Sponsored
    Follow Us:
Sponsored

 कंपनी शब्द से आशय:-

कंपनी शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है कम +पनीस कम शब्द का मतलब आने से होता है पनीस शब्द से आशय है साथ-साथ से अतः कंपनी शब्द का मतलब साथ साथ आने से है अतः कंपनी एक ऐसे व्यक्ति का समूह है जो अपनी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामूहिक रूप से कार्य करते हैं .

कंपनी को एक निगमित निकाय भी कहा जाता है इसे निगमित निकाय इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह विधान द्वारा निर्मित एक कृतिम व्यक्ति होती है जिसका वैधानिक अस्तित्व, अधिकार, दायित्व एवं शक्तियां होती हैं जिसके नाम का स्वयं वैधानिक अस्तित्व होता है जो विधान द्वारा कंपनी को प्रदान किया जाता है.

कंपनी अधिनियम 2013 के अनुच्छेद 2 भाग (20) के अनुसार कंपनी एक ऐसा निगमित निकाय है जो कंपनी अधिनियम के अंतर्गत निगमित निकाय के रूप में पंजीकृत है .

अधिनियम द्वारा कंपनी को वैधानिक अस्तित्व प्रदान किया गया है जिससे यह अपने सदस्यों से पूर्णता स्वतंत्र होती है अतः कंपनी का संचालन इसके सदस्यों से पृथक निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है कंपनी का स्वयं का वैधानिक अस्तित्व होता है जो इसे अपने क्रियान्वयन के लिए वैधानिक शक्तियां अधिकार प्रदान करता है कंपनी पर उसके सदस्यों की मृत्यु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है सदस्यों की मृत्यु होने से कंपनी के संचालन में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं आती है.

कंपनी की प्रकृति एवं विशेषताएँ:-

कंपनी एक विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका अस्तित्व विधान द्वारा स्थापित होता हैकंपनी के अधिकार, दायित्व, शक्तियां एवं कर्तव्य होते हैं जो उसे विधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं जिसका पालन करना कंपनी का कानूनन दायित्व एवं अधिकार है उसके अधिकारों का हनन होने पर अधिनियम में कंपनी को वैधानिक सहायता प्रदान करने से संबंधित प्रावधानों को भी उल्लेखित किया गया है जिसके तहत उसे वैधानिक सहायता प्रदान की जाती है.

विशेषताएँ-

निगमित व्यक्ति :-  कंपनी की प्रमुख विशेषता है कि यह विधान द्वारा निगमित एक कृत्रिम व्यक्ति है इसका वैधानिक अस्तित्व होता है जो अपने सदस्यों से प्रथक होता है जिसका स्वयं का नाम होता है कंपनी अपने नाम से व्यवसाय करती है अपने नाम से संपत्ति अर्जित कर उसका उपभोग करती है कंपनी के अधिकार प्रथकहोते हैं जो अपने नाम से अनुबंध करने, बैंक से ऋण प्राप्त करने, बैंक में अकाउंट खोलने, एवं व्यवसाय के संचालन हेतु व्यक्तियों को नौकरी पर रखने एवं अन्य कार्य कंपनी द्वारा स्वयं के नाम के अंतर्गत किए जाते हैं इसके सदस्य इसके मालिक होते हैं जिनका कंपनी की पूंजी में अंश होता है जो कंपनी द्वारा किए गए कार्यों के लिए दोषी नहीं होते हैं चाहे वह कंपनी के संपूर्ण अंशो के धारक ही क्यों ना हो कंपनी के सदस्य कंपनी के एजेंट भी नहीं होते हैं उनके द्वारा किए गए कृत्य के लिए कंपनी दोषी नहीं होती है|

कृतिम  व्यक्ति:-कृतिम व्यक्ति ऐसे व्यक्ति से है जिसे ना  जी देखा जा सकता है ना ही छुआ जा सकता है ना ही महसूस किया जा सकता है जिसके हाड़ मांस नहीं होते हैं फिर भी इसका अस्तित्व होता है अतः कंपनी एक विधान द्वारा निगमित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका   वैधानिक अस्तित्व होता है जो अपने नाम से किसी व्यक्ति पर अपने अधिकारों का हनन होने पर वाद कर सकती है या कोई व्यक्ति कंपनी के कृत्य से हानि होने पर कंपनी के विरूद्ध उसके नाम से वाद कर सकता है कंपनी के स्वयं अपने वैधानिक अधिकार एवं दायित्व होते हैं   जिनका अनुपालन करना वैधानिक रूप से कंपनी के लिए आवश्यक होता है|

