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CA Sudhir Halakhandi

CA Sudhir Halakhandi

 भारत में लगने वाले जी.एस.टी. का व्यवहारिक स्वरुप

 (लेख के अपडेट की तारीख :- 15 दिसंबर 2016)

जी.एस.टी. संवैधानिक संशोधन पर भारत के राष्ट्रपति महोदय के द्वारा इस पर हस्ताक्षर कर अपनी सहमती दे दी गई है और इसके साथ ही भारत सरकार ने इसे दिनांक 8 सितम्बर 2016 को अपने गजट अर्थात राजपत्र में प्रकाशित कर इसके कानून बनने की प्रक्रिया को पूरा कर दिया है और अब  केंद्र एवं राज्य सरकार को जी.एस.टी. लागू करने की शक्तियाँ प्राप्त हो गई है .  अब भारत में जी.एस.टी. लगाने की राह में कोई भी संवैधानिक बाधा शेष नहीं है . हमारे कानून निर्माताओं ने राज्यों की सरकारों को प्रेरित  कर  जिस आसानी से एवं जिस गति से जी.एस.टी. बिल का अनुमोदन करवाया है वह निसंदेह ही सराहनीय है और इस कानून को लागू करने के प्रति उनकी गंभीरता को दर्शाता है .

अब केंद्र एवं राज्यों के द्वारा जी.एस.टी. कानून बनाए जायेंगे तब ही जी.एस.टी. पूरे भारत में लागू हो पायेगा. यहाँ यह ध्यान रखें कि भारत में लगने वाला जी.एस.टी. कानून एक इस तरह का कर है जिसमे करयोग्य एक ही व्यवहार पर केंद्र एवं राज्य अलग –अलग कर वसूल करेंगे और  जी.एस.टी. का एक भाग अर्थात सी.जी.एस.टी. केंद्र सरकार के अधीन होगा और दूसरा भाग अर्थात एस.जी.एस.टी. राज्य सरकार के अधीन होगा इसलिए केंद्र की संसद  एवं देश की  प्रत्येक विधान सभा को अपना –अपना अलग जी.एस.टी.कानून (जिसे सी.जी.एस.टी. एक्ट और एस.जी.एस.टी.एक्ट कहा जाएगा ) पारित करना होगा. राज्यों के वित्त मंत्रियों की सलाहकार समिति ने जी.एस.टी. के आदर्श कानून का एक प्रारूप जारी किया था और अब इसमें विभिन्न वर्गों से प्राप्त सुझावों के आधार पर इसे संशोधित कर के और की.एस.टी. कानून का मसौदा तैयार किया गया है  और जहाँ तक उम्मीद है केंद्र एवं राज्य इस प्रारूप पर भी  विभिन्न वर्गों से मिलने वाले सुझावों के बाद एक अंतिम प्रारूप तैयार  करेंगे जिसक आधार पर ही  केंद्र एवं राज्य अपने कानून बनायंगे संसद में एवं राज्यों की विधान सभाओं में बनायेंगे. इसके अतिरिक्त दो राज्यों के बीच होने वाले वयापर के लिए एस.जी.एस.टी. एक्ट भी पारित करना होगा.

जी.एस.टी. अब भारत में लागू होने के बहुत ही करीब है और यह तो निश्चित ही है कि अब यह कर भारत में लगेगा ही और यदि यह समय 1 अप्रैल 2017 किसी भी कारण से  नहीं भी हो  तो भी कुछ महीनो में या फिर इसके बाद वाले साल में तो जी.एस.टी. भारत में लगेगा ही लेकिन जी.एस.टी. के बारे में अभी भी कई भ्रांतियां आम उपभोक्ता एवं करदाताओं  के मन में है जो कि हमें कई जगह सुनने को मिलता है जैसे अब कर एक ही जगह लगेगा, राज्यों में लगने वाला वेट तो अब समाप्त होगा ही इसके साथ ही  सेंट्रल एक्साइज भी समाप्त हो जाएगा  और राज्य अब  कोई कर नहीं लगा पाएंगे इत्यादि – इत्यादि ये सभी भ्रांतियां है क्यों कि केंद्र और राज्य के मुख्य अप्रत्यक्ष कर जी.एस.टी. में समाहित तो हो जायेंगे लेकिन इनकी वसूली केंद्र और राज्य अभी भी अर्थात जी.एस.टी. में भी अलग –अलग ही करेंगे इसलिए जी.एस.टी. के बारे में करदाताओं के मन में जो भ्रांतियां है उनका निवारण इसलिए भी होना आवश्यक है कि अब आगे – पीछे अब भारत में  जी.एस.टी. तो लगना ही है .  इसके लिए जरुरी है कि जी.एस.टी. के बारे में एक परिचय सरल एवं आसान हिन्दी भाषा में दे दिया जाए और यही प्रयास इस लेख में आगे किया गया है .

आइये समझे कि क्या स्वरुप होगा भारत में लगने वाले जी.एस.टी. का और किस तरह करदाता इसका पालन करेंगे और इसका क्या प्रभाव पडेगा भारतीय उपभोक्ताओं पर, और सरकार की किस तरह की तैयारी है जी.एस.टी. को लेकर . इसके अतिरिक्त इस समय जी.एस.टी. को लेकर नया क्या हो रहा है और अंत में क्या संभावना है कि जी.एस.टी. 1 अप्रैल 2017 से लागू हो पायेगा या नहीं और साथ ही कुछ और भी महत्वपूर्ण प्रश्न जी.एस.टी. को लेकर  :-

