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जीएसटी को लागू हुए अब काफी समय हो गया है और अब यह सवाल बहुत बार किया जाता है कि क्या वास्तव में जीएसटी एक सरल कानून है? हम इस सवाल को एक दूसरे तरीके से देखें तो इस सवाल का वास्तविक अर्थ यह है कि क्या जीएसटी एक सरल कानून नहीं है? देखिये जब से जीएसटी लागू किया गया तब ही यह तय था कि यह एक दोहरा कर होगा जिसमें एक ही सप्लाई के व्यवहार पर राज्य और केंद्र दोनों कर एकत्र करेंगे तो इस बात पर तो प्रारम्भ से ही तय था कि जीएसटी भारत में इसी तरह से लागू होगा इसलिए हम इस बिंदु पर तो जीएसटी की सरलता का टेस्ट कर ही नहीं सकते हैं. जीएसटी एक दोहरा कर है लेकिन यह तो शुरू से ही देखा भाला सत्य था इसलिए इस कारण से यदि करदाता को कोई परेशानी हुई भी हो तो इसे जीएसटी की सरलता या मुश्किल होने से नहीं जोड़ा जा सकता है.

जीएसटी में एक राज्य से दूसरे राज्य की खरीद पर भी इनपुट क्रेडिट मिलने लगी और इसके अतिरिक्त इस प्रकार की बिक्री पर सी फॉर्म्स एकत्र करने की समस्या से भी मुक्ति मिल गई. जीएसटी से पूर्व बहुत सारे अप्रत्यक्ष कर थे जिनकी संख्या बहुत ही कम हो गई है और लगभग वे सभी ही जीएसटी में समाहित हो गए. एक्सपोर्ट के सम्बन्ध में आने वाले रिफंड काफी तेजी से आने लगे. ऐसा लगने लगा कि सब कुछ एक स्वचालित प्रणाली के द्वारा होगा जिसमें मानव दखल कम से कम होगा. पहले हर राज्य अपना अलग अप्रत्यक्ष कानून और उसकी प्रणालियाँ बनाता था तो एक राज्य से अधिक राज्यों में कारोबार करने वाले डीलर्स के एक बड़ी मुसीबत थी लेकिन जीएसटी में व्यवहारिक रूप लगभग सारे कानून और प्रक्रियाएं केंद्र से ही बन रही है इसलिए पूरे देश में लगभग एक सी ही कर प्रणाली लागू है.

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इन सब गुणों के बाद भी अभी भी यह सवाल क्यों किया जाता है क्या वास्तविकता में जीएसटी एक सरल कर है? सही बात तो यह है कि जीएसटी पूरे देश में लगाई जाने वाली एक पारदर्शी और सरल कर प्रणाली थी जिसे बहुत ही समझदारी के साथ बनाया गया था लेकिन फिर ऐसा क्यों लगने लगा कि जीएसटी एक सरल नहीं बल्कि एक बहुत ही मुश्किल कर प्राणाली है. सबसे पहले तो हम यह देखें कि वास्तव में मुश्किल क्या है तो हमारी लिस्ट में सबसे पहले जो नाम आते है वे हैं इनपुट क्रेडिट के साथ लगाए गए अव्यवहारिक बंधन, रिवर्स चार्ज- RCM जैसा अव्यवहारिक प्रावधान और जीएसटी में इस समय आने वाले अनियंत्रित संख्या में नोटिस. अगर सरकार इन समस्याओं को हल कर दे अर्थात इनपुट क्रेडिट के लिए कर दाता को पर्याप्त समय दे, जो कर विक्रेता ने जमा नहीं कराया है उसकी वसूली क्रेता की इनपुट क्रेडिट को रोकने की जगह उसे विक्रेता से करे, जीएसटी की धारा 16(4) के प्रभाव को अभी प्रारम्भिक वर्षों में रोक दिया जाए और जीएसटी में इस समय जारी नोटिस की संख्या और उनके कारण पर थोड़ा नियंत्रण रखा जाए तो अभी भी हो सकता है कि जीएसटी एक सरल कर बन सकता है. जीएसटी का विभागीय ऑडिट भी एक सख्त और नियंत्रित प्रणाली के तहत ही होना चाहिए.

सरकार 10 करोड़ की बिक्री पर ई -इन्वोइसिंग लागू कर रही है, ठीक है इसके भी अगर हम राजस्व की दृष्टी से देखें तो कई लाभ है लेकिन जहां ई – इन्वोइसिंग है वहां इसी में थोडा और संशोधन कर कम से कम जहां ई – इन्वोइसिंग हो रही है वहां तो कम से कम ई -वे बिल हटा दिया जाए. इसके अतिरिक्त माल के परिवहन के दौरान को चेकिंग होती है उसमें पारदर्शिता का अभाव है और उसमें वही समस्याएं है जो कि वेट के दौरान थी. याद करें कि वेट और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की समस्याओं को हल करने के लिए ही तो जीएसटी लाया गया था.

ऊपर मैंने लिखा है कि एक्सपोर्ट के रिफंड आसानी से आ रहें है लेकिन यही बात हम बाकी रिफंड के बारे में नहीं कह सकते हैं और यहाँ एक बात यह भी है कि मानव हस्तक्षेप ही जीएसटी की बहुत सी समस्याओं का कारण है जिसे समाप्त करने या कम करने का वादा उस समय किया गया था जब कि यह लागू किया गया था लेकिन जिस प्रकार से जीएसटी प्रक्रियाएं बनाई गई है उनमें धीरे -धीरे मानव हस्तक्षेप उसी तरह से बढ़ता जा रहा है जिस प्रकार जीएसटी से पूर्व की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में था. जीएसटी ऑडिट, जीएसटी सर्वे, जीएसटी रिफंड, जीएसटी नोटिस, परिवहन के दौरान माल की चेकिंग इत्यादि में मानव हस्तक्षेप को देखें तो अब यह पिछली कर प्रणाली के मुकाबले लगातार बढ़ता जा रहा है और इसके और कोई दुष्परिणाम हो या नहीं समय तो काफी बर्बाद होता ही है. इसके लिए प्रक्रियाओं में क्या बदलाव हो जिससे यह कर प्राणाली सरल भी हो जाए और सरकार के राजस्व की चोरी भी ना हो ऐसे कोई बदलाव किये जाए इसका समय अब आ गया है.

सरकार द्वारा जारी स्पष्टीकरण और परिवर्तन भी जीएसटी को सरल बनाने की और कदम के रूप में लाये जाने चाहिए. अभी हाल ही में हमने देखा दाल मिलों के लिए दिए गए स्पष्टीकरण ने समस्याएँ बढाई ही है. रिहायाशी मकानों के सम्बन्ध में जारी RCM की उपयोगिता भी सिद्ध होना अभी बाकी है.

जिन्होंने यह कर बनाया है उन्हें ही अब समस्याओं को हल तो निकलना ही पडेगा और ऐसा करना मुश्किल भी नहीं है बस समस्याएं क्या है इनको समझने के लिए एक व्यवहारिक मानसिकता की जरुरत है जिसका प्रारम्भ से ही अभाव रहा है. जीएसटी के दो मुख्य लक्ष होने चाहिए – एक तो राजस्व की प्राप्ती और दूसरा व्यापार करने को सरल और सुविधाजनक बनाना. इस समय जीएसटी का लक्ष होना चाहिए कि भारत में व्यापार करना सरल और सुविधाजनक हो सके क्यों कि राजस्व तो जीएसटी से लगातार बढ़ ही रहा है.

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