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क्या जीएसटी एक्ट में प्रथम अपील धारा 107(4) में भारतीय सीमांकन अधिनियम (Limitation Act) 1963 की धारा 5 लागू होगी?

जब 1 जुलाई 2017 से संपूर्ण भारत में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 लागू किया गया। इसके पश्चात विवादों ने भी जन्म लिया ।कर निर्धारण के पश्चात किसी व्यक्ति या करदाता  के पास न्याय प्राप्त करने का साधन प्रथम अपील  है। जिसके द्वारा वह अपने करनिर्धारण से संबंधित  विषय को स्पष्ट कर सकता है।

यह कि किसी व्यक्ति या करदाता जो कर निर्धारण या अन्य कार्रवाई से व्यथित होता है ।उसके लिए वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 में धारा 107 में प्रथम अपील का प्रावधान किया गया है ।जिसमें व्यक्ति या करदाता को विवादित आदेश के विरुद्ध आदेश की तामीली से तीन माह का समय प्रथम अपील योजित करने का अधिकार दिया गया है ।तथा धारा 107( 4) में एक माह का अतिरिक्त समय विलंब के लिए निर्धारित किया गया है। जिसमें किसी व्यक्ति या करदाता के द्वारा उचित कारण प्रस्तुत करते हुए प्रथम अपील प्रस्तुत कर सकता है।

जैसा कि हमारा विषय है। कि  क्या जीएसटी अधिनियम की धारा 107 प्रथम अपील में भारतीय सीमांकन अधिनियम (Limitation Act)1963 की धारा 5 की विधिक स्थिति क्या होगी ?क्या धारा 107(4) में लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 लागू होगी ?और लागू होगी तो किन परिस्थिति में यह लागू होगी ?

इस विषय में मेरे द्वारा विभिन्न न्यायिक निर्णयो का उल्लेख किया जा रहा है ।जिसमें कई उच्च न्यायालय द्वारा धारा 107 (4) में लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 लागू होती है ।तथा कई उच्च न्यायालय द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया है ।लेकिन उनके द्वारा रिट पिटिशन में गुण दोष के आधार पर इसे अस्वीकार क्या है।

याची के पक्ष मे निर्णय 

1. श्री अरविंद गुप्ता बनाम असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ़ रेवेन्यू स्टेट टैक्स कूचबिहार और अन्य कलकत्ता उच्च न्यायालय रिट पिटीशन संख्या 2904 वर्ष 2023 निर्णय  दिनांक 4 जनवरी 2024

उपरोक्त रिट पिटीशन में यही सवाल किया गया था। कि क्या सीजीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 107 के अंतर्गत अपीलीय अधिकारी के पास अपील दायर करने की वैधानिक समय सीमा से आगे देरी को माफ करने का अधिकार है?

Facts: याचिका कर्ता ने एक अपील दायर की थी। जिसे वरिष्ठ संयुक्त राजस्व कमिश्नर जलपाईगुड़ी ने इस आधार पर खारिज कर दिया था। कि अपील समय से दाखिल नहीं की गई है ।अत्यधिक विलंब हो चुका है। जो उसके क्षेत्राधिकार से बाहर है।

उच्च न्यायालय में कार्रवाई : याचिका कर्ता ने उक्त आदेश के विरुद्ध कलकाता उच्च न्यायालय के समक्ष रिट पिटीशन संख्या 2904 वर्ष 2023 के द्वारा मांग की गई । कि  भारतीय सीमांकन अधिनियम( लिमिटेशन एक्ट )1963 की धारा 5 जीएसटी की धारा 107 प्रथम अपील अधिकारी पर भी लागू होती है। तथा जीएसटी में भारतीय सीमांकन अधिनियम( लिमिटेशन एक्ट) 1963 को अस्वीकार नहीं किया गया है।

