कमर तोड़ मंहगाई ने जनता को किया हालाकान और सरकार को चिंता सिर्फ राजस्व की
18/07/2022 से जिन उत्पादों पर जीएसटी दरें बढ़ाई गई है, उससे सरकार की मंशा साफ तौर पर दिख रही है कि:
1. ज्यादातर जीएसटी की दरें 18% पर सरकार लाना चाहती है
2. किसी भी उत्पाद और सेवा को करमुक्त नहीं रखना चाहती
3. केन्द्र सरकार समझ गई है कि राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति का हर्जाना जारी रखना होगा नहीं तो राज्य बगावत भी कर सकते हैं
4. जीएसटी काउंसिल में राज्यों से शामिल मंत्रियों को भी जनता के हालात से कोई लेना देना नहीं क्योंकि एक भी राज्य जीएसटी दरें बढ़ने का विरोध नहीं कर रहा है और न ही वैकल्पिक स्त्रोत बता पा रहा है
5. मंहगाई और बेरोजगारी सिर्फ शब्द है जिनका सरकार अर्थ तो समझाती है लेकिन यह मानती है कि आम जनता चुपचाप इसे स्वीकार कर लेगी
रही सही कसर घरेलू गैस के दाम बढ़ाकर पूरी कर दी. आप को विश्वास नहीं होगा कि जिस घरेलू गैस का दाम 01/01/2021 को 653 रूपये होता था, वह आज दिनांक 06/07/2022 को 1053 रुपये पर पहुँच गया यानि मात्र 18 माह में 400 रुपये की बढ़ौतरी और वो भी डंके की चोट पर और बिना किसी विरोध के.
साफ है सरकार अच्छे से समझती है चाहे आम जनता हो, मध्यम वर्ग हो या फिर विपक्ष, कुछ दिन चिल्ला कर अपने अपने कामों में लग जावेंगे क्योंकि जीवन यापन कठिन होता जा रहा है. अब सरकार का विरोध करें कि परिवार पालें और यही कमजोरी का फायदा सरकार भलीभाँति उठा रही है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जीएसटी की 47 वीं बैठक में जिन उत्पादों और सेवाओं के दाम बढ़ाने के निर्णय लिए गए- वे सारी आम जनता के रोजमर्रा जीवन से जुड़ी हुई है और ऐसे में इन पर दरें बढ़ाना किसी भी रूप में तर्कसंगत और न्याय संगत नहीं हो सकता. इन चीजों पर दाम बढ़ाकर केन्द्र ने न केवल मंहगाई को पंख लगा दिए बल्कि मध्यम वर्ग के मुंह से निवाला खींचने की कोशिश की गई है.
जिन उत्पादों और सेवाओं पर दरें बढ़ाई गई:
1. पैक्ड मछली, दही, पनीर, लस्सी, शहद, सूखा मखाना, सूखा सोयाबीन और मटर आदि प्रोडक्ट. इन पर अब 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा.
2. खुले आटे पर 5% जीएसटी अब लगेगा
3. चेक जारी करने के एवज में बैंकों की तरफ से ली जाने वाली फीस पर 18% जीएसटी लगेगा.
खाने पीने की वस्तुओं के साथ अब चेक बुक भी मंहगी हुई.
4. एटलस समेत नक्शे और चार्ट पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगेगा.
बच्चों की शिक्षा भी मंहगी.
5. एक हजार रुपये प्रतिदिन से कम किराये वाले होटल कमरों पर 12 प्रतिशत जीएसटी.
सस्ती होटल भी मंहगी होंगी.
6. अस्पताल में 5,000 रुपये से अधिक किराये वाले कमरों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा.
स्वास्थ्य सेवा भी मंहगी होगी क्योंकि अस्पताल को अब न केवल जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, साथ ही हर महीने जीएसटी रिटर्न भी फाइल करनी होगी.
7. ‘प्रिंटिंग/ड्राइंग इंक’, धारदार चाकू, कागज काटने वाला चाकू और ‘पेंसिल शार्पनर’, एलईडी लैंप, ड्राइंग और मार्किंग करने वाले प्रोडक्ट पर जीएसटी बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है. यानि रोजमर्रा के जरुरी सामान, स्टेशनरी, एलईडी बल्ब, आदि अब मंहगे होंगे और मंहगाई में तड़का लगाएंगे.
8. सौर वॉटर हीटर पर अब 12 प्रतिशत जीएसटी लगेगा, पहले यह 5 प्रतिशत था.
सौर ऊर्जा के प्रति लोगों का झुकाव कम होगा और ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधनों पर यह प्रहार साबित होगा.
9. सड़क, पुल, रेलवे, मेट्रो, अपशिष्ट शोधन संयंत्र और शवदाहगृह के लिये जारी होने वाले कॉन्ट्रैक्ट पर अब 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा. यह अबतक 12 प्रतिशत था. यानि की संरचना क्षेत्र में भी मंहगाई होने से आम जनता का घूमना फिरना भी मुश्किल हो जावेगा.
10. मुद्रण स्याही 12 से अब 18 प्रतिशत यानि प्रिटिंग मंहगी होने से किताबें मंहगी होगी.
11. चिटफंड सेवा 12 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत यानि ब्याज दरों में बढ़ौतरी. व्यापार में पैसे लेने के वैकल्पिक जरिये और महंगे होंगे.
