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हाल ही में जीएसटी विभाग द्वारा एक नया नियम 37A जो सेक्शन 41 के अंतर्गत लाया गया है ।जिसमें स्पष्ट किया गया है। कि रिवर्सल का क्या आधार होगा तथा रिवर्सल पर करदाता को ब्याज भी जमा करना होगा ।हमें नियम 37A अंतर्गत पिछले वित्तीय वर्ष के लिए 30 सितंबर तक जिस सप्लायर से हमने माल परचेस किया है। उसके द्वारा गत वितीय वर्ष में 3b दाखिल करना जरूरी है। जिसका मूल्यांकन recipient को पोर्टल के माध्यम से जांच करनी होगी ।यदि किसी सप्लायर द्वारा पिछले वित्तीय वर्ष में 3 B दाखिल नहीं की है ।तो खरीदार को तुरंत उससे बात करनी चाहिए। कि आपका 3B दाखिल नहीं है। हम नए नियम 37A के संबंध में एक उदाहरण से इस नए नियम को समझते हैं

उदाहरण

मिस्टर एक्स ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में मिस्टर Y से अक्टूबर 2022 में ₹100000 का माल खरीदा अब हमें जीएसटी पोर्टल पर 30 सितंबर से पूर्व यह चेक करना होगा । कि मिस्टर Y ने अक्टूबर 2022 का 3b दाखिल किया है या नहीं ।क्योंकि पोर्टल पर सप्लायर के 3b से संबंधित Y और N अंकित होता है ।अर्थात Y से यस और N से No ।हमें अपने सप्लायर से 3B दाखिल करानी होगी अन्यथा 30 नवंबर से पूर्व आईटीसी ब्याज समेत लौटने होगी।

जब कोई सप्लायर अपनी जीएसटी R 1  दाखिल करता है ।तो हमारे 2a में वह रिफ्लेक्ट करने लगता है ।लेकिन कई बार सप्लायर द्वारा 3b दाखिल नहीं की जाती है ।अर्थात कर जमा नहीं किया जाता है। अब जीएसटी विभाग ने खरीददार के ऊपर यह burden of proof भी डाल दिया है। कि सप्लायर द्वारा टैक्स भी जमा कर दिया गया है ।तभी खरीदार आईटीसी लेने का हकदार होगा।

इस नए नियम में जो आईटीसी हमारे द्वारा रिवर्स की जाएगी। जिस पर ब्याज भी देना होगा ।उसके रीक्लेम पर कुछ भी नहीं कहा गया है ।अर्थात सप्लायर द्वारा यदि 30 नवंबर के बाद कभी भी अपनी 3B दाखिल की जाती है। तो उसे हम रीक्लेम कर सकते हैं।

खरीददार की जिम्मेदारियां: उपरोक्त समीक्षा से स्पष्ट है। कि आईटीसी के संबंध में अब खरीददार को 30 सितंबर से पहले सप्लायर के 3b पोर्टल पर चेक करने होंगे। और उसे प्रोत्साहित करना होगा।। कि वह अपने 3b दाखिल करें। अन्यथा  उसका दंड खरीददार को टैक्स और ब्याज  के रूप में देना होगा।

आईटीसी पर ब्याज: यदि सप्लायर द्वारा अपनी 3B   30 सितंबर के बाद फाइल की। तो खरीददार को टैक्स और ब्याज का नुकसान होगा।

निष्कर्ष: नया नियम 37A जीएसटी के प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है। इससे खरीददार को अब अपने सप्लायर की टैक्स जमा करने की प्रक्रिया की निगरानी करनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि सप्लायर ने उसके लिए आवश्यक दाखिल की है और टैक्स भी जमा किया है।

ध्यान देने योग्य है कि यह लेखक के निजी विचार हैं और वाणिज्यिक सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

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