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सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि अधिवक्ताओं के सत्यापन की प्रक्रिया विधिवत की जाए। जिसके लिए आवश्यक दिशानिर्देश और निर्देश जारी करने के लिए एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ का गठन किया।

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो लोग वकील होने का दावा करते हैं ।लेकिन उनके पास कानूनी पेशे में वैध प्रवेश के लिए उचित शैक्षणिक योग्यता नहीं है। वे नागरिकों को न्याय प्रशासन के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

 भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ ने अजय शंकर श्रीवास्तव बनाम बार काउंसिल आफ इंडिया और अन्य रिट पिटीशन संख्या 82 /2023 दिनांक 10 अप्रैल 2023 में यह टिप्पणी करते हुए कहा ।कि यह देश के प्रत्येक वास्तविक वकील का कर्तव्य है। कि वह यह सुनिश्चित करे। कि वे बार काउंसिल के साथ सहयोग करें। BCI जो यह सुनिश्चित करना चाहिए । कि अधिवक्ताओं के प्रैक्टिस प्रमाणपत्रों को उनके अंतर्निहित शैक्षिक डिग्री प्रमाणपत्रों के साथ विधिवत सत्यापित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिवक्ता अजय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें सभी राज्य बार काउंसिलों को दिए गए बीसीआई के आदेश को चुनौती दी गई थी।, जिसका उद्देश्य, श्रीवास्तव के अनुसार, राज्य बार काउंसिलों में नामांकित अधिवक्ताओं के सत्यापन की प्रक्रिया में बाधा डालना था। उनकी डिग्रियों और नामांकनों की सत्यता की जांच के लिए।सत्यापन प्रक्रिया को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए पीठ ने सत्यापन की प्रक्रिया की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अध्यक्षता में एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ का गठन किया। समिति में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण टंडन, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह भी शामिल होंगे।

खंडपीठ ने समिति को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश और निर्देश जारी करने का अधिकार दिया। प्रत्येक अधिवक्ताओं के सत्यापन की प्रक्रिया विधिवत की जाए।सत्यापन की प्रक्रिया में संबंधित अधिवक्ताओं के शैक्षिक डिग्री प्रमाण पत्र और नामांकन के प्रमाण पत्र दोनों शामिल होंगे। सभी राज्य बार काउंसिल समिति के निर्देशों का पालन करेंगे और अनुपालन रिपोर्ट देंगे ।

इसने सभी विश्वविद्यालयों और परीक्षा बोर्डों को सत्यापन के उद्देश्य से कोई शुल्क लिए बिना शैक्षिक प्रमाणपत्रों की वास्तविकता को सत्यापित करने का भी निर्देश दिया।

“बार काउंसिल द्वारा की गई मांगों को बिना किसी देरी के पूरा किया जाएगा और सत्यापन की रिपोर्ट शीघ्रता से प्रस्तुत की जाएगी। हम समिति से पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख और समय पर पहली बैठक बुलाकर अपनी सुविधानुसार शीघ्र काम शुरू करने का अनुरोध करते हैं। जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है उस पर 31 अगस्त, 2023 तक इस अदालत के समक्ष एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी, ”पीठ ने आदेश दिया।

पीठ ने कहा कि बीस लाख सत्तावन हजार पंजीकृत अधिवक्ताओं में से केवल सात लाख पचपन हजार ने सत्यापन के उद्देश्य से फॉर्म जमा किए थे, जिसके बाद उसे वर्तमान आदेश पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वरिष्ठ अधिवक्ताओं और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को केवल एक घोषणा जारी करने की आवश्यकता थी। और तदनुसार, 1.99 लाख घोषणाएँ प्राप्त हुई हैं। इस प्रकार, प्राप्त फॉर्मों की कुल संख्या 9.22 लाख थी।

बीसीआई को आशंका है ।कि कई वकील जिन्होंने सत्यापन के लिए अपने फॉर्म जमा नहीं किए हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं ।जो योग्य नहीं हैं या उनके पास ‘फर्जी डिग्री ‘ है।

