वर्ष २०१४ से आयकर मुक्त सीमा जो एक मध्यम वर्गीय के लिए २.५० लाख रुपए प्रति वर्ष की बनी है, वह आज २०२२ में भी वैसी ही है.
शायद सरकार को आज भी उम्मीद नहीं है कि करदाता ईमानदारी से टैक्स भरेंगे. ८ करोड़ करदाता में से मात्र १.५० करोड़ करदाता ही आयकर भरता है, लेकिन शेयर डीमेट खाते देश में १३ करोड़ लोगों के पास है और इसके अलावा कार के मालिक १४ करोड़ लोग हैं.
सरकार को लगता है कि शायद आयकर दायरा बढ़ाने से करदाता और राजस्व न कम हो जाए लेकिन यह चिंता आजके डिजिटल युग में बेमानी प्रतीत होती है क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से कर चोरी पकड़ना न केवल आसान हो गया है बल्कि आय छुपाना भी मुश्किल हो गया है.
दूसरी बात जो समझने की है कि देश का हर व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब हर चीज की खरीद पर ५% से २८% तक का अप्रत्यक्ष टैक्स जीएसटी के रूप में भरता है. विडंबना यह है कि जब बात आय के आधार पर आरक्षण देने की होती है तो सरकार का खुद मानना है कि ८ लाख रुपए तक की सालाना आय वाला गरीब तबके में गिना जाना चाहिए.
अब देश में बात यदि समानता की होती है तो फिर आरक्षण के आधार पर तय गरीब तबका कैसे आयकर के दायरे में आएगा, यह समझ से परे है. इसी बात को लेकर नवम्बर २२ में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगी जो अभी भी विचाराधीन है. इस केस के तथ्यों पर गौर करें तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस साल आयकर का दायरा बढ़ सकता है:
१. तमिलनाडु के किसान और डीएमके पार्टी के सदस्य कुन्नूर सीनीवासन ने मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच में एक याचिका डाली है।
२. इसमें कहा गया है कि जब आठ लाख रुपए से कम (7,99,999) आय वाले लोग ईडब्ल्यूएस गरीब श्रेणी में हैं तो ढाई लाख रुपए से ज्यादा आय वाले लोगों को इनकम टैक्स क्यों देना चाहिए।
३. इस मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय, वित्त तथा कुछ और मंत्रालय को नोटिस देने का आदेश दिया है और फिलहाल विचाराधीन है.
४. कुन्नूर सीनीवासन का कहना है कि फाइनेंस एक्ट 2022 के फस्ट शेड्यूल में संशोधन किया जाए। यह प्रावधान कहता है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी कमाई साल में 2.5 लाख रुपये से कम है, उसे इनकम टैक्स की सीमा से बाहर रखा जाएगा।
५. याचिका दायर करने वाले ने हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को आधार बनाया है जिसमें सवर्णों में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को सही ठहराया है।
६. सीनिवासन का कहना है कि एक बार सरकार ने सकल आय का स्लैब आठ लाख रुपये तय कर दिया है तो फिर फाइनेंस एक्ट 2022 के संबंधित प्रावधानों को निरस्त घोषित कर दिया जाना चाहिए।
७. इन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साबित हो गया है कि आठ लाख से कम सालाना आय वाले गरीब हैं। ऐसे लोगों से इनकम टैक्स वसूलना ठीक नहीं हैं।
८. ये ऐसे लोग हैं जो पहले से ही शिक्षा और अन्य क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं।
९. उनका कहना है कि वर्तमान आयकर अधिनियम का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ है।
१०. आमदनी के आधार पर गरीब घोषित करने के मामले में पूरे देश में एक आधार का पालन हो। यदि आठ लाख रुपये से कम कमाने वाले सवर्ण व्यक्ति गरीब माने जाते हैं तो इतना कमाने वाले समाज के सभी वर्ग के लोगों को भी गरीब माना जाए।
जाहिर है कि सरकार द्वारा घोषित गरीबों से इनकम टैक्स वसूला जाना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं होगा।
अब हाईकोर्ट का जो भी फैसला होगा वो विवाद का विषय नहीं है. बात बस इतनी है कि उचित आय का समयानुसार एक दायरा चुना जाना जरूरी है जिसके ऊपर जाने पर आयकर देना होगा और इस समय खासकर मध्यम वर्ग बहुत उम्मीदें लगाए हुए हैं.