हाल ही में देश में जीडीपी (GDP)कम होने का विवरण समाचार पत्रों,मीडिया आदि पर चर्चा का विषय बना हुआ है। जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पादन की क्या स्थिति है? उस पर आम जन क्या सोचते हैं , यह महत्वपूर्ण है कि हमारा सकल घरेलू उत्पादन (GDP) क्यों लड़ खड़ा रहा है ,क्या आने वाले समय में और कठिनाई होगी या सरकार की नीतियां इस गिरावट को रोक सकेगी? यह विचारणीय विषय है।
अमीर और अमीर हो रहे हैं। लेकिन मिडिल क्लास पर पड़ रही मार? ये तथ्य जानकर आप चौंक जाएंगे?
देश में एक तरफ अमीर शख्स और अमीर होता जा रहा है, वहीं मिडिल क्लास चीजों से जूझता हुआ दिखाई दे रहा है। हाल कुछ प्रिंट और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मिडिल क्लास उपभोक्ता के खर्च करने की सीमा लगातार कम हो रही है। इसके कई कारण बताए गए हैं। जानकारों के मुताबिक सरकार की आर्थिक नीति के कारण मिडिल क्लास इसका दंड भोग रहा है। सरकार को इस बारे में तुरंत ध्यान देना चाहिए।
निश्चित रूप से देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है और मिडिल क्लास की इनकम कम हो रही है जिसके कारण उसकी खरीदने की क्षमता लगातार घट रही है।
मिडिल क्लास पर पड़ रहा बोझ
यह कि हाल में आई यूएस बिलेनियर अंबिशन्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में अरबपतियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। पिछले 12 महीने में देश में 32 नए अरबपति बने हैं। संपन्न परिवार के मामले में यह आंकड़ा काफी ज्यादा है। वहीं दूसरी ओर देश का मध्यम वर्ग सिकुड़ता जा रहा है। बात अगर देश की जीडीपी की बात करें तो इस पर भी काफी असर पड़ा है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या देश की आर्थिक तरक्की संपन्न लोगों के भरोसे हो सकती है?
संपन्न लोगों की स्थिति?
भारत में संपन्न परिवार की स्थिति काफी तेजी से बढ़ी है। 5 साल में यह बढ़ोतरी 84% से ज्यादा रही है।
अरबपतियों में देश तीसरे स्थान पर
दुनिया में अरबपतियों की लिस्ट में भारत तीसरे स्थान पर है। भारत से आगे अमेरिका और चीन का ही नंबर है। साल 2024 में देश में कुछ अरबपतियों की संख्या 185 हो गई है। साल 2023 के मुकाबले इसमें करीब 42 फीसदी की तेजी आई है।
आयकर रिटर्न फाइलिंग में महिलाएं भी आगे
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने के मामले में देश में महिलाओं की संख्या में काफी तेजी आ रही है। साल 2019-20 में 1.83 करोड़ महिलाओं ने रिटर्न फाइल की थी। वहीं 2023-24 में यह संख्या काफी बढ़ गई। इस दौरान 2.29 करोड़ महिलाओं ने रिटर्न फाइल की। बात अगर कुल रिटर्न (महिला और पुरुष) की करें तो 2023-24 में यह आंकड़ा 6.77 करोड़ रहा।
मिडिल क्लास पर क्या असर?
बीते कुछ वर्षों में मिडिल क्लास की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों से शहरी मध्यम वर्ग सबसे बड़ा उपभोक्ता था, जो अब सबसे छोटा उपभोक्ता बन गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मिडिल क्लास की इनकम बहुत तेजी से नहीं बढ़ी है। इस कारण शहरी क्षेत्रों में FMCG मार्केट काफी सुस्त है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में खपत में गिरावट ज्यादा आई है।
मिडिल क्लास की खरीदारी की क्षमता कम होने का असर कई इंडस्ट्री पर पड़ा है। इसमें वाहन बिक्री 2% और कंज्यूमर ड्यूरेबल वस्तु में 5%की गिरावट भी शामिल है
जीडीपी में गिरावट का क्या है इशारा?
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी में पिछले साल की समान तिमाही के मुकाबले गिरावट आई है। कृषि को छोड़ दिया जाए तो लगभग हर सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई। इसमें मैन्युफैक्चरिंग से लेकर शहरी सेवाएं तक शामिल हैं। वर्ष 2024 में जीडीपी की दर 8.1% थी जो वर्तमान में 5.4% रह गई है जो अत्यंत ही चिंता का विषय है शायद देश मंदी की ओर जा रहा है । सरकार को विशेष ध्यान देना होगा यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई तो किस प्रकार देश को उभरा जाए।
समाधान आसान नहीं है
लेखक के अनुसार जीडीपी की गिरावट जिससे सबसे अधिक मिडिल क्लास प्रभावित होता है। यह कि समस्या का समाधान आसान नहीं है ,क्योंकि कि मांग में जो कमी है, इसके बारे में लोगों को पहले से पता था। सरकार ने अपनी नीतियों की तरफ से इस पर ध्यान नहीं दिए जाने से इसका असर आज जीडीपी पर दिख रहा है। इसका समाधान भी इतनी आसानी से नहीं होने वाला है। जब तक सरकार इस पर अच्छी तरह से ना सोचे। दिक्कत यह है कि जो भी उपाय है, उसमें डिमांड को ठीक करने के बारे में अच्छी तरह से कोशिश नहीं की जा रही है। अगर यह नहीं की जाएगी तो वृद्धि दर और कम हो जाएगी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुफ़्त की वस्तुएं बांटने के संबंध में एक टिप्पणी की है ।यदि उस टिप्पणी पर देखा जाए तो सरकार को काम उपलब्ध कराना चाहिए अर्थात रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। उसी से जीडीपी का हल निकल सकता है यदि रोजगार नहीं है तो देश की जीडीपी सुधारना बहुत ही मुश्किल है।
कोरोना महामारी के दौरान कुछ देशों ने अपने नागरिकों को बैंक के माध्यम से सहायता प्रदान की थी, इसका सिद्धांत यह था कि यदि व्यक्ति के पास धन होगा तो वह बाजार में सामान खरीदने जाएगा जिससे बाजार में गति आएगी और सभी पक्षों को काम उपलब्ध होगा। यह योजना उन देशों के लिए लाभप्रद भी सिद्ध हुई ।लेकिन हमारे देश में जिस प्रकार मुफ्त की वस्तुएं को बांटने की योजना चली,उससे मध्यम परिवार की गति सिमटी जा रही है। अतः सभी लोगों को इस विषय में सोचना होगा।
यह लेखक के निजी विचार हैं।