यह कि इस लेख के माध्यम से हम अध्याय 18 अपील और पुनरीक्षण(Appeal and Revision)की धारा 108 की समीक्षा कर रहे हैं ,तथा धारा 108 में निर्धारित सेक्शन ,नियम आदि की सरल भाषा में व्याख्या प्रस्तुत है-
(1) धारा 121 और उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, पुनरीक्षण प्राधिकारी स्वप्रेरणा से या उसे प्राप्त सूचना पर या राज्य कर आयुक्त या संघ राज्यक्षेत्र कर आयुक्त के अनुरोध पर किसी कार्यवाही का अभिलेख मंगा सकता है और उसकी जांच कर सकता है और यदि वह समझता है कि इस अधिनियम के अधीन या राज्य माल और सेवा कर अधिनियम या संघ राज्यक्षेत्र माल और सेवा कर अधिनियम के अधीन उसके अधीनस्थ किसी अधिकारी द्वारा पारित कोई निर्णय या आदेश त्रुटिपूर्ण है, जहां तक वह राजस्व के हित के प्रतिकूल है और अवैध या अनुचित है या उसने कतिपय तात्विक तथ्यों को, चाहे वे उक्त आदेश जारी करने के समय उपलब्ध हों या नहीं या भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की किसी टिप्पणी के परिणामस्वरूप, ध्यान में नहीं लिया है, तो वह, यदि आवश्यक हो, ऐसे निर्णय या आदेश के संचालन को ऐसी अवधि के लिए रोक सकता है, जितनी वह ठीक समझे और संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देने और ऐसी अतिरिक्त जांच करने के पश्चात, जो आवश्यक हो, ऐसा आदेश पारित कर सकता है, जिसे वह उचित और उचित समझे, जिसमें उक्त निर्णय या आदेश।
(2) पुनरीक्षण प्राधिकरण उपधारा (1) के अधीन किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा, यदि –
(a) आदेश धारा 107 या धारा 112 या धारा 117 या धारा 118 के अधीन अपील के अधीन रहा है; या
(b) धारा 107 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है या संशोधित किए जाने हेतु वांछित निर्णय या आदेश के पारित होने के पश्चात तीन वर्ष से अधिक समय बीत चुका है; या
(c) आदेश को इस धारा के अंतर्गत पहले ही किसी चरण में पुनरीक्षण के लिए ले लिया गया है; या
(d) आदेश उपधारा (1) के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए पारित किया गया है:
परंतु पुनरीक्षण प्राधिकारी उपधारा (1) के अधीन किसी ऐसे बिंदु पर आदेश पारित कर सकेगा, जिसे उपधारा (2) के खंड (a) में निर्दिष्ट अपील में नहीं उठाया गया है और उस पर निर्णय नहीं दिया गया है, ऐसी अपील में आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के पूर्व या उस उपधारा के खंड (b) में निर्दिष्ट तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पूर्व, जो भी बाद में हो।
(3) उपधारा (1) के अधीन पुनरीक्षण में पारित प्रत्येक आदेश धारा 113 या धारा 117 या धारा 118 के उपबंधों के अधीन रहते हुए अंतिम होगा तथा पक्षकारों पर आबद्धकर होगा।
(4) यदि उक्त निर्णय या आदेश में कोई ऐसा मुद्दा अंतर्वलित है, जिस पर अपील अधिकरण या उच्च न्यायालय ने किसी अन्य कार्यवाहियों में अपना निर्णय दिया है और अपील अधिकरण या उच्च न्यायालय के ऐसे निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में अपील लंबित है, तो अपील अधिकरण के निर्णय की तारीख और उच्च न्यायालय के निर्णय की तारीख अथवा उच्च न्यायालय के निर्णय की तारीख और उच्चतम न्यायालय के निर्णय की तारीख के बीच व्यतीत की गई अवधि को उपधारा (2) के खंड (b) में निर्दिष्ट सीमा अवधि की गणना करने में अपवर्जित किया जाएगा, जहां इस धारा के अधीन नोटिस जारी करके पुनरीक्षण के लिए कार्यवाही आरंभ की गई है।
