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Summary: दिल्ली एनसीआर में जीएसटी अधिकारी, तीन वकील और अन्य लोगों की मिलीभगत से 54 करोड़ रुपये की जीएसटी ठगी का पर्दाफाश हुआ है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) द्वारा पकड़ी गई इस साजिश में 500 फर्जी कंपनियों का उपयोग कर 718 करोड़ रुपये के नकली चालान बनाए गए थे। इन चालानों का उपयोग कर फर्जी जीएसटी रिफंड का दावा किया गया। जीएसटी अधिकारी बबीता शर्मा ने 96 फर्जी फर्मों के जरिए 35.51 करोड़ रुपये के रिफंड को मंजूरी दी। इन फर्जी फर्मों ने कागजी तौर पर मेडिकल सामानों के आयात-निर्यात के लिए चालान बनाए थे। जांच में पता चला कि जीएसटी रिफंड तीन वकीलों के बैंक खातों में ट्रांसफर किया गया था। वकीलों ने 23 फर्जी फर्में चलाईं और 173 करोड़ रुपये के फर्जी बिल बनाए। इस मामले में शामिल अन्य आरोपियों में ट्रांसपोर्टर और फर्जी फर्मों के मालिक शामिल हैं, जिन्होंने जाली ई-वे बिल और माल की रसीदें तैयार कीं। इस मामले में फर्जी तरीके से 2,600 से अधिक कंपनियां बनाई गईं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ। भ्रष्टाचार के इन मामलों से स्पष्ट होता है कि जीएसटी लागू करने में जल्दबाजी की गई, जिससे टैक्स चोरी का दायरा बढ़ता गया।

1.दिल्लीएनसीआर में एक  कर अधिकारी, वकीलों की तिकड़ी और कुछ अन्य लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विभाग से 54 करोड़ रुपये की ठगी की। दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने इसका पर्दाफाश किया है। 

‘स्पेशल 7 और 500 फर्म’

एक जीएसटी अधिकारी, तीन वकील, दो ट्रांसपोर्टर और एक “कंपनी” के मालिक 500 फर्जी कंपनियों और 718 करोड़ रुपये के फर्जी चालानों से जुड़ी साजिश का हिस्सा थे, ताकि 54 करोड़ रुपये के जीएसटी रिफंड का दावा किया जा सके। 500 कंपनियां केवल कागजों पर मौजूद थीं और कथित तौर पर जीएसटी रिफंड का दावा करने के लिए मेडिकल सामानों के आयात/निर्यात में शामिल थीं।

भ्रष्ट अधिकारी’

जीएसटी अधिकारी बबीता शर्मा ने 96 फर्जी फर्मों के साथ योजना बनाई और 2021  2022 के बीच 35.51 करोड़ रुपये के 400 से अधिक रिफंड को मंजूरी दी। पहले साल में केवल 7 लाख रुपये के रिफंड को मंजूरी दी गई, लेकिन बाद में शेष को मंजूरी दे दी गई। 

महत्त्वपूर्ण बात यह है। कि आवेदन दाखिल करने के बाद जीएसटीओ द्वारा रिफंड को मंजूरी दे दी गई और तीन दिनों के भीतर मंजूरी दे दी गई। वर्ष 2021 में, सुश्री शर्मा को जीएसटी कार्यालय के वार्ड 22 में स्थानांतरित कर दिया गया और आश्चर्यजनक रूप से, कुछ ही दिनों में, 50 से अधिक फर्मों ने वार्ड 6 से वार्ड 22 में माइग्रेशन के लिए आवेदन किया, और कुछ ही समय में इसे मंजूरी दे दी गई। माइग्रेशन ने खतरे की घंटी बजा दी और जीएसटी सतर्कता विभाग ने इन फर्मों के कार्यालयों में टीमें भेजीं। इससे जीएसटी धोखाधड़ी का पता चला, जिसकी जड़ें उसके अपने कार्यालय में थीं।

किसी विशेष वार्ड का अधिकार क्षेत्र एक विशिष्ट क्षेत्र पर होता है।’कार्य प्रणाली’

जांच में पाया गया कि फर्जी फर्मों ने 718 करोड़ रुपये के चालान बनाए, यानी फर्जी खरीद की गई और कारोबार केवल कागजों पर हुआ, जिसे बाद में एसीबी को सौंप दिया गया। जीएसटी ऑफीसर ने चालान और इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के सत्यापन के बिना रिफंड जारी कर दिया।

जांच में पाया गया कि पहले चरण में 40 से ज़्यादा फ़र्म माल की आपूर्ति कर रही थीं, लेकिन दूसरे चरण में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था। 15 फ़र्मों के मामले में, जीएसटी पंजीकरण के समय न तो आधार कार्ड सत्यापन हुआ और न ही फ़र्म का भौतिक सत्यापन हुआ, जो नियमों के अनुसार अनिवार्य है। 