1 नवंबर, 2022 को जारी बीसीआई के पत्र पर टिप्पणी करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा, जो बीसीआई के अध्यक्ष भी हैं ने प्रस्तुत किया। कि पत्र का इरादा सत्यापन की प्रक्रिया को समाप्त करने का निर्देश देना नहीं था। बल्कि केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कि डिग्री प्रमाणपत्रों की वास्तविकता और वैधता की पुष्टि किए बिना सत्यापन की प्रक्रिया केवल राज्य बार काउंसिल द्वारा जारी किए गए प्रैक्टिस प्रमाणपत्रों के आधार पर नहीं की गई थी।

2015 में, BCI ने  सर्टिफिकेट ऑफ़ प्रैक्टिस और स्थान नियम 2015 को  अधिसूचित किया । राज्य बार काउंसिल और बीसीआई के संयुक्त प्रयासों से प्रमाणपत्रों और अभ्यास के स्थान के सत्यापन की प्रक्रिया शुरू हुई।

2015 के नियमों को दिल्ली उच्च न्यायालय सहित कई उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई थी। बीसीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक स्थानांतरण याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामले अपने पास ट्रांसफर कर लिए.

बीसीआई ने सत्यापन की प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ का गठन किया था ।, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के दो पूर्व न्यायाधीश और बीसीआई के तीन सदस्य करते थे। अधिवक्ताओं के शैक्षिक प्रमाणपत्रों के सत्यापन के लिए विश्वविद्यालयों द्वारा जो शुल्क मांगा गया था, उसके परिणामस्वरूप सत्यापन की प्रक्रिया में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 

अजय शंकर श्रीवास्तव बनाम बीसीआई एवं अन्य मामले  में सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला देखने के लिए  सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट तथा विभिन्न साधनों से इस रिट पिटीशन का अध्ययन किया जा सकता है। रिट पिटीशन संख्या 82/2023 निर्णय दिनांक 10 अप्रैल 2023

सर्टिफिकेट का प्रेक्टिस COP के संबंध में हाल ही में चर्चित विवाद की समीक्षा निम्न तथ्यों पर आधारित है 

विषय वस्तु 

1. मेरठ टैक्स बार एसोसिएशन रजिस्टर्ड मेरठ के सत्र 2023 -24 के चुनाव 7 अगस्त 2023 को संपन्न हुए थे। जिसमें विवाद होने के बावजूद इलेक्शन की प्रक्रिया संपन्न की गई ।और बिना वैध COP और नियम 40 के अंशदान के बिना जमा  करें ।बगैर श्री राकेश कुमार गोयल को अध्यक्ष घोषित किया गया जिस पर दूसरे पक्षकार श्री संजय शर्मा एडवोकेट ने बार काउंसिल उत्तर प्रदेश के समक्ष एक शिकायत 317/ 2023 प्रस्तुत की। जो बार काउंसिल ऑफ यूपी ने परिवाद को सुओ मोटो स्वीकार करते हुए।जिसमें दिनांक 16. 12 .2023 को श्री राकेश  कुमार गोयल को निलंबित करते हुए ।अगली तारीख नियत की गई। संपूर्ण प्रक्रिया होने के उपरांत दिनांक 2 फरवरी 2024 को अनुशासन समिति बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश ने श्री राकेश कुमार गोयल को निर्देश देते हुए स्पष्ट किया ।कि वह अपने पद से इस्तीफा दे दें और अगले 1 वर्ष तक चुनाव में भाग नहीं लेंगे ।साथ ही उनके सभी अधिकार निरूद्ध करते हुए आदेश पारित किया ।जिस पर श्री राकेश कुमार गोयल बार काउंसिल ऑफ  इंडिया के समक्ष अपील करते हैं ।तथा बार काउंसिल आफ इंडिया की अनुशासन समिति द्वारा प्रतिवादी बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश एवं संजय शर्मा एडवोकेट को 29 फरवरी 2024 को सुनवाई हेतु सम्मन किया गया।( बिना वाद पत्र/अभि कथन और स्टे के पेपर उपलब्ध कराए)  श्री अमित वैद ने  श्री राकेश कुमार गोयल को  दिनांक 8 अप्रैल 2024 तक का स्थगन आदेश और अपील की सुनवाई हेतु नियत की गई। 8 अप्रैल 2024 को पक्षकारों ने सुनवाई कराई तथा अनुशासन समिति बार काउंसिल आफ इंडिया ने निर्णय को रिजर्व कर लिया गया। जिसका निर्णय आज तक भी जारी नही है।