1. जी.एस.टी. के लिए रजिस्ट्रेशन प्रारम्भ

भारत में प्रस्तावित “गुड्स एवं सर्विस टैक्स” को लगाए जाने को लेकर भारत सरकार के प्रशासनिक प्रयास अब काफी तेज हो चुके है और विभिन्न राज्यों के डीलर्स का जी.एस.टी. के लिए जी.एस.टी. नेटवर्क पर रजिस्ट्रेशन का कार्य प्रारम्भ हो चुका है . यह कार्य राज्यवार निश्चित तिथियों पर हो रहा है जिसमे से कुछ राज्यों का नम्बर आ चुका और कुछ में एक पखवाड़े की यह प्रक्रिया चल रही है इसके बाद शेष राज्यों में यह अन्य चरणों में पूरी की जायेगी. इस प्रक्रिया को जी.एस.टी. माइग्रेशन की प्रक्रिया का नाम दिया गया है जिसमे राज्यों को अपने वेट विभाग से पहले से कार्य कर रहे डीलर्स के कुछ बेसिक “डाटा” जी.एस.टी.एन. पर भेजने है और इसके साथ ही डीलर्स को भी अन्य सूचनाये व् दस्तावेज जी.एस.टी.एन पर जी.एस.टी. रजिस्ट्रेशन के लिए भेजना है .

जिन राज्यों में इस प्रक्रिया की तिथिया समाप्त हो चुकी है उनमे महाराष्ट्र एवं गुजरात प्रमुख है इन दोनों राज्यों में कुछ अन्य राज्यों के साथ दिनांक 14 नवम्बर 2016 से प्रारंभ होकर 29 नवम्बर 2016 को यह प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है . उड़ीसा , झारखण्ड , मध्यप्रदेश , बिहार , पश्चिमी बंगाल इत्यादि राज्यों में यह प्रक्रिया 30 नवम्बर को प्रारम्भ होकर 15 दिसंबर को समाप्त हो रही है . राजस्थान, दिल्ली , उत्तर प्रदेश पंजाब , हरियाणा इत्यादि में यह प्रक्रिया 16 दिसंबर को प्रारम्भ होकर 31 दिसंबर तक चलेगी. इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी यह प्रक्रिया तिथिवार चलेगी.

सर्विस टैक्स के लिए पूरे देश में जी.एस.टी. रजिस्ट्रेशन का कार्य 1 जनवरी 2017 से प्रारम्भ होकर 31 जनवरी 2017 तक चलेगा .

2. जी.एस.टी. नेटवर्क : एक बहुत बड़ा कदम

“जी.एस.टी.” पूरी तरह से सूचना तकनीक पर आधारित है और यह सारी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया एवं जी.एस.टी लागु होने के बाद होने वाली सभी रिटर्न इत्यादि सभी प्रक्रियाएं जी.एस.टी.नेटवर्क नाम की एक कंपनी द्वारा किया जाएगा जिसे केंद्र सरकार के 24.5 प्रतिशत शेयर एवं राज्य सरकार के 24.5 प्रतिशत शेयर के साथ बनाया गया है और इस कंपनी के शेष 51 प्रतिशत शेयर गैर –सरकारी वित्तीय कंपनियों के पास है जिनमे एच.डी.एफ.सी., एल. आई. सी. हाउसिंग तथा आई.सी.आई.सी.आई. इत्यादि शामिल है . इस कंपनी की अधिकृत पूंजी 10 करोड़ रूपये है लेकिन भारत सरकार ने इस नेटवर्क के लिए “नहीं लौटाने योग्य” ग्रांट के रूप में 315 करोड़ रूपये स्वीकृत किये हैं . इस प्रकार यदि हम भारत सरकार की सुचना तकनीक की तैयारी के बारे में देखें तो सरकार का यह प्रयास जी.एस.टी. के प्रति शासन की गंभीरता को दिखाती है जो कि प्रशंसनीय है .

जी.एस.टी. नेटवर्क के साथ भारत की दो बड़ी आई.टी. कम्पनियां इनफ़ोसिस और विप्रो जुडी हुई है . पूरे देश के सभी डीलर्स को इसी नेटवर्क पर काम करना है और जी.एस.टी. के दौरान भरे जाने वाले रिटर्न्स की संख्या भी बढ़ रही है एवं रिटर्न्स भी मासिक भरे जाने है इसलिए एक मजबूत नेटवर्क की जरुरत होगी और लगता है सरकार का यह प्रयास काफी मेहनतभरा एवं सार्थक हुआ तभी जी.एस.टी सफल होगा और इसकी पूरी जिम्मेदारी इसी नेटवर्क पर है.

3 .जी.एस.टी. कौंसिल

जी.एस.टी. के दौरान कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले जो अभी तक हो चुके है या  अभी होने है उनमें प्रमुख है  कर की दर , करमुक्त वस्तुओं की सूचि , डीलर्स पर दोहरे प्रशासन का मामला इत्यादि और इनके लिए एक जी.एस.टी. कौंसिल की स्थापना की गई है  जिसमे केंद्र के वित्त मंत्री , वित्त राज्य मंत्री एवं राज्यों के वित्त मंत्री इस कौंसिल के सदस्य हैं  . इनमें से देश के वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली इस कौंसिल के  मुखिया हैं.  और राज्यों वित्त मंत्रियों में से कोई एक उप सभापति चुने जायेंगे.

 

(जी.एस.टी. कौंसिल की एक मीटिंग का दृश्य )

जी.एस.टी. कौंसिल अप्रत्यक्ष करों के लेकर एक बहुत ही शक्तिशाली सस्था है  जिसे काफी फैसले लेने का अधिकार है  एवं इसके अतिरिक्त इस कौंसिल के लिए फैसलों से सम्बंधित पक्षों में कोई विवाद होता है तो इसे सुलझाने का तंत्र विकसित करने की जिम्मेदारी भी इसी संस्था की है . यों तो इस संस्था में राज्यों का समुचित प्रतिनिधित्व है लेकिन इस सस्था के फैसले लेने के जो नियम बनाये गए है उनके अनुसार केंद्र को ही इस संस्था में “वीटो पॉवर” हासिल है . आइये इसे आगे समझें .

