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इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया के लगभग सभी विकसित देश आर्थिक सुस्ती और मंहगाई से परेशान हैं और इसलिए अपने घरेलू सेक्टर पर तबज्जों दे रहे हैं, जिस कारण से विकासशील देशों से माल कम खरीद रहे हैं और ऐसे देश ढूंढ रहे हैं जो इनका माल खपा सकें. यही कारण है कि अमेरिका और यूरोप भारत को बड़ी मंडी के रूप में देख रहे हैं और माल खपाने का जरिया.

भारत सरकार द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश के कारण आर्थिक सुस्ती का असर फिलहाल नहीं दिख रहा है और बाजार में मांग बनी हुई है. लेकिन कब तक – जब तक इंन्फ्रा में निवेश जारी रहेगा और लोगों को रोजगार एवं व्यापार को मांग मिलती रहेगी. इसलिए हमारे देश और बाजार को विदेशी निवेश मिलता रहे तो हम बिना किसी असर के इस आर्थिक सुस्ती के दौर को निकाल लेंगे. यही कारण है कि प्रधानमंत्री विदेशों के चक्कर लगा रहे हैं और विदेशी अपना माल खपाने के उद्देश्य से सम्मानित किए जा रहे हैं. मतलब साफ है सबके लिए – बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया.

सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा हाल में ही वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किया गया जो हमारे देश को न केवल आर्थिक सुस्ती का संकेत देता है बल्कि यह भी बताता है कि उचित उपाय नहीं किए गए तो हमारी अर्थव्यवस्था पर सुस्ती का दुष्प्रभाव पड़ सकता है.

क्या कहते हैं ये आंकड़े:

1. जून 2023 के दौरान देश के एक्सपोर्ट में 22% की भारी गिरावट दर्ज की गई है.

2. ग्लोबल डिमांड में कमी के कारण जून 2023 में देश का निर्यात पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 22 फीसदी घटकर 32.97 अरब डॉलर रह गया.

3. यह पिछले तीन साल के दौरान देश के निर्यात का सबसे निचला स्तर है.

4. इससे पहले मई 2020 में कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान देश के एक्सपोर्ट में 36.47 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी.

5. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका और यूरोप समेत तमाम अंतराष्ट्रीय स्तर पर डिमांड घटने के कारण ही निर्यात में कमी आई है.

6  जून 2023 के दौरान देश में होने वाला आयात भी 17.48 फीसदी घटकर 53.10 अरब डॉलर रह गया.

7. एक्सपोर्ट के साथ ही साथ इंपोर्ट में भी गिरावट आने की वजह से देश का व्यापार घाटा जून 2023 में घटकर 20.3 अरब डॉलर पर आ गया, जबकि जून 2022 में यह 22.07 अरब डॉलर रहा था.

8. वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2023 के दौरान भी देश का व्यापार घाटा 7.9 फीसदी सुधरकर 57.6 अरब डॉलर रह गया, जबकि पिछले साल की इसी अवधि के दौरान यह 62.6 अरब डॉलर था.

9.अमेरिका और यूरोप जैसी बड़े देशों की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने के साथ ही महंगाई से जुड़े दबाव भी देखने को मिल रहे हैं. इसके चलते आर्थिक सुस्ती के बावजूद अमीर देश सख्त मॉनेटरी पॉलिसी अपना रहे हैं, जिससे मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेड पर बुरा असर पड़ रहा है.

10. एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल्स आने वाले महीनों के दौरान डिमांड में सुधार आने की उम्मीद कर रही हैं. ऐसे में जुलाई के महीने से एक्सपोर्ट डिमांड बढ़ने की संभावना हो सकती है.

11. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमारी यानी अप्रैल-जून 2023 के दौरान देश का एक्सपोर्ट कुल 15.13 फीसदी की गिरावट के साथ 102.68 अरब डॉलर रह गया. इस दौरान देश का इंपोर्ट भी 12.67 प्रतिशत घटकर 160.28 अरब डॉलर पर आ गया.

