Sponsored
    Follow Us:
Sponsored

जीएसटी एक्ट के अंतर्गत चैप्टर 7 में टैक्स इनवॉइस, क्रेडिट एंड डेबिट नोट को सेक्शन 31 से 34 तक एक्सप्लेन किया गया है । जिस पर हम आज संक्षिप्त में विचार करेंगे। साथ ही उपरोक्त सेक्शन पर उसके नियमों का भी संक्षिप्त में चर्चा करेंगे ।आप लोग पूर्व में भी उपरोक्त सेक्शन पर पढ़ चुके हैं । उस पर अमल कर रहे हैं । लेकिन समय-समय पर हमें अभ्यास भी करना चाहिए। उसी को ध्यान में रखते हुए इस चैप्टर पर मैं अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूं—-

TAX INVOICE – जीएसटी एक्ट में गुड्स या सर्विस या दोनों की सप्लाई करते हैं तो हम RECIPIENT/ कस्टमर को बिल जारी करते हैं। इसमें गुड्स और सर्विस की सभी डिटेल्स दर्ज की जाती हैं। जो गुड्स/सर्विस सप्लाई हमारे द्वारा की जा रही है। जीएसटी एक्ट की धारा 31 में टैक्स इनवॉइस के संबंध में बताया गया है । जिसमें TAX INVOICE का कोई भी पर PRO FORMA नहीं दिया गया है। केवल नियम 46 में कुछ अर्हता बताई गई है। कि किसी टैक्स इनवॉइस पर कौन-कौन सी शर्तें लागू की गई है। जैसे सप्लायर का नाम, पता, जीएसटी नंबर ,मोबाइल संख्या, वस्तु का वर्गीकरण, जीएसटी रेट का वर्गीकरण आदि उस टैक्स इनवॉइस पर दर्ज होने चाहिए।

टेक्स इनवॉइस ELECTRONICALLY/ MANUAL दोनों तरीके से जारी की जा सकती हैं।

TAX INVOICE जारी करने की समय सीमा –

नियम 47 के अनुसार गुड्स SUPPLY करते समय गुड्स के मूवमेंट/डिलीवरी के पहले जारी किया जाएगा।

सर्विस सप्लाई सर्विस सप्लाई करने के 30 दिनों मे टैक्स इनवॉइस जारी की जायेगी। लेकिन यदि सर्विस इंश्योरेंस कंपनी, बैंकिंग कंपनी, या एनबीएफसी के द्वारा कोई सर्विस दी जा रही है ।तो टैक्स इनवॉइस जारी करने के लिए यह समय सीमा 45 दिन होगी।

CONSOLIDATED TAX INVOICE –

जीएसटी में कुछ रजिस्टर्ड पर्सन कुछ केस में टैक्स इनवॉइस जारी नहीं करते हैं। जिस के संबंध में यह इंगित किया गया है ।कि वह रजिस्टर्ड पर्सन एक कंसोलिडेटेड टैक्स इनवॉइस जारी कर सकता है । जिसके लिए निम्न प्रकार हैं-

यदि प्राप्तकर्ता जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन नहीं है/ यदि गुड्स और सर्विस या दोनों की वैल्यू रुपए 200 से कम हो / यदि प्राप्त कर्ता टैक्स इनवॉइस की डिमांड ना करें।

 उपरोक्त केसेस में एक रजिस्टर्ड पर्सन टैक्स इनवॉइस की जगह एक कंसोलिडेटेड टैक्स इनवॉइस जारी कर सकता है ।यह पता ज्यादातर रिटेल बिजनेस में प्रयोग किया जाता है ।जहां प्रतिदिन ट्रांजैक्शन ज्यादा संख्या में होते हैं।

