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हाल ही मे हमारे देश मे आम चुनावों के पश्चात केंद्र मे एक बार पुनः माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व मे सरकार का गठन हुआ है। एक बार फिर माननीय श्रीमती निर्मला सीतारमण जी को वित्त विभाग सौंपा गया है। चुनावी नतीजों के पश्चात् व्यापारीवर्ग व कर पेशेवरों के बीच अटकलों का बाजार गर्म था की इस बार वित्त मंत्रालय की बागडोर किसी नए चेहरे को दी जा सकती है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने इन सभी अटकलों पर विराम लगते हुए अनुभव को तरजीह देते हुए वित्त मंत्रालय एक बार पुनः श्रीमती निर्मला सीतारमण जी के हाथों में सौंपा है। Also Read in English: 53rd GST Council Meeting: Hopes and Expectations for 22nd June’2024

वैसे माननीय वित्त मंत्री सीतारमण जी की कार्यशैली की बात जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं है की उन्होंने कर अनुपालना करवाने मे कोई कसर न छोड़ते हुए बहुत ही अनुशाशित तरीके से अपने कार्य का निर्वाहन किया है। उनके पिछले कार्यकाल में जीएसटी के राजस्व मे अप्रत्याशित वृद्धि हुई है एवं नित नए कीर्तिंमान स्थापित हुए है । लेकिन इसके बाबजूद जीएसटी कानून में करदाताओं को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और कहीं न कहीं रोष का माहौल देखा जा रहा है । सही मायने में यह कानून व्यावहारिक दृषिकोण से आम लोगों की समस्याओं का कारण बना हुआ है। समस्या इस कानून से नहीं बल्कि इसके कम व्यावहारिक होने पर है। कई मुद्दे आज भी ऐसे है जो की जीएसटी के शुरुआती दौर से ही अनसुलझे रहे है। हालां की सरकार की हमेशा यही कोशिश रही है की सभी समस्यायों का समाधान हो लेकिन इसी क्रम मे नई- नई समस्याएँ हमारे सामने आती जा रही है। समय -समय पर कौंसिल मीटिंग में सरकार ने करदाताओं के हितों को ध्यान में रखकर उचित कदम उठाये है लेकिन फिर भी बहुत सी दिक्कतें अभी भी आ रही है। चूँकि अब जीएसटी कौंसिल की 53वी मीटिंग की तिथि की घोषणा कर दी गयी है जो कि 22 जून 2024 को तय हुई है तो अब एक बार फिर सभी वर्ग सरकार की और आशावादी होकर देख रहे है तथा अपनी अपनी मांगे उठा रहे है।

मैं अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले कुछ तथ्यात्मक जानकारी पाठकों को देना चाहूंगा। सबसे पहले आगामी जीएसटी कौंसिल की यह बैठक इस कैलेंडर वर्ष की पहली बैठक है। जनवरी से अभी तक कोई बैठक नहीं हुई है जब की छ: माह लगभग पुरे होने जा रहे है। वैसे तो जीएसटी कौंसिल की बैठक हर तिमाही में होना तय हुआ था लेकिन वर्ष 2022 से अब तक कौंसिल सिर्फ छ: बार ही बैठके की है। मुझे याद है की पिछली बैठक लगभग साढ़े आठ महीने पहले दिनांक 07 अक्टूबर 2023 को हुई थी। अब अगर इतने लम्बे अंतराल के बाद मीटिंग होती है तो समस्याएं तो बढ़ेगी ही । करदाताओं को वास्तव में कई गंभीर समस्यायों से जूझना पड़ा है जिसका समाधान अति आवश्यक था। लेकिन कौंसिल की मीटिंग ना होने की वजह लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ा। यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है की इस देरी के पीछे कहीं ना कहीं केंद्र के चुनाव भी एक कारण हो सकते है। पिछले कुछ महीनो से कई समस्याएँ व्यापारी समुदाय मे चिंता का सबब बानी हुई थी। लेकिन जो भी हो लगभग नौ महीनों में होने जा रही जीएसटी कौंसिल की बैठक जूझते करदाताओं के लिए किसी संजीवनी बूंटी से कम नहीं है।अतः यह बैठक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं निर्णायक साबित होने वाली है।

सरकार ने समय समय पर जीएसटी कानून को सरल एवं व्यावहारिक बनाने हेतु करदतों , व्यापारी समुदाय , ट्रेड एसोसिएशन ईत्यादि से ज्ञापन आमंत्रित किये है और इस बार भी आम बजट से पहले कर ढांचे को सुदृढ़ बनाने हेतु सुझाव आमंत्रित किये है। लेकिन जीएसटी कौंसिल की बैठक आम बजट से पहले ही है तो लेखक ने यह जरुरी समझा की जीएसटी हेतु कुछ सुझाव सरकार तक पहुंचाए जाये ताकि इस अप्रत्यक्ष कर को भी और अधिक व्यावहारिक बनाया जा सके। इसी बात को मध्यनज़र रखते हुए लेखक ने निम्नलिखित समस्याओं के समाधान हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव पेश किये है जो की इस प्रकार है :

