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आपने ठीक पढ़ा मद्रास हाई कोर्ट ने उपरोक्त निर्णय निम्न केस में दी है ।जिसकी समीक्षा निम्न प्रकार प्रस्तुत है

सर्वश्री ल्यूमिनस पावर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई बनाम राज्य कर तमिलनाडु राज्य 2023 WP No. 17241 निर्णय दिनांक 26/07/2023

वाद के तथ्य 

लुमिनस पावर टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई सौर ऊर्जा से संबंधित सभी उपकरणों का निर्माण और बिक्री का कार्य किया जाता है। लुमिनस पावर कॉरपोरेशन द्वारा 4 टैक्स इनवॉइस के द्वारा सौर ऊर्जा से संबंधित विभिन्न पार्ट्स और उपकरण तिरुपुर तमिल नाडु के लिए e way bill के साथ प्रेषित किया। लेकिन डिलीवरी के समय पर प्राप्तकर्ता ने माल लेने से मना कर दिया गया ।क्योंकि वह बारिश में भीग गया था ।सप्लायर द्वारा इस टैक्स इनवॉइस पर एक नया ई वे बिल  दिनांक 28/12/2022 को जनरेट किया। जिसकी अवधि 31/12/2022 तक थी। और माल अपने व्यापार स्थल पर वापस ला रहा था।लेकिन रास्ते में राज्य कर के अधिकारियों ने जीएसटी एक्ट की धारा 34 सपठित नियम 55 का हवाला देते हुए माल को रोका गया और धारा 129(3)के अंतर्गत माल पर अर्थ दंड आरोपित किया गया तथा आदेश में कहा गया कि क्रेडिट नोट संलग्न नहीं है ।जिसका करदाता द्वारा विरोध किया गया और स्पष्ट किया गया कि जीएसटी एक्ट की धारा 34(1)और 34(2)में बिना डिलीवरी के माल वापस लाने के लिए क्रेडिट नोट की आवश्यकता नहीं है ।करदाता द्वारा माल खराब ना हो ।इस वजह से डीआरसी 03 के द्वारा अर्थ दंड जमा किया गया। इस आदेश के विरोध में करदाता मद्रास हाई कोर्ट में रिट पिटीशन फाइल करता है।

न्यायालय में विभाग का तर्क

रिट पिटीशन की सुनवाई के समय विभाग द्वारा उपरोक्त तथ्यों को दोहराते हुए कहा कि करदाता ने स्वेच्छा से डीआरसी 03 के द्वारा जुर्माना अदा किया गया है ।और माल वापसी के लिए धारा 34 सपठित नियम 55 अनिवार्य है।

करदाता का तर्क

करदाता के विद्वान अधिवक्ता ने न्यायालय में स्पष्ट किया कि राज्य कर अधिकारियों ने जीएसटी की धारा 129(3 )का दुरुपयोग किया है ।और जबरदस्ती अर्थ दंड की कार्रवाई की है ।क्योंकि हमारा माल खराब होने की स्थिति में था ।उसे बचाने के लिए हमारे द्वारा डीआरसी 03 के द्वारा जुर्माना जमा किया गया था।

करदाता के विद्वान अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि जीएसटी एक्ट में डीआरसी 03 के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है जिससे विरोध स्वरूप अर्थ दंड जमा किया जा सकता हो ।इसलिए सभी विषय पर डीआरसी 03 के द्वारा ही कर, विलंब शुल्क, अर्थ दंड आदि जमा किया जाता है।

विद्वान अधिवक्ता ने धारा 34(1) के अंतर्गत स्पष्ट किया। कि यदि माल की वापसी डिलीवरी के बाद होती है। तो सप्लायर द्वारा प्राप्तकर्ता को क्रेडिट नोट/ डेविड नोट जारी करता है ।लेकिन उपरोक्त विषय में क्योंकि परचेज़र द्वारा माल की डिलीवरी प्राप्त ही नहीं की गई ।तो धारा 34(1)लागू नहीं की जा सकती ।क्योंकि धारा 34(1) में माल की डिलीवरी  के बाद समायोजन हेतु क्रेडिट नोट और डेबिट नोट जारी किए जाते हैं।

विद्वान अधिवक्ता ने धारा 34(2) के अंतर्गत स्पष्ट किया कि किसी भी वित्तीय वर्ष में किए गए संव्यवहार में त्रुटि प्रकट होने पर अगले वर्ष के सितंबर से पूर्व डेविड नोट और क्रेडिट नोट जारी किए जाने का प्रावधान है। विद्वान अधिवक्ता ने स्पष्ट किया। कि करदाता ने जीएसटी एक्ट के हिसाब से माल की आवाजाही के लिए एक  ई वे बिल भी जनरेट किया गया किया था ।जो माल के आवागमन के समय के समय संलग्न था ।जिससे स्पष्ट है की करदाता ने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है।

विद्वान अधिवक्ता ने उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करने की कोशिश की गई ।कि राज्य कर अधिकारियों द्वारा जो माल रोका गया वह अनुचित और अवैधता था। याचिका कर्ता से अवैध तरीके से अर्थ दंड जमा कराया गया।

माननीय न्यायालय का निर्णय 

माननीय उच्च न्यायालय थे राज्य कर अधिकारियों द्वारा माल रोके जाने को अनुचित एवं अवैध माना और यह भी टिप्पणी की जब माल के साथ वैध ई वे बिल संलग्न था। उन स्थिति में माल का रोकना अर्थदंड का लगाना अनुचित था। न्यायालय ने स्पष्ट किया धारा 129(1) के अंतर्गत जारी नोटिस का निराकरण 129(3) के अंतर्गत किया जाता है ।

न्यायालय ने स्वीकार किया कि जीएसटी एक्ट में स्वेच्छा से धन जमा करने के लिए डीआरसी 03 के द्वारा टैक्स ब्याज अर्थ दंड जमा करने का प्रावधान है। तथा करदाता को विरोध दर्ज करने का ऐसा कोई भी विकल्प नहीं है। जिससे वह अपना विरोध कर सके। विभाग डीआरसी 05 के द्वारा कार्रवाई समाप्त कर लेता है ।ऐसी स्थिति में करदाता क्या कर सकता है।

माननीय उच्च न्यायालय ने विभाग के सभी कार्यों को जो इस बात से संबंधित है ।अनैतिक अनुचित और अवैध माना हैं ।तथा अर्थ दंड के रूप में जमा समस्त धनराशि को वापस करने का आदेश पारित किया।

निष्कर्ष 

उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है। कि कर अधिकारियों को धारा 129 में कार्रवाई करते समय सभी तथ्यों का भली भांति विचार करना चाहिए तथा परिस्थितियों बस उत्पन्न विषय पर विचार करना चाहिए। माल की बिक्री और माल की आवा जाहि  दोनों ही विषय अलग-अलग हैं ।जिसके लिए जीएसटी एक्ट में ई वे बिल का प्रावधान किया गया है। जब करदाता ने ई वे बिल प्रस्तुत किया गया। जिससे स्पष्ट है। कि करदाता ने नियम के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जीएसटी विभाग को अपने माल की आवाजाही के लिए सूचित कर दिया था तथा एक वैध e way बिल के साथ वह माल का आवागमन कर रहा था ।शायद सचल दल के अधिकारी अपने टारगेट को या जानबूझकर करदाता को परेशान करते हैं ।जो जीएसटी में एक अनुचित परंपरा बन रही  है।

यह विचार लेखक के निजी विचार है।

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