भारत के बहुत बड़ा देश है और जिस तरह के अधिकार इस जी.एस.टी. कौंसिल को भारत में लगने वाले इस अप्रत्यक्ष कर को लेकर है उन्हें देखते हुए इसकी तुलना “यूरोपियन यूनियन” से कर सकते है लेकिन यह कौंसिल अपने कार्य में कितना सफल हो पाती है यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है लेकिन यह तय है कि इस कौंसिल के फैसलों की गुणवत्ता ही भारत में  जी.एस.टी. की सफलता का मूल आधार होगा.

इस कौंसिल में केंद्र को एक तिहाई अर्थात लगभग 33 प्रतिशत मताधिकार होगा और राज्यों को दो तिहाई मताधिकार प्राप्त होगा लेकिन किसी भी फैसले के लिए कम से कम 75 प्रतिशत मतों की जरुरत होगी . इस तरह से यदि सारे राज्य मिल भी जाए तो भी वे कोई फैसला नहीं कर सकते क्यों कि उनके समस्त वोट भी 66 प्रतिशत ही होते है अत: वे केंद्र की मदद के बिना कोई भी फैसला लेने के हकदार नहीं होंगे. इस तरह केंद्र को जी.एस.टी. कौंसिल में “वीटो पॉवर “ हासिल होगी .

      इसके अतिरिक्त केंद्र में जो दल होता है उसकी कई राज्यों  में सरकारें होंगी तो केंद्रे उनकी मदद से अपने फैसलों के लिए 75 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सकता है . इस प्रकार जी.एस.टी. कौंसिल में केंद्र को राज्यों के मुकाबले व्यवहारिक रूप से अधिक मजबूत होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा होगा या नहीं यह इस कौंसिल द्वारा लिए गए फैसलों पर निर्भर होगा.

4. जी.एस.टी. के दौरान दोहरे नियंत्रण का प्रश्न

केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के बीच अभी एक मुद्दा और अटका हुआ है और वह है डीलर्स पर प्रशासनिक नियंत्रण का . केद्र और राज्यों के बीच इसमें सबसे बड़ा मुद्दा उन डीलर्स का है जो अंतरप्रांतीय व्यापार करते है और केंद्र इन डीलर्स का नियंत्रण अपने पास ही रखना चाहता है और इसके साथ सर्विस टैक्स डीलर्स के नियंत्रण को भी केंद्र राज्यों को देने को तैयार नहीं है.सर्विस टैक्स डीलर्स के बारे में केंद्र अपने विभाग का 22 साल के अनुभव का तर्क देता है लेकिन राज्यों की मांग इस सम्बन्ध में केद्र के विचार से मेल नहीं खाती है .

      केंद्र और राज्य इन डीलर्स के अलावा बाकी डीलर्स का नियंत्रण एक विशेष बिक्री को आधार मानते हुए बांटने को तैयार है जिसके अनुसार 150 लाख तक की बिक्री के डीलर राज्यों के नियंत्रण में रहेंगे और इसके बाद के डीलर केंद्र के . इसके अतिरिक्त एक खबर यह भी है कि केंद्र के पास अप्रत्यक्ष कर सम्हालने के लिए जो कर्मचारी है वह  राज्यों में यह कुल वेट कर्मचारियों की संख्या से काफी कम है इसलिए भी   केंद्र और राज्य के बीच डीलर्स के नियंत्रण के सवाल पर विवाद बना हुआ है बना हुआ है और फिलहाल इस समस्या का हल राज्य और केंद्र जी.एस.टी. कौसिल के माध्यम से खोज रहें है जिसके लिए दिनांक 22 एवं 23 दिसंबर को जी.एस.टी. कौंसिल की मीटिंग फिर से होगी और इस विवाद का हल निकाला जाएगा और इसी दिन सी.जी.एस.टी. और आई.जी.एस.टी. कानून के प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा लेकिन यहाँ ध्यान रखें कि इससे पूर्व ही संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त हो जाएगा इसलिए इस सत्र में जी.एसटी. कानून को रखा जाना संभव नहीं है .

5. क्या भारत में लगने वाला जी.एस.टी. एक दोहरा कर है

यह एक बहुत अधिक बार पूछा गया बेसिक प्रश्न है .

जी.एस.टी. के बारे में आम एवं प्रचारित धारणा यह है कि यह एक “एकल कर” है एवं सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों की जगह अब व्यापार एवं उद्योग जगत को सिर्फ एक ही कर का भुगतान करना होगा और यही जी.एस.टी. का आदर्श स्वरूप भी है जिसके तहत केंद्र सरकार को एक ही जगह सारा कर एकत्र करने के बाद उसे केंद्र एवं राज्यों के बीच बांटना था .

लेकिन राज्य अपना कर लगाने का अधिकार नहीं छोड़ना चाहते थे और यह केंद्र और राज्यों के बीच जी.एस.टी. को लेकर जो वर्ष 2006-07 में  प्रारम्भिक बैठकें हुई थी उनमें ही यह तय हो गया था केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित “जी.एस.टी.के एकल कर का स्वरुप ” भारत के संघीय ढांचे को देखते हुए संभव नहीं है  इसलिए राज्यों और केंद्र के बीच एक समझोता हुआ जिसके तहत यह तय पाया गया कि  बिक्री एवं सेवा के एक ही व्यवहार पर राज्य एवं केंद्र दोनों अलग – अलग कर वसूल करेंगे जो कि राज्यों के जी.एस.टी. अर्थात “एस.जी.एस.टी.” एवं केन्द्रीय सरकार का जी.एस.टी. अर्थात “सी.जी.एस.टी.” के रूप में जाने जायंगे इसके अतिरिक्त माल के साथ सेवाओं पर भी कर लेने का अधिकार राज्यों को भी मिल जाएगा.

