1 जुलाई को 2022 GST भारत में लागू होने के 5 साल पूरे कर रहा है। इन 5 वर्षों ने कई चुनौतियों के साथ कई सुनहरे पल दिए हैं। इन चुनौतियों का सामना करदाताओं और पेशेवरों के साथ – साथ जीएसटी अधिकारियों और सरकार को करना पड़ा। इस 5वीं वर्षगांठ के विशेष लेख में, मैं इन चुनौतियों और आगे की राह के बारे में बात कर रहा हूं।
Also Read in English: GST 5 years Challenges Faced And Road Ahead
सबसे पहले, हमें देश में जीएसटी की शुरूआत की मूल उद्देश्यों को देख लेना चाहिए . आइये देखें जीएसटी भारत में किन उद्देश्यों की प्राप्ती के लिए लागू किया गया था :-
क्र.सं. | जीएसटी भारत में लागू करने के उद्देश्य |
1. | एक राष्ट्र एक कर |
2. | कैस्केडिंग प्रभाव से बचाव |
3. | अप्रत्यक्ष करों की संख्या कम करना |
4. | वस्तुओं और सेवाओं के बीच अंतर को कम करें |
5. | माल की अंतरराज्यीय आवाजाही की बाधाओं को दूर करना |
6. | कर आधार को बढ़ाना |
7. | कर राजस्व में वृद्धि |
आइए सबसे पहले बात करते हैं इन 5 सालों में जीएसटी की गोल्डन लाइन्स की यानी कि सुनहरे पलों की । भारतीय अर्थव्यवस्था, भारत सरकार, करदाताओं और पेशेवरों ने इन 5 वर्षों में जीएसटी के साथ क्या हासिल किया इस कर प्रणाली से । करदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है और कर आधार भी काफी बढ़ा है । इसके अलावा जीएसटी राजस्व भी महीने दर महीने बढ़ा है और कोविड की अवधि के बाद भी जीएसटी संग्रह की प्रगति को बनाए रखा गया है। टैक्स का कैस्केडिंग प्रभाव यानी टैक्स पर टैक्स भी कुछ हद तक हटा दिया गया है।
करदाताओं के मोर्चे पर एक और बड़ी राहत यह है कि वे अब डिक्लेरेशन फॉर्म विशेषकर सी-फॉर्म के संग्रह के बोझ से मुक्त हैं। ये फॉर्म वैट की सबसे बड़ी समस्या थे। जीएसटी के निर्यात के दौरान रिफ्न्ड्स प्रारंभिक वर्ष की कुछ समस्याओं बाद बहुत तेज हुई है । इसके अलावा बहुत सारे करों को जीएसटी में समाहित कर दिया गया है ताकि उस मोर्चे पर करदाताओं को बड़ी राहत मिले। इतने सारे टैक्स से इतने सारे अनुपालन होते हैं इसलिए एक बड़ी राहत है।
जीएसटी सुचना तकनीक पर आधारित कर है इसलिए सभी हितधारक अधिक तकनीकी जानकार बन गए हैं और इनमें डीलर, पेशेवर, जीएसटी अधिकारी भी शामिल हैं। इसलिए, जीएसटी ने देश में करदाताओं के समुदाय के लिए सबसे बड़ा तकनीकी योगदान किया है।
जीएसटी में 5 वर्षों की चुनौतियां
अब इन 5 वर्षों में जीएसटी से जुड़े सभी पक्षों के काफी चुनौतियां आई है और इन पक्षों में कानून निर्माता, जीएसटी अधिकारी, करदाता और जीएसटी पेशेवर सभी शामिल है। इन सभी 4 समूहों को इन 5 वर्षों में जीएसटी से समान रूप से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
देश के कानून निर्माताओं ने 2017 में देश में जीएसटी लागू करने के लिए एक बहुत ही साहसिक कदम उठाया है और चूंकि यह एक सबसे बड़ा सुधार था इसलिए प्रारंभिक चुनौतियां अपरिहार्य थीं। ये चुनौतियाँ ही निकट भविष्य में इस कर को बहुत मज़बूत बना देंगी बस सभी पक्षों को धैर्य बनाए रखना है|