कंपनी एक नागरिक नहीं है :-कंपनी का अस्तित्व वैधानिक होता है जिसका व्यक्तित्व विधान द्वारा निगमित होता है परंतु नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत कंपनी को एक नागरिक नहीं माना गया है  भारतीय संविधान के अंतर्गत एवं स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड वर्सेस सिटीओ एआईआर 1963 के  वाद के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यहां निर्धारित किया कि स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन अपना वैधानिक अस्तित्व रखती है परंतु वह नागरिक नहीं है जिसके कृत्य व्यक्ति जैसे होते हैं अतः भारतीय संविधान द्वारा व्यक्ति को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं तथा उनके रक्षा हेतु भी प्रणाली विकसित की गई है कि उनका हनन होने पर व्यक्ति उनकी मांग कर सकता है जैसे समानता का अधिकार यह अधिकार कंपनी को भी व्यक्ति जैसे ही प्रदान किए गए हैं इस हेतु कंपनी को भी एक व्यक्ति माना गया है परंतु नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 21 में कंपनी को शामिल नहीं किया गया है.

कंपनी की राष्ट्रीयता एवं निवास :- कंपनी की स्थापना विधान द्वारा होती है  अतः यह विधान द्वारा निर्मित  एक कृत्रिम व्यक्ति है इसे नागरिकता कानून के अंतर्गत नागरिक नहीं ना गया है फिर भी कंपनी का स्थाई निवास एवं राष्ट्रीयता होती है गैसक्यों वर्सेज इन लैंड रेवेन्यू मिश्नर 1940 के वाद में निर्धारित किया गया कि कंपनी की राष्ट्रीयता एवं निवास स्थान होता है जिसके निर्धारण हेतु कंपनी पूर्णता स्वतंत्र एवं सक्षम होती है अतः जिस राष्ट्र में कंपनी को जीकरण किया जाता है वही राष्ट्र उसकी राष्ट्रीयता मानी जाती  है एवं जिस स्थान पर कंपनी का पंजीकृत कार्यालय होता है वही कंपनी का स्थाई निवास माना जाता है.

सीमित ऋण दायित्व:- कंपनी एक वैधानिक निगमित निकाय होती है जिसके सदस्य होते हैं जिनका कंपनी में अंश होता है  अतः निगमित रूप में व्यवसाय करने का एक प्रमुख लाभ यह होता है कि इसमें उसके अंश धारकों/ सदस्यों का दायित्व सीमित होता है जो उनके अंश  की राशि तक सीमित होता है.  सीमित ऋण दायित्व की विशेषता कंपनी के रूप में व्यवसाय करने पर ही प्राप्त  होती है कंपनी के अंतर्गत उसके सदस्यों का दायित्व उनके अंश राशि तक ही सीमित होता है कंपनी के अंशधारक कंपनी के संपूर्ण ऋण के लिए दाई नहीं होते हैं वह उनके द्वारा जो पूंजी  चुकता नहीं की गई है उनके द्वारा लिए गए अंशों पर उस राशि तक ही दायित्वआधीन होते हैं अंश पूर्ण चुकता होने पर अंशधारकों का ऋण के प्रति कोई दायित्व नहीं होता है|

कंपनी को जो सीमित दायित्व का अधिकार प्रदान किया गया है उसके कुछ अपवाद भी हैं जो निम्न है

कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के सदस्यों की संख्या के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं यदि किसी समय कंपनी में सदस्यों की संख्या निर्धारित की गई संख्या से कम होती है प्राइवेट रण में विरोधात्मक कार्यवाही प्रारंभ करने हेतु आवेदन कर कंपनी के संचालक, प्रबंधक, अधिकारी एवं किसी अन्य व्यक्ति को दोषी करार देने हेतु आदेश पारित करने मांग कर सकती है जहां अधिकरण द्वारा तथ्यों के आधार पर उपरोक्त आरोप सिद्ध हो जाने पर आदेश पारित कर उक्त व्यक्तियों एवं संस्था को व्यक्तिगत रूप से दोषी ठहराया जा सकता है एवं उनका दायित्व आदेश द्वारा असीमित घोषित किया जा सकता है.

