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चाहे बैंक हो या सरकार, हमारे देश की यही विडम्बना रही है कि पहले बड़े बड़े लोगों के पीछे अपने साथ जोड़ने के लिए हाथ पांव जोड़कर पीछे पड़े रहते हैं, उनका रुतबा, उनका दिखावा देखकर खुश होते हैं, उन्हें मनचाहा लोन देते हैं, उनके लेनदेन के बारे में न जानकारी लेते हैं और न ही रिसर्च करते हैं.

बस करते हैं तो जी हुजुरी कि हमारे बैंक से जुड़ जाए, लोन ले लें. जब यही बड़े बड़े लोग लोन डिफाल्ट करते हैं, भाग जाते हैं तो फिर उन पर शिकायत करते हैं, एफआईआर करते हैं, जांच बैठाते है, लेकिन तब तक पैसे डूब चुके होते हैं. और जांच में व्यापक स्तर पर सालों से किया जा रहा फर्जीवाड़ा पाया जाता है.

तो क्या बैंकों के प्रतिनिधि इतने सालों से सो रहे होते हैं, आखिर किस आधार पर इनको लोन दिया गया और बैंकों के अधिकारी, इन कंपनियों के बोर्ड में होने के बावजूद फर्जीवाड़ा होता रहा. इन बैंकों और सरकार की नाक के नीचे खेल होता रहा और सरकार तब जागी जब लोन डिफाल्ट हुआ. कानून का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ इन लोगों को बचाने के लिए और मामला रफादफा करने के लिए ही होता है.

देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले दीवान हाउसिंग यानि डीएचएफएल की भी बस यही कहानी है. सन् 2010 से 2018 तक इसके प्रमोटरों ने खुलकर फर्जीवाड़ा किया और हमारी सरकार इन्हें हाउसिंग सेक्टर में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए इनाम देते रहे, बैंक इन्हें लोन बांटता रहा और तब इन्हें खुले आम किए जा रहा फर्जीवाड़ा भी अच्छा लगता रहा और जब 2019 में कंपनी ने डिफाल्ट किया तो सब खटकने लगा और जनता को दिखाने के लिए पेपरबाजी और कार्यवाही, लेकिन जनता के डूबे पैसे कौन लोटाएगा, कैसे बैंक खड़े हो पाएंगे- इन प्रश्नों से शायद बैंक को या सरकार को कोई मतलब नहीं, बस इंतजार अगले घोटाले का. बैंकों का काम तो बस लोन बांटना है, इनके अफसरों में इतनी अक्ल नहीं कि यह देख सके कि लोन का सही इस्तेमाल हो रहा है कि नहीं और समय रहते फर्जीवाड़ा पहचान सकें और जनता का पैसा डूबने से बचा सकें.

यदि हम इस घोटाले की प्रक्रिया और लेनदेन को समझे तो हम पाएंगे कि बैंकों और सरकार के साथ मिलकर देश को लूटा गया:

1. सबसे बड़ा और प्रमुख कारण बैंकों द्वारा उनकी आंखों के सामने चल रहा फर्जीवाड़ा को नजरअंदाज करना और लोन बांटना और बाद में यह कहना की कागज़ सही नहीं थे, फंड का डायवर्सन किया गया- तो आप क्या बैंकों को लुटवाने के लिए बैठे हो.

2. दिवालिया कानून जो कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया एक व्यापक स्तर पर फर्जीवाड़े का हथियार बनता जा रहा है. जब कंपनी को आरबीआई दिवालीया कानून में लेकर गई तो इसका सेटलमेंट पिरामल ग्रुप की सहमति पर 91000 करोड़ के विपरीत मात्र 37000 करोड़ रुपये में हुआ. ब्याज तो भूल जायो, सिर्फ मूलधन मिलना तय हुआ वो भी 70% कट के साथ. जैसे एसबीआई को 10000 करोड़ के एवज में मिलेंगे 3600 करोड़ रुपये, कंपनी के एफडीआर धारक को 200 करोड़ के मिलेंगे 69 करोड़, आदि.

यह कानून लाया गया था कंपनी और उसे उधार देने वालों की रक्षा के लिए, लेकिन कानून के अन्तर्गत 20-30% देकर डिफाल्टर समाज में खुलेआम घूम रहे हैं. युनियन बैंक और एफडीआर धारक को कंपनी लां ट्रिब्यूनल द्वारा यह सेटलमेंट मान्य नहीं लगा और उन्होंने इस फर्जीवाड़े की एफआईआर और शिकायत फरवरी 22 को सीबीआई में करी.

