सामान्यतः हम यह पाते हैं कि व्यापारिक लेन-देन में किताबों में नगदी कम पड़ जाती है तो हम प्रोप्राइटर या पार्टनर के पूंजी खाते से निवेश बता देंते है. इनके खाते में पैसा कहां से आया, इसके लिए हम माता पिता या रिश्तेदारों से निजी उपयोग के लिए गिफ्ट बता देते हैं जो ज्यादातर कैश में होती है. कई बार करदाता द्वारा यह भी तर्क दिया जाता है कि बैंक से उसके द्वारा पहले पैसे निकाले गए थे जिसे पुनः जरुरत पड़ने पर बैंक में जमा किया गया इसलिए कैश में आया पूरा पैसा स्पष्ट और रिकॉर्ड पर है.
आयकर विभाग और करदाता के बीच खासकर ऐसे कैश के लेन-देन निजी उपयोग के लिए गिफ्ट के रूप में और व्यापारिक किताबों में दिखाए गए को लेकर हमेशा वाद की स्थिति बनी रहती है जहां एक ओर विभाग इसे आय में जोड़ देता है तो दूसरी ओर करदाता इस जिरह को न्यायालयों तक ले जाता है. ऐसा करने में करदाता और विभाग का समय एवं पैसे ही खराब होते हैं. कभी करदाता के पक्ष में और कभी विभाग के पक्ष में फैसला होता है लेकिन वाद चलता ही रहता है. कभी विभाग की ओर से ऐसे गिफ्ट लेन-देन को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं जारी किए गए और न ही कोई सैद्धांतिक प्रावधान बनाए गए.
हाल में ही आए इंदौर आयकर अपीलीय अधिकरण का एक फैसला मील का पत्थर साबित हो सकता है जिसमें गिफ्ट लेन-देन में सभी तरह के विषयों को कवर किया गया है और यह व्यापारी वर्ग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो बताता है कि कैश लेन-देन में कैसी सतर्कता और सजगता बरतनी चाहिए.
हेमंत पंड्या वि. आयकर अधिकारी भोपाल आई टी ए नं १७३/इंदौर/२०२२ दिनांक २२/०५/२३ के फैसले में माननीय अपीलीय अधिकरण द्वारा एक दिशा निर्देश जारी करने की कोशिश की गई जिसमें विभिन्न न्यायालयों और अधिकरण के निर्णयों को भी शामिल कर आधार बनाया गया.
मुख्य बिन्दुओं जिस पर फैसला सुनाया गया इस प्रकार है:
१. मात्र शपथ पत्र देने से क्या कैश में किए गए गिफ्ट लेन-देन स्वीकृत किए जा सकते हैं?
२. प्रापर्टी सेल डीड में यदि पेमेंट का तरीका नहीं बताया गया हो तो क्या समझा जाए?
३. सभी रिश्तेदारों के बैंक खाते एक्टिव होने के बावजूद कैश में लेन-देन क्या उचित है?
४. कैश गिफ्ट मिलना और बैंक में जमा करने के समय में काफी अंतर होना क्या न्यायोचित है?
५. मां बहन बेटी जिनका कोई भी स्वतंत्र आय स्त्रोत न होने के बावजूद उनसे कैश लेन-देन करना कितना तर्कसंगत?
६. बिना किसी समारोह या मौके के गिफ्ट या दान मिलना कैसे न्यायोचित हो सकता है?
७. कुछ समय पहले किया गया बैंक से कैश निकासी को पुनः जमा करना कितना उचित एवं ओपनिंग कैश इन हैंड को आय न मानना कितना उचित?
उपरोक्त बिन्दु हर करदाता के इर्द-गिर्द घूमते हैं और विभाग की कोशिश होती है कि इसे आय मानकर टैक्स लगाया जाए. इंदौर आयकर अपीलीय अधिकरण ने उपरोक्त सभी बिंदुओं पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली के फैसले – सीआईटी वि. कुलवंत राय २९१ आईटीआर ३६, माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय के एस आर वेंकटरमण वि. सीआईटी १२७ आईटीआर ८०७ एवं दिल्ली अपीलीय अधिकरण के घीरज ठकरान वि. आईटीओ आईटीए नं २७६१/दिल्ली/२०१६ को भी शामिल कर आधार बनाया गया.