निरंतर उत्तराधिकारी :- कंपनी विधान द्वारा निर्मित एक कृतिम व्यक्ति है जिसका वैधानिक अस्तित्व होता है जो इसके सदस्यों से पृथक एवं स्वतंत्र होता है  तथा जिसका समापन भी वैधानिक प्रक्रिया के द्वारा  ही हो सकता है  कंपनी का पृथक वैधानिक अस्तित्व होने से इसके सदस्यों के  जीवन मरण से कंपनी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है कंपनी के सदस्य आते जाते रहते हैं परंतु सदस्यों में परिवर्तन होने से कंपनी के अस्तित्व को किसी भी प्रकार का  प्रभाव नहीं पड़ता है एवं कंपनी निरंतर बिना किसी रोकथाम के संचालित रहती है कंपनी में नए सदस्यों का आना जाना अंशधारकों द्वारा अंशो  के स्थानांतरण करने से या पुराने सदस्यों की मृत्यु होने की स्थिति में होता हैं.

पृथक संपत्ति:-कंपनी विधान द्वारा निर्मित कृतिम व्यक्ति है जिसके वैधानिक अधिकार एवं दायित्व होते हैं तथा विधान द्वारा कंपनी को उसका नाम प्रदान किया जाता है तथा उसके नाम से ही कंपनी को संपत्ति रखने, उसका उपभोग करने एवं उसका नियंत्रण करने का अधिकार भी कंपनी को प्राप्त होता है अतः कंपनी की संपत्ति कंपनी के आधिपत्य में ही रहती है.

मद्रास हाई कोर्ट द्वारा भी आर एफ पेरूमल वर्सेस  एच जॉन डेनिम AIR 1963  के  आदेश में निर्धारित किया गया है कि  कंपनी के सदस्यों का कंपनी की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता है ना ही वह कंपनी की संपत्ति में अधिकार हेतु कोई दावा कर सकते हैं या वाद कर सकते हैं कंपनी की संपत्ति में मालिकाना हक कंपनी का ही होता है जो कंपनी के जीवन काल में या कंपनी के समापन के समय भी कंपनी का ही होता है यहां तक कि कंपनी में उसके सदस्यों का हित भी बीमायोग्य नहीं होता है.

अंशो का स्थानांतरण :- कंपनी की पूंजी छोटे-छोटे भागों में विभक्त होती हैजो छोटे-छोटे भाग होते हैं वह अंश कहलाते हैं यह एक प्रकार की चल संपत्ति होते है जिसका आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरण किया जा सकता है कंपनी अधिनियम 2013 के भाग 44 में वर्णित किया गया है कि अंश चल संपत्ति हैं जिसे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को कंपनी के पार्षद सीमा नियम में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार अथवा कंपनी अधिनियम में वर्णित नियमों का पालन कर स्थानांतरित किया जा सकता है कंपनी अधिनियम अंशधारको को यह अधिकार देता है कि वह खुले बाजार में अपने अंशों का सौदा कर विक्रय कर सकते हैं यह अधिकार उन्हें तरलता प्रदान करता है स्टॉक एक्सचेंज द्वारा अंशो के क्रय-विक्रय से संबंधित समस्त सुविधाएँ / सहायताएं प्रदान की जाती हैं इन सुविधाओं हेतु उनके द्वारा कुछ कमीशन चार्ज किया जाता है.

वाद करने की क्षमता:- कंपनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति होती हैं जिसका स्वयं का नाम एवं वैधानिक अस्तित्व होता है वैधानिक तौर पर कंपनी को कुछ अधिकार, शक्तियां एवं उसके लिए कुछ दायित्व निर्धारित किए गए हैं साथ ही यदि कंपनी के अधिकारों का हनन होता है तो कंपनी को द्वारा न्यायालय के माध्यम से वाद दायर कर अपने हितों की रक्षा हेतु एवं क्षतिपूर्ति की मांग हेतु कार्यवाही कर सकती है ठीक इसी प्रकार यदि कंपनी के कार्यों से किसी व्यक्ति या संस्था को क्षति होती है तो वह कंपनी के नाम से ही कंपनी के विरुद्ध वाद दायर कर कंपनी से क्षतिपूर्ति की कर सकता है.