(5) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश जारी करना किसी न्यायालय या अपील अधिकरण के आदेश द्वारा रोक दिया जाता है, वहां ऐसे रोक की अवधि को उपधारा (2) के खंड (b) में निर्दिष्ट परिसीमा अवधि की गणना करने में शामिल नहीं किया जाएगा।
(6) इस धारा के प्रयोजनों के लिए -शब्द, –
(a) अभिलेख में इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही से संबंधित सभी अभिलेख सम्मिलित होंगे जो पुनरीक्षण प्राधिकारी द्वारा परीक्षण के समय उपलब्ध हों;
(b) निर्णय में पुनरीक्षण प्राधिकारी से निम्न स्तर के किसी अधिकारी द्वारा दी गई सूचना शामिल होगी।
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 108 का सरल अध्ययन-
पुनरीक्षण प्राधिकरण की समीक्षा करने की शक्ति-
(1) यह कि संशोधन प्राधिकरण अधीनस्थ अधिकारी द्वारा लिए गए किसी भी जीएसटी-संबंधी निर्णय या आदेश की समीक्षा कर सकता है यदि उसे लगता है कि निर्णय या आदेश गलत है और सरकारी राजस्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। कोई भी बदलाव करने से पहले, वह प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का मौका देगा और निर्णय या आदेश के संचालन को अस्थायी रूप से रोक सकता है।
पुनरीक्षण प्राधिकरण की शक्ति की सीमाएं-
(2) यह कि पुनरीक्षण प्राधिकरण किसी निर्णय या आदेश की समीक्षा नहीं कर सकता यदि-
(a) इस पर पहले ही अपील की जा चुकी है।
(b) अपील करने का समय अभी तक नहीं बीता है या निर्णय/आदेश दिए जाने के बाद तीन वर्ष से अधिक समय बीत चुका है।
(c) निर्णय/आदेश की पहले भी समीक्षा की जा चुकी है।
(d) निर्णय/आदेश उसी संशोधन शक्ति का प्रयोग करके किया गया था।
हालांकि, पुनरीक्षण प्राधिकरण अभी भी किसी अपील में पहले से तय न किए गए बिंदुओं पर निर्णय की समीक्षा कर सकता है, बशर्ते कि यह अपील के निर्णय से एक वर्ष के भीतर या मूल निर्णय/आदेश से तीन वर्षों के भीतर हो, जो भी बाद में हो…
उदाहरण के द्वारा स्पष्टीकरण-
माना कि एक करदाता XYZ एक विनिर्माण इकाई चलाते हैं। उनका ऑडिट एक राज्य जीएसटी अधिकारी द्वारा किया गया था, और अधिकारी ने निष्कर्ष निकाला कि XYZ ने अपने जीएसटी रिटर्न में इनपुट टैक्स क्रेडिट का अधिक दावा किया था। अधिकारी ने एक आदेश पारित किया जिसमें XYZ को जुर्माना के साथ अतिरिक्त कर का भुगतान करने की आवश्यकता थी। XYZ ने आदेश को उचित मानते हुए निर्दिष्ट अवधि के भीतर इसके खिलाफ अपील नहीं की।हालांकि, बाद में मामले के रिकॉर्ड की समीक्षा करने पर संशोधन प्राधिकरण ने पाया कि अधिकारी के निर्णय में XYZ के लिए कुछ छूटों को शामिल नहीं किया गया था, जिसके लिए वे पात्र थे, जिससे उनकी कर देयता कम हो जाती। चूंकि यह निर्णय गलत और राजस्व के हित के लिए हानिकारक प्रतीत होता है, इसलिए संशोधन प्राधिकरण ने आदेश को संशोधित करने के लिए केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 108 (1) के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करने का निर्णय लिया।
XYZ को अपना पक्ष रखने करने का अवसर दिया गया है।
जीएसटी कानून में गैर अपीलीय आदेश (धारा 121)
सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 121 के अनुसार निम्नलिखित आदेशों के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती-