उच्च न्यायालय का आदेश: माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका कर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया तथा स्पष्ट किया  कि  सीजीएसटी अधिनियम 2017 स्पष्ट रूप से लिमिटेशन एक्ट 1963 के अधिनियम को प्रयोग से बाहर नहीं करता है ।इसलिए अपील प्राधिकारी के पास वैधानिक समय सीमा के बाद देरी को माफ करने का विवेक है ।यदि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने देरी को माफ करते हुए अपील को बहाल किया तथा अपीलीय प्राधिकारी को आदेश देते हुए स्पष्ट किया। कि गुण दोष के आधार पर अपील पर विचार करें।

2. एसके चक्रवर्ती एंड सन बना एम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर रिट पिटीशन संख्या 81 वर्ष 2022 निर्णय दिनांक 1 दिसंबर 2023 कोलकाता उच्च न्यायालय

Facts: यह कि एसके चक्रवर्ती एंड सन एक पार्टनरशिप फर्म  है। जिसको डिप्टी कमिश्नर स्टेट टैक्स वेस्ट बंगाल द्वारा नोटिस जारी की गई। वित्तीय वर्ष 2017-18,2018-19 याचिका कर्ता ने उपरोक्त असेसमेंट से संबंधित अपना रिप्लाई दाखिल किया। जिसे अस्वीकार करते हुए असेसमेंट पास किया गया। इसके विरुद्ध  प्रथम अपील में 60 दिन के विलंब से अपील दाखिल करते हैं। जिसे धारा 107 (4 )के अंतर्गत अस्वीकार किया जाता है ।तथा याचिका कर्ता उच्च न्यायालय की ओर रुख करता है।

उच्च न्यायालय में तर्क: याचिका कर्ता के अधिवक्ता ने न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड वर्सेस हेली मल्टीपरपज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड रिट पिटीशन संख्या 757/ 2022 , काजल दत्ता वर्सिज असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ़ स्टेट टैक्स और अदर  रिट पिटीशन संख्या 97/2023 कलकत्ता हाई कोर्ट,सुप्रीम कोर्ट में सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर देहरा पावर हाउस सर्किल भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड स्लेपर एंड अदर वर्सिज एक्साइज एंड टैक्सेशन ऑफिसर सुंदर नगर रिट पिटीशन संख्या 692/2020। निर्णय का उल्लेख करते हुए मांग की गई । कि देरी क्षमा प्रार्थना पत्र के लिए लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 को जीएसटी की धारा 107( 4) बाध्य  नहीं करती है ।अतः देरी क्षमता के लिए यदि पर्याप्त आधार है। तो लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 अपना कार्य करेगी।

विभाग के अधिवक्ता ने असिस्टेंट कमिश्नर सिटी काकीनाडा बनाम गैलेक्सी स्मिथ लाइन कंज्यूमर हेल्थ केयर लिमिटेड रिट पिटीशन संख्या 681/ 2020 का उल्लेख करते हुए   देरी क्षमता के विषय पर अपना एतराज दर्ज किया।

उच्च न्यायालय का निर्णय: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना। कि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 की धारा 107 लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 के आवेदन को स्पष्ट रूप से या निहित रूप से बाहर नहीं करती है ।इसलिए निर्धारित समय सीमा अंतिम नहीं है। और मामले के तथ्य और परिस्थितियों के आधार पर इसे बढ़ाया जा सकता है। अपील अधिकारी के पास पर्याप्त कारण दिखाई जाने पर निर्धारित समय सीमा से परे अपील दायर करने में देरी को माफ करने की शक्ति है। लिमिटेशन एक्ट 1963 को विशेष कानून जीएसटी अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से या निहित रूप से बाहर नहीं रखा गया है। यदि अपीलीय प्राधिकारी के द्वारा पर्याप्त कारणों को उचित रूप से स्वीकार किया जाता है ।तो वह देरी को माफ कर सकते हैं। तथा अपील की मेरिट के आधार पर सुनवाई की जानी चाहिए।

करदाता के विरुद्ध आदेश 

उपरोक्त न्यायिक निर्णय से स्पष्ट है। कि जीएसटी अधिनियम की धारा 107(4) में लिमिटेशन एक्ट 1963 धारा 5 लागू की जा सकती है ।यदि पर्याप्त कारण उचित हो ।इसी कड़ी में निम्न रिट में लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 को अस्वीकार किया गया है जिसका सार निम्नलिखित है 