इस शिकायत के आधार पर सीबीआई ने व्यापक स्तर पर इसे घोटाला मानते हुए देश भर में जांच शुरू कर दी है और अब इससे यह तो तय हो गया कि दिवालिया कानून मात्र एक फर्जीवाड़े का हथियार बन कर रह गया है.

3. कुछ साल पहले तक कंपनी का विज्ञापन करते आपने बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान को जरूर देखा होगा। जब कोई बड़ा सितारा हमें किसी कंपनी, पेस्ट, तेल या सेवाओं के बारे में बताता है तो हम उस कंपनी पर 100 प्रतिशत भरोसा करते हैं। कई दशकों से ऐसा होता आ रहा है। लेकिन यह कंपनी तो फर्जीवाड़े में मास्टर निकली।

कंपनी ने प्रधानमंत्री आवास योजना की मदद से गरीबों को घर देने के नाम पर सब्सिडी डकार ली। इस प्राइवेट फाइनेंस कंपनी ने 80 हजार फर्जी अकाउंट खोले, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के फर्जी लोगों को खड़ा किया, उन्हें लोन दिया और सरकार से मिली रियायत खा गए।

बैंकों ने दो किस्तों में करीब 1900 करोड़ की छूट वधावन ब्रदर्स की कंपनी को ट्रांसफर कर दी। मतलब कागजों में बना गरीबों का घर और हकीकत में सब्सिडी पहुंच गई वधावन भाइयों के पास। इसे 14 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया गया। यस बैंक के साथ मिलकर भी कंपनी ने अंदरखाने भारी उलटफेर किया है।

4. शैल कंपनियों का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल 20 जून को मामला दर्ज होने के बाद सामने आया.

सीबीआई के 50 से अधिक अधिकारियों की टीम ने बुधवार को मुंबई में एफआईआर-सूचीबद्ध आरोपियों से संबंधित 12 परिसरों पर समन्वित तलाशी ली, जिसमें अमरेलिस रियल्टर्स के सुधाकर शेट्टी और आठ अन्य बिल्डर और इनकी कंपनियां शामिल हैं। यह सभी फर्जी शैल कंपनियां हैं जिनका इस्तेमाल लोन बांटने के लिए किया गया.

यह कार्रवाई 17-सदस्यीय ऋणदाता संघ के लीड बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) की शिकायत पर हुई, जिसने 2010 और 2018 के बीच 42,871 करोड़ रुपये की ऋण सुविधाओं का विस्तार किया था।

5. डीएचएफएल खाता बही के ऑडिट से पता चला है कि कंपनी ने कथित तौर पर वित्तीय अनियमितताएं कीं, धन को डायवर्ट किया, पुस्तकों को गढ़ा, जनता के पैसे का उपयोग करके “कपिल और धीरज वधावन के लिए संपत्ति बनाने” के लिए धन का चक्कर लगाया।

दोनों अपने खिलाफ पिछले धोखाधड़ी के मामलों में न्यायिक हिरासत में हैं।

डीएचएफएल ऋण खातों को ऋणदाता बैंकों द्वारा अलग-अलग समय पर गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित किया गया था।

जब जनवरी 2019 में डीएचएफएल जांच की चपेट में आ गया था, तब मीडिया में धन की हेराफेरी के आरोप सामने आए थे, ऋणदाता बैंकों ने 1 फरवरी, 2019 को एक बैठक की और केपीएमजी को 1 अप्रैल, 2019 से डीएचएफएल का “विशेष समीक्षा ऑडिट” करने के लिए नियुक्त किया।

6. बैंकों ने 18 अक्टूबर, 2019 को कपिल और धीरज वधावन के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर भी जारी किया, ताकि उन्हें देश छोड़ने से रोका जा सके।

7. केपीएमजी ने अपने ऑडिट में, डीएचएफएल और उसके निदेशकों से संबंधित और परस्पर जुड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों को ऋण और अग्रिम की आड़ में धन की लाल झंडी दिखा दी।

बहीखातों की जांच से पता चला है कि डीएचएफएल प्रमोटरों के साथ समानता रखने वाली 66 संस्थाओं को 29,100 करोड़ रुपये का वितरण किया गया था, जिसमें से 29,849 करोड़ रुपये बकाया थे।

8. ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों के अधिकांश लेनदेन भूमि और संपत्तियों में निवेश के रूप में थे।