REVISED TAX INVOICE नियम 53 के अनुसार जब कोई व्यक्ति रजिस्ट्रेशन के लिए LIABle होता है । तो रजिस्ट्रेशन LIABLE होने के 30 दिनों के अंदर उसे रजिस्ट्रेशन अप्लाई करना होता है । जब उसे जीएसटी नंबर जारी किया जाता है ।तो वह उस डेट से प्रभावी हो जाता है। रजिस्ट्रेशन अप्लाई करने की डेट से रजिस्ट्रेशन की प्रभावी DATE जो इनवॉइस व्यक्ति ने जारी की है । उनके लिए वह रिवाइज टैक्स इनवॉइस जारी करता है। उदाहरण यदि कोई व्यक्ति 1 अप्रैल से अपना बिजनेस शुरू करता है । और जीएसटी में रजिस्ट्रेशन नहीं कराता है । क्योंकि उसकी सप्लाई कर योग्य सीमा से कम है । लेकिन अक्टूबर के माह में उस की सप्लाई करयोग्य सीमा में

आ जाती है। तो वह जीएसटी के लिए 10 अक्टूबर को रजिस्ट्रेशन अप्लाई करता है । तथा उसे 25 अक्टूबर को जीएसटी का रजिस्ट्रेशन प्राप्त होता है । उसस्थिति में वह रजिस्टर्ड पर्सन 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के मध्य जो उसके द्वारा इनवॉइस जारी की गई है । उनके लिए वह रिवाइज टैक्स इनवॉइस जारी करेगा यह रिवाइज टैक्स इनवॉइस वही रजिस्ट्रेशन मिलने के 30 दिनों के अंदर जारी करेगा।

CONSOLIDATED REVISED TAX INVOICE

एक रजिस्टर्ड पर्सन अनरजिस्टर्ड पर्सन को अलग-अलग रिवाइज्ड टैक्स इनवॉइस के स्थान पर एक कंसोलिडेट रिवाइज्ड टैक्स इन्वॉयस जारी कर सकता है ।लेकिन इंटर स्टेट सप्लाई के संबंध में सप्लाई की वैल्यू रूपए ढाई लाख से अधिक है। तो कंसोलिडेट रिवाइज्ड टैक्स इनवॉइस जारी नहीं की जा सकती।

BILL OF SUPPLY

 सेक्शन 31(3) नियम 49 के अनुसार निम्नलिखित पर्सन TAX INVOICE जारी करने पर जीएसटी एक्ट में प्रतिबंध है ।जैसे EXEMPTED गुड्स या सर्विस की सप्लाई करने वाले पर्सन या ऐसे पर्सन जो कंसेशनल रेट से टैक्स का पेमेंट कर रहे हो। या जिस पर्सन ने कंपोजिशन स्कीम को स्वीकार किया है।

रजिस्टर्ड पर्सन TAX INVOICE के स्थान पर बिल ऑफ सप्लाई जारी करेंगे ।इसके अलावा ये सभी लोग सप्लाई में अपने कस्टमर या रिसिपिएंट्स से टैक्स की राशि चार्ज नहीं कर सकते।

कंपोजीशन में रजिस्टर्ड पर्सन द्वारा जारी बिल ऑफ सप्लाई में स्पष्ट रूप से उन्हें कंपोजिशन टैक्सेबल पर्सन अपने बिल पर मेंशन करना होगा।

RECEIPT VOUCHER

 सेक्शन 31(3) नियम 50 के अनुसार जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन द्वारा गुडस सप्लाई करने से पूर्व एडवांस धनराशि प्राप्त की जाती है ।जिसके लिए वह एक रिसिप्ट वाउचर जारी करता है । जीएसटी एक्ट के अनुसार उस रिसिप्ट वाउचर पर यदि गुड्स का रेट ऑफ टैक्स पता है ।तो उस दर से जीएसटी लगाया जाएगा अन्यथा 18% की दर से जीएसटी चार्ज किया जाएगा । इसके अतिरिक्त यदि सप्लाई की नेचर को हम डिटरमिन नहीं कर सकते तो यह इंटर स्टेट सप्लाई मानी जाएगी।

REFUND VOUCHER

 सेक्शन 31(3)( e) के नियम 51के अनुसार जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन द्वारा किसी सप्लाई के संबंध में एडवांस प्राप्त किया है ।और वह सप्लाई करने में वह असमर्थ रहता है ।तो वह एक रिफंड वाउचर उस एडवांस के संबंध में जारी करेगा।