1. यादव स्टील्स बनाम एडिशनल कमिश्नर और अदर रिट पिटीशन संख्या 97 5 वर्ष 2023 निर्णय दिनांक 15 फरवरी 2024 इलाहाबाद हाई कोर्ट 

Facts: उपरोक्त याचिका में याचिका करता द्वारा यूपीजीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 107 के अंतर्गत 66 दिन के विलंब से अपील प्रस्तुत की गई थी। जिसके लिए अपीलीय प्राधिकारी द्वारा देरी क्षमा को अस्वीकार करते हुए अपील को अस्वीकार किया गया ।जिसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष यह याचिका लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 को आधार मानते हुए योजित की। 

उच्च न्यायालय में तर्क: याचिका कर्ता के अधिवक्ता ने रिट पिटीशन में आर्टिकल 2 26 भारत के संविधान का उल्लेख करते हुए याचिका के तथ्यों पर बल दिया तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय एस. के. चक्रवर्ती एंड सन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स का उल्लेख किया और लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 को पर्याप्त कारण के आधार पर देरी क्षमा करने का आग्रह किया। 

विभाग के अधिवक्ता का तर्क: उत्तर प्रदेश राज्य कर अधिवक्ता ने याचिका कर्ता के तथ्यों का विरोध करते हुए कहा  कि वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 पूर्णतया संहिता है ।जिसमें धारा 107 में सभी तरह की व्यवस्था की गई है। ताकि किसी अन्य कानून से इसे प्रभावित नहीं किया जा सकता ।तथा याचिका कर्ता ने जो निर्णय का उल्लेख किया है। उसके तथ्य और संबंधित रिट पिटीशन के तथ्य अलग-अलग है। तथा पर्याप्त कारण के गुण दोष का मूल्यांकन करने पर दोनों ही रिट के आधार अलग है। इसलिए यहां लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 लागू नहीं होती है। विभाग के अधिवक्ता ने सिंह एंटरप्राइजेज बनाम कमिश्नर आफ सेंट्रल एक्साइज जमशेदपुर और अन्य सुप्रीम कोर्टSCC 70(2008)के निर्णय का हवाला देते हुए माननीय न्यायालय से अनुरोध किया कि रिट स्वीकार योग्य नहीं है।

उच्च न्यायालय का निर्णय: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रेट पिटीशन में दोनों पक्षों का तर्क सुने और पत्रावली का अध्ययन किया तथा निर्णय दिया। कि प्रस्तुत रिट में देरी क्षमा के लिए पर्याप्त कारण उपलब्ध नहीं है। जिस कारण लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 जीएसटी अधिनियम की धारा 107 पर लागू नहीं होती है ।अतः रिट पिटीशन अस्वीकार  की जाती है।

लेखक का विचार 

 उपरोक्त न्यायिक निर्णय से स्पष्ट है। कि लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 देरी क्षमता के लिए पर्याप्त कारण के आधार पर विलंब क्षमा योग्य होगा ।अभी जहां तक वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2017 की अपील में इस तरह के विवाद हो रहे हैं। उनका निराकरण जल्द ही माननीय सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया द्वारा किसी रिट में दिया जाना आवश्यक है। क्योंकि प्रत्येक भारतीय नागरिक को अपने हक के लिए न्याय में आस्था है  इसलिए यदि पर्याप्त कारण है। तो विलंब क्षमा योग्य है   वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम2017 में कहीं भी भारतीय सीमांकन अधिनियम (इंडियन लिमिटेशन एक्ट )1963 को अस्वीकार नहीं किया गया है ।टैक्स प्रोफेशनल पर वित्तीय वर्ष 2017-18 ,2018 19 के साथ 2019-2020और2020-21 में कई करदाताओं की मृत्यु कोरोना या अन्य कारण से हुई है ।उन वादों में भी विलंब के आधार मौजूद है ।इसलिए हमें लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 5 को स्वीकार करना होगा ।ताकि किसी व्यक्ति या करदाता को न्याय मिल सके।

 यह लेखक के निजी विचार है

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