यह पता चला है कि डीएचएफएल ने कई मामलों में, एक महीने के भीतर धनराशि वितरित की, शेट्टी की संस्थाओं में निवेश के लिए धन को डायवर्ट किया, ऋण एनपीए वर्गीकरण के बिना रोलओवर किया गया, सैकड़ों करोड़ का पुनर्भुगतान बैंक विवरणों में अप्राप्य था और मूलधन पर अनुचित अधिस्थगन और ब्याज दिया गया।

9. डीएचएफएल खातों में एक और बड़ा बकाया 1 अप्रैल, 2015 से 31 दिसंबर, 2018 के बीच 65 संस्थाओं को दिए गए 24,595 करोड़ रुपये के ऋण और अग्रिम से उत्पन्न 11,909 करोड़ रुपये था।

10. डीएचएफएल और उसके प्रमोटरों ने भी प्रोजेक्ट फाइनेंस के रूप में 14,000 करोड़ रुपये का वितरण किया, लेकिन उनकी किताबों में खुदरा ऋण के समान ही दर्शाया गया है।

इससे 1,81,664 झूठे और गैर-मौजूद खुदरा ऋणों के बढ़े हुए खुदरा ऋण पोर्टफोलियो का निर्माण हुआ, जिसमें कुल 14,095 करोड़ रुपये बकाया थे।

11. फर्जी किताबों जिसे “बांद्रा बुक्स” के रूप में संदर्भित ऋणों को एक अलग डेटाबेस में रखा गया था और बाद में अन्य बड़े परियोजना ऋण (ओएलपीएल) के साथ विलय कर दिया गया था।

यह पता चला था कि ओएलपीएल श्रेणी को बड़े पैमाने पर 14,000 करोड़ रुपये के पूर्वोक्त गैर-मौजूद खुदरा ऋणों से तराशा गया था, जिसमें से 11,000 करोड़ रुपये ओएलपीएल ऋणों में स्थानांतरित कर दिए गए थे और 3,018 करोड़ रुपये खुदरा पोर्टफोलियो के एक हिस्से के रूप में असुरक्षित के रूप में बनाए रखा गया था।

12. डीएचएफएल, उसके निदेशकों और अधिकारियों ने झूठे आश्वासन देते रहे कि वे आवास ऋण के पूल के प्रतिभूतिकरण, परियोजना ऋण, कंपनी में प्रमोटरों की हिस्सेदारी के विनिवेश जैसे विभिन्न माध्यमों से कंपनी का लोन चुकाने की कोशिश कर रहे थे।

बैंक ने आरोप लगाया कि कपिल वधावन ने यह कहना जारी रखा कि डीएचएफएल के पास छह महीने की नकदी तरलता है और सभी पुनर्भुगतान दायित्वों पर विचार करने के बाद भी नकद अधिशेष रहेगा।

“झूठे आश्वासन” वाले ऋणदाताओं के बाद, डीएचएफएल ने मई 2019 में ऋण की शर्तों के लिए ब्याज भुगतान दायित्वों में देरी की, जो उसके बाद जारी रहा और खाते को गैर-निष्पादित संपत्ति घोषित कर दिया गया।

*उपरोक्त बिन्दुओं ने साफ कर दिया है कि जिस स्तर पर कंपनी द्वारा सालों से फर्जीवाड़ा किया जा रहा था उसके लिए अलग से आडिट होने पर ही पकड़ में आए, ऐसा कुछ भी नहीं था.*

*साफ दिख रहा था और बैंक आंख मूंदे हुए थे. और अब अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए सहारा लिया जा रहा है कि कंपनी ने गलत किताबें बनाई, झूठे आश्वासन दिए, फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल किया, विदेशों में प्रापर्टी और सट्टे में पैसे लगाए जैसे श्रीलंका में क्रिकेट टीम खरीदना, अंडरवर्ल्ड डान दाउद और इकबाल मिर्ची के साथ उनके व्यापार में पैसे लगाना और फंड डायवर्ट करना, आदि. तो क्या यह जांच के बाद या डिफाल्ट करने पर ही समझ आएगा.*

*जनता के पैसे लूटने के पीछे और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ बैंक प्रबंधन खुद जिम्मेदार और जबाबदार है जो आज तक समझ नहीं आया कि किस आधार पर लोन बांटता है और लोन बांटने के बाद सो जाता है और तब ही जागता है जब सब उजड़ जाता है. अब भगवान ही मालिक है ऐसी बैंकिंग प्रणाली और सरकारी नीतियों का.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*

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