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जीएसटी में इनपुट क्रेडिट का महत्त्व भी वही है जो शरीर में रीढ की हड्डी का  होती है . वास्तविक रूप में जीएसटी में जिस कर का भुगतान करना होता है उसकी गणना मुख्य रूप से आउटपुट टैक्स में से इनपुट क्रेडिट को घटा कर ही की जाती है .इसी तरह से कर की गणना वेट में भी की इसी तरह से की जाती थी लेकिन फर्क यह है कि जीएसटी एक ही व्यवहार पर राज्य और केंद्र दोनों का लगने वाला कर है जबकि वेट केवल एक राज्य  का कर था और वहां एक राज्य में दूसरे राज्य से की जाने वाली खरीद पर लगे सेंट्रल सेल्स टैक्स की क्रेडिट नहीं मिलती थी . केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सर्विस टैक्स की क्रेडिट आपस में मिल जाती थी लेकिन एक समस्या यह थी कि जहां किसी माल पर वेट लगता था वहां उस पर वेट जोड़ते हुए सेंट्रल एक्साइज का भुगतान करना होता था और इसी तरह से जहाँ सेंट्रल एक्साइज लगने के बाद वेट का भुगतान होता था वहां पर सेंट्रल एक्साइज को जोडते हुए वेट का भुगतान करना होता था.

इस टैक्स पर टैक्स को कासकेडिंग प्रभाव- Cascadding Effect कहते हैं और जीएसटी में इस कासकेडिंग प्रभाव- Cascadding Effect को एक बहुत बड़ी हद तक समाप्त किया है लेकिन इसके साथ ही जीएसटी में निर्बाध इनपुट क्रेडिट का वायदा किया गया था जिसके अनुसार करदाताओं को एक बहुत ही पारदर्शी और सरल प्रणाली के तहत इनपुट प्रदान की जायेगी . इस समय यही इनपुट क्रेडिट जीएसटी में करदाताओं के कई समस्याओं का कारण बनी हुई है.

इस अध्ययन में हम बहुत ही सरल भाषा में इनपुट क्रेडिट की इस पूरी संकल्पना को , इससे जुड़े नियम और कानून , इनपुट क्रेडिट से जुडी हुई समस्याएं और सुझाव पर अध्ययन करेंगे. इस लेख में हम बहुत अधिक तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करने का प्रयास करेंगे ताकि समझने में आसानी रहेंगे जैसे सप्लाई की जगह हम बिक्री शब्द का प्रयोग करेंगे. एसजीएसटी और जीएसटी कानून दो हैं लेकिन व्यवहारिक रूप दो कानून है लेकिन दोनों एक दूसरे की कॉपी है अत: हम यहाँ जीएसटी कानून शब्द का प्रयोग करेंगे. यह अध्ययन बहुत अधिक तकनीकी नहीं है लेकिन इस लेख में इनपुट क्रेडिट से बहुत सी महत्वपूर्ण बातें समझने की कोशिश करेंगे. आइये इस अध्ययन प्रारम्भ करते हैं .

इनपुट क्रेडिट को हम एक बहुत ही साधारण उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करें जिससे यह भी पता चलेगा कि जीएसटी में इनपुट क्रेडिट का क्या है और इसका क्या महत्त्व है .

X एक व्यापारी है और वह 1 लाख रूपये में कोई माल खरीदता है और उस पर 18 प्रतिशत की दर से कर का भुगतान करता है तो ऐसे में X की इनपुट क्रेडिट 18000.00 रूपये होगी और अब यदि X इस माल को 1.10 रूपये में बेचता है और 18 प्रतिशत की दर से आउटपुट टैक्स 19800.00 रूपये बनता है.

इस तरह से अब X को इस व्यवहार पर कर का भुगतान अपने आउटपुट टैक्स 19800.00 में से इनपुट क्रेडिट 18000.00 घटाने के बाद कुल 1800.00 रूपये ही करना है .