आइये इसे एक उदाहरण के जरिये समझने की कोशिश करें

मान लीजिये कि हम यहाँ एक ऐसी वस्तु पर जी.एस.टी. का जिक्र कर रहें है जिस पर कर की दर 18 प्रतिशत होगी और इस 18 प्रतिशत की दर को केंद्र  एवं राज्य  10 प्रतिशत एवं 8 प्रतिशत की दर से बांटने का फैसला करने है . यह हमारी इस उदाहरण की पृष्ठभूमि है और इसी काल्पनिक पृष्ठभूमि के आधार पर आप भारत में लगने वाले जी.एस.टी. को समझाने का प्रयास करें :-

जयपुर का एक व्यापारी “अ” जयपुर  के ही एक दूसरे व्यापारी “ब” को कोई माल 10 लाख रुपये में बेचता है और मान लीजिये कि राज्यों के जी.एस.टी. की दर 8 प्रतिशत है एवं केंद्र के जी.एस.टी. की दर 10 प्रतिशत रहती है इसा प्रकार जी.एस.टी. की कुल दर 18 प्रतिशत हुई जैसा कि प्रचारित भी किया जा रहा है तो “अ” इस व्यवहार में 80000.00  रुपये एस.जी.एस.टी. (राज्य का जी.एस.टी.) एवं 1.00 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. (केंद्र का जी.एस.टी.) के रूप में अपने खरीददार “ब” से वसूल करेगा.

आइये अब इस व्यवहार को और भी आगे ले जाए और देखे कि इसी माल को जयपुर  का “ब” नामक व्यापारी अब राजस्थान के ही अन्य शहर जोधपुर के किसी अन्य शहर के व्यापरी “स” को 10.50 लाख रुपये में बेचता है तो वह 84000.00  रुपये एस.जी.एस.टी. एवं 1.05 लाख रुपये सी.जी.एस.टी. के रूप में वसूल करेगा .

यहाँ ध्यान रखे कि “ब” पहले से ही एस.जी.एस.टी. के रूप में अपना माल खरीदते हुए 80000.00 रूपये  का भुगतान कर चुका है एवं सी.जी.एस.टी. के रूप में 1.00 लाख रुपये का भुगतान इसी प्रकार कर  चुका है एवं इस प्रकार “ब” की इनपुट क्रेडिट एस.जी.एस.टी. के रूप में  80000.00 रुपये है एवं  सी.जी.एस.टी. के रूप में इनपुट क्रेडिट 1.00 लाख रुपये है जिसे वह अपने द्वारा “स” से वसूल किये गए कर में घटा कर जमा करा देगा.

इस प्रकार “ब” एस.जी.एस.टी. के रूप में (रुपये 84000.00 – रुपये 80000.00  ) 4000.00 रुपये का भुगतान राज्य के खजाने में जमा कराएगा एवं इसी प्रकार से सी.जी.एस.टी. (रुपये 1.05लाख – रुपये 1.00 लाख ) 5000.00 रुपये केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा.

इस पूरे व्यवहार को देंखे तो इससे केंद्र सरकार को 1.05 लाख रूपये का कर मिलेगा और और राज्य सरकार को 84000.00 रुपया कर को मिलेगा.

यहाँ यह ध्यान रखें कि राज्य के भीतर माल का वितरण या बिक्री करने पर भी केंद्र और राज्य दोनों को कर देना होगा और अब से व्यापारी एक ही बिल में “दो कर” जैसा कि ऊपर बताया गया है एक ही बिल में  लगाएगा और यह तथ्य कि एक ही बिल में अब डीलर्स को दो टैक्स एक ही बिल में लगायेंगे जायेंगे तो फिलहाल आपके लिए एक आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य हो सकता है .

इस कर में माल एवं सेवाओं दोनों को शामिल किया जाएगा लेकिन एक ही व्यवहार पर जैसा कि ऊपर समझाया गया है केंद्र एवं राज्य दोनों ही कर लेंगे इसलिए भारत में लगने वाला यह “माल एवं सेवा कर” एक दोहरा कर है जिसे एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी.के नाम से जाना जाएगा.

6. वेट और जी.एस.टी.

हमारे देश में 2005 एवं 2006 में सभी राज्यों में वेट लागू किया गया था अब व्यवहारिक रूप से इसे समझें तो इसी वेट को जी.एस.टी. के तहत “राज्यों के जी.एस.टी.” अर्थात “एस.जी.एस.टी.” में परिवर्तित करते हुए इसमे माल के साथ – साथ सेवाओं को भी शामिल कर कर लिया जाएगा. वेट अगर यावहारिक रूप से देखा जाए तो समाप्त नहीं होगा लेकिन इसका नाम बदल जाएगा और इसे अब “एस.जी.एस.टी.” के नाम से जाना जाएगा और यदि आप अगले पैरा में वर्णित सी.जी.एस.टी. को भी समझ लें तो आपको पता लगेगा कि एक ही बिल में अब एक और कर सी.जी.एस.टी. भी आपको एकत्र कर जमा करना होगा . व्यवहारिक रूप से राज्यों में लगने वाले सभी अप्रत्क्ष कर “एस.जी.एस.टी.” में समाहित हो जायेंगे.

हमारे देश में अब सभी राज्यों में वेट लागू है इसलिए प्रक्रियात्मक स्वरूप से समझे तो राज्य सरकारों को जी.एस.टी. लागू करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए .

7. केन्द्रीय उत्पाद शुल्क- सेन्ट्रल एक्साइज और जी.एस.टी.  