पहला पक्ष कानून बनाने वाले थे जिन्होंने देश में इस बहुत महत्वपूर्ण कर कानून को बनाया लेकिन जीएसटी की प्रक्रिया शुरू से ही बहुत कठिन और भ्रमित करने वाली थी इसलिए इसे पालन किये योग्य बनाने के लिए बहुत सारे स्पष्टीकरण / अधिसूचनाएं / परिपत्र जारी किए गए और इससे पता चलता है कि जीएसटी कानून में प्रारम्भ से ही स्थिरता की कमी थी और इससे निपटने के लिए कानूननिर्माताओं ने आश्चर्यजनक रूप से 1100 से अधिक स्पष्टीकरण/अधिसूचनाएं/परिपत्र/प्रेस विज्ञप्ति/ट्विटर सन्देश जारी किए गए और यह कानून निर्माताओं के बहुत बड़ी चुनौती थी।
आइए एक नजर डालते हैं इन पांच सालों में कानून निर्माताओं द्वारा जारी नोटिफिकेशन और सर्कुलर की संख्या पर :-
विवरण | 2017 | 2018 | 2019 | 2020 | 2021 | 2022 | TOTAL |
GST Notification -Tax | 75 | 79 | 78 | 95 | 40 | 07 | 374 |
GST Notification – Rate | 47 | 30 | 29 | 05 | 22 | 02 | 135 |
IGST Notification – Tax | 02 | 04 | 04 | 06 | 03 | 0 | 19 |
IGST Notification – Rate | 50 | 31 | 28 | 5 | 22 | 2 | 138 |
CGST Circulars | 26 | 55 | 49 | 14 | 24 | 01 | 169 |
IGST Circulars | 2 | 1 | 1 | 0 | 0 | 0 | 4 |
कुल संख्या | 202 | 200 | 189 | 125 | 111 | 12 | 839 |
अब 28-29 जून 2022 को हुई 47वीं बैठक में जीएसटी परिषद के हालिया फैसलों के साथ ऐसी और अधिसूचनाओं और परिपत्रों की प्रतीक्षा है। यह अनियंत्रित संख्या कानून निर्माताओं के लिए भी एक चुनौती है और उन्हें इस संख्या को भविष्य में सीमित करना ही होगा.
जीएसटी जैसे नए कर के लिए, हम मान सकते हैं कि बहुत सारे भ्रम और जटिलताएं होनी ही थी , लेकिन जारी अधिसूचनाओं और परिपत्रों के ऊपर उल्लिखित संख्याओं को देखें तो कोई भी यह मान सकता है कि जीएसटी में प्रारम्भ से ही स्थिरता नहीं थी और यह बड़ी चुनौती है कानून बनाने वाले के लिए भी ।
जीएसटीएन- जीएसटी के प्रारम्भ अर्थात जुलाई 2017 से ही कानून निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या थी और पहले 2 या 3 साल बहुत खराब स्थिति के साथ गुजरे थे और शुरुआती वर्षों में जीएसटीएन की विफलता ने कानून निर्माताओं के लिए बहुत सारी असमंजस भरी स्तिथियाँ उत्पन्न की और उनके लिए खराब छवि भी बनाई है। इस समय स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है लेकिन फिर भी जीएसटीएन समय-समय पर परेशानी दे ही देता है रहा है और यह कानून निर्माताओं के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। GSTN ने GST की स्थापना के बाद से कानून निर्माताओं के लिए बहुत ही अजीब स्थिति पैदा कर दी है।
करदाताओं के सवाल का सबसे बड़े सवाल का जवाब भी इन 5 वर्षों में कानून बनाने वाले नहीं दे पाए और वह सवाल था जीएसटी के प्रमुख रिटर्न में GSTR-3B को संशोधित क्यों नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि कानून निर्माता भी शुरू में नियोजित अर्थात कानून का हिस्सा बनाए गए गए रिटर्न सिस्टम को लागू करने में असमर्थ थे और मूल रूप से नियोजित रिटर्न प्रणाली के स्थान पर जो सिस्टम पेश किया गया वह फुल प्रूफ सिस्टम नहीं था और पूरी प्रक्रिया में जीएसटीआर -3 बी, जो मूल योजना का हिस्सा नहीं था, प्रमुख रिटर्न बन गया है और आश्चर्य जनक रूप से जीएसटी के इस मुख्य रिटर्न गलतियों को सुधारने की कोई सुविधा नहीं थी और आज 5 साल बीत जाने के बाद भी यही स्थिति है !!!!!!!!
