आयकर रिफंड जारी करना विभाग की उपलब्धि नहीं बल्कि संकेत है टीडीएस टीसीएस नियमों को तर्कसंगत बनाने की:
आयकर विभाग द्वारा बड़ी शान से मीडिया, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, आदि पर बताया जाता है और प्रेस विज्ञप्ति दी जाती है कि इतने रुपये आयकर रिफंड के रूप में जारी किए गए. लेकिन सच तो ये है कि जिस पैसे पर सरकार का हक नहीं था उसे लौटाया जा रहा है तो फिर उपलब्धि कैसे, उल्टा व्यापार और लोगो का पैसा विभाग के पास महीनों फंसा रहा. यदि ये पैसा बाजार में रहता तो इससे व्यापार और बढ़ता.
पिछले दिनों आयकर विभाग ने अपनी उपलब्धि को छपवाते हुए बताया कि उनके द्वारा 01/04/2021 से 24/01/2022 तक करीब 1.79 करोड़ करदाताओं को 162500 करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए गए जिसमें 1.41 करोड़ करदाताओं का लगभग 27000 करोड़ रुपये वर्ष 2020-21 से संबंधित है.
इस साल के अंत तक लगभग 2 लाख करोड़ रुपये के रिफंड जारी होने की संभावना है. इतना बड़ा अमाउंट संकेत देता है कि टीडीएस टीसीएस के नियमों में तर्कसंगता मेल नहीं खा रही और यह एक प्रमुख कारण है कि करदाताओं को रिफंड क्लेम करना पड़ता है. कुछ प्रमुख क्षेत्र जिनमें टीसीएस टीडीएस खामियां देखी जा सकती है:
1. खरीद बिक्री पर टीडीएस टीसीएस लागू होने से न केवल एक गैर जरूरी अनुपालन बढ़ गया है बल्कि यह एडवांस टैक्स के अलावा एक अतिरिक्त कर हो जाता है जिसका उपयोग फिलहाल रिफंड में किया जा रहा है.
2. पिछले 14 सालों में प्रापर्टी मार्केट में उछाल न के बराबर रहा है और ऐसे में प्रापर्टी खरीद बिक्री में कोई खास मुनाफा नहीं होने के कारण इनकी खरीद बिक्री पर काटा गया टीडीएस सामान्यतः रिफंड क्लेम ही लिया जा रहा है.
3. इसी तरह एनआरआई द्वारा प्रापर्टी बेचने पर कुल बिक्री मूल्य पर धारा 195 के अन्तर्गत 20% टीडीएस काटने का नियम बहुत ज्यादा है और लगभग सभी केसेस में रिफंड के रूप में वापस लिया जाता है.
4. यदि करमुक्त संस्थानों जैसे स्कूल, कालेज, अस्पताल या अन्य सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों की बात करें तो इनके द्वारा अर्जित आय पर टीडीएस कटना पूरा रिफंड क्लेम में ही जाता है और रिफंड देर से जारी होने की स्थिति में विभाग को ब्याज भी देना पड़ता है.
5. इसके अलावा इस साल जो सबसे बड़ा कारण और कन्फ्यूजन रहा है, वह है आयकर के दो स्लेब. पुराना छूट के साथ और नया बगैर छूट के.
खासकर नौकरीपेशा वर्ग में जो ज्यादा टैक्स बचाता है उस स्लेब को चुना जाता है, लेकिन टैक्स पहले ही कट चुका होता है सो रिफंड के रूप में क्लेम किया जाता है.
6. आज भी हमारे देश में ज्यादातर छोटे व्यापारियों और करदाताओं के पेन नम्बर बैंकों में अपडेट नहीं है जिस कारण से बैंक ब्याज पर टीडीएस अधिक दर से काट लेते हैं. फार्म 15 जी/एच नहीं लेने की स्थिति में टीडीएस कट जाता है जो सबसे ज्यादा रिफंड के रूप में क्लेम किया जाता है.
7. ज्यादातर बड़ी कंपनियां और बैंक अनुपालन में डिफाल्ट से बचने के लिए टीडीएस कंपलसिरी कर दिया गया है जिससे सबसे ज्यादा असर छोटे करदाताओं पर पड़ता है.
टीडीएस/ टीसीएस जमा न करना या कम जमा करना या देर से जमा करना या न काट पाना की पेनल्टी इतनी अधिक है एवं कोर्ट केस तक हो सकता है, इससे व्यापार तक चौपट हो सकता है.
इसलिए बैंक 20 लाख रुपये से अधिक कैश निकासी पर भी टीडीएस काट लेते हैं और इसके ऊपर ई–कामर्स कंपनियों द्वारा छोटे छोटे व्यापारियों, कारीगरों और सामान बेचने वालों का टीडीएस कटना रिफंड का रुप लेता है.
साफ है आयकर विभाग द्वारा रिफंड जारी करना उनकी मजबूरी है और जिसका प्रमुख कारण टीडीएस टीसीएस नियमों का युक्ति संगत न होना है.
टीडीएस टीसीएस नियमों को सरल बनाते हुए पेनल्टी प्रावधानों को हटाना बहुत जरूरी है. यदि कटौती कर्ता ये साबित कर दे कि जिस पर टैक्स नहीं काटा गया है उसके द्वारा अपनी आय पर कर दिया गया है तो उसे वह खर्च मान्य कर दिया जावेगा.
इसके लिए फार्म 3सीडी आडिट का संशोधित कर आडिटर द्वारा वेरिफिकेशन पर की करदाता ने कर कटौती जहाँ नहीं कर पाया है या कम कटौती की है, उस केस में उस सप्लायर/ व्यक्ति द्वारा यदि वह आय अपने रिटर्न में बताई हैं एवं उस पर टैक्स भरा है.
ऐसा होने से सरकार के समक्ष यह साफ होगा कि किसी भी तरह से राजस्व को नुकसान नहीं है और छोटा करदाता भी गैर जरूरी अनुपालन की चपेट में आने से बचेगा एवं पेनल्टी का डर भी नहीं सताऐगा. साथ ही मार्केट में टीडीएस टीसीएस कम कटने से ज्यादा तरलता होगी और आयकर विभाग भी रिफंड जारी करने की झंझट से बचेगा एवं प्रशासनिक खर्च में बचत होगी सो अलग.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965