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– सुधीर हालाखंडी-

जीएसटी – अब सरकार क्या करे ! | जीएसटी – सरलीकरण और सकारात्मक परिवर्तन अब बहुत जरुरी है

जीएसटी जुलाई 2017 में भारत सरकार ने एक बहुत ही साहसिक कदम उठाते हुए जीएसटी पूरे भारत वर्ष में लगाया था और अनुमान यह था कि  प्रारम्भिक दुविधाओं के बाद यह कर स्थायित्व ग्रहण कर अर्थ व्यवस्था को अपना वांछित योगदान दे सकेगा लेकिन जीएसटी से जुड़े किसी भी क्षेत्र को यह उम्मीद नहीं थी कि जीएसटी लागू होने के 28 माह बाद भी इसमें लगातार परिवर्तन होते रहेंगे और जटिलताएं कम होने की जगह बढ़ती हुई ही नजर आयेंगी .

ध्यान रखें इस समय सरकार पूरा प्रयास कर रही है कि किसी भी तरह से जीएसटी से जुडी समस्याएँ हल कर करदाताओं को राहत दी जा सके और देर से ही सही इस और से सकारात्मक संकेत आने लगे है और यह एक उम्मीद जगाता है कि अब उलझे हुए जीएसटी को सुलझा लिया जाएगा लेकिन इन प्रयासों को और गति देने की आवश्यकता है और समस्याओं को सुलझाने के लिए विभागीय अधिकारियों के साथ जमीनी स्तर पर जुडे जीएसटी विशेषज्ञों की मदद ले और इस समय नए प्रयोग करना जैसे “इनपुट क्रेडिट का 20%” वाले प्रावधान फिलहाल स्थगित रखे.

जीएसटी के वार्षिक रिटर्न्स का एक बार फिर से स्थगित होने से आप अपने आप ही समझ गए होंगे कि जीएसटी पर इस समय जो लोग कार्य कर रहे हैं उनके स्तर सब कुछ व्यवस्तिथ नहीं है और विशेषज्ञता का भी अभाव नजर आता है . देखिये जो परिवर्तन उन्होंने वार्षिक रिटर्न्स में किये है वे परिवर्नन नहीं है बल्कि कुछ सूचनाएं जो मूल रिटर्न में माँगी गई थी उन्हें छोड़ दिया गया है लेकिन यह का तो उसी दिन के अगले दिन भी हो सकता था जिस दिन जीएसटी कौंसिल ने यह फैसला कर दिया था तो सोचने वाली बात यह है कि फैसले ना सिर्फ देरी से हो रहें बल्कि ऐसा लगता है किसी एक स्तर पर केवल तारीख बढाने को ही हर समस्या का अस्थायी हल मान लिया गया है.

हमारे कानून निर्माता जीएसटी की समस्याओं को लेकर  जो फैसले अलग –अलग समय पर कर रहें हैं उन सबको एक साथ लागू करें तभी वे प्रभावी होंगे और सारी समस्याएं हल हो सकती है क्यों कि अलग –अलग समय पर हल करने से समस्याएं तो हल नहीं हो रही बल्कि इस अव्यवहारिक तरीके के कारण जटिलताएं भी बढ़ती भी जा रही है.

आइये अब देखें कि सरकार किस प्रकार से और किन मुद्दों पर फैसले तुरंत करे ताकि  जीएसटी सरल और व्यवहारिक हो सके और वे सभी उम्मीदें जीएसटी से पूरी हो सके जो कि व्यापार एवं उद्योग के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था ने जुलाई 2017 में की थी और जिनके पूरे होने का अभी भी इन्तजार है  :-

1. सबसे पहले इनपुट क्रेडिट के लिए जो 20 प्रतिशत का प्रावधान लाया गया है इसे तुरंत स्थगित किया जाए और एक बार इस विषय में अच्छी तरह से तैयारी की जाए. इस प्रावधान में जो मासिक समय सीमा तय की गई है वह अव्यवहारिक है और इस सम्बन्ध में समय सीमा को फिर से तय की जाए जो कि कम से कम 3 से 6 माह हो. देखिये कोई विक्रेता अपना रिटर्न समय पर भरे इसमें क्रेता का कोई नियंत्रण नहीं होता है और मासिक आधार पर इस संबंध में क्रेता की इनपुट रोक दी जाए इसका कोई औचित्य नहीं है.

2. जुलाई 2017 से जो भी मासिक रिटर्न 3B भरे गए है उनमें संशोधन की कोई सुविधा नहीं है . एक माह में भरे हुए रिटर्न में हुई गलती को अगले या आने वाले रिटर्न में समायोजित कर ठीक किया जा सकता है ऐसा हर गलती के साथ हो सकता है ऐसी सोच के पीछे व्यवहारिक ज्ञान का अभाव है .

यदि मासिक रिटर्न 3B में सशोधन नही हो सकता तो व्यवहारिक रूप से वार्षिक रिटर्न कर निर्धारण में कोई योगदान नहीं दे पायेंगे और अधिकांश कर निर्धारण डीलर को नोटिस देने पर ही कर निर्धारण हो पायेंगे जो कि ना तो एक आदर्श स्तिथी है और ना ही विभाग के पास इतनी क्षमता है .

3. RCM में से वह हिस्सा जिसका इनपुट क्रेडिट डीलर को मिल जाता है का कोई वित्तीय प्रभाव उसकी कर देता पर नहीं पड़ता है और प्रारम्भ से ही विशेषज्ञों द्वारा यह बताया गया था कि यह एक अव्यवहारिक प्रावधान है और प्रारम्भिक जीएसटी के दौरान और अभी भी डीलर इसका सही से पालन नहीं कर पा रहें है .