कर के विलंबित अर्थात देरी से भुगतान पर ब्याज का मुद्दा कानून निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया और उन्होंने समस्या को हल करने में इतना समय लिया, हालांकि यह कोई समस्या नहीं थी, बल्कि उन्ही की एक गलती थी।
कोविड के दो साल कानून बनाने वालों के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती थी लेकिन उन्होंने इसका सफलतापूर्वक सामना किया और अंत में स्थिति को बचाने के लिए संग्रह की गति को बनाए रखा।
अब अन्य हितधारक जीएसटी अधिकारियों की बात करें और इस समय रिटर्न की जांच उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बहुत सारे नोटिस जारी किए जा रहे हैं और इनमें से अधिकांश गैर-मुद्दे या मामूली मुद्दों से संबंधित हैं। यहां तक कि 2 रुपये या 4 रुपये की मामूली राशि के लिए भी नोटिस जारी किए जा रहे हैं। नोटिस की संख्या जीएसटी अधिकारियों के लिए उन्हें निपटाने में समस्या पैदा कर रही है ।
यहां तक कि कोविड अवधि के दौरान ब्याज मांग के लिए नोटिस भी जारी किए गए थे, जिसके लिए सरकार पहले ही राहत दे चुकी है। नए पंजीकरण आवेदनों के निपटान के समय पूछे जाने वाले प्रश्न जीएसटी अधिकारियों के लिए एक बड़ा मुद्दा है और कभी-कभी यह दर्शाता है कि उचित और व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। कभी-कभी अप्रासंगिक प्रश्न पूछे जाते थे जिसके परिणामस्वरूप बहुत ही भ्रमित और अजीब स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।
अब दो और हितधारक हैं जो कि जीएसटी पेशेवर और जीएसटी करदाता और चूंकि पेशेवर करदाताओं के लिए काम कर रहे हैं इसलिए इन दोनों की अधिकांश समस्याएं आम और लगभग एक सी हैं। सख्त और जटिल जीएसटी प्रक्रियाएं और जीएसटीएन- जीएसटी का नेटवर्क जीएसटी की स्थापना के बाद से सबसे बड़ी समस्या रही है और इसने करदाताओं और पेशेवरों दोनों के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं और इनमें से बहुत सी समस्याएं आज भी उसी तरह से बरकरार है।
आईटीसी अर्थात खरीद पर मिलने वाली इनपुट क्रेडिट जीएसटी की रीढ़ है और जीएसटी की स्थापना के पहले से ही जीएसटी में आईटीसी- इनपुट क्रेडिट के मुक्त प्रवाह का वादा किया गया है लेकिन इस आईटीसी ने करदाताओं के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं।
विक्रेताओं की सभी गलतियाँ यानी टैक्स जमा न करना और रिटर्न दाखिल न करना खरीददारों के हाथ में नहीं है लेकिन इसकी सजा खरीददारों की आईटीसी को वापस लेने के रूप में उन्हें दी जाती है । शुरुआत में या जीएसटी के शुरुआती वर्षों के बाद भी इनपुट टैक्स क्रेडिट के मिस्मेच के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई और फिर धीरे-धीरे इसे और अधिक जटिल बनाने के लिए इतने सारे अव्यवहारिक प्रतिबंध लगा दिए गए कि यह खरीद्दारों के लिए एक परेशानी बन गया है।
आईटीसी का मिस्मेच वैट में भी सबसे बड़ी समस्या थी और उस स्थिति में भी कानून निर्माताओं के पास एक ही समाधान होता है यानी खरीदारों के आईटीसी को रोक दिया जाता है, लेकिन उस स्थिति में, वे क्रेता को इसे जमा करने के लिए कहने से पहले मिस्मेच को निपटाने के लिए पर्याप्त समय देते थे लेकिन में जीएसटी के मामले में इनपुट क्रेडिट चाहने वाले डीलरों के लिए स्थिति सबसे खराब है, हालांकि उन्हें जीएसटी के मुक्त प्रवाह का वादा किया गया है। जीएसटी तो पिछली कर प्रणाली की समस्याएं निपटाने के लिए लाया गया था लेकिन इस मुद्दे पर समस्याएं बढ़ी ही है .
