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गेहूं , आटा एवं अन्य खाध्य सामग्री पर जो कर पहले ब्रांडेड सामग्री पर लगता था वह अब ब्रांडेड से हटा कर अब सभी प्रकार  की पेकेजड सामग्री , जिसे हम आगे पैक्ड सामग्री कहेंगे पर आ गया है . सरकार के अपने कारण है और इसमें से सबसे बड़ा कारण से उन्होंने बताया वह यह है कि बहुत से ब्रांड निर्माता इस कर का भुगतान नहीं कर रहे थे इसलिए सुधार की जरूरत थी लेकिन इस सुधार से हुआ यह कि इसका बोझ अब उन उपभोक्ता पर भी पड़ जाएगा जो कि आम तौर पर पैक्ड तो सामग्री खरीदते है लेकिन ब्रांडेड सामग्री का इस्तेमाल नहीं खरीदते है .सारा पैक्ड माल ना तो महगा होता है ना ही ब्रांडेड की तरह एक विशेष वर्ग के द्वारा इस्तेमाल होता है .सरकार को इस वर्ग को राहत देनी चाहिए.

1 जुलाई 2017 को जब जीएसटी लागू हुआ था तब यह घोषित किया गया था कि आम आदमी की अनिवार्य खाध्य सामग्री जीएसटी कर से मुक्त रहेगी . वेट में भी यह प्रथा प्राम्भ हो चुकी थी और बहुत से राज्यों में गेंहू , मक्का , बाजरा, ज्वार इत्यादि कर से मुक्त हो चुके थे और जीएसटी में इन्हें कर से मुक्त रखा गया था तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं था.

लेकिन प्रारम्भ से ही जीएसटी में इसके अपवाद भी रखे गए थे और शायद भावना यह थी कि जो उपभोक्ता अच्छी कीमत देकर ब्रांडेड अनिवार्य वस्तुओं का इस्तेमाल करने की क्षमता रखते हैं उनसे कर वसूल कर ही लिया जाये. उदहारण के लिए जो उपभोक्ता ब्रांडेड आटा खरीद सकते हैं, जो कि मंहगा ही होता है तो फिर इन उपभक्ताओं से कर वसूल कर ही लिया जाए और इसका कोई विशेष विरोध भी नहीं हुआ था क्यों कि आम उपभोक्ता से इसका कोई विशेष सम्बन्ध नहीं था .

अब सरकार एवं कानून निर्माताओं और जीएसटी कौंसिल को यह आशंका थी कि ब्रांडेड वस्तुएं बेचेने वाली कम्पनियां इस कर देयता में उपलब्ध या अपनी और से ही किये गए प्रयासों से इस कर का पूरा भुगतान नहीं कर रहे हैं इसलिए इसमें परिवर्तन की जरुरत है तो फिर 18 जुलाई से इसमें परिवर्तन कर 25 किलोग्राम के तक के पहले से   पैक किये गए इन सभी खाध्य पदार्थों पर कर लगा दिया गया है और अब इस कर देयता से हुआ क्या है यह भी देख लीजिये :-

GST on cereals, flour and food items – what should happen now

क्र.संख्या

विवरण
1. 25 किलोग्राम तक की पहले से पैक की गई इस प्रकार की सारी खाध्य सामग्री जिसमें गेंहू और आटा शामिल है करदेयता की श्रेणी में आ गई है . व्यवहारिक रूप से लेबल का इसमें कोई महत्त्व नहीं है यदि 25 किलोग्राम तक यह सामग्री पहले से पैक्ड है तो इस पर लेबल लगा हुआ नहीं भी है तो भी यह कर योग्य होगी . इसकी जानकारी CBIC में 17 जुलाई 2022 को जारी FAQs में भी दी है . इसका कारण यह है कि 25 किलोग्राम तक के पहले से  पैक्ड है तो Legal Metrology Act 2009 इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के तहत लेबल होना जरुरी है और यदि इस कानून का उल्लंघन करते हुए किसी डीलर ने Label नहीं लगाया है तो भी यह पहले से पैक्ड सामग्री कर योग्य हो जायेगी .

लेकिन 25 किलोग्राम से अधिक की पहले से पैक्ड सामग्री चाहे वह ब्रांडेड ही क्यों नहीं हो करमुक्त रहेगी . यहाँ आप ध्यान दें कि 25 किलोग्राम से अधिक की पहले से पैक की गई ब्रांडेड सामग्री कर योग्य थी लेकिन अब नए कर कानून के तहत कर मुक्त हो गई है .

2. यदि यह सामग्री खुली बेचीं जाती है चाहे मात्रा कितनी भी हो कर मुक्त रहेगी . खुले का अर्थ है कि विक्रेता के पास के पास 100 किलोग्राम माल है और वह इसे खोल कर ग्राहकों को 1 किलो , 2 किलो इत्यादी मात्रा में तौल कर देता है तो यह कर मुक्त रहेगा .

