सारांश: सेबी की हालिया सलाह में निवेशकों से एसएमई आईपीओ से सतर्क रहने का आग्रह वित्तीय बाजार में एक महत्वपूर्ण चिंता को उजागर करता है। आईपीओ को मंजूरी देने और शेयर की कीमतों का मूल्यांकन करने में सेबी की भूमिका के बावजूद, 2012 में मंच की स्थापना के बाद से एसएमई द्वारा लगभग ₹14,000 करोड़ जुटाए गए हैं, जिसमें अकेले पिछले तीन वर्षों में ₹9,000 करोड़ शामिल हैं। सेबी ने अब स्वीकार किया है कि कई कंपनियों ने गलत वित्तीय स्थिति और बढ़ा-चढ़ाकर उपलब्धियां पेश करके जनता को गुमराह किया है। ये कंपनियां अक्सर बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट जैसी भ्रामक रणनीति के साथ निवेशकों को लुभाती हैं, ताकि बाद में बढ़ी हुई कीमतों पर अपने शेयर बेचकर लाभ कमा सकें। सेबी की सलाह निवेशकों को ऐसी योजनाओं के झांसे में न आने की चेतावनी देती है, फिर भी समय सेबी की निगरानी की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है। इस सलाह के कारण एसएमई शेयर की कीमतों में भारी गिरावट आई है, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ है। आलोचकों का तर्क है कि सेबी के प्रतिक्रियाशील रुख और निवारक उपायों की कमी ने इन कंपनियों को निवेशकों का कानूनी रूप से शोषण करने की अनुमति दी है। स्थिति मजबूत नियामक उपायों की मांग करती है, जिसमें आईपीओ अनुमोदन के लिए एक मजबूत मूल्यांकन प्रक्रिया, सलाहकारों और प्रमोटरों के लिए सख्त नियम और स्टॉक लेनदेन की निगरानी के लिए एआई का उपयोग शामिल है। एक समर्पित निगरानी एजेंसी के गठन से भविष्य में निवेशकों के शोषण को रोका जा सकता है, क्योंकि केवल सलाह अपर्याप्त है। Read: SEBI Advisory on investment in securities of SME Segment Companies
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
यह कहावत सेबी पर बिल्कुल उचित बैठती है – क्योंकि सेबी ने अब जाकर एडवाइजरी जारी कर निवेशकों से कहा कि छोटी कंपनियों एसएमई आईपीओ से सतर्क रहें। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर सेबी क्यों कह रहा है:
1. सबसे पहले आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसी भी कंपनी द्वारा लाया जाने वाला निर्गम यानि आईपीओ को परमीशन सेबी से लेनी पड़ती है।
2. इसकी शेयर कीमत का मूल्याकंन भी सेबी द्वारा एप्रूवल किया जाता है।
3. कंपनियों द्वारा आईपीओ लाने के पहले सभी प्रकार के दस्तावेज और सूचना सेबी में जमा की जाती है।
4. पूर्ण सरकारी प्रोत्साहन दिया जाता है ताकि छोटी कंपनियां मार्केट से आसानी से पैसा उठा सकें और अपना काम फैलाकर रोजगार दें एवं अर्थव्यवस्था मजबूत बनाएं।
वर्ष २०१२ में एसएमई प्लेटफार्म लांच होने के बाद लगभग ६०० कंपनियों द्वारा करीब १४००० करोड़ की उगाही पब्लिक से पैसे लेकर की गई है। इसमें से ९००० करोड़ रुपए मात्र ३०० कंपनियों द्वारा पिछले ३ वर्षों में किया गया है।
अब सेबी कह रही है कि कई कंपनियों द्वारा अपनी झुठी वित्तीय स्थिति दिखाकर पब्लिक को लूटा जा रहा है और ऐसे में निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है ।
सेबी का मानना है कि:
1. ऐसी ज्यादातर कंपनियों के हालात खराब है।
2. अपने व्यावसायिक और व्यापारिक लेन देन की झूठी सकारात्मक तस्वीर दिखाकर उन्हें धोखा देने का काम किया जा रहा है।