12. पानी के पंप, साइकिल पंप 12 से बढ़कर 18 प्रतिशत, गरीब व्यक्ति के लिए मंहगा होगा सामान और सेवाएँ
13. आटा चक्की, दाल मशीन, 05 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत
14. अनाज छँटाई मशीन, डेयरी मशीन, फल-कृषि उत्पाद छँटाई मशीन 12 से बढ़कर 18 प्रतिशत
15. सर्किट बोर्ड 12 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत किया गया
16. ड्राइंग और मार्किंग उपकरण में 12 से 18 प्रतिशत की वृद्धि
17. सरकारी संस्थानों को दिए जाने वाले उपकरण 5 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत
18. टेट्रा पैक 12 से बढ़कर 18 प्रतिशत हुआ
19. आरबीआई, सेबी, आईआरडीए, पोस्ट आफिस, आदि नियामक द्वारा दी जा रही सेवाएं भी अब 18% जीएसटी दायरे में होंगी
20. यदि घर रहवास या अन्य उपयोग हेतु किराए पर दिया गया है तो जीएसटी नहीं लगता था लेकिन अब घर यदि व्यवसायिक उपयोग हेतु दिया गया है तो इस पर भी 18% जीएसटी लगेगा.
कहने का तात्पर्य साफ है कि खासकर मध्यम वर्ग को तो सरकार किसी भी रुप से आराम नहीं देना चाहती, उसे राजस्व वसूली की मशीन समझा जा रहा है जैसे कि पहले के जमींदार किसानों का खून तक निचोड़ लेते थे.
रोजमर्रा के सामानों एवं सेवाओं पर जीएसटी लागू करना या दरें बढ़ाना जनता के साथ खिलवाड़ तो है ही लेकिन साथ ही मंहगाई का मजाक भी उड़ाया जा रहा है और बेचारी जनता मंहगाई छोड़ अन्य व्यापक मुद्दों पर उलझ कर रह गईं है.
स्वास्थ्य, शिक्षा और रोटी हर व्यक्ति का हक है और उम्मीद थी कि सरकार कभी इस पर हाथ नहीं डालेगी, लेकिन सरकार ने डंके की चोट पर इन क्षेत्रों को जीएसटी के अन्तर्गत लाकर आम जनता के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है.
आपको जानकारी के
लिए बता दूँ कि बीते एक सप्ताह के भीतर खाद्य पदार्थों की कीमत में करीब 10 फीसदी की तेजी देखी गई है।
वजह बताई जा रही है कि गैर ब्रांडेड आटा-चावल जीएसटी के दायरे में लाने से जमाखोरी शुरू हो गई है।
जीएसटी लागू होने से पहले ही आटा मिलरों ने 100-150 रुपए क्युन्टल तक दाम बढ़ा दिए हैं।
सामान्य चावल के खुदरा दाम में तीन रुपए किलो का उछाल देखा गया है।
व्यापारी आशंका जता रहे हैं कि जीएसटी लागू हो जाने के बाद दाम पांच से छह रुपये किलो और बढ़ जाएंगे।
*एक तरफ सरकार आयकर और जीएसटी राजस्व में हो रही अधिक वसूली से उत्साहित है और सोशल मीडिया पर इसका प्रचार प्रसार भी किया जा रहा है तो फिर रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर कराधान क्यों?*
वही दूसरी ओर आपको तीन तथ्य सोचने पर मजबूर कर देंगे कि आखिर इतना अधिक राजस्व अर्जित करने के बाद भी जनता को राहत क्यों नहीं-
1. पहली सांख्यिकी और परियोजना मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में चल रही परियोजनाओं में देरी के स्वरूप इनकी कीमतें 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गई है.
2. आरबीआई रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये के बैंक फ्राड के केस रजिस्टर किए जा चुके हैं.
3. वित्त मंत्रालय के अनुसार इस साल पहली तिमाही में बजट घाटा 28% के स्तर पर पहुँच चुका है जो कि 18% के स्तर पर होना था.
साफ है इतने अधिक राजस्व के बावजूद राजस्व घाटा अपने स्तर से अधिक होना बताता है सरकारी खर्चे जरूरत से ज्यादा होना, निर्यात में कमी और आयात में बढौतरी वो भी आत्मनिर्भर स्कीम के बावजूद और फंड का उचित नियोजन एवं सही हिसाब खिताब न होना.
ऐसे में तो टैक्स बढ़ना, मंहगाई पर अंकुश न लगना, पेट्रोल डीजल गैस और खाने पीने के दाम आम आदमी के पहुँच से बाहर जाना तय है.
क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि आम जनता को इतना तो बता दें कि राजस्व बढौतरी के बावजूद भी पैसे कहाँ खर्च हो रहे हैं जिससे कि देश का घाटा और बढ़ता ही जा रहा है, बैंकों में पैसा डूबता जा रहा है और परियोजनाओं के खर्च पर कोई नियंत्रण ही नहीं दिखता.
जरूरत है खर्च पर नियंत्रण की, बेकार योजनाओं पर पैसा बहाने से बचने की और नियोजित ढंग से पैसा उपयोग करने की- न कि रोजमर्रा उपयोग में आने वाली चीजों पर कर बढ़ाने की और आम जनता को बेहाल करने की.
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*