फ्लोटिंग सिक्योरिटीज लिमिटेड वर्सेस एमबी सैन फ्रांसिस्को 2004 (52) एस सी एल के वाद में यह निर्धारित किया गया की एक कंपनी का अस्तित्व अपने सदस्यों से पृथक रहता है यहां तक कि कंपनी द्वारा अपने सदस्यों पर भी वाद दायर किया जा सकता है कंपनी अपने अधिकारियों द्वारा की गई अवमानना के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकती है क्योंकि कंपनी अपने अधिकारियों के व्यक्तिगत कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं होती हैं.

संविदा / अनुबंध संबंधी अधिकार :- वैधानिक तौर पर कंपनी का अस्तित्व विधान द्वारा स्थापित होता है जो अपने सदस्यों से स्वतंत्र रूप से पृथक होता है कंपनी के   व्यापारिक व्यवहार कंपनी के नाम से  होते है तथा कंपनी के व्यापार संचालन हेतु  आवश्यक एवं अनिवार्य अनुबंध भी कंपनी द्वारा स्वयं के नाम से ही किए जाते हैं यहां तक कि कंपनी के सदस्यों द्वारा अनुबंध की पार्टी को अनुबंध  के क्रियान्वयन हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि अनुबंध में कंपनी पार्टी होती है ना ही कंपनी के सदस्य ना ही अनुबंध का लाभ सदस्यों को प्राप्त होता है कंपनी किसी भी रूप में अपने सदस्यों के लिए उनके हित के न्यासी नहीं होती है.

कार्यों की सीमा:-कंपनी का संचालन उसकी वैधानिक सीमाओं को ध्यान में रखकर भी किया जाता है कंपनी के संचालन हेतु उसके उद्देश्य एवं उनकी प्राप्ति हेतु किए जाने वाले कार्यों का वर्णन कंपनी के पार्षद सीमा नियम (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) में वर्णित रहता है कंपनी द्वारा पार्षद सीमा नियम में वर्णित कार्यों को ही किया जा सकता है उसके अतिरिक्त कंपनी को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कोई कार्य करना आवश्यक होने की स्थिति में सर्वप्रथम कंपनी के पार्षद सीमा नियमों में बदलाव किया जाता है उसके उपरांत वह कार्य किया जाता है अतः कंपनी की सीमाओं का निर्धारण कंपनी के पार्षद सीमा नियम में वर्णित प्रावधानों के आधार पर होता है.

पृथक प्रबंधन:-वैधानिक रूप से कंपनी का अस्तित्व पृथक रूप से स्थापित किया गया है जिसके अंतर्गत कंपनी अपने सदस्यों से पृथक अस्तित्व रखती कंपनी के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उसके संचालन हेतु संचालन मंडल का गठन किया जाता है जिसके द्वारा वैधानिक दृष्टिकोण राजधानी को ध्यान में रखते  हुए कंपनी के कार्यों को  संचालित किया जाता है आवश्यक निर्णय लिए जाते हैं हुए  संचालन मंडल का प्रमुख कार्य एवं कर्तव्य यह होता है कि कंपनी के सदस्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनके आर्थिक, सामाजिक  विकास एवं उद्धार हेतु वैधानिक तौर पर कंपनी संचालित करें  अतः कंपनी के प्रबंधन संबंधी कार्य कंपनी के प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं कंपनी में संचालन मंडल का गठन कंपनी के सदस्यों द्वारा किया जाता है.

कंपनी के अस्तित्व का समापन:- कंपनी विधान द्वारा निर्मित एक वैधानिक व्यक्ति होती है जो वैधानिक व्यक्तित्वरखती है जिसके अस्तित्व की उत्पत्ति विधान द्वारा निर्मित प्रक्रिया के पालन करने से होती है अतः कंपनी का समापन भी विधान द्वारा निर्मित प्रक्रिया का पालन कर ही किया जा सकता है कंपनी के समापन  हेतु विभिन्न प्रकार की  रणनीतियों का  उपयोग भी किया जाता है जैसे पुनर्निर्माण, पुनर्गठन, समामेलन उपरोक्त माध्यम से भी कंपनी के अस्तित्व को समाप्त किया जा सकता है.

Sponsored

Join Taxguru’s Network for Latest updates on Income Tax, GST, Company Law, Corporate Laws and other related subjects.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sponsored
Sponsored
Sponsored
Search Post by Date
November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930