सरकार एक तरफ गेमिंग उद्योग को बढ़ावा दे रही है, उनकी कमाई पर टैक्स का नोटिस दे रही है, उन्हें शेयर मार्केट से पैसा उगाही की इजाजत दे रही है तो दूसरी तरफ उनके विज्ञापन पर एतराज़ जता रही है और यह भी कह रही है कि ये सट्टेबाजी और जूए को बढ़ावा दे रही है और युवा वर्ग को गंदी लत में ढकेल रही है.
हाल में ही सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी करी जिसमें देश के तमाम प्राइवेट सैटेलाइट चैनलों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और न्यूज़ वेबसाइट्स से केंद्र सरकार ने कहा है कि वे बेटिंग यानी सट्टेबाजी से जुड़े विज्ञापन दिखाना बंद करें.
केंद्र सरकार ने एडवाइज़री में यह बात बेहद सख्त और चेतावनी भरे अंदाज़ में कही है.
मंत्रालय के मुताबिक यह एडवाइज़री इसलिए जारी की जा रही है, क्योंकि देश के ज्यादातर हिस्सों में सट्टेबाजी और जुआ खेलने पर कानूनी रोक है. ऐसी गतिविधियां कंज्यूमर्स, खासतौर पर युवाओं और बच्चों को भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान पहुंचा सकती हैं.
मंत्रालय का कहना है कि कुछ न्यूज़ एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर बेटिंग प्लेटफॉर्म्स के विज्ञापन और उन्हें बढ़ावा देने वाले कंटेंट अब भी दिखाई दे रहे हैं. साथ ही मंत्रालय को यह भी पता चला है कि कुछ ऑनलाइन ऑफशोर बेटिंग प्लेटफॉर्म्स न्यूज़ वेबसाइट्स का इस्तेमाल सरोगेट बेटिंग प्लेटफॉर्म के तौर पर कर रहे हैं.
*कहने का मतलब साफ है जहां सरकार एक तरफ चिंता जाहिर कर रही है तो दूसरी तरफ टैक्स लगाकर राजस्व वसूलने में कोई परहेज नहीं है. साथ ही गेमिंग कंपनियां स्टार्ट अप के नाम पर शेयर बाजार से पैसे उगाही करें, बढ़े उद्योग बनें, लोगों को फ्रेंचाइजी बनाए या रोजगार दे- इस पर कोई रोक टोक नहीं और न ही इस उद्योग पर सरकार कोई नियम या मापदंड बना पाई. ऐसी दोगली नीति समाज और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए हानिकारक है.*
*कुछ तथ्य जो हमें इस उद्योग पर सही नीति निर्धारण की दिशा बताते हैं:*
१. देश में बीते तीन साल में लोगों ने ऑनलाइन गेम खेलकर 58 हजार करोड़ रुपये की रकम जीती। लेकिन, इस पर कर नहीं चुकाया।
२. वहीं, यूनिकॉर्न स्टार्टअप गेम्सक्राफ्ट टेक्नोलॉजी के छह साल से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) न देने का भी खुलासा हुआ है।
३. कंपनी ने जुए के लिए ग्राहकों को फर्जी इनवॉयस भी जारी किए।
४. फोरेंसिक जांच में पता चला कि ग्राहकों के वॉलेट में रकम आने के बाद उसे निकालने का कोई तरीका नहीं है।
५. यह आश्चर्यजनक तथ्य भी सामने आया कि सात महीने पहले ही प्रतिबंधित की जा चुकी कंपनी अपना धंधा बदस्तूर जारी रखे हुए है,
६. दूसरी कंपनी यूजर्स से 2,850 करोड़ रुपये वसूल चुकी है।
७. आयकर विभाग ने ऑनलाइन गेम खेलने और जीतने वाले लोगों को नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है।