केन्द्रीय उत्पाद शुल्क भारत में सरकारी राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा है एवं यह एक ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिसे केन्द्रीय सरकार वसूल करती है. यह कर वस्तु के निर्माता  की अवस्था पर लगता है . यह कर “सी.जी.एस.टी.” अर्थात केन्द्रीय जी.एस.टी. में समाहित हो जाएगा. लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे कि केन्द्रीय उत्पाद शुल्क वस्तु की निर्माण की अवस्था तक ही लगता है जब कि सी.जी.एस.टी. वस्तु की बिक्री की अवस्था तक लगना है इसलिए संवैधानिक संशोधन के जरिये पहले केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार प्रदान किया गया है  कि वह माल की बिक्री पर भी कर लगा सके.

अब यह आप ध्यान रखें सभी वेट डीलर्स को एस.जी.एस.टी. के साथ – साथ केंद्र का जी.एस.टी. अर्थात “सी.जी.एस.टी.” भी भरना होगा भले ही बिक्री राज्य के भीतर ही क्यों नहीं हो इसके अतिरिक्त सेवाओं पर भी यही नियम लागू होगा  अर्थात अब सेवाओं पर भी राज्य एवं केंद्र दोनों ही कर वसूल करेंगे.

8. न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. लगना है:- थ्रेशहोल्ड लिमिट 

बिक्री या सेवा की वह न्यूनत्तम राशि जहाँ से जी.एस.टी. के तहत कर लगना है वह राशि केंद्र एवं राज्यों को तय करनी है और अभी तक जो समाचार आ रहें है उनके अनुसार यह राशि केवल 20.00 लाख रुपये होगी लेकिन  हो सकता है अंतिम समय में इसमें कोई परिवर्तन हो.  इस राशि को ही “थ्रेशहोल्ड लिमिट” कहा जाता है. देखिये इस समय अधिकांश राज्यों में यह सीमा वेट के लिए 10.00 लाख रुपये है लेकिन कुछ राज्यों में अभी भी यह सीमा 5.00 लाख रुपये है . सेवा कर के लिए भी छोटे सेवा प्रदाताओ के लिए यह सीमा इस समय 10 लाख रुपये है .

लेकिन असली समस्या तो केन्द्रीय उत्पाद शुल्क को लेकर है जहां यह सीमा 150 लाख रुपये है लेकिन सी.जी.एस.टी. के तहत यह सीमा भी अब 20  लाख (या जो भी अंतिम रूप से तय हो ) रुपये रहने की  संभावना है .

अंतिम रूप से क्या होता है यह तो जी.एस.टी. का कानून जब अंतिम रूप से बनेगा और जी.एस.टी. जब लागू होगा तभी ज्ञात हो पायेगा लेकिन अभी हम समझने के लिए इसे बीस लाख रूपये मान लें तो यह वह सीमा होगी जिसके ऊपर के डीलर्स को अनिवार्य रूप से जी.एस.टी. भुगतान करना होगा.

केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की जगह जो नया कर जी.एस.टी. के तहत “सी.जी.एस.टी.” के नाम से लाया जा रहा है उसमे यह कहा जाता रहा है केंद्र राज्यों के मुकाबले वित्तीय रूप से और भी मजबूत हो जाएगा उसका सबसे बड़ा कारण एक तो यह “थ्रेशहोल्ड लिमिट” क्यों कि अब यह 150 रूपये से घाट कर  20 लाख रूपये होने वाली है   एवं दूसरा यह तथ्य है कि अब केंद्र माल के  निर्माण की अवस्था की जगह बिक्री की अवस्था पर प्रत्यक्ष कर के रूप में सी.जी.एस.टी. की वसूली करेगा.

यहाँ यह ध्यान रखें  कि देश के बहुत से लघुउद्योग अभी भी इसी 150 लाख रूपये के केन्द्रीय उत्पाद कर के सरंक्षण के कारण अपना एक स्वयं का बाज़ार स्थानीय स्तर पर खडा किये हुए है लेकिन जी.एस.टी. के दौरान यह सरंक्षण समाप्त होने के कारण उन्हें भी बड़े उद्योगों के बराबर ही कर देना होगा. “एक कर एक बाजार” की यह सोच जिसके तहत जी.एस.टी. लगाया जा रहा है वह इन लघु उद्योगों के लिए संकट का कारण बन सकती है और बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा में उन्हें अपना अस्तित्व बचाए रख पाना कुछ मुश्किल जरुर होगा.

9.जी.एस.टी. एवं केन्द्रीय बिक्री कर (सी.एस.टी.)

जी.एस.टी. के दौरान सी.एस.टी. का कोई अस्तित्व नहीं होगा  .

आइये हम समझाने की कोशिश करें कि केन्द्रीय बिक्री कर क्या है और यह वेट एवं इसके बाद जी.एस.टी. की रह में क्यों एक मुश्किल माना जाता रहा है .

जब वर्ष 2006 में राज्यों में वेट लागू किया गया था तब केन्द्रीय बिक्री कर अर्थात सी.एस.टी. को सबसे बड़ी बाधा माना गया था और यह वादा किया गया था कि प्रत्येक वर्ष एक प्रतिशत से इस दर को गिराकर अंत में इस कर को समाप्त कर दिया जाएगा लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया और आज भी यह दर दो प्रतिशत पर कायम है और इसके साथ ही केन्द्रीय बिक्री कर पर एकत्र किये जाने वाले सी- फॉर्म की समस्या से पूरा ही व्यापार एवं उद्योग जगत परेशान है .

