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बजट में इस बार प्रस्तावित किया गया कि दवाई कंपनियां डाक्टरों को जो भी गिफ्ट फ्रिबीज़ देंगी, वह न केवल डाक्टर की आय में जोड़ा जाएगा, साथ ही इसका खर्च कंपनियों को आयकर के अन्तर्गत मान्य नहीं होगा.

इंडियन मेडिकल काउंसिल के विनियमन, 2002 के उपनियम के मुताबिक डॉक्टरों को फार्मा कंपनियां का फ्रीबी देना दंडनीय है।

इसके अनुसार ही सीबीडीटी ने फैसले में कहा था कि कंपनियों द्वारा मेडिकल प्रैक्टिश्नर को उपहार देना अवैध है।

इसलिए इस मद में किए गए उनके खर्च को कंपनियों की आय और व्यवसाय प्रोत्साहन में नहीं जोड़ा जा सकता। क्योंकि, यह अवैध कार्य में खर्च किया गया है और अवैध खर्च को आयकर लाभ की छूट नहीं दी जा सकती।

इस फैसले को दवा कंपनियों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

अपेक्स लेबोरेटरी कंपनी द्वारा इस बात पर माननीय उच्च न्यायालय में बहस की जा रही थी कि नियम के अनुसार डाक्टरों को गिफ्ट लेना प्रतिबंधित है लेकिन कंपनियां दे सकती और इस खर्च की छूट आयकर की धारा 37(1) के अन्तर्गत मान्य होना चाहिए क्योंकि आयकर कानून में इस बात का साफ तौर पर कोई प्रतिबंध नहीं है.

Read: No deduction to Pharma Companies for Freebies to Doctors: SC

माननीय उच्च न्यायालय की जस्टिस यू यू ललित और एस रविन्द्र भट्ट की बेंच ने अपेक्स लेबोरेटरी के केस को न केवल सख्ती से खारिज कर दिया बल्कि कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की जिसने मेडिकल व्यवसाय और क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया:

1. कोर्ट ने कहा, “यह दर्शाता है कि डॉक्टर के नुस्खे में हेरफेर भी किया जा सकता है।

2. दवा कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त सुविधाएं देकर लाभ उठाती हैं और मरीजों को अपनी दवा परामर्श के तौर पर लिखवाती हैं।

3. इस दलील के साथ मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मेसर्स एपेक्स लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी।

4. हाईकोर्ट ने ‘जिंकोविट’ के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए डॉक्टरों को तोहफों पर खर्च की राशि पर व्यावसायिक व्यय के लाभ के दावा के खिलाफ आयकर अधिकारियों के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था।

5. पीठ ने कहा, ये उपहार तकनीकी रूप से ‘मुफ्त’ नहीं हैं। कंपनियां इनकी लागत दवा के दाम में वसूलती हैं। अंत में इन तोहफों की कीमत मरीज अदा करता है। यह एक स्थायी सार्वजनिक रूप से हानिकारक चक्र है।

6. इस तरह की दवाओं की सलाह करने का असर ‘प्रभावी जेनेरिक दवाओं’ पर पड़ता है।

7. जस्टिस भट ने कहा, डॉक्टर और दवा कंपनियां चिकित्सा के पेशे में एक दूसरे के पूरक और सहायक हैं। इसलिए समकालीन वैधानिक व्यवस्थाओं और नियमों के मद्देनजर उनके आचरण को विनियमित करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

8. पीठ ने कहा, डॉक्टरों का रोगियों के साथ एक अर्ध-विश्वसनीय संबंध है। डॉक्टर के नुस्खे को रोगी अंतिम शब्द मानता है। भले ही वह उसकी लागत वहन करने में सक्षम न हो। डॉक्टरों में विश्वास का स्तर ऐसा है। इस पर ऐसी प्रथा के चलते मरीज को महंगी कीमत पर दवा खरीदने के लिए मजबूर करने का यह खेल गैरकानूनी है।

9. शीर्ष अदालत ने कहा कि फ्रीबी (कांफ्रेंस फीस, सोने का सिक्का, लैपटाप, फ्रिज, एलसीडी टीवी और यात्रा खर्च आदि) की आपूर्ति मुफ्त नहीं होती है, इन्हें दवाओं के दाम में जोडा जाता है। इससे दवा की कीमतें बढ़ती है।

फ्रीबी देना सार्वजनिक नीति के बिल्कुल खिलाफ है, इसे स्पष्ट रूप से कानून द्वारा रोका गया है।

माननीय उच्च न्यायालय के मंगलवार को दिए गए उपरोक्त निर्णय ने मेडिकल प्रेक्टिस और मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों को एक समाज हितैषी और अनुचित लाभ न कमाने का साफ संदेश दिया है.

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