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अपनी स्वेच्छा से अपनी स्वयं की सम्पति को अपनी मृत्यु के बाद बांटने का सबसे उचित तरीका तो वसीयत ही है जिससे होता यह है कि इंसान अपने जीवन काल में ही अपनी इच्छानुसार यह लिख जाता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी सम्पति किस तरह से और किसे मिलेगी. वसीयत किसी एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके वारिसों के मध्य विवादों को समाप्त करवाने के लिए भी जरुरी है. इसके लिए ना सिर्फ वसीयत होनी चाहिए बल्कि एक स्पष्ट वसीयत होनी चाहिए ताकि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके वारिसों में किसी भी प्रकार का विवाद नहीं रहे. बिना वसीयत किये हुए यदि कोई व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो फिर इस सम्बन्ध में कानून होते हुए भी उसकी विरासत का बँटवारा विवादरहित नहीं रहता है .

देखिये वसीयत क्यों जरुरी है उसे एक उदहारण से समझने का प्रयास करते हैं मान लीजिये किसी व्यक्ति के दो पुत्र हैं और उस व्यक्ति के पास दो मकान है तो यह तय है कि दोनों पुत्रों को एक -एक मकान मिल जाएगा इसलिए आम सोच यह है कि ऐसे में वसीयत की कहाँ जरुरत है . देखिये उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद कौनसा मकान किस पुत्र को मिलेगा इस पर भी विवाद हो सकता है और होता ही है . इसके साथ ही कौनसे जेवर किसको मिलेंगे , कौनसे शेयर और फिक्स्ड डिपाजिट किसको मिलना है ये बंटवारा कैसे होगा ? इसलिए अपनी विरासत को भविष्य के किसी भी झगडे और विवाद से बचाने ले किये वसीयत एक जरुरी कार्य है जो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कर लेना चाहिए.

लेकिन जो सब जरुरी है क्या वह हम यह सब कर पाते हैं या निर्विवाद रूप से वह सब जगह हो रहा है ? ऐसा नहीं है तो आइये आज जाने कि कोई व्यक्ति बिना वसीयत किये मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो फिर उसकी विरासत किस तरह बंटती है ताकि आप समझ सकें कि वसीयत क्यों जरुरी है और वसीयत का महत्त्व क्या है.

देखिये यहाँ फिलहाल हम हिन्दू धर्म के तहत आने वाले व्यक्ति की बात कर रहें हैं लेकिन इसके तहत जैन , सिख और बोद्ध भी आते हैं अर्थात यह नियम इनपर भी लागू होता है तो आइये देखें कि कोई हिदू, जैन , सिख अथवा बोद्ध व्यक्ति बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसकी विरासत किस तरह से कानून के अनुसार बंटती है .इसके लिए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन विधेयक 2005 में उनकी विरासत के बंटवारे के कानून के लिए प्रावधान बनाये गए है.

हिन्दू कानून में दो श्रेणी के उत्तराधिकारी होते हैं एक तो श्रेणी एक के उत्तराधिकारी और दूसरे श्रेणी 2 के उत्तराधिकारी होते हैं आइये देखें इन उत्तराधिकारियों का महत्त्व आपकी विरासत को लेकर क्या है जब कि आपने कोई वसीयत नही की है .यदि एक हिन्दू बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसकी विरासत उसके श्रेणी 1 के उत्तराधिकारियों को मिलती है और यदि इस क्लास के उत्तराधिकारी है ही नहीं तो फिर क्लास 2 के उत्तराधिकारियों को यह विरासत मिलती है .

आइये क्लास 1 के उत्तराधिकारी कौन -कौन है . इसमें मृतक का बेटा , उसकी बेटी , उसकी पत्नी , उसकी माता , उसके मृत बेटे की पत्नी , पुत्र एवं पुत्रियाँ, एवं उसकी मृत बेटी के पुत्र एवं पुत्रियाँ इत्यादि . ये लिस्ट अभी और भी लम्बी है जो इस काम को और भी मुश्किल बना देती है. पूरी लिस्ट देखने के लिए आप हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 6 में क्लास का वर्गीकरण देखें जिसमें क्लास -1 एवं क्लास -2 का वर्गीकरण बताया गया है .

आइये एक उदाहरण के जरिये समझने का प्रयास करें – एक व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत किये हो गई है और उसके वारिसों के रूप में उसकी माता है , पत्नी है , एक बेटा है और दो बच्चे उसकी मृत बेटी के हैं तो अब इस विरासत के चार हिस्से होंगे . एक चौथाई हिस्सा मृतक की माता को , एक चौथाई हिस्सा मृतक की पत्नी को , एक चौथाई हिस्सा मृतक के बेटे को और बकाया एक चौथाई हिस्से में से आधा – आधा मृतक की स्वर्गीय बेटी के दोनों बच्चो को मिलेगा.

अब यदि किसी भी व्यक्ति के क्लास 1 का कोई उत्तराधिकारी ही नहीं हो तो फिर उसकी विरासत क्लास 2 के उत्तराधिकारियों में बंटेगी. अब आइये अब देख लीजिये क्लास 2 के उत्तराधिकारियों कौन -कौन है. इस क्लास 2 में उसके पिता, उसके बेटे/बेटी का बेटा , उसके बेटे/बेटी की बेटी , उसके भाई , उसकी बहन , उसकी बहन का बेटा , उसकी बहन की बेटी , भाई का बेटा , भाई की बेटी इत्यादि . इस लिस्ट को भी हिदू उत्तराधिकार कानून की धारा 6 में बताया गया है .

