भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 धारा 194T: साझेदारी फर्म द्वारा भागीदारों को वेतन, पारिश्रमिक, ब्याज, बोनस या कमीशन भुगतान पर TDS
प्रस्तावित प्रावधान
वर्तमान में, साझेदारी फर्म द्वारा भागीदारों को वेतन, पारिश्रमिक, ब्याज, बोनस, या कमीशन के भुगतान पर स्रोत पर कर कटौती (TDS) के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इस कारण से, 2024 के वित्तीय विधेयक के तहत यह प्रस्तावित किया गया है कि एक नई धारा 194T को शामिल किया जाए, जिसके तहत साझेदारी फर्म द्वारा भागीदारों को दिए गए वेतन, पारिश्रमिक, कमीशन, बोनस और ब्याज के भुगतान पर TDS लगाया जाए।
धारा 194T के प्रमुख प्रावधान
- प्रभावित भुगतान:
- वेतन (Salary)
- पारिश्रमिक (Remuneration)
- ब्याज (Interest)
- बोनस (Bonus)
- कमीशन (Commission)
- प्रभावित खाते:
यह प्रावधान उन सभी भुगतानों पर लागू होगा जो भागीदार के खाते (जिसमें पूंजी खाता भी शामिल है) में किए जाते हैं।
- TDS कटौती की सीमा:
यदि किसी वित्तीय वर्ष में उपरोक्त भुगतानों की कुल राशि ₹20,000 से अधिक है, तो TDS काटा जाएगा।
- TDS की दर:
इन भुगतानों पर TDS की दर 10% होगी।
- प्रावधान कब से प्रभावी होंगे?
यह प्रावधान 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगा।
- फर्म से क्या तात्पर्य है?
भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 के तहत, ‘फर्म’ की परिभाषा को धारा 2(23) में उल्लिखित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार, ‘फर्म’ में निम्नलिखित शामिल होते हैं:
- सामान्य फर्म (General Partnership Firm):
यह वह फर्म होती है जिसे साझेदारों के बीच साझेदारी के आधार पर गठित किया गया होता है। इसमें साझेदार एक-दूसरे के साथ मिलकर व्यवसाय चलाते हैं और मुनाफे और नुकसान को साझा करते हैं।
- रजिस्टर्ड फर्म (Registered Firm):
वह फर्म जो भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के तहत पंजीकृत होती है। रजिस्टर्ड फर्म होने के कारण, यह कानून के तहत कुछ विशेष लाभ और सुरक्षा प्राप्त करती है।
- एलएलपी (Limited Liability Partnership):
यह फर्म एक विशेष प्रकार की साझेदारी होती है जिसे सीमित देयता साझेदारी अधिनियम, 2008 के तहत पंजीकृत किया जाता है। इसमें साझेदारों की देयता उनके निवेश तक ही सीमित होती है और वे फर्म के कुल कर्ज के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होते।
निष्कर्ष
धारा 194T का प्रस्ताव साझेदारी फर्मों द्वारा भागीदारों को किए गए भुगतानों पर स्रोत पर कर कटौती (TDS) सुनिश्चित करेगा। यह न केवल कर संग्रह को बढ़ावा देगा बल्कि कर अनुपालन में भी सुधार करेगा। इस प्रकार, यह प्रावधान कर प्रणाली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ाने में सहायक होगा
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