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जीएसटी को भारत में लगे इस समय 5 वर्ष होने को आये हैं तो आइये यह एक समय है कि देखें कि इस अवधि में जीएसटी उन लक्ष्यों को प्राप्त कर सका जिनकी उम्मीद सभी पक्षों ने उस वक्त की थी जिस समय जीएसटी भारत में लागू किया गया था. इन पक्षों में सरकार , व्यापार  एवं उद्योग एवं जीएसटी से जुड़े प्रोफेशनल्स सभी सम्मिलित हैं.

आइये देखें कहाँ तक ये लक्ष्य प्राप्त हुए हैं और यदि कमी रही तो फिर कहाँ कमी रही और अब क्या उपाय हो सकते हैं कि जीएसटी के वे सभी लक्ष्य प्राप्त हो सके जिसके लिए यह कर भारत वर्ष में लागू किया गया था.

जीएसटी के जो घोषित लक्ष्य  थे उनमें राजस्व में वृध्दि, करों का सरलीकरण , इनपुट क्रेडिट की निर्बाध गति और कर के आधार को बढ़ाना मुख्य थे . इसमें से कर के आधार को बढ़ाना और कर के राजस्व में वृद्धि ये दो ऐसे लक्ष है जिनसे सरकार संतुष्ट हो या नहीं लेकिन निरंतर इनमें वृद्धि तो हो ही रही है और यह लक्ष्य प्राप्ति की और एक सकारात्मक कदम तो है ही.

इसके अतिरिक्त जो दो और लक्ष्य थे जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया है   उनमें प्रमुख है करों का सरलीकरण तो आप मान कर चलिए कि इस मुद्दे पर सरकार के प्रारम्भिक प्रयास  तो सफल नहीं हुए पर तब भी प्रयास तो हो ही रहे थी  लेकिन इस समय लगता है कि अब सरलीकरण के प्रयास ही बंद कर दिए गए है और जीएसटी एक मुश्किल से मुश्किल कर बनता जा रहा है. स्वचालित कर प्रणाली जिसमें सभी कुछ ऑनलाइन होना था और अधिकांश कर निर्धारण स्वत: कर निर्धारण प्राणाली के तहत होने थे वहां जिस संख्या में नोटिस जारी हुए हैं उनसे तो यह लगता है इस कर प्रणाली के संचलान में प्रारम्भ में जो गलतियां इसके तंत्र द्वारा की गई थी उसकी खामियाजा भी अब कर दाताओं को ही भुगतना पड़ रहा  है.

यदि हमारे नीति निर्माताओं को यह समझा दिया है तो कि करों की प्रक्रिया को सख्त बनाने से राजस्व में वृद्धि होती है तो यह सलाह थोड़े समय तो काम करेगी लेकिन दीर्घ काल में यह कोई अच्छी सलाह नहीं है.

सरकार ने कोविड के दौरान एक निश्चित अवधि का ब्याज माफ़ कर दिया था लेकिन इस समय उस अवधि के ब्याज के भुगतान के नोटिस भी आ रहें हैं जिनके जवाब में डीलर्स को यह लिखना है कि यह ब्याज सरकार द्वारा माफ़ कर दिया गया था . अब अगर ऐसा हो रहा है तो फिर आप मान लीजिये कि जीएसटी किस तरफ जा रहा है ? जीएसटी में मुख्य रिटर्न GSTR-3B में गलती होने पर संशोधन का कोई प्रावधान नहीं था इसलिए फर्क तो आना ही था लेकिन यह समस्या तो सरकारी तंत्र द्वारा ही खडी की गई है . जीएसटी में जारी नोटिस एक बड़ी संख्या में आ रहें हैं तो फिर हमें मान लेना चाहिए कि इस पूरे सिस्टम में एक बड़े परिवर्तन की जरुरत है अन्यथा व्यापार कम होगा और बहुत बड़ा समय जीएसटी नोटिस के जवाब और प्रक्रियाओं के पालन में निकल जाएगा.

इनपुट क्रेडिट जीएसटी में निर्बाध नहीं है और धीरे – धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इसे लेकर प्रावधान सख्त से सख्त होते जा रहें है और इस तरह से आप स्वयं यां मान लेंगे कि यह जीएसटी का कभी उद्देश्य था ही नहीं कि जीएसटी इनपुट को निर्बाध बनाना है . विक्रेता के सभी दोषों के लिए क्रेता को जिम्मेदार ठहरा कर उसकी इनपुट क्रेडिट रोक लेना ही अब इस प्रक्रिया का पूरा उद्देश्य लगता है लेकिन यह सब जीएसटी को लम्बे समय तक सफल होने में सबसे बड़ी बाधा बनेगा. इनपुट क्रेडिट को राकने की जगह किस तरह विक्रेता को अपने जमा कराने और रिटर्न भरने के लिए मजबूर किया जाए सरकार को इसके उपाय करने होंगे.