1. दोहरे अधिकार क्षेत्र से राहत:

वर्तमान में जीएसटी के प्रावधानों के तहत एक करदाता केंद्रीय जीएसटी अधिकारी एवं राज्य जीएसटी अधिकारी दोनों के ही आधीन आता है भले ही वह करदाता असल में केंद्रीय जीएसटी के प्रशासनिक क्षेत्र मे हो चाहे राज्य जीएसटी के प्रशासनिक क्षेत्र में हो। कोई भी अधिकारी कभी भी उस करदाता को नोटिस दे सकता है , summon दे सकता है, रैड कर सकता है या अन्य किसी मामले की छानबीन कर सकता है। जहाँ तक कोई एक विभाग करवाई करे ( चाहे केंद्रीय या राज्य) वहां तक तो ठीक है लेकिन समस्या जब खड़ी हो जा रही है जहाँ दोनों विभागों के अधिकारी ( केंद्रीय एवं राज्य) समान्तर उसी मुद्दे पर नोटिस जारी कर रहे है , कार्रवाई कर रहे है ईत्यादि। ऐसी सूरत में एक करदाता को दोनों विभागों के चक्कर काटने पड़ते है और बहुमूल्य समय के साथ साथ करसलाहकार का भी शुल्क देना पड़ता है। यही नहीं मजे की बात तो यह भी है की दोनों विभागों के आधीन कई एजेन्सिया जैसे की DGGI, ANTI -EVASION, BIEO, EIU , AUDIT इत्यादि भी उस करदाता पर शिकंजा कश लेती है और नोटिसों की बौछार कर देती है । ऐसी स्थिति में करदाता मारे मारे फिरने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता है। हालां की बहुत से मामलों में न्यायलय ने कई निर्णय भी दिए है की इस तरह की समान्तर कार्यवाही और मल्टीप्ल जूरिस्डिक्शन गैर क़ानूनी है। लेकिन उसके बावजूद भी सरकार इस नियम को जस का तस रखी है। अतः सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए की अगर किसी भी अधिकारी ने नोटिस जारी कर दिया है तो वापिस उसी मुद्दे पर दोबारा नोटिस जारी न हो। करदाता को एक ही मुद्दे पर कई अधिकारीयों को स्पष्टीकरण ना देना पड़े।

इस बाबत सरकार को कोई ऐसा तंत्र या प्रणाली स्थापित करनी चाहिए जिससे की एक से अधिक नोटिस उसी मुद्दे पर दूसरे जीएसटी विभाग (केंद्रीय या राज्य) या उसी विभाग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा जारी नहीं हो सके। ऐसा होने पर करदाताओं को बहुत बड़ी राहत मिल जाएगी।

2. नोटिस जारी करने की प्रणाली मे सुधार की आवश्यकता:

जीएसटी नोटिस जारी करने हेतु केंद्रीय जीएसटी अधिकारी वर्तमान में मुख्यतः DGARM & ADAVAIT सॉफ्टवेयर से प्राप्त रिपोर्ट पर निर्भर है जो की CBIC अधिकृत है। वहीँ राज्य सरकारें अपने अपने सॉफ्टवेयर से उत्त्पन्न रिपोर्ट के आधार पर जीएसटी नोटिस जारी कर रही है। अगर असम राज्य की ही बात की जाये तो यहाँ पर IIT BIG DATA सॉफ्टवेयर एवं BIFA सॉफ्टवेयर प्रचलन में है। हालां की IIT BIG DATA SOFTWARE मे डेटा सुरक्षा के सवाल भी उठ चुके है। कई लोगों का मानना है की राज्य सरकार किसी ऐसी तीसरी एजेंसी जो की जीएसटी के साथ किसी भी रूप मे नहीं जुडी हुई को जीएसटी करदाताओं के डेटा बिना उनकी इजाजत नहीं सौंप सकती। इससे उनके डेटा के साथ समझौता होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

अब केंद्रीय जीएसटी का सॉफ्टवेयर किसी एक बिंदु पर चेतावनी जारी करता है तो राज्य जीएसटी का सॉफ्टवेयर किसी दूसरे बिंदु पर चेतावनी देता है । ऐसी सूरत में करदाता को दोनों विभागों से अलग अलग समय पर नोटिस जारी कर दिए जाते है और उन सभी नोटिसों की रिप्लाई तो देनी पड़ती है साथ ही उनके निपटारे हेतु दर दर फिरना पड़ता है। अतः सरकार इस दिशा में काम करे ताकि एक कॉमन सॉफ्टवेयर तैयार किया जा सके जिससे की “एक देश एक कर” का नारा सही मायने में चरितार्थ हो सके।