आइये पहले समझ ले कि केन्द्रीय बिक्री कर क्या है क्यों कि आम तौर पर इसका नाम यह संकेत देता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया एक कर है जब कि सच्चाई यह है कि यह बिक्री करने वाले राज्य द्वारा दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर वसूल किया जाने वाला कर है और देश के विकसित राज्य जिन्हें हम निर्माता राज्य भी कह सकते है इस कर से काफी राजस्व एकत्र करते है .

जी.एस.टी. एक अंतिम बिंदु पर अंतिम उपभोक्ता पर लगने वाला कर है अत; केन्द्रीय बिक्री कर का इसमे कोई स्थान नही होगा और इससे विकसित राज्यों अर्थात बिक्री करने वाले राज्यों के राजस्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पडेगा जिसके बारे में भी केंद्र को इन राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई करनी पड़ेगी.

जी.एस.टी. के दौरान केन्द्रीय बिक्री कर अर्थात सी.एस.टी. की समाप्ती सारे देश के डीलर्स को बहुत बड़ी राहत मिलने वाली है लेकिन आगे एक और कर प्रणाली है जो एस.जी.एस. टी. के नाम से लगने वाली है वह अब डीलर्स को पालन करनी होगी. आइये अब समझे कि यह आई.जी.एस.टी. किस तरह की कर प्रणाली है .

10 . जी.एस.टी. का आई.जी.एस.टी.

दो राज्यों के मध्य होने वाले व्यापार पर निगरानी रखने के लिए एक आई.जी.एस.टी. मॉडल भी तैयार कर प्रस्त्तावित किया गया है  जिसकी चर्चा  हम आगे कर रहे है  लेकिन यह ध्यान रखे  कि यह केन्द्रीय बिक्री कर के स्थान पर लगने वाला कोई नया कर  (एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. के अतिरिक्त तीसरा कर) नहीं है बल्कि एक ऐसा तंत्र है जिसके जरिये दो राज्यों के बीच हुए व्यापार पर नजर रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि कर का एक हिस्सा  उस राज्य को मिले जहाँ अंतिम उपभोक्ता निवास करता है और दूसरा हिस्सा केंद्र सरकार को .

जी.एस.टी. के तहत सूचना तकनीकी की सहायता से एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाएगा जिससे दो राज्यों के मध्य माल एवं सेवा के अंतरप्रांतीय व्यापर पर निगरानी भी रखी जा सके एवं यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि “कर” अंतिम उपभोक्ता के राज्य को मिल रहा है . यहाँ ऊपर पहले ही यह बताया जा चुका है कि यह केन्द्रीय बिक्री कर की जगह लगने वाला कोई नया कर नहीं है लेकिन यह “आई.जी.एस.टी.” भी उद्योग एवं व्यापार के लिए प्रक्रियात्मक उलझाने तो बढाने वाला ही है .

आइये देखे कि यह आई.जी.एस.टी. मॉडल किस तरह से काम करेगा :-

(i). अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान बिक्री करने वाला डीलर अपने खरीददार से आई.जी.एस.टी. के रूप में एक कर एकत्र कर केन्द्रीय सरकार के खजाने में जमा कराएगा. इस कर की दर एस..जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की दर को मिलाकर बनेगी. उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एस.जी.एस.टी. की दर 8 प्रतिशत है एवं सी.जी.एस.टी. की दर भी 10 प्रतिशत है तो आई.जी.एस.टी. के रूप में जमा कराया जाने वाला कर 18 प्रतिशत की दर से केंद्र सरकार के खजाने में जमा कराया जाएगा.

(ii). अपना आई.जी.एस.टी. जमा कराते समय विक्रेता अपने द्वारा इस माल ,को जो कि उसने अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान बेचा है, की खरीद पर चुकाए गये एस.जी.एस.टी. एवं सी.जी.एस.टी. की इनपुट क्रेडिट लेगा.

(iii) . विक्रेता का राज्य इस बिक्री किये गए माल के सम्बन्ध में विक्रेता ने जो विक्रेता राज्य में भुगतान किये गए एस.जी.एस.टी. की क्रेडिट ली है उतनी राशि केंद्र सरकार के खजाने में हस्तांतरित कर देगा.

(iv). अंतरप्रांतीय बिक्री के दौरान खरीद करने वाला क्रेता जब भी यह माल बेचेगा तो अपनी सी.जी.एस.टी. की इनपुट क्रेडिट  क्रमशः एस.जी.एस.टी. , सी.जी.एस.टी. या एस.जी.एस.टी. (इसी क्रम में ) की जिम्मेदारी में  से लेने का हक़ होगा .

 (v). जितनी राशि की इनपुट क्रेडिट अपनी एस.जी.एस.टी. चुकाते समय उपभोक्ता राज्य का व्यापारी आई.जी.एस.टी. में से लेगा उतनी रकम केंद्र उपभोक्ता राज्य के खाते में हस्तांतरित कर देगा इस तरह आई.जी.एस.टी. की इनपुट क्रेडिट क्रेता  आई.जी.एस.टी. की भुगतान की  जिम्मेदारी के लिए ले सकता है और ऐसी कोई जिम्मेदारी खरीददार की नहीं है तो इसका इनपुट सी.जी.एस.टी. या  एस.जी.एस.टी. के तहत भी लिया जा सकता है .

इस प्रकार एस.जी.एस.टी. के रूप में मिलने वाला पूरा राजस्व अंतरप्रांतीय व्यापर के दौरान भी उपभोक्ता राज्य को ही मिल जाएगा.

11. जी.एस.टी. एवं कर की दर

केंद्र और राज्य सरकार की जी.एस.टी. कौंसिल  के सदस्यों ने  कर की दरों के सम्बन्ध में एक बड़ा फैसला ले लिया है और उनके द्वारा 4 दरों की बात की कई है. यह दरें 5 प्रतिशत , 12 प्रतिशत , 18 प्रतिशत  एवं 28 प्रतिशत होंगी . इन दरों के दौरान करयोग्य वस्तुओं की सूची जारी नहीं की गई है इसलिए इस समय यह तो नहीं कहा जा सकता कि कौनसी वस्तु किस कर की दर के तहत आएगी और कौनसी वस्तु करमुक्त होगी.

