भारत में प्रस्तावित “गुड्स एवं सर्विस टैक्स” को लगाए जीने को लेकर भारत सरकार के प्रशासनिक प्रयास अब काफी तेज हो चुके है और विभिन्न राज्यों के डीलर्स का जी.एस.टी. के लिए जी.एस.टी. नेटवर्क पर रजिस्ट्रेशन का कार्य प्रारम्भ हो चुका है . यह कार्य राज्यवार निश्चित तिथियों पर हो रहा है जिसमे से कुछ राज्यों का नंबर आ चुका और कुछ में एक पखवाड़े की यह प्रक्रिया चल रही है इसके बाद शेष राज्यों में यह अन्य चरणों में पूरी की जायेगी.
जिन राज्यों में इस प्रक्रिया की तिथिया समाप्त हो चुकी है उनमे महाराष्ट्र एवं गुजरात प्रमुख है इन दोनों राज्यों में कुछ अन्य राज्यों के साथ दिनांक 14 नवम्बर 2016 से प्रारंभ होकर 29 नवम्बर 2016 को यह प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है . उड़ीसा , झारखण्ड , मध्यप्रदेश , बिहार , पश्चिमी बंगाल इत्यादि राज्यों में यह प्रक्रिया 30 नवम्बर को प्रारम्भ होकर 15 दिसंबर को समाप्त हो रही है . राजस्थान, दिल्ली , उत्तर प्रदेश पंजाब , हरियाणा इत्यादि में यह प्रक्रिया 16 दिसंबर को प्रारम्भ होकर 31 दिसंबर तक चलेगी. इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी यह प्रक्रिया तिथिवार चलेगी. सर्विस टैक्स के लिए पूरे देश में जी.एस.टी. रजिस्ट्रेशन का कार्य 1 जनवरी 2017 से प्रारम्भ होकर 31 जनवरी 2017 तक चलेगा .
जिन राज्यों में रजिस्ट्रेशन का कार्य हो चुका है ( तारीखों के हिसाब से ) उनके बारे में कोई आंकड़े अभी तक उपलब्ध नहीं है कि इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया सरलता पूर्वक पूरी हो भी पा रही है या नहीं. कुछ क्षेत्रों से इस प्रक्रिया के सम्बन्ध में और मांगे जाने वाले दस्तावेजों के सम्बन्ध में डीलर्स विशेष तौर पर गैर-कंपनी और छोटे करदाताओं को होने वाली परेशानियों की ख़बरें आ रही है जिन्हें सरकार को शीघ्र निपटाना चाहिए .
इस सम्बन्ध में एक सुझाव यह भी है कि इस समय राज्यों के वेट विभागों के पास जो आंकड़ें है उन्ही के साथ जी.एस.टी. में स्वत; ही डीलर्स को स्थान्तरित कर दिया जाना चाहिए और शेष दस्तावेज के लिए डीलर्स को जी.एस.टी. लागू होने के पहले दिन से 6 माह का समय दिया जाना चाहिए पर यह सुझाव नहीं माना गया है .
“जी.एस.टी.” पूरी तरह से सूचना तकनीक पर आधारित है और यह सारी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया एवं जी.एस.टी लागु होने के बाद होने वाली सभी रिटर्न इत्यादि सभी प्रक्रियाएं जी.एस.टी.नेटवर्क नाम की एक कंपनी द्वारा किया जाएगा जिसे केंद्र सरकार के 24.5 प्रतिशत शेयर एवं राज्य सरकार के 24.5 प्रतिशत शेयर के साथ बनाया गया है और इस कंपनी के शेष 51 प्रतिशत शेयर गैर –सरकारी वित्तीय कंपनियों के पास है जिनमे एच.डी.एफ.सी., एल. आई. सी. हाउसिंग तथा आई.सी.आई.सी.आई. इत्यादि शामिल है . इस कंपनी की अधिकृत पूंजी 10 करोड़ रूपये है लेकिन भारत सरकार ने इस नेटवर्क के लिए “नहीं लौटाने योग्य” ग्रांट के रूप में 315 करोड़ रूपये स्वीकृत किये हैं . इस प्रकार यदि हम भारत सरकार की सुचना तकनीक की तैयारी के बारे में देखें तो सरकार का यह प्रयास जी.एस.टी. के प्रति शासन की गंभीरता को दिखाती है जो कि प्रशंसनीय है .