आइये देखें कि यह 1800.00 रूपये क्या है ? देखिये एक तरफ तो यह 1800.00 है आउटपुट टैक्स और इनपुट टैक्स का अंतर जो आपने ऊपर देखा है . लेकिन वास्तव में यह है X के मार्जिन पर दिया जाने वाला टैक्स है जो कि एक वैल्यू एडिशन पर लगने वाला टैक्स है इस प्रकार X ने 1.10 लाख रूपये में माल बेचा जिसे उसने 1.00 लाख रूपये खरीदा था तो X का मार्जिन 10000.00 रूपये हुआ और इस पर 18% की दर से कर 1800.00 रूपये हुआ .

आप जीएसटी की बहुत अधिक जटिलताओं के साथ नही पढ़े तो आमतौर पर अधिकांश जीएसटी के केस इस एक उदहारण के ही बढे हुए रूप होते हैं . यदि कोई डीलर निर्माण करता है या व्यापार करता है तो वह माल की खरीद के साथ -साथ निर्माण और व्यापार के तहत कई खर्च करते हैं तो उस पर भी हो जीएसटी लगता है वह सभी इनपुट क्रेडिट का हिस्सा होते हैं . इस सम्बन्ध में अपवादों का अध्ययन हम इसी लेख में आगे करेंगे तब तक आप समझ लें की यही व्यवहारिक जीएसटी है जिसमें आउटपुट टैक्स में से इनपुट टैक्स को घटा कर टैक्स का भुगतान करना होता है . आइये अभी हम इसी सन्दर्भ में इनपुट क्रेडिट का महत्त्व और इससे जुडी समस्याएं देखते है :-

1 . जीएसटी में किसी एक डीलर को भुगतान के रूप में क्या कर देना है इसके निर्धारण में इनपुट क्रेडिट का बहुत महत्त्व है जैसा कि हमने ऊपर एक उदाहरण में देखा है कि इनपुट क्रेडिट क्लेम करने के बाद इस डीलर का कर सिर्फ 1800.00 रूपये ही बनता है .

2. यदि किसी कारण से, कारण बहुत से हैं जिनका अध्ययन हम आगे करेंगे , यदि इनपुट क्रेडिट किसी माह में किसी एक डीलर की रोक दी जाती है तो उसे पूरा ही कर, जो कि आउटपुट टैक्स के बराबर होगा , जमा कराना पड़ता है अर्थात उपरोक्त उदाहरण में इस डीलर को यदि इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है तो पूरा ही कर 19800.00 रूपये जमा करना पड़ता है जब की उसकी कर देयता केवल 1800.00 रूपये ही है . यहाँ हम यह मान कर चल रहें है कि X की इनपुट क्रेडिट एक माह के लिए रोकी गई है क्यों कि उसके विक्रेता ने निर्धारित तिथि तक अपना GSTR-1 नहीं भरा है और उसे यह क्रेडिट अगले माह मिल जाती है . आइये देखें कि किस तरह से यह अगले महीने मिलने वाली क्रेडिट अधिकाँश मामलों में राहत की जगह  भ्रम ही साबित होती है

अब अगले महीने देखतें है कि क्या क्रेडिट मिल जाने पर X का नुक्सान पूरा हो जाता है क्यों कि यह रुकी हुई इनपुट क्रेडिट तो X को अगले माह मिल जाती है तो फिर X को केवल एक माह ही नुक्सान होगा . यदि हम केवल किताबें ही पढ़े और देखें तो यह बिलकुल ठीक प्रतीत होता है लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा नहीं है . आइये इसे भी समझने का प्रयास करें . मान लीजिये X अगले माह कोई व्यापार ही नही करता है तो फिर यह 19800.00 की क्रेडिट तब तक पड़ी रहेगी जब तक वह कोई बिक्री नहीं करता है . लेकिन वह बिक्री ही नहीं करेगा यह एक अव्यवहारिक कल्पना है तो फिर आइए देखें इस माह के व्यापार करता है तो क्या होता .

एक बार फिर X अगले माह में फिर 1 लाख रूपये का माल खरीदता है और उस पर भी 18000.00 का  इनपुट क्रेडिट होगा और यदि X यदि फिर इस माल को 1.10 लाख रूपये में बेचता है तो उसका आउटपुट क्रेडिट इस माह भी आउटपुट 19800.00 होगा और अब कर का भुगतान केवल 1800.00 करना होगा . अब ध्यान दीजिये कि कोई माल खरीदेगा ही नहीं तो बेचेगा कैसे ?