विभाग द्वारा जारी नोटिसों की संख्या भी करदाताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या है। यहां तक कि करदाताओं को भी 2 या 4 रुपये की छोटी राशि के लिए नोटिस प्राप्त हो रहे हैं। यह समय और संसाधनों की सरासर बर्बादी है। करदाताओं को उस अवधि के लिए ब्याज के भुगतान के लिए नोटिस प्राप्त हो रहे हैं, जिसके लिए सरकार पहले ही छूट जारी कर चुकी है।
जीएसटी के रास्ते में आगे क्या है
अब जीएसटी पांच साल का हो गया है इसलिए सरकार के लिए करदाताओं की समस्याओं को हल करने का समय आ गया है और अभी भी जीएसटी कानून में बहुत सारे भ्रम हैं और ये भ्रम करदाताओं के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा कर रहे हैं। यहां हमें जीएसटी को व्यवहार्य, उपयोगी, करदाता और पेशेवर अनुकूल और सरलीकृत कर बनाने के लिए स्थिति में सुधार के सुझावों के साथ-साथ उन प्रमुख क्षेत्रों की गणना करनी चाहिए जहां समाधान की आवश्यकता है: –
1. इनपुट क्रेडिट: – टैक्स जमा करने के लिए विक्रेताओं को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए और मिस्मेच होने की स्थिति में डीलरों को इसे निपटाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए लेकिन अंतिम दायित्व विक्रेताओं का होना चाहिए।
2. 2GSTR-3B संशोधन: – GSTR-3B को संशोधित करने की सुविधा तुरंत दी जानी चाहिए। इस सुविधा के अभाव में बहुत सारी विसंगतियां पैदा हुई हैं और बहुत सारे नोटिस विभाग से आ रहें हैं और इन सभी गतिविधियों में डीलरों, पेशेवरों और विभाग का इतना समय लग रहा है जिसे आसानी से अन्य कार्यों में लगाई जा सकती है ।
3. रिटर्न के प्रारूप में सुधार: – खरीददारों को अपनी खरीद का विवरण रिटर्न में देने की कोई सुविधा नहीं है लेकिन यदि विक्रेता कर जमा नहीं कर रहे हैं तो क्रेताओं पर देयता तय है लेकिन फिर भी खरीददार ने किस विक्रेता से माल खरीदा है उसकी सुचना देने का हक़ खरीदादार को नहीं है तो फिर विभाग को किसी विशेष बिक्री पर कर का भुगतान करने में विक्रेताओं की विफलता के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिलती है। धारा 16(4) में उल्लिखित प्रतिबंध भी बहुत कठोर हैं और दोहरे कराधान के समान हैं।
4. वार्षिक रिटर्न: – वार्षिक रिटर्न के प्रारूप का कोई अर्थ ही नहीं है और वर्तमान में यह बहुत उपयोगी रिटर्न भी नहीं है। इस फॉर्म को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए इसे फिर से तैयार किया जाना चाहिए और इस फॉर्म से डीलर को अपनी वास्तविक कर देयता घोषित करने की उचित सुविधा मिलनी चाहिए।
5. ब्याज दर: – जीएसटी में ब्याज दर विशेष रूप से बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में प्रचलित ब्याज दरों की तुलना में बहुत अधिक है। ब्याज की दर बहुत अधिक करने के बजाय बाजार दर से 2 या 3% अधिक निर्धारित की जानी चाहिए।
6. आईटीसी पर कृत्रिम प्रतिबंध: – आईटीसी पर कृत्रिम प्रतिबंध विशेष रूप से धारा 17(5) में उल्लिखित प्रतिबंधों को हटाया जाना चाहिए। देखें कि आईटीसी मोबाइल फोन और कंप्यूटर पर उपलब्ध है लेकिन यह मोटर वाहनों पर उपलब्ध नहीं है जो डीलर के व्यवसाय में उपयोग किए जाते हैं!!!!!! इसके पीछे क्या तर्क हो सकता है ?