2. परिवाद संख्या 318/ 2023 में अनुशासन समिति बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश ने श्री राकेश कुमार गोयल को निलंबित करते हुए संपूर्ण भारतवर्ष में प्रेक्टिस करने पर रोक लगा दी गई । यह निर्णय दिनांक 8. 5. 2024 को पारित किया गया।यह परिवाद संजय शर्मा बनाम श्री राकेश कुमार गोयल के नाम दर्ज है।

दिनांक 15 .7 .2024 को बार काउंसिल आफ इंडिया श्री अमित वैद , चेयर मैन,अनुशासन समिति द्वारा एक सम्मन श्री संजय शर्मा एडवोकेट को दिनांक 18.7. 2024 के लिए निर्धारित करते हुए( बिना वाद पत्र/अभि कथन और स्टे के पेपर उपलब्ध कराए) जिस जारी किया गया । अपील शीर्षक Withdrawal Petition पिटीशन नंबर 01/ 2024 in IAपिटीशन 06./2024 से है। जिसकी सुनवाई हेतु संजय शर्मा एडवोकेट ,श्री विशाल कपूर एडवोकेट ,श्री सुनील कुमार चौधरी एडवोकेट श्री मनोज अधिकारी एडवोकेट बार काउंसिल आफ इंडिया में उपस्थित हुए। सुनवाई के दौरान प्रतिवादी संजय शर्मा और अन्य अधिवक्ता ने यह स्पष्ट किया। कि जब तक वाद पत्र से संबंधित मटेरियल उन्हें उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। वह क्या plead करेंगे। उन्होंने Withdrawal Petition पिटीशन नंबर 01/ 2024 in IA पिटीशन 06./2024   में जो अभि कथन है ,उसकी कोई जानकारी नहीं है ।तथा प्रतिवादी संजय शर्मा एवं अन्य अधिवक्ता ने इसके संदर्भ में लिखित बहस, शपथ पत्र, ईमेल द्वारा दाखिल दस्तावेज का उल्लेख करते हुए , श्री अमित वैद, चेयर मैन,अनुशासन समिति से अनुरोध किया। कि इस अपील में अन्य तारीख निर्धारित की जाए ।और सर्वप्रथम हमें वाद पत्र से संबंधित सामग्री उपलब्ध कराई जाए ।जिस पर श्री अमित वैद, चेयर मैन,अनुशासन समिति ने प्रतिवादी की बातों को अस्वीकार करते हुए ।श्री राकेश कुमार गोयल को दिनांक 8.5 2024 के अंतरिम आदेश पर सुनवाई की तारीख तक का स्थगन जारी किया ।जिसका प्रतिवादियों ने विरोध किया ।और अनुशासन समिति से अनुरोध किया ।कि विड्रॉल पिटीशन /IA पिटीशनऔर स्टे से संबंधित मटेरियल हमें पहले उपलब्ध कराया जाए। तभी इस अपील की सुनवाई की जा सकती है ।लेकिन अनुशासन समिति ने उनकी बातों को अस्वीकार करते हुए स्थगन जारी किया। 

उपरोक्त परिवाद का उल्लेख इस आशय से किया गया है। कि बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और बार काउंसिल ऑफ इंडिया जो नियमों बनती है। उनका  पालन वह प्रत्येक अधिवक्ता से चाहती है? क्या वह स्वयं उनका पालन कर रही है ?यह वाद अपने आप में एक बड़ा निर्णय साबित होगा । 

 यह कि मान्य सुप्रीम कोर्ट तथा बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा निर्धारित सर्टिफिकेट आफ प्रैक्टिस की क्या आवश्यकता है ?

