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अधिवक्ता एंरोलमेंट फीस में वृद्धि कर  25,000 रुपये की जाए: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )ने की सुप्रीम कोर्ट में अनुमति याचिका।

(संदर्भ बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम गौरव कुमार और अन्य, एमए 2253/2024 इन डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 352/2023)

यह कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अधिवक्ता एंरोलमेंट फीस को बढ़ाकर 25,000 रुपये करने के निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन पत्र दायर किया। वर्तमान में एक निर्णय के अनुसार अधिवक्ता एंरोलमेंट फीस 750 रुपये है। यह आवेदन गौरव कुमार बनाम भारत संघ रिट पिटीशन  संख्या 352/ 2023 में  दिनांक 30.7. 2024 मामले में दायर किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में अपने निर्णय में कहा था कि बार काउंसिल एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 24 के तहत निर्धारित फीस से अधिक एंरोलमेंट फीस नहीं ले सकती। वर्तमान आवेदन पत्र के माध्यम से बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )ने केंद्र सरकार को फीस बढ़ाने के लिए एडवोकेट एक्ट 1961में संशोधन करने के लिए कदम उठाने के निर्देश मांगे हैं।

आवेदन की प्रकृति और न्यायालय में कार्यवाही

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आवेदन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए, इस मुद्दे पर भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी। न्यायालय के समक्ष सीनियर एडवोकेट और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने न्यायालय को अवगत कराया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )1961 के अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन कर एडवोकेट एंरोलमेंट फीस को संशोधित कर ₹ 25,000  करने तथा सामान्य वर्ग के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI )का निधि शुल्क 6,250 रुपये करने के निर्देश चाहता है । साथ ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कई अन्य तर्क दिए जैसे रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा मुद्रा स्फीति की दर को आधार माना जाय।तथा SC/ST के लिए BCI राज्य बार काउंसिल को 10,000 रुपये तथा बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को 2,500 रुपये होगा तथा बार काउंसिल ऑफ इंडिया को RBI मुद्रास्फीति कैलकुलेटर के अनुसार इसे संशोधित करने की स्वतंत्रता होगी।

पीठ के न्यायमूर्ति  नरसिम्हा ने सवाल किया कि इसमें न्यायालय की क्या भूमिका है?

यह कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने  यह बताया कि 1993 में 1961 के अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन कर वैधानिक एंरोलमेंट फीस को बढ़ाकर 750 रुपये कर दिया गया। अब, जबकि राज्य बार काउंसिलों को 600 रुपये से अधिक फीस लेने पर रोक लगा दी गई, स्टेट बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI ) अपने आप  मर जाएंगे, क्योंकि स्टेट काउंसिलों के सामने आने वाली वित्तीय/आर्थिक तंगी से निपटने में सक्षम नहीं होंगे।

यह कि प्रार्थना पत्र  में कहा गया, यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि अधिवक्ता अधिनियम 1961 द्वारा निर्धारित एडवोकेट एंरोलमेंट फीस तीन दशक से अधिक पहले था और संसद द्वारा पिछले कई वर्षों से इसे बढ़ाया नहीं गया। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सांख्यिकीय डेटा प्रस्तुत किया, जिस में 1960 से 2021 तक मुद्रास्फीति दर में औसत वृद्धि हुई है, इन वर्षों के दौरान औसत मुद्रास्फीति दर प्रति वर्ष 7.5% थी। कुल मिलाकर, मूल्य वृद्धि 7,704.85% थी। उदाहरण एक वस्तु जिसकी कीमत वर्ष 1960 में 100 रुपये थी, वर्ष 2022 की शुरुआत में 7804.85 रुपये की होगी। वर्ष 2023 में मुद्रास्फीति दर 5.8% के रूप में पहचानी गई। यदि उक्त अवधारणा और समझ को लागू किया जाता है तो वर्तमान में लिया जाने वाला एडवोकेट एंरोलमेंट फीस लगभग 50,000 रुपये होगा।

जिस पर न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा: यह विधायी अधिनियम है। हमें [हस्तक्षेप] क्यों करना चाहिए? आप सरकार से इसे बदलने के लिए कहें।

यह कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन मिश्रा ने स्पष्ट किया कि उन्होंने इस संबंध में विधि एवं न्याय मंत्रालय को भी अभ्यावेदन दिया। उन्होंने कहा कि वे न्यायालय के समक्ष हैं, जिससे सरकार को उनके अभ्यावेदन पर विचार करने के लिए निर्देश पारित किया जा सके।

न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने जवाब दिया: हम सरकार को नियमों में संशोधन करने पर विचार करने के लिए कहने की यह किस नियम के आधार पर निर्देश दे? यह क्या हो रहा है? यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि सरकार द्वारा नियम में संशोधन किया जाए तो वे न्यायालय से सरकार को यह बताने के लिए आवेदन करते हैं। आप बार काउंसिल ऑफ इंडिया हैं,  ऐसा क्यों ?

यह कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया सरकार को नियम में संशोधन करने के लिए कहने के लिए हमारे पास आती है? आप देश में वकीलों की पेशेवर सेवाओं के लिए संवैधानिक नियामक हैं। आपको सरकार को नियम में संशोधन करने के लिए कहने के लिए हमारे पास आने की आवश्यकता नहीं है। एक संवैधानिक नियामक के रूप में आपकी स्थिति का क्या होगा? आप देश में एडवोकेट की सर्वोच्च संस्था हैं। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा, यह वास्तव में बहुत दुखद है कि बार काउंसिल हमें अनुकंपा नियुक्ति करने के लिए कह रही है, आप कह रहे हैं कि कृपया उन्हें कुछ करने के लिए कहें। यह ऐसा मामला नहीं है, जहां हमें नोटिस भी जारी करना चाहिए? आप समझते हैं, कि आप इस तरह का प्रतिनिधित्व करके बार काउंसिल के महत्व को कम कर रहे हैं।

निष्कर्ष

यह कि उपरोक्त आवेदन याचिका  से स्पष्ट है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बार काउंसिल आफ इंडिया(BCI )एक संवैधानिक नियामक है। उसे विधायी कार्यों के लिए केंद्र सरकार के यहां अभ्यावेदन प्रस्तुत करके विधायी  कार्यों को कराना चाहिए ।सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ऐसे निर्देश जारी करना संभव नहीं होगा।

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DISCLAIMER यह लेखक के निजी विचार हैं। किसी भी इसका उपयोग खुद की जिम्मेदारी होगी।

लेखक बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल की सामान्य जानकारी रखते हैं।

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