हाल में ही भारतीय प्रतिभुति एवं विनिमय बोर्ड- सेबी ने 85 कम्पनियों के शेयरों की ट्रेडिंग पर रोक लगाई है जिसमें प्रमुख नाम- सनराइज़ एशियन और कोरल हब लिमिटेड का हैं. इन कम्पनियों पर आरोप है कि इन्होंने शेयर के मूल्यों में हेरफेर और फर्जी बढ़त दिखाई थी.
सेबी के इन आरोपों में जो महत्वपूर्ण तथ्य सामने आये और जिसे एक आम निवेशक को समझना जरुरी है:
1. अपनी ग्रुप कंपनियों और संबंधित व्यक्तियों द्वारा कंपनी के शेयरों की फर्जी खरीद फरोख्त और शेयर मूल्यों में हेराफेरी किया जाना.
2. अपने लोगों को स्वतंत्र निदेशक बनाकर कंपनी की आडिट कमिटी का हिस्सा बनाना जिससे फर्जी लेनदेन पकड़ में न आ सकें.
3. कंपनी की बिक्री, आय और लेनदेन सिर्फ संबंधित पार्टियों से होना.
4. कई ग्रुप कंपनियों के नाम, पते और जीएसटी रजिस्ट्रेशन फर्जी होना.
5. झूठे बढ़ा चढ़ाकर भ्रामक तरीके से वित्तीय नतीजे और लेनदेन पेश करना.
साफ है सेबी द्वारा जो खामियां सामने लाई गई, वह हमारे और आपके शेयर बाजार में निवेश करने के मापदंडों में बदलाव चाहती है और इन कदमों को अपनाना अब एक आम निवेशक के लिए जरूरी होगा:
1. किसी भी कंपनी में निवेश से पहले मिनिस्ट्री आफ कार्पोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर कंपनी और इसके निदेशक का मास्टर डाटा जरूर चेक करें. ऐसा करने से आपको यह पता चल जाएगा की कंपनी में निदेशक कौन है, ये निदेशक किन किन कंपनियों में और निदेशक हैं एवं और कितनी कंपनियां हैं जो इनसे संबंधित है.
2. शेयर ब्रोकर के मार्फत यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि शेयर ट्रेडिंग में रोज कितने खरीददार और बेचने वाले होते हैं. इसके द्वारा आप यह जान पाएंगे इस कंपनी के शेयर में आम निवेशक कितनी खरीद बेच कर रहे हैं या फिर सिर्फ कुछ निवेशक बड़ी बोली लगा रहे हैं और मूल्य में हेराफेरी कर रहे हैं.
3. कंपनी कानून की धारा 177 के तहत कंपनी की आडिट कमिटी में 3 गैर कार्यकारी स्वतंत्र निदेशक होना जरूरी है जो यह देखेंगे कि कंपनी के सही वित्तीय नतीजे निवेशक के समक्ष पेश हो. इसलिए एक निवेशक को यह जरूर जांच करना चाहिए कि आडिट कमिटी में कंपनी से संबंधित निदेशक न होकर ऐसे निदेशक हो जो सही मायनों में स्वतंत्र हो और समाज के प्रबुद्ध वर्ग से आते हो.
4. कंपनी की सालाना रिपोर्ट में आडिटर द्वारा संबंधित पार्टियों से लेनदेन का जिक्र अलग से किया जाता है. हमें इसे पढ़ना और समझना जरुरी है ताकि हम ये जान सके कि कहीं सारा लेनदेन सिर्फ संबंधित पार्टियों से दिखाकर निवेशकों को गुमराह तो नहीं किया जा रहा.
5. कंपनी द्वारा सरकारी विभागों में कराये गये रजिस्ट्रेशन की जांच से हमें यह साफ हो जावेगा कि कहीं कंपनी के रजिस्ट्रेशन फर्जी तो नहीं है.
साथ ही हमको यह भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कहीं कंपनी के वित्तीय नतीजे भ्रामक तो नहीं है. इसलिए कंपनी द्वारा अपने वित्तीय नतीजों और कांट्रेक्ट, आदि की कापी सेबी, स्टाक एक्सचेंज, आईटी विभाग, जीएसटी विभाग में सबमिट की गई है- यह जांच करना जरूरी है.
सेबी की जांच ने हमारे समक्ष निवेश के नए मापदंड ला दिए है. अब वित्तीय नतीजों या फंडामेंटल या टेक्निकल गणना की बजाय कंपनी और उसके निदेशकों की केवाइसी की गणना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है जो अब आने वाले समय में हमारे निवेश के सही या गलत होने के बारे में बताएगी.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965