लेकिन स्थानीय अधिकारी और पुलिस के सहयोग की कमी के कारण उस आदेश का लागू नहीं किया गया, जिससे विगत 24 वर्षों में अवैध निर्माणों को बढ़ावा मिला दुकान मालिक अपीलकर्ताओं ने इन संपत्तियों को खरीदा और देरी निहित अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर ध्वसीकरण  कार्रवाई को चुनौती दी गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय-

यह कि दिनांक 17 .12 .2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि अनधिकृत निर्माण को केवल इसलिए वैध नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि अधिकारियों ने कार्रवाई में देरी की या सालों तक निष्क्रियता दिखाई ।राजेंद्र कुमार  बड़जात्या और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद और अन्य सिविल अपील संख्या 14604/ 2024 और राजीव गुप्ता और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद सिविल अपील 14605 /2024 में दिए गए फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि अधिकारियों की निष्क्रियता या मिली भगत से उल्लंघन कर्ताओं के लिए कानूनी अधिकार नहीं बनते हैं।

प्रमुख कानूनी मुद्दे और न्यायालय की टिप्पणी

अपीलकर्ताओं ने याचिका में तर्क दिए –

A यह कि निर्माण 24 वर्ष से अधिकारियों की जानकारी में है।

B यह कि 2004 में फ्री होल्ड रूपांतरण से निर्माण की स्वीकृति निहित थी।

C यह कि वर्तमान में दुकान मालिकों को सीधे तौर पर कोई नोटिस नहीं दिया गया है।

उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद सहित प्रतिवादियों ने निम्नलिखित तर्क दिए –

A यह कि भूखंड आवासीय उपयोग के लिए निर्धारित था और अवैध वाणिज्यिक निर्माण जॉइनिंग कानून का उल्लंघन थी।

B यह कि मूल आवंटी को 1990 से बार-बार नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन उल्लंघन जारी था परिवर्तन में देरी से कोई वैधता नहीं हो जाती।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा –

अधिकारियों की ओर से की गई देरी या निष्क्रियता को अनधिकृत निर्माण को बचाने के लिए दल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, अवैधता खासकर जानबूझकर की गई ,अवैधता लइलाज है

न्यायालय ने पाया की अपीलकर्ताओं ने आवासीय उद्देश्यों के लिए स्पष्ट रूप से निर्धारित भूखंड पर दुकान खरीदी और उचित सावधानी बरतने में असफल रहे।

क्रेता सावधान के सिद्धांत का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा –

खरीददारों को संपत्ति खरीदने से पहले भूमि के उपयोग और कानूनी स्थिति की पुष्टि करना अनिवार्य है ,ऐसा न करने पर कानूनी अधिकार नहीं बनाया जा सकता ।

पीठ ने स्पष्ट किया कि अधिकारियों की शीघ्र कार्रवाई ना करने  की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह की देरी से अक्सर उल्लंघन कर्ताओं को बढ़ावा मिलता है और भूमि का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है ।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा-

अधिकारियों और भूमाफियाओं के बीच मिली भगत में शहरी नियोजन को पटरी से उतार दिया है और शहरों को अराजक कंक्रीट के जंगलों में बदल दिया है ऐसी निष्क्रियता अधिकारियों को उनके कर्तव्यों से मुक्त नहीं कर सकती। न्यायालय ने स्थानीय निकायों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ उन्हें जीरो टॉलरेंस पॉलिसी का पालन करना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय-

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश 2014 के ध्वसीकरण आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में अवैध निर्माण को नियमित नहीं किया जा सकता तथा मुख्य निर्देश में निम्नलिखित शामिल है –

A. यह कि ध्वसीकरण के लिए अपील कर्ताओं को 3 महीने के भीतर परिसर खाली करना होगा।

B. यह कि अनाधिकृत संरक्षण के दोषी अधिकारियों के खिलाफ अपराधिक और विभागीय कार्यवाही विभाग द्वारा की जाएगी ।

C. यह कि धन की वापसी अपीलकर्ताओं द्वारा अदालत में जमा किए गए 10 लख रुपए ब्याज सहित वापस किए जाएंगे ।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनाधिकृत निर्माणों पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक दिशा निर्देश जारी किए –

भविष्य में ऐसी समस्याओं को रोकने के लिए न्यायालय ने व्यापक दिशा निर्देश जारी किए

A. यह कि प्राधिकरणों को जॉइनिंग कानून को शक्ति से लागू करना चाहिए और निर्माण स्थलों का नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए ।

B. यह कि बिजली और पानी जैसी सेवा कनेक्शन केवल पूर्णता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पर ही प्रदान किए जाएंगे ।

C. यह कि अनधिकृत निर्माण के अनुमति देने में दोषी अधिकारियों को कठोर दंड का सामना करना पड़ेगा।

लेखक की टिप्पणी

यह कि उपरोक्त केस काफी दिन से चल रहा था, जिसमें अवैध निर्माण से संबंधित प्रश्नों का उत्तर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने निर्णय द्दे दिया है। लेकिन स्थानीय प्राधिकरण को ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिए, जिससे शहरी निकाय अवैध निर्माण द्वारा अराजक कंक्रीट में शहर को बदला जा रहा है ।

साधारण व्यक्ति रोजगार के लिए त्रुटिवश ऐसे भवनों का प्रयोग करता है ।इसका नतीजा उसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उठाना होगा। मेरठ जैसे शहर में पूर्ण पात्रता के प्रमाण पत्र कितने जारी हुए हैं ,यह विचारणीय विषय है  मेरे विचार से 90% भवन के लिए पूर्ण पात्रता का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है । शायद आमजन पूर्ण पात्रता प्रमाण पत्र के विषय में जानता भी नहीं होगा। स्थानीय निकायों को पूर्ण पात्रता प्रमाण पत्र के बाद ही बिजली/ पानी का कनेक्शन आदि जैसी सेवाओं का लाभ प्रदान करना चाहिए। लेखक के अनुसार यह निर्णय 661/ 6 के लिए है।  माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण के संबंध में गाइडलाइन जारी की है।

यह लेखक के निजी विचार हैं। किसी भी निर्णय पर जाने से पूर्व इस मुकदमे से संबंधित सभी जानकारी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का संदर्भ ग्रहण करे।

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