PAYMENT VOUCHER

 सेक्शन 31(3) ,(g) नियम 52 के अनुसार जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन पेमेंट वाउचर रिवर्स चार्ज के केस में पेमेंट वाउचर जारी करेगा ।क्योंकि रिवर्स चार्ज के केस में सप्लायर द्वारा प्राप्तकर्ता को टैक्स इनवॉइस जारी नही करके पेमेंट वाउचर जारी किया जाता है।

DELIVERY CHALLAN

जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन कुछ केसेस में गुड्स के मूवमेंट के समय पर डिलीवरी चालान जारी करते हैं ।डिलीवरी चालान जारी करने के संबंध में कुछ केसेस निम्न प्रकार है

लिक्विड गैस की सप्लाई के संबंध में जहां सप्लायर को लिक्विड गैस की क्वांटिटी के संबंध में पता नहीं होता या जब जॉब वर्क के लिए गुड्स भेजा जाता है। उसी स्थिति में डिलीवरी चालान जारी किया जाता है या गुड्स सप्लाई के अलावा किसी अन्य कारण से ट्रांसफर किया जा रहा है या बोर्ड के द्वारा कोई नोटिफाई की गई सप्लाई। डिलीवरी चालान को नियम 55 के अंतर्गत जारी किया जाता है।

क्रेडिट नोट/डेबिट नोट

जीएसटी एक्ट की धारा 34में रजिस्टर्ड व्यक्ति द्वारा जब कोई सप्लाई गुड्स/ सर्विस के रूप में की जाती है ।तो वह अपने कस्टमर को एक इनवॉइस जो टैक्स इनवॉइस के रूप में जारी करता है ।जिसमें गुड्स और सर्विस की पूरी डिटेल दी जाती है इनवॉइस को हम अपने जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करते हैं ।तथा बिलों में जीएसटी के अनुसार उसके कर का भुगतान करते हैं ।लेकिन कई बार इन बिल को अपलोड करने के पश्चात इनकी वैल्यू मात्रा जो कम या ज्यादा माल की सप्लाई के कारण,खराब माल की वजह से , सेल रिटर्न के कारण होता है ।इन केस में कस्टमर से मिलने वाली गुड्स एंड सर्विस टैक्स की वैल्यू और कर में कमी जाता है ।जिसकी वजह से हमें अपने इनवॉइस में करनी होती है ।लेकिन जीएसटी पोर्टल पर एक बार इनवॉइस अपलोड करने के बाद उसमें हम कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। इसी समस्या को ध्यान में देते हुए जीएसटी एक्ट में डेबिट नोट और क्रेडिट नोट का कंसेप्ट दिया गया है ।और डेबिट नोट/ क्रेडिट नोट के जरिए जीएसटी में रजिस्टर्ड पर्सन इनमें परिवर्तन कर सकता है।

क्रेडिट नोट से आशय

जीएसटी एक्ट के सेक्शन 34 के अनुसार जब जीएसटी में रजिस्टर्ड प्रशन द्वारा सप्लायर से सप्लाई की गई वस्तु का ज्यादा कीमत या ज्यादा टैक्स वसूल किया गया है या कस्टमर द्वारा गुडस के रेट में अंतर का प्रश्न किया जाता है। या गुड्स रिटर्न किया जाता है । तो सप्लायर द्वारा क्रेडिट नोट जारी किया जाता हैं। क्यों कि हम ओरिजिनल इनवॉइस में बदलाव कर सकें।

उदाहरण एक कंपनी एक्स वाई जेड ने ₹10000 का गुड्स बेचा एबीसी को उसमें ₹1000 का गुड्स कम पहुंचा या खराब हुआ उस कंडीशन में एबीसी कंपनी ने माल वापस भेजा । जिस के संबंध में एक्स वाई जेड कंपनी ₹1000 का क्रेडिट नोट जारी करेंगे । जिससे एबीसी कंपनी ₹1000 से अमाउंट क्रेडिट होगा। ABC company अपने अकाउंट्स डेबिट नोट रु 1000 का एंट्री करें।