८. गड़बड़ी के सबूत मिलने पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी कार्रवाई शुरू करेगा।
९. ऐसे सभी विजेताओं को नोटिस भेजे जा रहे हैं, जिनकी आय व कर भुगतान में कोई मेल नहीं है।
१०. विभाग के पास सभी लोगों का डाटा है, जिन्होंने तीन साल में ऑनलाइन गेमिंग से 58,000 करोड़ रुपये जीते हैं। नोटिस कर अनुपालन पोर्टल पर हैं। सभी को स्वेच्छा से कर चुकाने के लिए कहा जा रहा है।
११. गेमिंग कंपनी स्टार्टअप ने 77 हजार करोड़ कमाए : सबसे बड़ी रकम वाला कारण बताओ नोटिस जीएसटी चोरी में बंगलूरू की ऑनलाइन गेमिंग कंपनी गेम्सक्राफ्ट टेक्नोलॉजी को 21 हजार करोड़ रुपये का नोटिस भेजा है।
१२. अप्रत्यक्ष कर के इतिहास में इसे सबसे बड़ी रकम वाला नोटिस माना जा रहा है। नोटिस 2017 से 30 जून, 2022 की अवधि का है।
१३. कंपनी पर कार्ड, कैजुअल, रमी कल्चर, गेम्जी व रमी टाइम जैसे फैंटेसी गेम के जरिये ऑनलाइन बेटिंग को बढ़ावा देने का भी आरोप है।
१४. जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय ने पहले 8 सितंबर को भेजे नोटिस में कहा था कि कंपनी ने जो टैक्स चुकाया, उसकी गणना गलत तरीके से की थी। बेटिंग से जुड़ी 77 हजार करोड़ रुपये की रकम पर 28% टैक्स है।
१५. दो कंपनियों के तीन ठिकानों पर छापे, 2265 करोड़ भेजे बाहर
१६. ईडी ने ऑनलाइन गेम के जरिये काला धन सफेद करने व ग्राहकों के खातों से अवैध ढंग से पैसा काटने पर कोडा पेमेंट्स इंडिया और गरीना फ्री फायर के तीन ठिकानों पर छापे मारे। इनके बैंक खाते भी फ्रीज किए, जिनमें 68.53 करोड़ रुपये थे। कोडा पेमेंट्स पर दो और गरीना पर एक केस दर्ज है।
१७. सिंगापुर की कंपनी के गरीना फ्री फायर गेम को सरकार ने फरवरी में 54 मोबाइल एप के साथ प्रतिबंधित किया था। तब आरोप लगा था कि यह यह कंपनी भारतीयों का डाटा चीन भेजती है।
१८. ईडी के मुताबिक, ये कंपनियां भारत से बाहर पैसा भेजने की पाइपलाइन बन चुकी हैं। यूजर्स से अनधिकृत राशि वसूली जाती है।
१९. कोडा पेमेंट्स ने अब तक 2,850 करोड़ रुपये की वसूली यूजर्स से की। इसमें से 2,265 करोड़ बाहर भेजे जा चुके हैं।
२०. यूजर्स से डिजिटल टोकन बेचने के नाम पर पैसा काटा गया। पॉप-अप नोटिफिकेशन क्लिक करते ही पैसा कटता है.
२१. सरकारी एडवाइजरी के बाद भी विज्ञापन खुलेआम चैनलों पर आना इस बात का सबूत है कि पैसों का ही बोलबाला है.
यदि गेमिंग कंपनी की सुने तो ऑनलाइन गेमिंग कंपनी गेम्सक्राफ्ट का कहना है कि ऑनलाइन स्किल गेमिंग सेक्टर में यूनिकॉर्न स्टेटस के साथ एक जिम्मेदार स्टार्टअप होने के नाते, हमने इंडस्ट्री के स्टैंडर्ड के हिसाब से अपने जीएसटी और टैक्स देनदारियों का भुगतान किया है और गेम्स ऑफ चांस और लॉटरी पर 28 फीसदी टैक्स की मांग की गई है, जबकि गेम्स ऑफ स्किल के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर 18 फीसदी टैक्स लागू है.
फिलहाल जीएसटी परिषद अक्टूबर में अपनी 48 वीं बैठक आयोजित कर सकती है, जिसके लिए ऑनलाइन गेमिंग पर टैक्स मापदंडों पर विचार-विमर्श जारी है.