क्या प्रत्येक अधिवक्ता को COP की आवश्यकता है ?

क्या कार्यदाई संस्थाएं इन नियमों का पालन कराएंगी? करेगी या बिना सुने स्थगन जारी करेंगे ? और निर्णय नहीं देंगे ?बहुत सारे प्रश्न अपने स्थान पर खड़े हो गए हैं ।जिससे अधिवक्ता समाज को सोचना होगा। कि जो संस्था स्वयं निर्णय निर्धारित करती है। क्या वह अपने नियमावली को स्वयं तोड़ेगी।

क्या प्रतिवादियों को अभिकथन/वाद पत्र की प्रति उपलब्ध कराई जाएगी या नहीं ?/

क्या प्रतिवादियों को स्थगन की प्रति उपलब्ध कराई जाएगी या नहीं ?/

क्या बार काउंसिल ऑफ इंडिया हिंदी भाषी अधिवक्ताओं को स्वीकार करेगी ?/

क्या बार काउंसिल आफ इंडिया बिना COP धारक बिना नियम 40 के अंशदान जमा किए हुए । ऐसे अधिवक्ता को प्रैक्टिस अधिवक्ता स्वीकार करती है ?/

ऐसे ही कई प्रश्न उत्पन्न हो गए हैं ।अधिवक्ताओ की सर्वोच्च संस्था में अधिवक्ताओं के विषय में इस तरह का व्यवहार इस तरह की कार्यप्रणाली पर सोचने पर मजबूर करती है?

विशेष

 उपरोक्त लेख से स्पष्ट है ।कि अधिवक्ताओं के हित में बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अपनी कार्य प्रणाली में परिवर्तन करना होगा ।यदि कोई अधिवक्ता अपील योजित करता है ।उसे लाभ देने के लिए स्टे देने की प्रक्रिया तक ही सीमित नहीं होना चाहिए अन्यथा अधिवक्ता हित में कार्य प्रभावित होंगे । और संवैधानिक संस्था पर प्रश्न चिन्ह लगना दुखद विषय है। वर्ष 2015 से बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश द्वारा सर्टिफिकेट और प्रैक्टिस(COP) के लिए लगातार अधिवक्ताओं पर दबाव बनाया गया था ।तथा वर्ष 2022 से COP धारक अधिवक्ताओं का रिनुअल किया जा रहा है ।तथा बार काउंसिल ऑफ  उत्तर प्रदेश द्वारा समय-समय पर विभिन्न सर्कुलर और नियमावली  में COP के संबंध में अधिवक्ताओं को सूचित किया जा रहा है ।उपरोक्त परिपेक्ष में स्पष्ट है। कि अधिवक्ताओं को शायद परेशान करने के लिए COP की प्रक्रिया में लगा दिया गया है ?और उन बिना प्रैक्टिशनर एडवोकेट को स्टे देकर अभयदान दिया जा रहा है ?ऐसी स्थिति में बार काउंसिल आफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सभी सर्कुलर व्यर्थ हैं ।क्योंकि ऐसे व्यक्ति अधिवक्ता समाज में टिक गए हैं। जो संवैधानिक संस्था के नियमों को नहीं मानते और संवैधानिक संस्थाओं में बैठे हुए कुछ लोग उनका समर्थन करते हैं ।ऐसी स्थिति में सर्टिफिकेट आफ प्रैक्टिस का आधार क्या है? यह विचारणीय विषय है। प्रत्येक अधिवक्ता को सोचना पड़ेगा।

लेखक के द्वारा उपरोक्त  परिवाद /अपील से संबंधित सभी साक्ष्य दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के अंतर्गत सुरक्षित है ।

यह लेखक के निजी विचार हैं ।यह केवल अधिवक्ता समाज की जानकारी हेतु प्रकाशित किया जा रहा है। इसका विधिक प्रयोग अनुचित है

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