क्रेडिट नोट कब जारी किया जाएगा

जब सप्लायर गलती से टैक्स इनवॉइस में गुडस/ सर्विस की ज्यादा वैल्यू चार्ज करता है या टैक्स इनवॉइस में गलती से जीएसटी का रेट ऑफ टैक्स ज्यादा लगाता है या गुड्स के प्राप्तकर्ता को इनवॉइस में बताई गई गुड्सकी संख्या कम प्राप्त हुई हो या गुड्स या सर्विस की खराब क्वालिटी होने पर सेल रिटर्न किया गया वह या इसी प्रकार का कोई दूसरा कारण होने पर क्रेडिट नोट जारी किया जाता है।

क्रेडिट नोट जारी करने के बाद क्या होता है।

सप्लाई द्वारा क्रेडिट नोट जारी करने के बाद सप्लायर को इसकी डिटेल को अपने जीएसटीआर रिटर्न में देनी होगी जिस महीने से संबंधित क्रेडिट नोट जारी किया गया है उस महीने की जीएसटी रिटर्न में इसकी डिटेल देनी होती है क्रेडिट नोट को जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करने के बाद सप्लायर की टैक्स लायबिलिटी कम हो जाती है जिसकी वजह से सप्लायर को जीएसटी रिफंड लेने की प्रोसेस में जाने की जरूरत नहीं होती है।

क्रेडिट नोट जारी करने की समय अवधि

क्रेडिट नोट जारी करने की एक समय अवधि निर्धारित की गई है जिसमें जिस महीने की सप्लाई की गई थी उस महीने से संबंधित फाइनेंसियल ईयर के समाप्त होने के बाद नवंबर तक या संबंधित फाइनैंशल ईयर की एनुअल रिटर्न फाइल करने की डेट मे जो भी पहले होगा वह डेट क्रेडिट नोट की आखरी डेट मानी जाएगी।

डेबिट नोट क्या होता है

जीएसटी एक्ट की धारा 34 के अंतर्गत डेबिट नोट को बताया गया है।

यदि सप्लायर द्वारा अपने कस्टमर को दिए गए गुडस /सर्विस की टैक्सेबल वैल्यू कम चार्ज की गई है ।या जीएसटी कम चार्ज किया गया है ।तो सप्लायर द्वारा डेबिट नोट जारी किया जा सकता है जिससे वह कस्टमर से टैक्सेबल वैल्यू या जीएसटी के डिफेंरस को चार्ज कर सकता है। उदाहरण एक्स वाई जेड कंपनी ने एबीसी लिमिट को ₹10000 के गुडस सप्लाई करता है ।लेकिन गलती से वह इसके ₹9000 चार्ज करता है। तो यह रुपए 1000 का डेबिट नोट बनाएगा तथा अपने gstr-1 में इसको घोषित करेगा तथा जितनी भी टैक्स की लायबिलिटी होगी उसे वह पे करेगा।

डेबिट नोट की समय अवधि जीएसटी हैक के अनुसार डेबिट नोट के लिए कोई समय अवधि निर्धारित नहीं की गई है अर्थात जीएसटी बोर्ड क्रेडिट नोट के द्वारा करदाता की रकम के लिए समय अवधि नियत की गई

है । लेकिन किसी करदाता द्वारा डेबिट नोट जारी किया तो उसके लिए कोई समय अवधि नहीं है।

डेबिट नोट क्रेडिट नोट के लिए कोई परफॉर्मा जीएसटी एक्ट में निर्धारित नहीं है केवल नियम 53 के अंतर्गत सप्लायर का एड्रेस, मोबाइल नंबर, जीएसटी नंबर ,कर की मात्रा गुड्स की मात्रा इत्यादि के साथ जो पिछला बिल आप ने जारी किया है उसका उल्लेख डेबिट नोट और क्रेडिट नोट में किया जाएगा अर्थात जिस प्रकार से टैक्स इनवॉइस के संबंध में बताया गया है वही नियम डेबिट नोट और क्रेडिट नोट पर लागू किया गया।

उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं यदि कोई त्रुटि हो तो कृपया संशोधन कर ले।

Sponsored

Join Taxguru’s Network for Latest updates on Income Tax, GST, Company Law, Corporate Laws and other related subjects.

2 Comments

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sponsored
Sponsored
Sponsored
Search Post by Date
August 2024
M T W T F S S
 1234
567891011
12131415161718
19202122232425
262728293031