भारत में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम2017 का सरलीकरण करने की बहुत अधिक आवश्यकता है। जिसके लिए केंद्र और राज्य को एक ऐसी आम सहमति बनानी होगी। जिससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ व्यापार और उद्योग जगत को भी सुधरने का मौका मिलना चाहिए ।जुलाई 2017 से जीएसटी अधिनियम को लागू किया गया था ।उसकी कमियों का नतीजा व्यापार और उद्योग जगत झेल रहा है। आगामी जीएसटी परिषद की बैठक का मुख्य विषय जीएसटी अधिनियम का सरलीकरण कैसे हो ?उस पर विचार किया जाना चाहिए।
जब जीएसटी लगाया गया था। उस समय एक टेक्स एक देश का नारा दिया गया था। मेरे विचार से वह नारा ही स्थापित हो सका है ।
1. आज वर्तमान में कई दरों के अनुसार जीएसटी में कर/TAX का प्रावधान किया गया है। जो इसके मूल ढांचे को खराब करता है ।इसलिए जीएसटी परिषद में एक देश एक टैक्स का व्याख्यान नहीं होना चाहिए। परिस्थितियों के अनुसार कर की दरों में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
2. जीएसटी अधिनियम में जिस प्रकार की प्रणाली स्थापित की गई है ।उसमें जीएसटी का पोर्टल समय-समय पर क्रश होता है ।तथा उसका खामियाजाना व्यापार और उद्योग जगत को उठाना पड़ता है ।जीएसटी काउंसिल को पोर्टल के संबंध में विशेष ध्यान देना होगा।
3. जीएसटी काउंसिल को सुझाव के तौर पर फाइनेंस बिल के साथ ही जीएसटी में परिवर्तन करने चाहिए ।तथा उनकी प्रभावी दिनांक 1 अप्रैल से रखी जानी चाहिए ।तथा पोर्टल में भी उसी प्रकार का परिवर्तन 1 अप्रैल से होना चाहिए ।
उदाहरण जिस प्रकार 1 जनवरी 2022 से आईटीसी के लिए 2b का प्रावधान किया गया था ।लेकिन वह प्रावधान कई महीनो पश्चात पोर्टल पर हो सका।
4. जीएसटी काउंसिल को कोई भी कानून मे परिर्वतन करते समय इस बात का ध्यान देना अति आवश्यक है ।कि जीएसटी अधिनियम में समय से संशोधन हो ।
वित्तीय वर्ष 2017-18 से वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के वादों का निस्तारण प्रक्रिया में है ।लेकिन जीएसटी अधिनियम में विसंगतियों के कारण व्यापारऔर उद्योग जगत के साथ टैक्स प्रोफेशनल भी परेशान हैं ।इसलिए जीएसटी काउंसिल को जीएसटीR 9 का प्रावधान अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिए ।तथा उसके मूल्यांकन की प्रक्रिया होनी चाहिए ।ताकि करदाता का एक स्थिति पर आकर मूल्यांकन पूर्ण होना चाहिए ।
जिस प्रकार से धारा 73/74 की प्रक्रिया अपनाई गई है। उस प्रक्रिया को जीएसटीR 9 के दाखिल करने से पूर्व तक ही निश्चित किया जाना चाहिए ।जिससे कर दाता को सरलीकरण का लाभ होगा। तथा अपने वित्तीय वर्ष के अंतर्गत जीएसटी R 9 के द्वारा वह अपनी देनदारी, कर्मियों को दूर कर सकेगा। छोटे और मझौल करदाता को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है।
5. जीएसटी काउंसिल को एक एमनेस्टी स्कीम जारी करनी चाहिए ।ताकि वित्तीय वर्ष 2017-18 से 20 19/20 तक के धारा 73/ 74 के आदेशों के में जारी मांग को निचले स्तर पर निपटाया जा सके ।इसी प्रकार धारा 73/74 में पेनल्टी के प्रोविजन में परिवर्तन किया जाना चाहिए। टैक्स से अधिक पेनल्टी का प्रावधान किया गया है। जो बहुत त्रुटि पूर्ण है।
6. यद्यपि भारत के जीएसटी में अनेक स्थानीय करों को सम्मिलित कर लिया गया, तथापि इसकी दर-श्रेणियों की बहुलता के कारण यह सरलीकरण’ के रूप में अपनी भूमिका निभाने में असमर्थ रहा।
7. जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में अधिकरण की स्थापना जल्द से जल्द करने के संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए। तथा अधिकरण की कार्रवाई के लिए एक अलग पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिए ।ताकि जीएसटीएन पोर्टल पर अधिक भार ना पड़े।
निष्कर्ष
भारतीय राजनीति के स्वरूप को देखते हुए सहकारी संघवाद को बचाने की आवश्यकता है। यही कारण है। कि भारत को अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसा करना राजनीतिक एकीकरण का काम कर सकता है। जैसा कि 2017 में जीएसटी को लागू करने से पहले देखा गया था।
केंद्र और राज्यों को इस शनिवार 22जून 2024 की जीएसटी परिषद की बैठक का उपयोग वस्तुओं और सेवाओं पर इस व्यापक करो Tax की खामियों को दूर करने के कार्य से निपटने के लिए करना चाहिए।
इसके लिए, परिषद को एक महत्वाकांक्षी एजेंडा की आवश्यकता है। जबकि जीएसटी को “एक राष्ट्र, एक कर” को पर बढ़ावा दिया गया था।जिसमें व्यापार और उद्योग करदाताओं के लिए एक एकीकृत बाजार में निवेश को आमंत्रित किया गया था। इस सुधार का समग्र आर्थिक वादा कहीं अधिक बड़ा था।
हम संक्षेप में, इससे अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाने, कर TAX अनुकूलता की गुंजाइश को खत्म करने, इनपुट टैक्स क्रेडिटITC की अनुमति देकर टैक्स पर टैक्स की अवधारणा को समाप्त करने, औपचारिक रूप से जाकर इनका दावा करने के लिए व्यवसायों और उद्योग को प्रेरित करने और संग्रह आधार को बढ़ाने की उम्मीद करते हैं।
यह लेखक के निजी विचार है।