व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2019 जो केन्द्रीय केबिनेट ने 2019 में मंजूर किया था वो संसदीय समिति के समक्ष विचारर्थ था जिसे 22/11/2021 को बहुमत से पारित कर दिया गया है.
इस तरह अब यह संसद के अगले सत्र में पेश होगा और पास होते ही यह कानूनी रूप ले लेगा.
ये बिल भारतीय नागरिकों के डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा से संबंधित है। इस बिल में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019 ऐतिहासिक कानून है जिसका उद्देश्य अपने व्यक्तिगत डेटा से संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करना है। इसके अलावा इस बिल का मकसद है, यह देखना कि कैसे विभिन्न कंपनियां और संगठन भारत के अंदर व्यक्तियों के डेटा का उपयोग कैसे करते हैं।
विधेयक के 2019 के मसौदे में एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) के गठन का प्रस्ताव है, जो देश के भीतर सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य संगठनों द्वारा उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत डेटा के उपयोग को नियंत्रित करेगा।
उपयोगकर्ता डेटा को बनाए रखने वाली कंपनियों के लिए डेटा स्थानीयकरण मानदंड निर्धारित करने की भी उम्मीद है।
लेकिन दो साल बाद भी पारित इस बिल में संसदीय समिति ने खामियों की काफी गुंजाइश झोंक दी है. इसकी कंडिका 35 सबसे हैरान करने वाली है जिसके अंतर्गत सूचना चाहे वो कितनी भी व्यक्तिगत क्यों न हो, इसका उपयोग सरकार या सरकारी विभाग किसी भी रूप में कर सकते हैं और उन पर यह अधिनियम न लागू होगा एवं उन्हें हर तरह की कानूनी छूट होगी.
तो दूसरी तरफ गैर सरकारी संस्था, कंपनियां, व्यापारी यदि उपयोग करते हैं तो करोड़ों का जुर्माना और जेल तक हो सकती है.
हर एक व्यक्ति को अधिकार होगा कि वो इन कंपनियों के खिलाफ अपनी व्यक्तिगत सूचना के उपयोग के खिलाफ इस अधिनियम के अंतर्गत केस कर सकता है और नये विवादों को जन्म दे सकता है एवं व्यापारियों को इसके अनुपालन और मुआवजे के लिए मजबूर कर सकता है.
यह व्यापार को आसान तो नहीं बनाएगा लेकिन अनुपालन बढ़ा देगा. वहीं सरकारी एजेंसी व्यक्तिगत सूचना को चाहे आम कर दे, इस पर कोई रोकटोक नहीं होगी.
होना तो यह चाहिए कि व्यक्तिगत सूचना का उपयोग का दायरा चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी- एक सीमित दायरे और मानदंडों के आधार पर होना चाहिए.
सूचना का उपयोग चाहे कोई भी करें लेकिन व्यक्ति की निजता की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी की होगी और व्यक्तिगत डेटा अधिनियम समान रूप से सब पर लागू होना चाहिए.
सरकारी विभाग को निजी सूचना के उपयोग हेतु केन्द्र और राज्य स्तर पर गठित संयुक्त समिति ( जिसमें रिटायर्ड जजों का पेनल होगा) से परमीशन लेनी होगी और इस प्रक्रिया की यदि अवज्ञा होती है तो सरकारी विभाग पर भी जुर्माना और अफसर को जेल भी हो सकती है.
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण का नाम ही तब सार्थक होगा जब सही मायनों में देश का हर व्यक्ति इसकी संरक्षा की जबाबदारी लें अन्यथा सरकारी क्षेत्र को पूरी छूट देने पर इसके गलत उपयोग की संभावना को रोका नहीं जा सकता और न ही यह अधिनियम सार्थक साबित होगा बल्कि व्यापारियों के लिए परेशानी बढ़ेगी सो अलग.
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