3. बढ़ते मुकदमो पर लगाम :

जीएसटी आने के पश्चात् क़ानूनी कारवाई और मुकदमे बहुत बढ़े है। छोटे से छोटा मुद्दा चाहे वह जीएसटी रिटर्न मे त्रुटि हो, चाहे रजिस्ट्रेशन कैंसिल हो,चाहे इनपुट ब्लॉक हो, चाहे इ-वे बिल के मामले हो सभी मे करदाता को कोर्ट कचहरी जाये बिना कोई राहत नहीं मिलती है। अपीलीय अधिकारी भी राहत देने मे कतराते है। ऐसे मे जीएसटी के मामले न्यायालय में दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे है जिसके कारण न्यायपालिका पर भी कहीं न कहीं इन मामलों को निपटाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। अतः सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की अपीलीय अधिकारी एक तथस्ट न्याय अधिकारी के रूप मे अपनी भूमिका निभाए बल्कि ना की कर विभाग के अधिकारी के रूप मे अपीलों का निपटारा हो। साथ ही इन बढ़ते मामलों को नियंत्रित कर लगाम लगाने हेतु सरकार को बड़ा दिल दिखाते हुए किसी प्रकार की “माफ़ी योजना” या उलझे हुए मुद्दों पर स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए जिससे की ऐसे मामलें न्यायालय से वापस लेकर बाहर ही स्वत: निपट जाये।

4. इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के नियमों मे बदलाव:

इनपुट टैक्स क्रेडिट एक ऐसा विषय है जो की जीएसटी के शुरुवाती दौर से लेकर आज तक करदाताओं और सरकार का सरदर्द बना हुआ है। कर चोरों ने इनपुट टैक्स के माध्यम से बहुत से फर्जीवाड़े किये है जिसके कारण सरकार को इनपुट टैक्स लेने के नियमों मे समय समय पर बड़े बदलाव करने पड़े। फलस्वरूप काफी हद तक इन फर्जीवाड़ों पर अब नकेल कस दी गयी है। लेकिन कई बिंदु आज भी ऐसे है जो की व्यावहारिक दृष्टिकोण से अनुचित लगते है और जिसमे बदलाव की गुंजाइश अभी भी अपेक्षित है। सरकार को इन सभी बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए जिससे की कोई भी निर्दोष करदाता पर इसके विपरीत प्रभाव न पड़े। मुख्यत: इनपुट टैक्स क्रेडिट मे निम्न लिखित बदलाव अपेक्षित है :

(i) अधिकांश मामलों में विक्रेता के रिटर्न ना भरने पर या कर ना चुकाने पर कर विभाग सीधा क्रेता से ही इनपुट टैक्स , ब्याज और पेनल्टी वसूलता है जो की पूर्ण रूप से अवांछित है। ऐसी सूरत मे कानून मे यह बदलाव आवश्यक है की कर अधिकारी ऐसे मामलों मे पहले विक्रेता से संपर्क करे और देय कर उगाही करने की कोशिश करे। पिछले कुछ वर्षों से सरकार ने नए जीएसटी रजिस्ट्रेशन के नियमों में काफी सख्ती दिखाई है। अगर असम राज्य की बात करे तो यहाँ तो जीएसटी रजिस्ट्रेशन हेतु व्यापारी को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश होकर अपने व्यापारिक पते का शपथ-पत्र/ हलफनामा दाखिल करना पड़ता है। एक और सरकार नए रजिस्ट्रेशन हेतु सख्त से सख्त नियम बनाती है तो वहीं दूसरी और इनपुट में कुछ गड़बड़ी पाये जाने पर पर पर उन विक्रेताओं से जिनको की कर विभाग ने ही पूरी जांच पड़ताल कर रेजिट्रेशन दिया था, कर नहीं वसूलती बल्कि इसके बजाय क्रेता से कर वसूला जाता है। यह कदम पूरी तरह से न्यायसंगत और तर्कसंगत नहीं लगता है। अगर किसी जगह विक्रेता और क्रेता की सांठ गाँठ पायी जाती है तो ऐसे मामलों में क्रेता से कर उगाही करना लाजमी है। हालां की सरकार की और से जारी एक प्रेस रिलीज़ भी है जिसमे यह बात कही गई है की क्रेता की बजाय पहले विक्रेता से कर की मांग की जाय। लेकिन प्रेस रिलीज़ की कोई क़ानूनी वैधता ना होने के कारण कर विभाग इसे नहीं मानता है। हालां की कई न्यायलयों ने अपने निर्णयों में इस बात का उल्लेख करते हुए करदाता को राहत प्रदान की है। अतः सरकार को यह नियम जीएसटी कानून की धारा 16 मे ही डाल देना चाहिए जिससे की कर अधिकारी इसका भली भांति अनुशरण कर सके।