7. नोटिसों की संख्या:- जीएसटी में जारी किए गए नोटिसों की संख्या की जांच की जानी चाहिए। यहां तक कि 2 या 4… रुपये जमा करने के लिए नोटिस भी जारी किए जाते हैं। करदाताओं, पेशेवरों और विभाग के बोझ को कम करने के लिए न्यूनतम राशि तय की जानी चाहिए।
8.ब्याज की अवधि:- टैक्स देनदारी पर ब्याज को जीएसटीआर-3 बी जमा करने की तारीख तक चार्ज करने के बजाय डीलर द्वारा टैक्स की राशि जमा करने की तारीख से रोक दिया जाना चाहिए।
9. अधिसूचनाओं, स्पष्टीकरणों और परिपत्रों की संख्या:- अधिसूचनाओं, स्पष्टीकरणों और परिपत्रों की संख्या बहुत अधिक है और कानून को और अधिक जटिल और भ्रमित कर रही है और अब उन्हें यथासंभव सरल बनाने के लिए जीएसटी कानून पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए और इसके अलावा कर की दर इस तरह तय की जानी चाहिए कि नहीं अगले 3 वर्षों में किसी भी वस्तु या सेवा की दर ऊपर की ओर नहीं जानी चाहिए।
10. आरसीएम– RCM:- आरसीएम- RCM जीएसटी का भ्रामक और अनावश्यक प्रावधान है। इसका अधिकांश हिस्सा जीएसटी के शुरुआती महीनों में हटा दिया गया था लेकिन फिर भी कुछ अधिसूचित वस्तुओं और सेवाओं के रूप में इसका प्रभाव अभी भी है। उन सभी शुरुआती 5 वर्षों में करदाताओं ने इसका ठीक से पालन नहीं किया है लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका सरकार के राजस्व पर कोई विपरीत वित्तीय प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसे मामलों में इन निर्दोष डीलरों के साथ कुछ सहानुभूति के साथ राहत की जरूरत है।
11. ई-वे बिल जुर्माना:- ई-वे बिल के मामले में न्यूनतम जुर्माना लगाने के लिए तकनीकी और निर्दोष गलतियों की सूची को बढ़ाया जाना चाहिए। ट्रांजिट में वाहनों की जांच करते समय पारदर्शी व्यवस्था हो।
12. मानवीय हस्तक्षेप को कम किया जाए: – सभी सिस्टम और जमीनी स्तर के फैसलों के मामले में मानवीय हस्तक्षेप को कम से कम किया जाना चाहिए और अधिकांश नोटिसों के उत्तरों को ऑनलाइन या ई-मेल पर स्वीकार किया जाना चाहिए।
13. जीएसटी एमनेस्टी स्कीम: – जीएसटी रिटर्न दाखिल करते समय डीलरों द्वारा की गई प्रारंभिक गलतियों को घोषित करने और सुधारने के लिए जीएसटी माफी योजना -GST AMNESTY SCHEME आनी चाहिए।
14. जीएसटी अपीलीय प्राधिकरण: – यथाशीघ्र जीएसटी अपीलीय प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए।
15. जीएसटी सरलीकृत हो: – जीएसटी को सरलीकृत कर बनाया जाना चाहिए।
SUDHIRJI,
NAMASKAR
AAP KA DETAIL LEKH PADHA,
BAHUT HI SUNDER TARIKE SE SAMJANE KI KOSHISH KI HE
“KASH” GST OR GSTN VALO KO SAMAJ AA JAYE
VARNA HUM SAB 5 SAL SE ACT RULES KO SUDHR NE KI RAH DEKH RAHE HE.