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मप्र हाईकोर्ट के एक अहम फैसले में उद्योगपतियों, व्यापारियों, बैंकर्स, सीए और टैक्स प्रेक्टीशनर्स को चेताया

हम बात कर रहे हैं, हाल में ही मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के द्वारा लिए गए अहम फैसले- सूरजभान आइल प्रा. लि. विरूद्ध डीसीआईटी 2022 138 टैक्समेन 19 मप्र

सामान्यत ये चलन व्यापक स्तर पर देखा जाता है कि व्यापारी या उद्योगपति अपनी बैंक लिमिट जारी रखने के लिए या बढ़वाने के लिए या बैंकों से अधिक वित्तीय सुविधा प्राप्त करने के लिए बढ़ा चढ़ाकर स्टाक दिखाते हैं जितना रिकॉर्ड में नहीं होता है और ऐसा करने में प्रायः यह भी देखा जाता है कि बैंकर्स, सीए और कर सलाहकार भी सहायता करते हैं.

अब उपरोक्त फैसले के बाद सभी वाणिज्यिक वर्गों को न केवल माननीय हाईकोर्ट द्वारा लताड़ पड़ी बल्कि एक चेतावनी भी जारी हो गई कि यदि बैंक में दिए गए स्टाक और रिकॉर्ड में दिखाए जा रह स्टाक में अंतर है तो वह सारा अघोषित आय माना जावेगी और अधिक टैक्स ब्याज एवं पेनल्टी के साथ देय होगी जो कि आज के समय आय का लगभग 102% होता है यानि सारी आय आयकर विभाग जब्त कर लेगा.

इस केस को समझना इसलिए जरुरी है क्योंकि इसमें आम चलन में किए जा रहे लेनदेन को भी कवर किया गया है:

1. बैंक में व्यापारी द्वारा सलाहकार और बैंकर्स के कहने पर 31/03 की तारीख का स्टाक न देकर 28/03 का स्टाक दिया जाता है ताकि यह कहा जा सकें की किताब में साल के अंत का स्टाक 31/03 का है न कि 28/03.

2. उसके बाद फिर हर महीने व्यापारी मनगढंत स्टाक देना शुरू कर देता है, लेकिन साल के अंत की तारीख 31/03 का कभी नहीं दिया जाता.

3. उपरोक्त केस में पार्टी ने 28/03/2005 का स्टाक बैंक में 4.41 करोड़ रुपये का दर्शाया और साथ ही वजन मात्रा भी दर्शीई गई, लेकिन 31/03/2005 में आडिटेड किताबों में 1.70 करोड़ रुपये का दिखाया गया और बताया गया कि स्टाक रजिस्टर नहीं बनाया जाता.

4. स्टाक रजिस्टर नहीं बनाया जाना आयकर विभाग में बताया जाता है लेकिन बैंक में कैसे पूरी स्टाक मात्रा बता दी जाती है, यह समझ से परे है.

5. आयकर अधिकारी द्वारा व्यापारी से 28/03/2005, 29/03/2005, 30/03/2005 एवं 31/03/2005 के खरीद बिक्री प्रमाणक मांगे गए क्वांटिटी सहित, तो व्यापारी उसे नहीं दे पाया.

6. आयकर अधिकारी ने 2.71 करोड़ रुपये को अघोषित आय मानकर आर्डर पास कर दिया, जिसे पहली अपील कमीश्नर में छुड़वा लिया गया.

7. विभाग पहली अपील के खिलाफ ट्रिब्यूनल में गया जहाँ कमीश्नर अपील के आर्डर को तथ्यहीन मानकर आयकर अधिकारी को केस वापस लौटा दिया गया.

8. इस फैसले के खिलाफ पार्टी हाईकोर्ट गई जहाँ पर माननीय उच्च न्यायालय ने प्रथम द्रृष्टया ही कह दिया कि यह केस कानूनी प्रावधान पर न होकर तथ्यों पर आधारित है.

9. इस केस में तथ्य साफ है कि पार्टी स्टाक के अंतर को साबित नहीं कर पाई और न ही जानकारी और रिकॉर्ड प्रस्तुत कर पाई.

10. विभिन्न हाईकोर्ट के केसों में साफ तौर पर यह देखा गया है कि उद्योगपतियों द्वारा बैंक से ज्यादा वित्तीय सहायता लेने के लिए गलत जानकारी और डाटा दिया जाता है, जो की सामाजिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से हानिकारक है एवं इस तरह के चलन पर तुरंत रोकथाम हेतु इसे अघोषित आय माना जाना जरुरी है.

11. व्यापारी द्वारा जिस उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला दिया जा रहा है, वह इस केस के तथ्यों से न ही मैच होता है और न ही लागू होता है.

*उपरोक्त मप्र हाईकोर्ट का निर्णय गलत व्यापारिक चलन की रोकथाम के लिए न केवल मील का पत्थर साबित होगा बल्कि व्यापारी, बैंकर्स, सीए और कर सलाहकार को भी देखना होगा कि कोई भी जानकारी देने से पहले रिकॉर्ड होना जरूरी है अन्यथा पूरी की पूरी आय व्यापारी की विभाग द्वारा जब्त की जा सकती है. साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि बैंक में दिए गए कागजात अब आम कागजात होंगे जो कि किसी भी सरकारी आथिरिटी द्वारा देखे जा सकते हैं. सतर्क रहे, सावधान रहें और सही क्रियाकलाप का पालन करें.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*

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