(a) आयुक्त या अन्य प्राधिकारी का आदेश जो एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी को कार्यवाही स्थानांतरित करने का निर्देश देने के लिए सशक्त है; या
(b) लेखा पुस्तकों, रजिस्टर और अन्य दस्तावेजों की जब्ती या प्रतिधारण से संबंधित आदेश; या
(c) इस अधिनियम के अधीन अभियोजन की मंजूरी देने वाला आदेश; या
(d) धारा 80 के अंतर्गत पारित आदेश (कर और अन्य राशियों का किश्तों में भुगतान)।
अवसर देने तथा ऐसी अतिरिक्त जांच करने के पश्चात्, जो आवश्यक हो, ऐसा आदेश पारित कर सकेगा, जिसे वह न्यायसंगत और उचित समझे, जिसके अंतर्गत उक्त निर्णय या आदेश को बढ़ाना, उपांतरित करना या रद्द करना भी है।
यह कि पुनरीक्षण प्राधिकारी अभिलेखों की जांच के पश्चात पुनरीक्षण आदेश पारित करने का निर्णय लेता है, जिससे व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है, वहां पुनरीक्षण प्राधिकारी उस पर प्ररूप जीएसटी आरवीएन-01 में नोटिस तामील करेगा तथा उसे सुनवाई का उचित अवसर देगा।
यह कि पुनरीक्षण आदेश जारी करने पर न्यायालय या अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश द्वारा रोक लगा दी जाती है, वहां ऐसे रोक की अवधि को सीमा अवधि अर्थात तीन वर्ष की गणना में शामिल नहीं किया जाएगा।
यह कि पुनरीक्षण प्राधिकरण धारा 108 की उपधारा (1) के अधीन अपने पुनरीक्षण आदेश के साथ प्ररूप जीएसटी एपीएल-04 में आदेश का सारांश जारी करेगा जिसमें पुष्टि की गई मांग की अंतिम राशि स्पष्ट रूप से दर्शाई जाएगी। करदाता को अवसर देने तथा ऐसी अतिरिक्त जांच करने के पश्चात्, जो आवश्यक हो, ऐसा आदेश पारित कर सकेगा, जिसे वह न्यायसंगत और उचित समझे, जिसके अंतर्गत उक्त निर्णय या आदेश को बढ़ाना, उपांतरित करना या रद्द करना भी है।
पुनरीक्षण प्राधिकरण के आदेश के खिलाफ जीएसटीएटी में अपील दायर की जा सकती है।
क्या करदाता संशोधन के लिए आवेदन कर सकता है?
धारा 108 की भाषा से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सरकार द्वारा राजस्व के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया तंत्र है। तदनुसार, करदाता को संशोधन के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं है, हालांकि, उसके खिलाफ किसी भी मामले पर निर्णय लेने से पहले उसे सुनवाई का अवसर मिलेगा।
पुनरीक्षण प्राधिकरण 2(99). के अंतर्गत परिभाषित है।
Notification No.05/2020–Central Tax 13.01.2020
यह कि उपरोक्त नोटिफिकेशन के अनुसार डिप्टी कमिश्नर ,असिस्टेंट कमिश्नर, और राज्य कर अधिकारी के संबंध में एडिशनल कमिश्नर रिवीजन प्राधिकारी होंगे। तथा एडिशनल कमिश्नर और अपील प्राधिकारी के लिए कमिश्नर रिवीजन प्राधिकारी होंगे।
Rule 109B-Notice to person and order of revisional authority in case of revision
FORM GST RVN-
NOTICE- FROM GST RVN -01
ORDER -Form GST APL -04
निष्कर्ष –
यह कि उपरोक्त लेख से स्पष्ट है कि जीएसटी अधिनियम में सरकार द्वारा राजस्व की हानि ना हो उसके लिए धारा 108 का निर्माण किया है जिसके द्वारा यदि किसी प्रॉपर ऑफिसर द्वारा या करदाता के द्वारा कर देता के संबंध में कोई तथ्य छुपाया है तो रिवीजन प्राधिकारी उसे कर देता के बिंदु पर निर्णय ले सकता है ऐसा ही प्रावधान वेट अधिनियम के अंतर्गत भी था।
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डिस्क्लेमर – यह लेखक के निजी विचार है ।किसी निर्णय पर जाने से पूर्व अपने टैक्स प्रोफेशनल से सलाह करनी जरूरी है।