अब आइये देखें कि इस माह में X की इनपुट क्रेडिट 18000.00 है और इसके साथ ही पिछले माह की रोकी हुई इनपुट क्रेडिट 18000.00 भी इसी माह में मिलेगी तो इस तरह से कुल इनपुट क्रेडिट इस माह 36000.00 होगी और यदि इस इनपुट क्रेडिट में से इस माह की आउटपुट 19800.00 घटा दी जाये तो इनपुट क्रेडिट का आधिक्य 16200.00 रहेगा और ये वही रकम है जो इस डीलर की पिछले माह की क्रेडिट रोक कर उससे 19800.00 रूपये जमा करवाए गए जब कि उसकी कर जमा कराने की जिम्मेदारी तो सिर्फ 1800.00 रूपये ही थी इस प्रकार इस डीलर ने कुल 18000.00 रूपये अधिक जमा कराये और इस 18000.00 में से इस माह का कर दायित्व 1800.00 को कम करने पर कुल आधिक्य यही 16800.00 बचता है . अब यदि 1800.00 प्रतिमाह के कर दायित्व को कम करें तो इस रकम को पूरे होने में लगभाग 10 माह लगेंगे . तो अब आप समझ लें की एक माह रुकी हुई क्रेडिट को अगले माह दे देने से कोई बड़ी राहत नहीं मिलती है और डीलर की कार्यशील पूंजी तो लम्बे समय के लिए फंस ही रही है.

यहाँ तो हमने केवल 1 लाख रूपये का उदाहरण दिया है लेकिन यदि यह रकम 1 करोड़ रूपये हो तो फिर आप कल्पना कीजिये कि  इसका असर और कितना  ज्यादा हो जाएगा.

4. इस लेख के बिंदु संख्या 3 में हमने अभी देखा कि किसी एक माह में रोकी गई इनपुट क्रेडिट का असर कितना ज्यादा हो रहा है और इसी कारण व्यवहारिक रूप से अपना कर का मासिक रिटर्न भरते समय GSTR-2B से अपने आप इनपुट क्रेडिट जो GSTR-3B में आती है उसे अपने आप बदल कर अपना बकाया टैक्स भर रिटर्न भर देते हैं . कभी – कभी तो इसके ये कारण होते हैं कि पुरानी कोई इनपुट क्रेडिट उनकी बकाया होती है लेकिन बहुत से मामले जिनमें रोकी हुई क्रेडिट को इग्नोर कर वह क्रेडिट ले ली जाती है जो की डीलर की बुक्स के हिसाब से होती है . अब इन मामलों में विभाग द्वारा नोटिस जारी किये जायेंगे और ये सब मिल कर प्रक्रियाओं को बढ़ाएंगे. जीएसटी की यह एक व्यवहारिक स्तिथि है लेकिन यह एक आदर्श स्तिथि नहीं है.

5. आइये अब देखें कि इनपुट टैक्स को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद क्या है ? यहाँ दो पक्षों से अर्थ है – सरकार और खरीदादार . खरीददार का पक्ष यह है कि वह माल खरीदता है और उसके साथ कर के पैसे भी चुकाता है जिसमें जीएसटी कर भी शामिल है और उस डीलर को पैसे देता है जिसे रजिस्ट्रेशन भी सरकार ने ही दिया है तो फिर यदि वह समय पर कर जमा नहीं कराता है या देरी से रिटर्न भरता है तो उस विक्रेता की गलती की सजा खरीददार को उसकी क्रेडिट रोक कर क्यों दी जाती है . सरकार का पक्ष यह है कि यदि उसे जो कर मिला ही नहीं तो वह इनपुट क्रेडिट कैसे दे . लेकिन यहाँ मुद्दे की बात यह है कि विक्रेता यदि समय पर कर नहीं जमा कराता है तो सरकार को उसके विरुद्ध कार्यवाही करनी चाहिए. क्रेता की इनपुट क्रेडिट तो ऐसे में इसी तरह वेट में भी रोकी जाती थी और यही सरकार की कर वसूली का सबसे सरल तरीका था लेकिन वेट में तो कमियां थी तभी तो जीएसटी लाया गया था लेकिन उसमें भी कमी है और यही कमी ईमानदार कर दाताओं को परेशान कर रही है. यह सोचने का विषय है .