भारत सरकार एवं राज्यों की सरकारें जी.एस.टी. को लेकर बहुत सी समस्याओं को हल कर चुके है जिसके लिए वे सन 2006 -2007 से भारत सरकार राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ प्रयासरत थी . करों की दरों के बारे में लगभग सहमती है और ऐसा लगता है कि केंद्र एवं राज्य चार दरों अर्थात 5 प्रतिशत , 12 प्रतिशत , 18 प्रतिशत एवं 28 प्रतिशत की दरों पर दनों पक्ष सहमत है . सोने पर 4 प्रतिशत की दर पर बात हो रही है . यह दरें राज्य और केंद्र के बीच कैसे बटेंगी इस पर भी कोई ना कोई फार्मूला शायद कानून निर्माताओं के पास होगा ही. राज्यों को क्षतिपूर्ति की रकम की गणना भी शायद अब कोई समस्या नहीं रही है तो क्या हम अब 1 अप्रैल 2017 को जी.एस.टी. के दौर में प्रवेश कर रहें है और सरकार की तैयारी से तो ऐसा ही लगता है .
लेकिन अभी भी जी.एस.टी. के 1 अप्रैल 2017 से लगने पर संशय कायम है और इस तरह की ख़बरें भी आ रही है कि शायद एक अप्रैल 2017 को जी.एस.टी. लागू नहीं हो और इन खबरों को और भी वजन वित्त मंत्री के उस बयान से भी मिलता है कि यदि सितम्बर 2017 तक जी.एस.टी. लागु नहीं हुआ तो भारत में कोई प्रत्यक्ष कर ही नहीं रहेगा और इससे ऐसा लगता है कि उन्हें भी एक अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. होने में संदेह है इसीलिये वे अभी से सितम्बर 2017 की बात कर रहें है . वैसे यदि सरकार सितम्बर 2017 में भी जी.एस.टी. लागू नहीं कर पाई तो भी देश में वर्तमान अप्रत्यक्ष करों को जारी रखने के लिए संसद में जा सकती है या राष्ट्रपति महोदय की मदद ले सकती है अत; इस सम्बन्ध में कोई बड़ी परेशानी खड़ी हो ऐसा नहीं है .
केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के बीच अभी एक मुद्दा और अटका हुआ है और वह है डीलर्स पर नियंत्रण का . केद्र और राज्यों के बीच इसमें सबसे बड़ा मुद्दा उन डीलर्स का है जो अंतरप्रांतीय व्यापार करते है और केंद्र इन डीलर्स का नियंत्रण अपने पास ही रखना चाहता है और इसके साथ सर्विस टैक्स डीलर्स के नियंत्रण को भी केंद्र राज्यों को देने को तैयार नहीं है. केंद्र और राज्य इन डीलर्स के अलावा बाकी डीलर्स का नियंत्रण एक विशेष बिक्री को आधार मानते हुए बांटने को तैयार है . इसी विवाद के कारण पिछली कुछ मीटिंग्स बिना नतीजा रही है और इसी कारण जी.एस.टी. कानून संसद के शीतकालीन सत्र में शायद ही रखा जा सके और ऐसा नहीं हुआ तो जी.एस.टी. का 1 अप्रैल 2017 से लागू होना मुश्किल है .
राज्य सरकारें भी “नोटबंदी“ के उनकी अर्थव्यवस्था पर लघुकालीन प्रभाव से भी आशंकित है ऐसी भी ख़बरें आ रही है और इसीलिये हो सकता है कुछ राज्य अब शायद 1 अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. लगाने में सहयोग देने को तैयार नहीं हो क्यों कि अब इस तारीख में केवल तीन माह ही बचे है और यह भी हो सकता है कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही जी.एस.टी. लागू करने के लिए उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करना ही उचित समझें .
अब 1 अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. लगना शायद ही संभव है .
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Why the headlines of the topic is in English while the content is in Hindi ?