 खाद्यान सहित आवश्यक उपभोग की कई वस्तुओं को टैक्स फ्री रखा गया है. इस लिहाज से उपभोक्ता मूल्‍य सूचकांक में शामिल तमाम वस्तुओं में से करीब 50 प्रतिशत वस्तुओं पर कोई कर नहीं लगेगा. इन्हें शून्य कर की श्रेणी में रखा गया है.

सबसे निम्न दर आम उपभोग की वस्तुओं पर लागू होगी जो कि 5 प्रतिशत की दर होगी . शेष वस्तुओं पर या तो 12 प्रतिशत कर की दर होगी या फिर 18 प्रतिशत जिसे की “स्टैण्डर्ड रेट” कहा गया है जबकि सबसे ऊंची दर विलासिता और तंबाकू जैसी अहितकर वस्तुओं पर लागू होगी. ऊंची दर के साथ इन पर अतिरिक्त उपकर भी लगाया जायेगा.

सोने पर 4 प्रतिशत की दर लगाए जाने की संभावना है लेकिन आधिकारिक रूप से अभी इस सम्बन्ध में कुछ नहीं आया है .

करमुक्त वस्तुओं की सूची एवं हर कर की दर में समाहित वस्तुओं की सूचि की भी अभी प्रतीक्षा है .

12. जी.एस.टी. एवं पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स

पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स जी.एस.टी. के भीतर भी रखा जा सकता है और इन पदार्थो को अभी जिस तरह से वेट से बाहर रखकर कर लगाया जाता है वैसा भी किया जा सकता है लेकिन फिलहाल इन्हें जी.एस.टी. से बाहर रखा जा रहा है . ये तो आपको पता ही होगा कि वर्तमान में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स वेट से बाहर है और जिन कारणों से ये पदार्थ वेट से बाहर रखे गए है उन्ही कारणों से इन्हें जी.एस.टी. से भी बाहर रखा जाएगा  .

यहाँ ध्यान रखे कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही अपने राजस्व का बहुत बड़ा भाग इन पदार्थो पर लगने वाले “सेंट्रल एक्साइज एवं वेट” से एकत्र करते है और यह इनके लिए बहुत ही सुखद स्तिथी है जिसे दोनों ही छोड़ना नहीं चाहते और ऐसे में यह होगा कि उद्योग एवं व्यापार को पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर दिए हुए कर का इनपुट नहीं मिलेगा जैसा कि वेट में नहीं मिलता है .

संविधान संशोधन विधेयक में भी पेट्रोलियम पदार्थों को जी.एस.टी. कौंसिल की सहमती से जी.एस.टी. में लेने की बात कही गई है लेकिन ऐसे संकेत है कि फिलहाल उन्हें जी.एस.टी.से बाहर रखा जाएगा अर्थात उन पर अभी की स्तिथी की तरह ही कर राज्य एवं केंद्र का कर लगता रहेगा.

13. उपभोक्ता और जी.एस.टी.

उपभोक्ताओं को जी.एस.टी. के बाद वस्तुएं सस्ती मिलेगी और सरकार को राजस्व भी ज्यादा मिलेगा तो एक सवाल उठता है कि ये दोनों आपस में विरोधी परिणाम एक साथ कैसे संभव है और दूसरी बात यह भी है कि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार जी.एस.टी. के प्रारम्भिक काल में महगाई बढ़ सकती है तो इस प्रकार से अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि जी.एस.टी. का उपभोक्ताओं पर क्या असर पडेगा.

लेकिन एक बात तो यह है कि इस समय जब भी उपभोक्ता कोई वस्तु खरीदते है तो उन्हें बिल में सिर्फ एक ही कर वेट के रूप में लगा हुआ नजर आता है लेकिन अब जब जी.एस.टी. लागू होगा चाहे वह 1 अप्रैल 2017  हो या इसके बाद कभी भी तो वे जो भी वस्तु खरीदेंगे उसके बिल पर एक की जगह दो टैक्स लगे हुए दिखेंगे और ये कर एस.जी.एस.टी. और  सी.जी.एस.टी. अभी भी वे सेंट्रल एक्साइज का भुगतान कई वस्तुओं पर करते है लेकिन वह लागत एवं कीमत में जुडा होता है और अंतिम उपभोक्ता को बिल में नजर नहीं आता है . इस प्रकार उपभोक्ताओं को अपने द्वारा भुगतान किये गए कर के बारे में कुछ अधिक जानकारी मिलेगी और इसे हम इस अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से बढ़ने वाली पारदर्शिता भी कह सकते है .

14. क्या जी.एस.टी. एक अप्रैल 2017 से लागू हो पायेगा

वर्ष 2006 में जब पहली बार जी.एस.टी. का जिक्र किया गया तब यह कहा गया था कि यह एक अप्रैल 2010 पूरे भारत में लागू कर दिया जाएगा तब से लेकर अभी तक यह बहुचर्चित नयी कर प्रणाली राज्यों एवं केंद्र के बीच एक विवाद का विषय बन कर रह गयी थी  और प्रारम्भ से ही जी.एस.टी. को लेकर यह प्रचरित किया जाता रहा है कि इस कर प्रणाली से ना सिर्फ राजस्व में वृद्धि होगी बल्कि उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा . यों तो ये दोनों तथ्य अर्थात राजस्व में वृध्दि होना और उपभोक्ताओं को भी सस्ती वस्तुए मिलना आपस में विपरीत तथ्य है लेकिन फिर भी हम इस पर विश्वास कर ले तब फिर यह सवाल उठता है कि फिर जी.एस.टी. को लागू करने में देरी क्यों हो रही थी या अभी भी हो रही  है ?

