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Summary: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने हाल ही में दिल्ली में 107 फर्जी वकीलों को अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अंतर्गत हटाने की घोषणा की है। यह कदम विधि व्यवसाय की अखंडता बनाए रखने और फर्जी प्रमाणपत्र या गलत बयानों के आधार पर कार्यरत अधिवक्ताओं को बाहर करने के लिए उठाया गया है। जून 2023 में किए गए संशोधन के बाद BCI के सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस एंड प्लेस (COP) नियम 2015 के नियम 32 के तहत सत्यापन प्रक्रिया को अधिक सख्त और प्रभावी बनाया गया है। इस संशोधित प्रक्रिया से BCI को अयोग्य और नकली अधिवक्ताओं की पहचान और हटाने में सहायता मिली है। 2019 से 2024 के बीच हज़ारों नकली अधिवक्ताओं को हटाया गया, जिसमें से कई वकीलों ने सत्यापन में अपनी अयोग्यता के कारण स्वयं ही अपने प्रमाणपत्र सरेंडर कर दिए। BCI ने सभी राज्य बार काउंसिलों से सरेंडर स्वीकारते समय पूरी जांच और सावधानी बरतने का आग्रह किया है ताकि गलत तरीके से कार्यरत वकीलों को कानून की प्रैक्टिस से बाहर रखा जा सके।

यह कि बार काउंसिल आफ इंडिया(BCI ) ने दिनांक 26 अक्टूबर 2024 को एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अवगत कराया है, कि दिल्ली बार काउंसिल के अधीन 107 फर्जी वकीलों को अधिवक्ता अधिनियम 1961 के अंतर्गत हटा दिया गया है।

यह कार्रवाई फर्जी वकीलों और उन वकीलों को हटाने के उद्देश्य से की जा रही है जो अब कानूनी प्रैक्टिस के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। यह कार्रवाई बीसीआई (BCI)प्रमाणपत्र और अभ्यास का स्थान (सत्यापन) नियम, 2015 के नियम 32 के तहत की जा रही है।

विधि व्यवसाय की अखंडता और व्यावसायिकता को बनाए रखने के अपने निरंतर प्रयास के तहत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने 2019 से अक्टूबर 2024 के बीच दिल्ली राज्य के अधिवक्ताओं की सूची से 107 फर्जी वकीलों को हटा दिया है।

सर्टिफिकेट का प्रैक्टिस एंड पैलेस (COP)नियम 2015 के नियम 32 में संशोधन  जून, 2023 को अधिसूचित किया गया। इस संशोधन ने सत्यापन ढांचे को मजबूत किया, जिससे बीसीआई(BCI )को अधिक प्रभावी ढंग से और व्यवस्थित रूप से अयोग्य/नकली अधिवक्ताओं की पहचान करने और उन्हें रोल से हटाने की अनुमति मिली।

यह कि 2019 से 23 जून, 2023 के बीच, कई हज़ार फ़र्जी अधिवक्ताओं को उनकी साख और प्रैक्टिस की गहन जांच के बाद हटाया गया। ये निष्कासन मुख्य रूप से फ़र्जी और जाली प्रमाणपत्रों और नामांकन के दौरान गलत स्टेटमेंट और नियमों का पालन से जुड़े मुद्दों के कारण हुए। इसके अलावा, अधिवक्ताओं को सक्रिय रूप से कानून की प्रैक्टिस में शामिल न होने और बार काउंसिल की सत्यापन प्रक्रियाओं का पालन न करने के कारण भी हटाया गया।

यह कि बीसीआई (BCI)की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, नियम 32 में संशोधन के साथ, प्रक्रिया काफी अधिक प्रभावी हो गई है। फर्जी वकीलों की पहचान बार काउंसिल(BCI )और अजय शंकर श्रीवास्तव बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया(रिट पिटीशन संख्या 82/2023)और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा की गई निरंतर जांच के माध्यम से की जाती है । जालसाजी से संबंधित कुछ मामले नियम परिवर्तन से पहले समीक्षा के अधीन थे, जबकि अन्य संशोधन के बाद संबोधित किए गए थे।

यह कि  हटाए गए 107 अधिवक्ताओं की संख्या 23 जून 2023 से पहले हटाए जाने वाले सैकड़ों अधिवक्ताओं  को दर्शाती है। संशोधन के बाद 50 अधिवक्ताओं को हटाया गया है।

यह कि विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि अब जो जांच चल रही है, उसके मद्देनजर कई अधिवक्ताओं ने अपनी धोखाधड़ी या गैर-अनुपालन (जारी नियमों का पालन न करना)स्थिति के बारे में जानते हुए भी, अपने नामांकन प्रमाणपत्रों को उजागर होने के डर से पहले ही सरेंडर कर दिया है। हालांकि, बीसीआई(BCI )ने सभी राज्य बार काउंसिलों से ऐसे सरेंडर स्वीकार करते समय सावधानी बरतने का आग्रह किया है।

इस प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, कि यह आवश्यक है कि फर्जी अधिवक्ताओं को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराए बिना जाने की अनुमति न दी जाए, क्योंकि उनके धोखे ने जनता को नुकसान पहुंचाया है और न्याय प्रणाली से समझौता किया है। राज्य बार काउंसिल को आत्मसमर्पण की अनुमति देने से पहले उनके नामांकन की प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए पूरी जांच करनी चाहिए। हालांकि ऐसे अधिवक्ताओं को तुरंत कानूनी प्रैक्टिस करने से रोका जा सकता है, लेकिन पूरी तरह से आत्मसमर्पण की प्रक्रिया को पूरी तरह से जांच और सत्यापन के बाद ही अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष 

 यह कि उपरोक्त विज्ञप्ति से स्पष्ट है कि बार काउंसिल आफ इंडिया (BCI)द्वारा सर्टिफिकेट आफ प्रैक्टिस एंड पैलेस (COP)के माध्यम से नकली और फर्जी और गैर प्रैक्टिशनर अधिवक्ताओं पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं ,जिससे विधि व्यवसाय

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