जीएसटी का नेटवर्क प्रारम्भ से ही एक परेशानी का कारण था लेकिन बीच – बीच में यह अच्छे काम का संकेत देता है लेकिन फिर स्तिथि बिगड़ने लगती है. पिछले माह ही फिर यह नेटवर्क GSTR-2B समय पर जेनरेट नहीं कर पाया और फिर स्वयं ही घोषणा कर दी कि इस माह करदाता GSTR-2A से काम चला कर रिटर्न भर सकते हैं . क्या किसी कानूनी प्रावधान की इस तरह व्याख्या करने का अधिकार इस नेटवर्क को है ? यहाँ आप मान कर चलिए कि गलतियां तो होंगी ही लेकिन जिसतरह जीएसटी तंत्र की मजबूरियां है उसी तरह करदाता की भी तो अपनी मजबूरियां हो सकती है तो फिर करदाताओं पर इतनी सख्ती क्यों ? इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच को दूर करने के लिए क्रेता को समय दिया जाना चाहिए और इसके लिए तुरन्त क्रेता की इनपुट क्रेडिट को रोक लेना दीर्घकाल में एक गलत कदम ही साबित होगा.

इसके पहले जब सरकार ने ईंटो पर एक वैकल्पिक कर 3 प्रतिशत लागु किया था तब भी जीएसटी नेटवर्क कई दिनों पूर्व सूचना होने पर भी GSTR-1 में इसकी व्यवस्था नहीं कर पाया और अंत में एक जुगाड़ के जरिये इन करदाताओं को GSTR-1 भरने की सलाह दी गई . जीएसटी नेटवर्क के प्रयासों में प्रांरम्भ से ही गंभीरता का अभाव रहा है जो कर दाताओं के लिए परेशानी का कारण भी है.

इस माह और भी घटनाएं हुई है जिनमें जीएसटी रिफंड को लेकर प्रोफेशनल्स की गिरफ्तारी का मुद्दा भी बहुत ही विवादास्पद रहा और पूरे देश में प्रोफेशनल्स ने इसका विरोध किया . जीएसटी में गिरफ्तारी के प्रावधान बहुत ही संवेदनशील प्रावधान है और साथ ही बाद के परिवर्तन जिनके अनुसार कर की चोरी करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है ने इस प्रावधान को और भी विवादास्पद बना दिया है . इस प्रावधान की एक बार फिर से व्याख्या करने की जरुरत है क्यों कि यदि इस प्रावधान का प्रयोग करते समय विवेक का इस्तेमाल करना होता है और इसमें कहीं भी कोई भी त्रुटी हो तो परिणाम दुर्भाग्यपूर्ण हो सकते हैं .

माह मई 2022 का राजस्व एक बार फिर से 1 लाख करोड़ रूपये को पार कर गया है लेकिन अप्रैल 2022 के राजस्व से यह कम है लेकिन यह कोई हतोत्साहित होने का कारण नहीं है क्यों कि पिछले अप्रैल 2021 से यह राजस्व बढ़ा हुआ है . अप्रैल 2022 का जीएसटी राजस्व 1.67 लाख करोड़ रूपये था जब कि मई 2022 में यह 1.41 लाख करोड़ रूपये रहा है . मई  2021 का जीएसटी राजस्व 1.03 लाख करोड़ रूपये था . इस प्रकार  से मई 2022 में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 0.38 लाख करोड़ का राजस्व अधिक प्राप्त हुआ है जो कि उत्साहवर्धक परिणाम ही लगता है .

सरकार  का राजस्व बढ़ रहा है तो फिर सरकार को जीएसटी सरलीकरण और इनपुट क्रेडिट के निर्बाध होने के भी सकारात्मक प्रयास प्रारम्भ कर देने चाहिए .

जीएसटी तो भारत में रहेगा ही लेकिन इसे यदि लम्बे समय तक उपयोगी बनाना है तो कानून निर्माताओं को कुछ और सकारात्मक कदम तो उठाने ही होंगे.

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