ऊपर एक उदाहरण में आपने देखा कि मृतक के क्लास -1 के उत्तराधिकारी जीवित थे इसलिए बंटवारा उसी हिसाब से हुआ लेकिन यदि क्लास -1 के उत्तराधिकारी नहीं हो जैसा कि एक ऐसा अविवाहित पुरुष जिसकी माता की भी मृत्यु हो चुकी हो तो फिर उसका क्लास -1 का कोई वारिस ही ज़िंदा नहीं है तब फिर आपको क्लास-2 के उत्तराधिकारी देखने होंगे.

आइये देखें कि एक मृतक जो कि अविवाहित है की माता कि मृत्यु हो चुकी है तो अब उसकी सम्पति किस प्रकार से बंटेगी . उसका एक भाई है , दूसरे भाई की मृत्यु हो चुकी है जिसके दो पुत्र हैं , और उसकी एक बहिन है . अब उसकी विरासत के तीन हिस्से होंगे एक तिहाई हिस्सा उसके भाई को, एक तिहाई हिस्सा बहिन को और एक तिहाई हिस्से का आधा -आधा उसके मृत भाई के दोनों बच्चो को मिलेगा.

आइये अब एक विशेष बात नोट कीजिये . यदि किसी मृतक के ना तो क्लास 1 के उत्तराधिकारी है और ना ही क्लास 2 के उत्तराधिकारी है तो फिर उसकी विरासत उसके किसी भी दूर के रिश्तेदार को चली जायगी जिससे उसका खून का रिश्ता साबित होता हो और यह भी नहीं होगा तो यह विरासत सरकार को चले जायगी.

देखिये आप कि बिना वसीयत के किसी व्यक्ति की म्रत्यु हो जाने पर उसकी विरासत किस तरह से बंटती है .

आप अच्छी तरह से देखेंगे तो पायेंगे कि कुछ जगह पर क्लास वन एक उत्ताधिकारी होते ही नहीं है जैसे मरने वाले के अविवाहित होने की स्तिथि में और ऐसे में विरासत हिन्दू कानून के तहत बांटने पर भी विवाद से परे नहीं रहती है क्यों कि वहां क्लास 2 के उत्तराधिकारियों का दायरा काफी विस्तृत हो जाता है और मृतक निश्चित रूप से अपने म्रत्यु के बाद विवाद ही छोड़ जाता है.

मान लीजिये किसी व्यक्ति के पास एक ही सम्पति है तो फिर हिन्दू उत्तराधिकार कानून के हिसाब से आप उसे कानूनन तो बाँट सकते है लेकिन क्या यह बिना विवाद के रहेगी. किसी उत्तराधिकारी के लिए इस सम्पति को लेकर कोई और इच्छा हो या सारे उत्तराधिकारियों में आपसे सहमती हो या नहीं हो तो फिर यह सम्पति सिर्फ विवादों में ही घिरी रहती है.

यह भी हो सकता है आप अपनी सम्पति किसी विशेष व्यक्ति को देना चाहते हैं लेकिन यह केवल एक वसीयत के द्वारा ही संभव है जिससे आप अपनी सम्पति पर से हिन्दू उत्तराधिकार के कानून का प्रभाव समाप्त करते हुए उसे अपनी मर्जी और इच्छा के अनुसार बाँट सकते हैं . आप अपने परिवार , अपने उत्तराधिकार में किसी ख़ास व्यक्ति विशेष को अथवा व्यक्तियों को अथवा अपने परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति को अपनी पूरी या कुछ सम्पति देना चाहें अथवा अपने बाद अपनी विरासत को विवादों से बचाना चाहते हैं तो आपको इसके लिए अपने जीवन काल में ही वसीयत करनी होगी वौर यही सबसे अंतिम और उचित विकल्प है .

एक बात और है जो कई बार विवाद का विषय बनती है और वह है फिक्स्ड डिपाजिट में किसी को नॉमिनी बना देना और सामान्य रूप से यह मान लिया जाता है कि नॉमिनी ही किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस जमा राशि का मालिक हो जाता है लेकिन कानूनन ऐसा नहीं है . नॉमिनी का काम तो बैंक से पैसा लेना है और मृत व्यक्ति के कानूनी वारिसों तक उसे पंहुचाना है तो यहाँ यह ध्यान रखें कि यदि आप अपनी फिक्स्ड डिपाजिट की यह राशि नॉमिनी को देना चाहते हैं तो उसके लिए फिक्स्ड डिपाजिट की वसीयत भी उसके नाम कर दें वरना केवल नोमिनेशन से आपका यह राशि का मालिकाना हक़ नामिनी को आपकी मृत्यु के बाद भी हस्तांतरित नहीं होगा और आपके वारिसों का हक़ बना रहेगा.

यह बहुत ही विवादस्पद स्तिथि है और हो सकता है कि कहीं कानूनी या तकनीकी पक्ष छूट गया हो तो भी यहाँ आपको समझ आ गया होगा कि इन सभी से बचने का सबसे उचित तरीका है कि आप अपनी वसीयत लिख दें.

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