सुश्री बबीताटैक्स ऑफीसर के तबादले के बाद वार्ड 22 में स्थानांतरित होने वाली 53 फर्मों में से 48 को 12.32 करोड़ रुपये का जीएसटी रिफंड दिया गया। इन फर्मों के संपत्ति मालिकों से कार्यालयों के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र या एनओसी 26 जुलाई, 2022 और 27 जुलाई22 के बीच तैयार किए गए थे। जीएसटी ऑफीसर को 26 जुलाई, 2021 को वार्ड 22 में स्थानांतरित कर दिया गया था। 

जांच में पता चला कि जीएसटी रिफंड तीन वकीलों – रजत, मुकेश और नरेंद्र सैनी और उनके परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में अलग-अलग बैंक खातों के माध्यम से जारी किए गए थे। एसीबी को फर्जी फर्मों, उनके परिवार के सदस्यों और कर्मचारियों से सीधे जुड़े 1,000 बैंक खाते मिले।

तीनों ने एक ही ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर से 23 फर्म चलाईं। पांच फर्मों को एक ही पैन नंबर और ईमेल आईडी के तहत रजिस्टर किया गया ताकि अलग-अलग जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर बनाए जा सकें। 

वकीलों द्वारा संचालित 23 फर्मों ने 173 करोड़ रुपये के फर्जी बिल बनाए। इन 23 फर्जी कंपनियों में से सात मेडिकल सामान की आपूर्ति से जुड़ी थीं और उन्होंने अपने बिलों में 30 करोड़ रुपये का कारोबार दिखाया था। 

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से एक फर्जी फर्म का मालिक मनोज गोयल और दो ट्रांसपोर्टर सुरजीत सिंह और ललित कुमार हैं। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कहा कि जीएसटी रिफंड पाने के लिए जाली ई-वे बिल और माल ले जाने की रसीदें तैयार की गईं। ट्रांसपोर्टरों को बिना कोई सेवा दिए ऐसे दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए पैसे मिले।

2.15,000 करोड़ का GST फ्रॉड : एक अन्य आरोपी ओडिशा से गिरफ्तार, 26 सौ से ज्यादा कंपनियां बनाकर की धोखाधड़ी

गौतम बुध नगर के के बहुचर्चित GST FRAUD में आरोपियों की लिस्ट लगातार बढ़ती जा रही है। 15,000 करोड़ से ज्यादा के इस मामले में फर्जी तरीके से 2,600 से ज्यादा कंपनियां बनाकर फ्रॉड किया गया था। इस मामले में नोएडा की सेक्टर-20 पुलिस ने एक और इनामी वांछित आरोपी को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने 25,000 रुपए के इनामी अपराधी परमेश्वर नायक (38) को ओडिशा के नौपारा जिला से गिरफ्तार किया है।

इस मामले में आरोपी के कब्जे से फर्जी फर्म के लेटर पैड, रेंट एग्रीमेंट, आधार कार्ड, पैन कार्ड और एक मोबाइल बरामद किया गया है। इस बहुचर्चित जीएसटी फ्रॉड के संबंध में सेक्टर-20 थाना में मुकदमा दर्ज हुआ था। पकड़े गए अभियुक्तों ने 2,600 फर्जी फर्मों के जरिए अरबों रुपए का फ्रॉड किया है। इन्होंने सरकार को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया है। इस फ्रॉड से जुड़े आरोपी फर्जी जीएसटी फर्म तैयार करवाते थे और उन्हीं फर्मों से फर्जी इन्वॉयस और बिलिंग कर प्रॉफिट बनाते थे। पुलिस ने जानकारी देते हुए बताया कि अभियुक्त ने पिछले पांच वर्षों से फर्जी फर्म के जरिए करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान पहुंचाया है। इस मामले में पूर्व में गिरोह के 46 आरोपी पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं।

 सार 

उपरोक्त भ्रष्टाचार के मामलों को देखते हुए स्पष्ट है। कि जिस जल्दबाजी में जीएसटी लगाया गया उसका नतीजा है । कि  टैक्स की चोरी हजारों करोड रुपए में निर्धारित होने लगी है ।यदि जीएसटी विभाग द्वारा शुरू से पंजीयन की प्रक्रिया को पूर्व  टैक्स की पद्धति के अनुरूप निर्धारित किया गया होता ।तो शायद कर की चोरी हजारों करोड़ों रुपए में निश्चित नहीं होती। डिजिटल इंडिया के अंतर्गत टैक्स की चोरी भी डिजिटल हो गई है

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