12. जून के महीने में ऑयल इंपोर्ट 33.8 फीसदी घटकर 12.54 अरब डॉलर हो गया, जबकि अप्रैल-जून तिमाही में यह 18.52 प्रतिशत घटकर 43.4 अरब डॉलर रहा.

13. हालांकि जून में सोने का इंपोर्ट 82.38 फीसदी बढ़कर करीब 5 अरब डॉलर पर जा पहुंचा, जबकि अप्रैल-जून 2023 के तीन महीनों के दौरान यह 7.54 फीसदी घटकर 9.7 अरब डॉलर रहा.

14. वर्ल्ड बैंक की जून 2023 की ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की अर्थव्यवस्था में पिछले साल 3.1 फीसदी की रफ्तार से ग्रोथ हुई थी, जो इस साल घटकर 2.1 फीसदी पर आने की आशंका है.

साफ है भारत सरकार के आंकड़े गवाही दे रहे हैं बढ़ती आर्थिक सुस्ती और मंहगाई की ओर. जहां तेल की मांग में कमी व्यापारिक लेन-देन में कमी दर्शाता है तो दूसरी ओर सोने का बढ़ता आयात लोगों की भविष्य में बुरे दौर से निपटने की मानसिकता दिखलाता है.

क्या किया जाना चाहिए:

1. सोने के आयात पर प्रतिबंध लगाकर सरकार ने पैसे की जमाखोरी सोने के माध्यम से रोकने का प्रयास किया है, जो जारी रहना चाहिए.

2. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा मिलें और इनके दामों में कमी आए – यह प्रयास होना चाहिए.

3. छोटे और लघु उद्योगों को आर्थिक सहायता मिलती रहें और पैसे की तरलता बनी रहें, इस पर काम करने की जरूरत है ताकि समग्र विकास की ओर हम बढ़ सकें.

4. विदेशी निवेश जिन क्षेत्रों में आ रहा है खासकर टेक्नोलॉजी सेक्टर में टैक्स प्रक्रिया को सरल एवं अनुपालनों में कमी करनी होगी.

5. इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश जारी रहें, इसकी प्लानिंग करनी होगी.

6. हमारे संसाधन हमारी जरूरत पूरी कर सकें ताकि निर्यात की कमी और आयात पर निर्भरता खत्म की जा सकें.

7. योजनाओं के क्रियान्वयन में कमी और देरी पर सख्ती से कार्यवाही हो.

8. पैसे बांटने और मुफ्तखोरी की योजनाओं पर लगाम कसी जावें.

9. किसी भी तरह के चंदे की जानकारी और उसके केवाइसी को सुनिश्चित हर किसी के लिए करना होगा.

10. सामाजिक लागत और उपयोगिता का आंकलन सही ढंग से करना होगा ताकि पैसे का सदुपयोग हो सकें.

इसमें कोई शक नहीं कि केन्द्र सरकार के प्रयासों से हमारी अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक सुस्ती का असर ज्यादा नहीं पड़ पाया है और यही कारण से विदेशों में भारत की आर्थिक छवि में सुधार देखा जा रहा है एवं दूसरे देश हमसे व्यापार करने इच्छुक रहते हैं. लेकिन वर्ल्ड बैंक की आंशका बढ़ती वैश्विक सुस्ती का संकेत देती है, ऐसे में देश का नीति निर्धारण, योजनाएं और आर्थिक फैसले सुधारों के मद्देनजर होने चाहिए और चलने चाहिए. आगामी चुनावों को देखते हुए क्या सरकार कठोर आर्थिक दृष्टिकोण पर टिक पाएगी, यह देखना होगा क्योंकि लोक लुभावन घोषणाएं और फैसले इस वैश्विक सुस्ती के अंतराल में देश की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव डाल सकते हैं.

सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर ९८२६१४४९६५

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