3. पब्लिक विज्ञापन एवं घोषणाएं की जाती है कंपनी के उपलब्धियों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर ताकि निवेशक फंसे
4. फिर इन कंपनियों द्वारा बोनस शेयर, शेयर स्पिलिट्स, प्रिफरेंस अलाटमेंट, आदि जैसे सकारात्मक दिखावटी कार्यवाही कर निवेशकों को अधिक मूल्याकंन पर शेयर खरीदने आकर्षित किया जाता है।
5. अधिक मूल्याकंन पर आईपीओ को पब्लिक में बेचकर और लोगों को झुठी टिप एवं खबरों के आधार पर शेयरों में निवेश करवा कर, ये प्रोमोटर्स खुद अपने शेयर बेचकर लाभ कमाकर निकल जाते हैं ।
6. सेबी ने निवेशकों के लिए सलाह निकाली है कि ऐसी चालों को समझें और गलत खबरों एवं सोशल मीडिया की बातों में न फंसे।
7. सेबी की इस सलाह का उद्देश्य निवेशकों का हित और एसएमई शेयर मार्केट का उचित उपयोग हो।
अब बात यह आती है कि सेबी ने इस एडवाइजरी के जरिए मान लिया है कि सरकार और नाक के नीचे खुले आम कानूनी रूप से ठगी की जा रही है।
सेबी और सरकार मूकदर्शक के जैसे चीजों को समझते बूझते हुए पब्लिक को ठगी का शिकार होने दें रहें हैं और एडवाइजरी जारी कर रहे हैं।
आज १४००० करोड़ रुपए एसएमई प्लेटफार्म के माध्यम से पब्लिक के लूटे जा चुके हैं और वो भी कानूनी रूप से, तो एडवाइजरी जारी कर पब्लिक को चेताया जाना उचित है और ऐसा कर अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ लेना सही है।
सेबी की एडवाइजरी से एसएमई शेयर बाजार में हड़कंप मच गया है और एसएमई के शेयर के भाव गिर गए जिसमें निवेशकों को अच्छा खासा नुकसान लगा है। क्या बिना उचित ठोस कार्यवाही के ऐसी एडवाइजरी जारी करना गैर जिम्मेदाराना हरकत नहीं? अब बता रहे हैं जब १४००० करोड़ रुपए मार्केट में जा चुके हैं? क्या इतने सालों मूक दर्शक जैसे बने रहना उचित? क्या उचित मापदंड और नियम बनाने की जरूरत समझे बिना मात्र एडवाइजरी से पल्ला झाड़ना पब्लिक के साथ धोखा नहीं?
जरुरत इस बात की है:
1. सिर्फ उन्हीं कंपनियों को आईपीओ लाने की परमीशन देनी चाहिए जिनका बिजनेस प्लान हो, मजबूत वित्तीय स्थिति हो, भरोसेमंद प्रोमोटर्स हों और सही मूल्यांकन हो। इस आंकलन के लिए सरकार को एक निष्पक्ष एजेंसी का गठन करना होगा।
2. आईपीओ सहायक एजेंसियां और कंसल्टेंट पर कड़े नियम हो ताकि इनके द्वारा अपने क्लाइंट के शेयरों को रखना और खरीद बेच करना अमान्य हो।
3. प्रोमोटर्स और उनसे संबंधित लोगों, फर्मों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों का पूरा उल्लेख हो ताकि इन सबके द्वारा इनसे संबंधित कंपनियों की शेयर खरीद बेच को रोका जा सके।
4. सेबी को एआई का इस्तेमाल कर स्टाक एक्सचेंज में शेयर खरीद बेच के सौदें में कौन शामिल हैं – इसकी नियमित रिपोर्टिंग का प्रावधान हो।
*सेबी और सरकार को मानिटरिंग एवं आंकलन एजेंसी का गठन करना होगा, जिसका काम शेयर्स आईपीओ, खरीद बेच, कंपनियों के काम काज, आदि पर नजर रखना होगा ताकि निवेशकों को लुटने से बचाया जा सके। मात्र एडवाइजरी जारी कर सेबी अन्य सलाहकारों की तरह काम नहीं कर सकती। यदि निवेशक खुले आम सरकार की नाक के नीचे कानूनी रूप से ठगा जा रहा है तो सेबी को खत्म कर देना ही उचित होगा क्योंकि सेबी का काम मात्र एडवाइजरी जारी करना नहीं हो सकता और सचेत भी किया तो कब, जब चिड़िया चुग गई खेत!*
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५*