सीबीआई द्वारा कराया गया फारेंसिक आडिट वर्ष 2012-17 ने साबित कर दिया कि एक बड़े स्तर पर कंपनी और उनके निदेशकों द्वारा अवैध लेनदेन, धन का दुरूपयोग, आपराधिक मिलीभगत, साजिश, विश्वासघात, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार अंजाम दिया गया था.
तो फिर बैंकों के समूह जो आईसीआईसीआई बैंक द्वारा लीड किया जा रहा था और जिसमें आडीबीआई एवं एसबीआई बैंक भी शामिल हैं, क्यों नहीं 2013 में खाते को एनपीए घोषित करते समझ पाया कि कंपनी बड़े स्तर पर धोखाधड़ी कर रही है और तुरंत वसूली या कानूनी कार्यवाही की आवश्यकता है, जिसे 9 साल बाद 2022 में अंजाम दिया गया जब चिड़िया चुग गई खेत और बैंकों के हाथ में कुछ आए, ऐसी संभावना क्षीण हो चुकी है.
30 नंवबर 2013 में यह खाता एनपीए घोषित हुआ, उसके बाद बैंकों द्वारा मार्च 2014 से खाते को सही करने की बहुत कोशिश की गई. लेकिन खाता सही नहीं हो सका और आखिरकार जुलाई 2016 में खाते को नवंबर 2013 से एनपीए मान लिया गया.
अप्रैल 2018 में फ्राड और धोखाधड़ी की जांच के लिए फारेंसिक आडिटर नियुक्त किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट जनवरी 19 को दाखिल कर दी जिसमें साफ तौर पर कहा गया कि कंपनी द्वारा 18 बैंकों के समूह के साथ आज तक की सबसे बड़ी 22842 करोड़ रुपये की बैंकिंग धोखाधड़ी की गई.
बैंकों की समय समय पर की गई समीक्षा बैठकों के बाद दिसम्बर 2020 में सीबीआई को शिकायत दर्ज की गई. फिलहाल खाते पर कंपनी ला ट्रिब्यूनल के अन्तर्गत दिवालिया कार्यवाही जारी है.
अब प्रश्न यह उठता है कि:
- नवंबर 2013 में घोषित एनपीए पर कार्यवाही होने में 9 साल क्यों लग गए?
- क्यों बैंकों के प्रबंधन यह नहीं समझ पाए कि बड़े स्तर पर धोखाधड़ी हो रही है?
- क्या फारेंसिक आडिट से ही धोखाधड़ी समझी जाती है जबकि 22842 करोड़ रुपये के डिफाल्ट को कोई साधारण व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है?
- क्यों मार्च 2014 से खाते को नियमित करने की कोशिश की जा रही थी और फिर 2016 में क्यों हाथ उठा दिए गए?
- फिर दो साल बाद 2018 में फारेंसिक आडिटर क्यों नियुक्ति दी गई?
- दो साल 2016 से 2018 क्यों बरबाद किए गए, बैंक प्रबंधन किसका इंतजार कर रहे थे, उन्हें किसकी परमीशन चाहिए थी?
- फारेंसिक आडिटर द्वारा जनवरी 2019 में रिपोर्ट सबमिट करने के बाद, क्यों लगभग दो साल बाद दिसम्बर 2020 में शिकायत दर्ज की गई और कार्यवाही शुरू की गई?
साफ है आम आदमी 3 महीने से ज्यादा यदि लोन का डिफाल्ट करता है तो बैंक उसे कुर्की की धमकी तक दे डालता है और यहाँ पर कंपनी द्वारा 22842 करोड़ रुपये का डिफाल्ट किया गया और बैंकों द्वारा न केवल इस खाते को नियमित करने की कोशिश की गई बल्कि कार्यवाही करने में 9 साल देकर कंपनी और निदेशकों की पूरी मदद की गई कि वे पैसे पूरी तरह डुबो सकें.
सफेदी की तरह साफ दिखने वाले डिफाल्ट पर इतना समय लगना बैकों के प्रबंधन की तो अक्षमता दर्शाता है, साथ ही नियामक आरबीआई और वित्त मंत्रालय पर भी शक की सुई उठाता है कि आखिर इतने सालों से ये क्यों चुप रहें.
*कार्यवाही में लेटलतीफी और इतने बड़े स्तर की धोखाधड़ी को बड़े बड़े बैंकों के प्रबंधन द्वारा न पकड़ा जाना, साफ तौर पर हमारी बैंकिंग प्रणाली, आरबीआई की क्षमता और सरकारी तंत्र पर प्रश्न चिन्ह उठाता है.*
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*
If the BANK TOP Management, RBI & Other Government agencies are not hand in gloves with Borrower, such LARGE SIZE FRAUD can not happen.
A through investigation, monitored by Supreme Court, can only bring the real CULPRITS to justice.