*आखिर सरकार इस पर मापदंड क्यों नहीं तैयार कर पा रही:*
१. इंटरनेट से संबंधित कोई भी कानून केंद्र सरकार बना सकती है, लेकिन गैंबलिंग यानी जुए से संबंधित क़ानून बनाने का काम राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है.
२. इसका मतलब यह हुआ कि ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर भारतीय संसद कोई क़ानून तभी बना सकती है, जब सारे राज्य इस पर सहमत हो जाएं.
३. दिक़्क़त ये है कि गैंबलिंग से संबंधित क़ानून इंटरनेट पर लागू किए जाने हैं, ऐसे में इस बारे में क़दम उठाएगा कौन? केंद्र सरकार या राज्य सरकारें? हो ये रहा है कि कोई भी इस मसले पर अपने क़दम नहीं उठा रहा.
४. गेमिंग फेडरेशन और वकील समुदाय इस बात पर सहमति हैं कि इस फलते-फूलते सेक्टर को रेगुलेशन की सख़्त ज़रूरत है.
५. रेगुलेशन न केवल इसकी कारोबारी क्षमता बढ़ाने के लिए, बल्कि इसे खेलने वालों और उनकी बचत को सुरक्षित रखने के लिए भी बहुत ज़रूरी है.
६. गेमिंग फेडरेशन तो मानती हैं कि ख़ुद को बचाने की ज़िम्मेदारी इसे खेलने वालों की ही है. मतलब साफ है कि गेमिंग में कोई स्किल नहीं सिर्फ जुआ है.
७. गेमिंग कंपनियों को और अधिक जवाबदेह बनने को मज़बूर किया जाए.
भारत की घरेलू ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री 2016 में अनुमानित 29 करोड़ डॉलर की थी। एक अनुमान के मुताबिक आज यह इंडस्ट्री 100 करोड़ डॉलर यानि ७५०० करोड़ रुपए की है और 2024 तक इसका मूल्य 370 करोड़ डॉलर यानि लगभग ४०००० करोड़ होने का अनुमान है।
इसके अलावा कई कंपनियां शेयर बाजार से बढ़ चढ़कर पैसे की उगाही कर रही है और सरकारी तंत्र खुलेआम सभी परमीशन दे रहा है एवं मान भी रहा है कि आनेवाले समय में गेमिंग उद्योग रोजगार और राजस्व का प्रमुख स्त्रोत होगा. साथ ही इंटरनेट संबंधित होने के कारण इसको नियंत्रित करना भी मुश्किल है और पूरे विश्व में यह उद्योग एक डिजिटल क्रांति के रूप में बढ़ रहा है.
यह तो साफ है कि इस डिजिटल युग में क्रिप्टोकरेंसी की तरह गेमिंग उद्योग कहें या सट्टा उद्योग कहें – रोकना मुश्किल है.
*और जब हम यह बात समझते हैं तो फिर नीति निर्धारण स्पष्ट होना चाहिए न की ढुलमुल ताकि हम नियम बना सकें जिससे राजस्व तो बढ़े ही लेकिन दुष्प्रभाव कम से कम हो. सरकार को क्या करना चाहिए:*
१. आनलाइन गेमिंग या सट्टा या जुआ के मापदंड तय करते हुए इस पर नियामक संस्था का गठन करना होगा.
२. सकल प्राप्ति पर कंपनियों द्वारा २८% जीएसटी देय होगा.
३. आय अर्जित करने वालों से ३०% का आयकर कटौती योग्य होगा.
४. इस काम पर या खेल पर होने वाली हानि का कोई कैरी फारवर्ड या क्लेम नहीं मिलेगा.
५. खेलें जाने वाले गेम और उस पर ईनाम की योजना का एप्रूवल नियामक संस्था से लेना होगा.
६. नियम न पालन करने पर सख्त दंड का प्रावधान होगा.
७. गेमिंग कंपनियों को अपनी सकल प्राप्ति का १०% आरबीआई के पास डिपाजिट रखना होगा जैसे बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा किया जाता है.
*उपरोक्त तरीकों से ही हम गेमिंग उद्योग को वास्तव में व्यापार का दर्जा दे पाएंगे नहीं तो इस दुष्चक्र में समाज फंसता चला जाएगा और सरकार देखती रहेंगी.*
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५*