जी.एस.टी. भारत में केवल एक कर ही नहीं है यह केंद्र और राज्यों के बीच कर लगाने के अधिकारों की एक राजनैतिक लड़ाई भी है और जी.एस.टी. में “राज्यों के कर लगाने के अधिकारों” की रक्षा राज्य केंद्र के साथ दोहरे कर के रूप में जी.एस.टी. का प्रस्ताव मनवा कर कर चुके है लेकिन अभी भी जी.एस.टी. पर कई मुद्दों पर राज्यों की अपनी आशंकाए है लेकिन विधान सभाओं में जब अनुमोदन के लिए जी.एस.टी. बिल रखा गया तो इन सब विषयों पर कोई चर्चा ही नहीं हुई और इस तरह भारत में जी.एस.टी. की राह आसान हो गई और जो विचार विधान सभाओं में नहीं हुआ अब वह जी.एस.टी. कौंसिल में हो रहा है इसीलिये जी.एस.टी. कौसिल एक बहुत ही शक्तिशाली संस्था की संज्ञा दी गई है .

जी.एस.टी. के दौरान डीलर्स पर नियंत्रण का मामला केंद्र और राज्यों के बीच अटका हुआ है और इसी मुद्दे पर जी.एस.टी. कौंसिल की कुछ औपचारिक एवं अनौपचारिक  मीटिंग्स अनिर्णीत स्थगित हो चुकी है और इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें भी “नोटबंदी” के उनकी अर्थव्यवस्था पर लघुकालीन प्रभाव से भी आशंकित है ऐसी भी ख़बरें आ रही है, स्वयं भारतीय रिज़र्व बैंक भी “नोटबंदी” प्रारम्भिक प्रभावों को लेकर निश्चित नहीं है  इसीलिये हो सकता है कुछ राज्य अब शायद 1 अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. लगाने में सहयोग देने को तैयार नहीं हो क्यों कि अब इस तारीख में केवल तीन माह ही बचे है और यह भी हो सकता है कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही जी.एस.टी. लागू करने के लिए उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करना ही उचित समझें .

अब 1 अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. लगने की संभावना कम होती जा रही है  .

15 .क्या होगा यदि सितम्बर 2017 में भी जी.एस.टी. नहीं आया तो ?

लेकिन अभी भी जी.एस.टी. के 1 अप्रैल 2017 से लगने पर संशय कायम है और इस तरह की ख़बरें भी आ रही है कि शायद एक अप्रैल 2017 को जी.एस.टी. लागू नहीं हो और इन खबरों को और भी वजन वित्त मंत्री के उस बयान से भी मिलता है कि यदि सितम्बर 2017 तक जी.एस.टी. लागु नहीं हुआ तो भारत में कोई प्रत्यक्ष कर ही नहीं रहेगा और इससे ऐसा लगता है कि उन्हें भी एक अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. होने में संदेह है इसीलिये वे अभी से सितम्बर 2017 की बात कर रहें है .

वैसे यदि सरकार सितम्बर 2017 में भी जी.एस.टी. लागू नहीं कर पाई तो भी देश में वर्तमान अप्रत्यक्ष करों को जारी रखने के लिए संसद में जा सकती है या राष्ट्रपति महोदय की मदद ले सकती है अत; इस सम्बन्ध में कोई बड़ी परेशानी खड़ी हो ऐसा नहीं है .

नोट :- इस लेख के लेखक सी.ए. सुधीर हालाखंडी वर्ष 2006 से जी.एस.टी. का अध्ययन कर रहे है एवं अब तक देश की कई कर पत्रिकाओं में जी.एस.टी. पर लगभग 100 से अधिक लेख लिख चुके है . वर्ष 2007 आई.सी.ए. आई. के सी.ए. जर्नल में प्रकाशित लेख “गुड्स एंड सर्विस टैक्स –एन इंट्रोडक्टरी स्टडी” को भारत के लोकसभा सचिवालय ने अपने जी.एस.टी. बुलेटिन को तैयार करने में रिफरेन्स आर्टिकल के रूप में प्रयोग किया है . यह जी.एस.टी. बुलेटिन सांसदों को जी.एस.टी. से परिचित कराने के लिए लोकसभा सचिवालय द्वारा तैयार किया गया था . इसी आर्टिकल को जी.एस.टी. पर रिसर्च करते समय भी कई स्थानों पर “रिफरेन्स” के रूप में प्रयोग किया गया है.

इस लेख को अंतिम रूप दिनांक 15 दिसम्बर 2016 को अपडेट किया गया है . सुधार के लिए कृपया अपने सुझाव भेजे .

लेखक का ई-मेल एड्रेस sudhirhalakhandi@gmail.com  है.

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7 Comments

  1. sandeep padaye says:

    Hindi bhasha me likha ye lekh bahut accha hai…….. bahut sare businessmen, Indirect Tax me kam karnevale employees / practitioner jo english se jada hindi me likha hua lekh achhi tarahse sam jayenge……..so keep it up sir..

  2. Nilesh Sonawane says:

    Sir.

    Apaka GST ka Lekh Bahut hi Abhyas-Purn (With Study) & Very Nice for Hindi Readears…..

    Apane Hum hindi Reader ko Khayal meain Rakhate huye yah lekh Likha, Aur Humare Bahut sari Shanka onka Nirasan ho gaya. Aap Likhate Rahiye ( Hindie main).

    Bahut Bahut Aabhar ( Thanks).

    Reagards,
    Nilesh Sonawane ( Poet)

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