(ii) Blocked ITC के नियमों की भी समीक्षा कर कई जगहों पर सरकार को इसका लाभ करदाताओं को देना चाहिए । इस नियम के कारण कई जगहों में कर पर कर लग रहा है जो की जीएसटी के वास्तविक इरादों से परे है। लेखक का मानना है जैसे की होटल इंडस्ट्री, बुनियादी ढांचा परियोजनाएं, कॉमर्सिअल प्रॉपर्टी जहाँ से सरकार को इनसे पुनः जीएसटी राजस्व किसी ना किसी रूप में प्राप्त हो इन जगहों पर Blocked ITC पर पुनर्विचार करना चाहिए।

(iii) रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (RCM) के तहत लिए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट पर भी सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए। RCM इनपुट जो की कर भुगतान करने पर ही लिया जा सकता है उसमे भी भ्रान्ति फैली हुई है। कई लोगों का ऐसा मानना है की अगर पुराने सालों का भी RCM पेमेंट अगर आज किया जाता है तो ऐसे इनपुट को बिना कोई व्यवधान के लिया जा सकता है। लेकिन कर विभाग का मत ठीक इसके विपरीत है जो की धारा 16 (4) मे समय सीमा पार होने पर नहीं लिया जा सकता है। इसलिए सरकार को उचित दिशा निर्देश जारी कर मार्गदर्शन करना चाहिए।

5. पेनल्टी की मात्रा देय कर से अधिक न हो:

जीएसटी कानून की धारा 73 के तहत पेनल्टी या तो देय कर का 10 % या 10000/- रुपये जो भी अधिक हो वह लगाने का प्रावधान है। अब ऐसी स्थिति में अगर किसी करदाता का देयकर CGST -500/- रुपये एवं SGST -500/- रुपये है तो ऐसी हालत मे पेनल्टी 10 % के हिसाब से CGST -50/- रुपये एवं SGST -50/-रुपये बनती है। लेकिन चूँकि 10000/- रुपये 50 /- रुपये से ज्यादा है तो पेनल्टी CGST -10000/- रुपये एवं SGST -10000/-रुपये ही लगेगी। जहाँ टैक्स कुल जमा 1000 /- रुपये ( 500 +500 ) रुपये बना है वहां पेनल्टी के रूप में 20000/- रुपये लगाए जाते है जो की समझ से परे है। लेकिन वास्तविकता यही है। इस प्रकार के प्रावधान सामाजिक न्याय की दृस्टि से तर्कसंगत नहीं बैठते है। अतः सरकार को इस तरह के नियमों को बदलना चाहिए।

6. रजिस्ट्रेशन कैंसलेशन/ निरस्त सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाये:

जीएसटी कानून की धारा 29 के तहत कर अधिकारी को रजिस्ट्रेशन कैंसिल/ रद्द /निरस्त / निलंबन करने की शक्तियां दी गई है। इस प्रावधान का अधिकांश मामलों में बिना किसी ठोस वजह के उपयोग किया जा रहा है। रजिस्ट्रेशन निरस्त करना आम बात बन गई है। किसी भी कारण से कर अधिकारी रजिस्ट्रेशन निरस्त कर देते है चाहे रिटर्न भरने में देर हो, चाहे गलत इनपुट लिया हो , चाहे इ-वे बिल नहीं बनाई हो इत्यादि इत्यादि। जीएसटी के बढ़ते मामलों की बात करे तो बहुत से मामले रजिस्ट्रेशन कैंसिल हेतु कोर्ट कचेरी में पहुंचे है। कई मामलों में तो न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप में बताया गया है की महज रिटर्न भरने में हुई देरी के कारण कर विभाग रजिस्ट्रेशन कैंसिल नहीं कर सकता है। कर विभाग किसी भी नागरिक की आजीविका से खिलवाड़ नहीं कर सकता है। यह सरासर असंवैधानिक है एवं संविधान की धारा 21 के विरुद्ध है। लेकिन इसके बाबजूद छोटे से छोटे मुद्दे पर रजिस्ट्रेशन कैंसिल करना मानो एक रीती सी बन गई है। अतः सरकार इस बात पर ध्यान दे की रजिस्ट्रेशन निरस्त सिर्फ और सिर्फ अपवाद व असाधारण स्थिति में ही किया जाये।

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नोट: लेखक पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट है और अपने पेशे के दौरान तजुर्बे से एवं व्यापारियों एवं करदाताओ से मिली जानकारी के आधार पर ये लेख तैयार किया गया है। इसमे दिए गए सभी विचार निजी है तथा दूसरों के विचार भिन्न भी हो सकते है जिसका लेखक सम्मान करते है।

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