एक बात और भी नोट करिए कि यदि विक्रेता ने ग्राहक के सामने ही तौल कर पैक किया है अर्थात यह एक निर्धारित मात्रा में पहले से पैक किया हुआ नहीं है तो यह 25 किलोग्राम से कम होने पर भी करमुक्त होगा .

अब देखिये कि पहले केवल ब्रांडेड सामग्री के कर योग्य होने का ही मामला था लेकिन अब यह पहले से पैक्ड सामग्री पर चला गया है और आप देखेंगे कि कम आय से उपभोक्ता पर भी इस परिवर्तन का प्रभाव चला गया है. देश के छोटे -छोटे शहरों में बहुत सी आटा मिले है जो 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के पैकिंग में आटा पैक कर बेचते हैं क्यों कि छोटे शहरो में एक बहुत बड़ा वर्ग इसी पैकिंग में ही यह सामग्री खरीदता है और अब यह सारी पैकिंग कर योग्य हो गई है .

इस समय आप हर जगह देखंगे कि खाध्य सामग्री पैक्ड ही बेचीं जाती है और ये पैक अधिकत्तर 1 किलो , 2 किलो और 5 किलो की पैकिंग में होती है और यह सामग्री वह उपभोक्ता भी खरीदते हैं जो कि अपनी आर्थिक स्तिथि के कारण  ब्रांडेड नहीं ख़रीदा सकते हैं . पैक्ड सामग्री  इस खरीद के दो कारण होते हैं एक तो स्वास्थ और दूसरा सुविधा और अब यह प्रवृति लगातार बढ़ती जा रही है .

आप देखिये जो कर ब्रांडेड सामग्री पर से प्रारम्भ हुआ था और वह कर सरकार को वहां से अपनी उम्मीद के अनुसार वसुल नहीं हुआ तो इसका परिणाम यह हुआ कि अब यह कर आम उपभोक्ता के द्वारा इस्तेमाल होने वाली पैक्ड सामग्री पर लग गया है और इसका  दूसरा प्रभाव यह हुआ कि 25 किलोग्राम के अधिक की ब्रांडेड सामग्री कर मुक्त हो गई है .

आइये देखें कि ब्रांडेड सामग्री पर जो 1 जुलाई 2017 से कर लगया गया था उसे लेकर हमारे कानून निर्माताओं को आशंका क्या थी . इसे उन्होंने अपने अधिकृत ट्विटर के जरिये व्यक्त भी किया है :-

इसे ध्यान में रखते हुए, जब जीएसटी लागू किया गया था, तो ब्रांडेड अनाज, दाल, आटे पर 5% की जीएसटी दर लागू की गई थी। बाद में इसे केवल उन्हीं वस्तुओं पर कर लगाने के लिए संशोधित किया गया जो पंजीकृत ब्रांड या ब्रांड के तहत बेची जाती थीं: हालांकि, जल्द ही इस प्रावधान का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग, प्रतिष्ठित निर्माताओं और ब्रांड मालिकों द्वारा देखा गया और धीरे-धीरे इन वस्तुओं से जीएसटी राजस्व में काफी गिरावट आई  इसका उन आपूर्तिकर्ताओं और उद्योग संघों द्वारा विरोध किया गया जो ब्रांडेड सामानों पर कर का भुगतान कर रहे थे: उन्होंने इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए सभी पैकेज्ड वस्तुओं पर समान रूप से जीएसटी लगाने के लिए सरकार को पत्र लिखा। कर में इस बड़े पैमाने पर चोरी को राज्यों द्वारा भी देखा गया.

ये हमारे कानून निर्माताओं का इस कर को परिवर्तित रूप से लगाने का अपना पक्ष है लेकिन ऐसा लगता है कि कर के इस लीकेज को रोकने के लिए जो उपाय किये गए उन्हें करते समय छोटे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बाजार की वास्तविक स्तिथि की जानकारी का अभाव था और इस परिवर्तन का एक प्रभाव जो आम उपभोक्ता पर जो हुआ है वह आपको ऊपर बताया ही है .

जीएसटी एक ऐसा कर है जो एक बहुत बड़े परिवर्तन के साथ भारत में लागू किया गया था और इस कर में इस तरह की विसंगतियां पहले भी हुई है जो कि स्वाभाविक भी है और  इसमें हमेशा सुधार की हमेशा गुंजाईश रहती है और सरकार ने उपभोक्ताओं की परेशानी देखते हुए पहले भी परिवर्तन किये है तो इस समय भी सरकार को छोटे शहरो और ग्रामीण इलाकों के आम उपभोक्ताओं पर इस कर के दुष्प्रभाव को देखते हुए राहत देनी चाहिए.

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