बजट २०२४ के ऐसे प्रावधान जो व्यापारिक खर्च एवं आय पर असर डालेंगे और एक व्यापारी को सचेत होना जरूरी है:
1. धारा ३७ के अंतर्गत किसी गैर कानूनी केस के निपटान के खर्च को व्यापारिक खर्च नहीं माना जाता लेकिन गैर कानूनी केस के निपटान के लिए जो सैटलमेंट राशि सरकार को दी जाती है, प्रायः उसे व्यापारिक खर्च मान लिया जाता है। अब बजट में संशोधन करके दी जाने वाली इस सेटलमेंट अमाउंट को खर्च नहीं माना जावेगा।
2. प्रापर्टी या घर किराए की आय को कई लोग व्यापारिक आय के रूप में दिखाते हैं लेकिन अब धारा २८ में प्रावधान कर प्रापर्टी या घर की किराए की आमदनी सिर्फ और सिर्फ हाउस प्रापर्टी इनकम हेड में ही दिखाई जा सकती है।
3. धारा ४७ में संशोधन कर अब सिर्फ व्यक्तिगत और हिन्दू अनडिवाईडेड फैमिली द्वारा दिए गए शेयर्स की गिफ्ट ट्रांसफर नहीं मानी जावेगी और करमुक्त होगी । पहले इसमें कंपनियों द्वारा गिफ्टेड शेयर्स को भी शामिल कर लिया जाता था जिस पर विवाद होता था।
4. अब फर्म द्वारा पार्टनर को सालाना २०००० रुपए से अधिक सैलरी, कमीशन, बोनस, ब्याज, आदि के रूप में दिए गए पैसे पर १०% की दर से टीडीएस काटना होगा और नहीं काटने पर खर्च अमान्य होगा एवं लेट जमा होने पर लेट फीस ब्याज देना होगा। सामान्यतः पार्टनर को सेलरी ब्याज फर्म के लाभ के आधार पर तय किया जाता है और टीडीएस लागू होने से फर्म बनाकर व्यापार करने के प्रति लोगों का झुकाव कम होगा। फर्म अन्य व्यापारिक गठन के मुकाबले एक सस्ता साधन है और इसे हतोत्साहित करना निराश करता है.
5. आखिर में सबसे बड़ा संशोधन प्रापर्टी बेच खरीद पर लांग टर्म गेन टैक्स केलकुलेशन से इंडेक्स को हटाकर टैक्स दर को १२.५०% करना । वित्त मंत्री ने टैक्स कम करने पर यह तो गिनाया की वेतनभोगी को रु १७५००/- का सालाना टैक्स कम देना होगा लेकिन उपरोक्त केपिटल गेन प्रावधान से ख़ासकर ५ वर्ष पुरानी प्रापर्टी सेल पर्चेज में करदाता के लिए इंडेक्सेशन न होने से लाखों करोड़ रुपए का अधिक टैक्स सरकार के खाते में होगा क्योंकि प्रापर्टी लांग टर्म कैपिटल गेन पर अब करदाता को लगभग पहले के मुकाबले प्रापर्टी के समय के हिसाब से १ से ५ प्रतिशत टैक्स अधिक देना होगा। इसे एक उदाहरण के रूप में समझते हैं:
मान लो आपने अपना पुश्तैनी घर आज रु ५००/- में बेचा और सन् २००१ में उसकी कीमत १००/- रुपए थी तो इंडेक्सेशन के हिसाब से उसकी कीमत लगभग ३५०/- रुपए बनती है, यानि कि १५०/- रुपए के लाभ पर २०% की दर से ३० रुपए टैक्स देना होगा। लेकिन इंडेक्सेशन हटाने पर लाभ ४००/- रुपए का होगा और आज की दर १२.५% से हिसाब से इस पर ५० रुपए का टैक्स देना होगा। यानि बिक्री कीमत पर टैक्स जहां ६% हो रहा था, वहां अब १०% हो जाएगा। तो लगभग प्रापर्टी पर इंडेक्सेशन हटाकर करदाता पर लगभग ५% टैक्स का अधिक बोझ बढ़ गया है।
*उपरोक्त प्रावधान आम व्यापारी पर असर डालेंगे और व्यापार को प्रभावित करेंगे. आयकर के कई ऐसे प्रावधान है जिन्हें सरलीकरण की आवश्यकता थी लेकिन उनका जिक्र न कर ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का ध्येय सिर्फ उन प्रावधानों को तर्कसंगत बनाना था जो सरकारी आय बढ़ाने में मदद करें।*
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर* *९८२६१४४९६५*