क्या निर्णय दिया गया:
१. शपथ पत्र पर दी गई गिफ्ट की प्रमाणिकता अन्य दस्तावेजों के आधार पर तय किया जाएगा. करदाता के पिता द्वारा न केवल शपथ पत्र पेश किया गया, साथ ही प्रापर्टी बेचने की सेल डीड भी प्रस्तुत की गई जहां से उसे कैश प्राप्त हुआ और कैश अपने पुत्र को निजी उपयोग के लिए गिफ्ट के रूप में दिया गया. साफ है कि अन्य दस्तावेजों के आधार पर शपथपत्र को सही मानते हुए कैश गिफ्ट को मान्य किया जा सकता है.
२. प्रापर्टी सेल डीड में यदि पेमेंट का तरीका साफ ढंग से नहीं बताया गया है तो इसे कैश लेन-देन ही माना जाएगा अन्यथा सेल डीड में बैंकिंग मोड से दिया गया पेमेंट साफ साफ दर्ज़ होता है. साथ ही शपथपत्र में भी कैश लेन-देन को रिकॉर्ड किया गया है.
३. सभी के एक्टिव बैंक खाते होते हुए भी कैश लेन-देन करना करदाता की जरूरत पर निर्भर करता है. जो महत्वपूर्ण चीज है, वो है आय या कैश का उपयुक्त, कानूनी, स्पष्ट और रिकॉर्ड पर स्त्रोत होना. फिर चाहे करदाता उसे कैश के रूप में रखें या बैंक में, ये उस पर निर्भर है.
४. पिता द्वारा प्रापर्टी २००६ में बेची गई और पुत्र को गिफ्ट के रूप में कैश २००६ से २००८ के बीच में दिया गया. पुत्र द्वारा व्यापार में इसे २००९ में जमा किया. इतने लंबे अंतराल तक कैश रखना और बाद में जमा करना ग़लत नहीं माना सकता जब तक विभाग इसमें कुछ ग़लत साबित करें या रिकॉर्ड पर लेकर आए अन्यथा करदाता द्वारा अपनी जरूरत के आधार पर कैश रखना और उसे बैंक में ६ महीने या साल भर बाद जमा करना ग़लत नहीं माना सकता.
५. मां बहन बेटी का कोई स्वतंत्र स्त्रोत न होने पर भी एक न्यायोचित रकम उनकी घरेलू बचत के रूप में दिखाई जा सकती है और इसलिए मां की उम्र ५७ साल एवं रहनशहन देखते हुए उनके द्वारा दिया गया कैश गिफ्ट १५००००/- रुपए मान्य किया जाता है.
६. समारोह या मौके पर गिफ्ट मिलने की जरूरत अन्य लोगों के लिए होती है- मां-बाप, भाई बहन या बेटों बेटी के लिए नहीं लागू होती. वे कभी भी निजी उपयोग के लिए गिफ्ट दें सकते हैं.
७. बैंक से की गई कैश निकासी और उसे बैंक में पुनः जमा करना गलत नहीं माना जा सकता जब तक की विभाग ये साबित न करें की निकासी किया कैश करदाता के पास मौजूद नहीं था. यह सबूत रिकॉर्ड पर न होने पर करदाता द्वारा निकाला गया बैंक से कैश उसके पास रखा ही माना जाएगा और वह कभी भी उसे बैंक में जमा कर सकता है. जहां तक ओपनिंग कैश इन हैंड का सवाल है, वह तभी न्यायोचित है जब करदाता द्वारा अपनी बैलेंस शीट रिटर्न के साथ फाइल की गई हो अन्यथा इसे सही नहीं माना जा सकता.
८. अधिकरण के समक्ष एक महत्वपूर्ण मुद्दा और आया- वो यह कि करदाता द्वारा अपनी तीन साल पहले स्वर्गवास हुई दादी से १०००००/- रुपए कैश गिफ्ट मिली बताई गई जिसके लिए करदाता द्वारा स्वयं शपथपत्र दाखिल किया गया. अधिकरण ने साफ तौर पर कहा कि स्वर्गीय दादी से मिला गिफ्ट तभी मान्य हो सकता है जब उनके जीवित अवस्था के समय का कोई ऐसा दस्तावेज हो जो साबित करें अन्यथा करदाता द्वारा शपथपत्र के आधार पर इसे मान्य नहीं किया जा सकता.
साफ है माननीय आयकर अपीलीय अधिकरण इंदौर बेंच का मां-बाप भाई बहन से मिलें कैश गिफ्ट लेन-देन और कैश निकासी पर फैसला एक दिशा निर्देश देता है खासकर व्यापारी वर्ग को बताता है कि रिकॉर्ड पर कौन-कौन से कागजात और सबूत रखें ताकि गिफ्ट के कैश लेन-देन को विभाग द्वारा न्यायोचित माना जाए और मान्य कर दिया जाए एवं वाद की स्थिति निर्मित न हो सकें.
सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५