6. जब वेट में भी खरीददार की इनपुट क्रेडिट विक्रेता द्वारा कर नही जमा करने पर रोक ली जाती है तो फिर जीएसटी में भी ऐसा ही किया जाता है तो फिर ऐतराज क्यों है ? इसके दो कारण है – एक तो हमने पहले देखा कि जीएसटी वेट की समस्याओं को हल करने के लिए लाया गया था और दूसरा यह है कि वेट में इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच को सही करने के लिए बहुत समय दिया जाता था लेकिन जीएसटी में तो इसके लिए बिल्कुल भी समय नहीं दिया जाता है और इस समय तो यह हो रहा है कि कि जिस माह में इनपुट क्रेडिट का मिस्मेच आता है उसी माह में क्रेता की इनपुट रोक ली जाती है और उससे टैक्स जमा करवा लिया जाता है .

7. एक विक्रेता A है जो कि क्रेता को B को माल बेच कर उससे जीएसटी एकत्र कर लेता है लेकिन वह यह कर जमा नहीं कराता और ना ही इस बिक्री को अपने रिटर्न में दिखाता है . ऐसा होने पर क्रेता B की इनपुट क्रेडिट रोक ली जाती है. लेकिन अब एक बात पर ध्यान दें कि सरकार को पता कैसे लगेगा कि A ने टैक्स लिया है और जमा नहीं कराया है . इसकी कोई भी व्यवस्था नहीं है . अब जब पता ही नहीं लगेगा की A ने बिक्री की है और टैक्स भी ले लिया है लेकिन इसे जमा नहीं कराया है तो उसके विरुद्ध टैक्स की चोरी की कार्यवाही कैसे होगी ? खरीददार का एक बड़ा ही वाजिब सवाल है कि विक्रेता उससे टैक्स लेकर सरकार को जमा नहीं कराता है लेकिन सरकार को इसका नाम तक पता चले ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है तो फिर इस कर को तार्किक कर कैसे कह सकते हैं.

आइये इस शिकायत का अध्ययन कर लेते हैं कि ऐसा क्यों है कि खरीददार का कोई भी रिटर्न ऐसा क्यों नहीं है जिससे वह विभाग को यह बता सके कि उसने माल किससे खरीदा है ताकि यदि वह कर जमा नहीं कराये तो सरकार कम से कम उसे पकड़ तो सके. क्या इस व्यवस्था के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया कि क्रेता भी अपनी खरीद की सूचना विभाग को दे और यदि विक्रेता ऐसी क्रेता की खरीद को अपने रिटर्न में दिखा कर कर नहीं चुकाता है तो फिर उसकी जानकारी विभाग को हो जाए. इस समय ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.

आइये देखें क्या है यह समस्या ? जीएसटी के रिटर्न में इनपुट क्रेडिट लेते समय क्रेता सिर्फ यह लिख सकता है कि उसे इनपुट क्रेडिट कितनी लेनी है लेकिन कंही भी ऐसी कोई सूचना देने का स्थान नहीं है जहां वह यह बता सके कि उसने किन डीलर्स से माल खरीदा है . क्या जीएसटी कानून को मूल रूप से बनाने वाले कानून निर्माताओं से यह गलती हुई है तो ऐसा नहीं है . इसके लिए हम आपको बता रहे है कि प्रारम्भिक रूप से जो जीएसटी कानून बनाया गया था उसमें क्या व्यवस्था थी : –

बिक्री या सप्लाई के रिटर्न GSTR-1 जो कि 10 तारीख तक भरना होगा . इस रिटर्न से उनके खरीददारों के रिटर्न GSTR-2 में उनकी खरीद अपने –आप चली जायेगी. विक्रेताओं के द्वारा भरे जाने वाले रिटर्न्स से अपने रिटर्न में आयी या नहीं आयी खरीद को चेक कर सही करना होगा एवं जो एंट्रीज़ छूट  गई है उन्हें खरीददार इसको दर्ज करना होगा और यह भी GSTR-2 में ही दर्ज होगा जिसे विक्रेता स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है और ऐसा होने पर ही इनपुट क्रेडिट का मिस्मेच बनेगा .