यदि डीलर RCM के दायरे में तो आता है लेकिन इस सम्बन्ध में उसे कोई अतिरिक्त कर का भुगतान नहीं करना पड रहा है तो फिर यह एक अव्यवहारिक और अनुचित प्रक्रिया का बोझ उस पर डाला गया है अब यदि वह इस बिना परिणाम वाली तकनीकी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाए तो उन्हें दण्डित करना भी सही नहीं है . इस प्रकार के RCM को 1जुलाई 2017 से ही निरस्त कर देना चाहिए .

वेट में भी इसी तरह का प्रावधान “क्रय कर” के नाम से था लेकिन इस छूट के साथ कि यदि क्रेता ने अपने विक्रय पर कर चुका दिया तो क्रय कर का भुगतान नहीं करना होता था आर यही जीएसटी और वेट का मूल भी है और इसी का जीएसटी में पालन नहीं हुआ है और इस नियम के कारण भी जटिलताएं बढ़ी है जिन्हें अब कम करने का समय आ गया है .

4. जिन डीलर्स ने अपने रजिस्ट्रेशन सरेंडर किये थे उनमें से अधिकाँश के पास कोई कर दायित्व सरेंडर करते समय नहीं बचा था ना ही कोई स्टॉक बचा था लेकिन उन सभी को अपना सरेंडर का प्रार्थना पत्र स्वीकार होने के 90 दिन के भीतर एक और फॉर्म GSTR-10 भरना होता है जिसमें अधिकाँश मामलों में कुछ भी नहीं होता है और यह फॉर्म अधिकाँश मामलों में NIL ही होता है और यह फॉर्म नहीं भरने पर आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि लेट फीस कितनी है – 200 रूपये प्रतिदिन जो कि अधिकत्तम रूपये 10000.00 तक हो सकती है .

इस फॉर्म के साथ समस्या क्या है ? पहला तो यह कि अधिकाँश मामलों में यह एक NIL फॉर्म होता है और दूसरा यह कि रजिस्ट्रेशन के सरेंडर का प्रार्थना पत्र के स्वीकार होने की कोई समय सीमा नहीं है कभी तो यह 15 दिन में स्वीकार हो जाता है और कभी – कभी 6 माह तक पेंडिंग रहता है तो इसके बाद के GSTR -10 भरने में कई मामलों में चूक हो जाती है .

इस फॉर्म पर से या तो लेट फीस सरकार हटाये या जिस तरह से सरकार ने ITC-4 हटाया था इसे भी हटा ले या फिर उन डीलर्स के लिए इसे ऐच्छिक कर दें जिन्हें NIL GSTR-10 भरना है . एक अच्छी व्यवस्था यह भी हो सकती है कि इन सभी डीलर्स को बिना लेट फीस के एक बार और मौक़ा दिया जाना चाहिए कि वे अपना GSTR-10 भर सके.

जीएसटी को सिर्फ “लेट फीस टैक्स” बनाने का कोई औचित्य नहीं है और जहाँ यह अव्यवहारिक और अनुचित है वहां इसे हटा लेना चाहिए जिससे डीलर्स का विशवास भी बढेगा .

5. जीएसटी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रारम्भिक रूप से इसकी प्रक्रियाओं का निर्माण इस प्रकार से किया गया था कि यह एक कर एकत्र करने वाला कर नहीं बल्कि कर चोरी रोकने वाला टैक्स बना दिया गया और इस कारण यह जटिल से जटिल होता गया और प्रारम्भ में जो जटिलताएं पैदा हो गई वे अब सरकार के नरम रुख के बाद भी सुलझ नहीं पा रही है . अब इसका हल यही है कि सरकार डीलर्स पर भरोसा रखते हुए कर की चोरी को सख्ती से रोके लेकिन इसके लिए प्रक्रियाओं को इतना जटिल नहीं बनाए कि पालन करना असम्भव हो जाए .

6. जीएसटी नेटवर्क प्रारम्भ से ही डीलर्स की संख्या को देखते हुए इनके बोझ को उठा नहीं पाया है जो इसकी क्षमता है वह इस समय ही काफी नहीं है जब कि सूचना प्रोद्योगिकी की अलिखित नियम यह है कि आज बनाई गयी सुविधा भविष्य को भी ध्यान में रखें और इस नियम की अनदेखी तो हुई है और जो गलत हो गया है उसे उचित ठहराने की कोशिश की जगह इसका हल यह है कि जीएसटी नेटवर्क को अभी और भविष्य के लिए उपयोगी बनाते हुए इसकी क्षमता को बढाया जाए. सुविधाओं के अभाव में जीएसटी नेटवर्क डीलर्स और प्रोफेशनल्स का काफी वक्त जाया करता है .

डीलर्स पर विश्वास और सलीकरण ही जीएसटी की समस्त दुविधाओं का एकमात्र हल है और कम से कम अब जीएसटी और नई दुविधाओं को झेलने की स्तिथी में नहीं है इसलिए यह इनपुट टैक्स के 20 प्रतिशत के प्रावधान को तो फिलहाल स्थगित करना ही होगा.

सरल और सफल जीएसटी की शुभकामनाओं के साथ

  • सुधीर हालाखंडी
  • sudhirhalakhandi@gmail.com

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3 Comments

  1. R K BHATNAGAR says:

    Respected Sudhirji Govt. ko GST ko hi khatam kar dena chahiye.Phir kisiko kuch karne ki jarurat hi nahi hogi. sabhi businessman relax feel karenge.

  2. Keshav Dayal says:

    I appreciate your views. I have posted several articles on this website. In the Article I have pointed out several anomalies which exist in GST Laws.
    Thanks & regards,
    Keshav Dayal

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