इस प्रकार से आप देखिये कि जीएसटी कानून में जो प्राम्भिक व्यवस्था थी उसमें खरीददार को अपनी खरीद को व्यक्त करने की व्यवस्था थी और उसके लिए GSTR-2 नाम का फॉर्म था और वेट में भी यह व्यवस्था थी कि क्रेता अपनी खरीद को रिपोर्ट करता था और विक्रेता अपनी बिक्री और फिर इन दोनों को मिला कर मिस्मेच निकलता था लेकिन इस समय लागू जीएसटी के सिस्टम में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं शुरू की गई है जिससे यह पता लगता है की यह सिस्टम अभी भी आधा अधूरा है .

लेकिन यह व्यवस्था 1 जुलाई 2017 से जब से लागू हुआ लागू ही नहीं की गई लेकिन इसके लिए डीलर्स तो कम से कम जिम्मेदार नहीं है लेकिन इस सब अव्यवस्था का दंड तो ईमानदार करदाताओं को भुगतना पड़ रहा है . जीएसटी में इनपुट का मिस्मेच को इस कारण से आप एक अव्यवस्था भी कह सकते हैं. अब या तो कानून निर्माताओं को यह फॉर्म GSTR-2 लागू करना चाहिए. यह अब तक लागू नहीं हुआ इसका कारण क्या है ? क्या जीएसटी का नेटवर्क इसके लिए तैयार नहीं था लेकिन अब तो 5 साल से अधिक हो गए हैं और अब क्या समस्या है कि यह रिटर्न अभी तक भी जारी नहीं हुआ है .

कब मिलेगी इनपुट क्रेडिट

8. अभी तक हमने जीएसटी में इनपुट क्रेडिट के महत्त्व को समझा है आइये अब देखें कि किसी भी डीलर इनपुट क्रेडिट का हकदार कब होगा . इसके लिए आपको धारा 16 देखनी होगी और इसके लिए नियम संख्या 36 है अर्थात आपको जीएसटी कानून की धारा 16 और नियम 36 देखना होगा – Section 16 एवं rule 36 .

(i). एक रजिस्टर्ड डीलर अपने व्यापार के दौरान या अपने व्यापार को बढाने के लिए उसे सप्लाई किये गए माल या सेवा अथवा दोनों की इनपुट क्रेडिट लेने के हक़दार होंगे . इसके लिए कुछ नियम बनाये गए है और कुछ अपवाद भी है जिनका अध्ययन हम आगे करेंगे लेकिन सामान्य तौर हम सरल भाषा में कहें तो पर अपने बिजनेस के लिए जो भी माल अथवा सेवा की सप्लाई प्राप्त करते है इस पर लगे कर की इनपुट क्रेडिट उसे मिल जायगी.

यहाँ हमें दो मुख्य बातें ध्यान रखनी चाहिए वह है कि खरीदी गई वस्तु या सेवा को व्यापार के दौरान या उसे बढाने के लिए होनी चाहिए अर्थात अपने व्यापार के लिए जो भी वस्तु या सेवा आप खरीदते हैं उस पर चुकाए कर की सामान्यतया आपको इनपुट मिल जायेगी.

यहाँ यह ध्यान रखे माल या सेवा बिजनेस में या तो काम आये या खरीददार का आशय या इरादा खरीदते समय उसे काम में लेने का हो तब भी इसकी इनपुट क्रेडिट मिल जाती है . काम में लेने का आशय या इरादा यहाँ महत्वपूर्ण है अर्थात डीलर का खरीदते समय इरादा या आशय काम में लेने का है तो इनपुट क्रेडिट , अन्य शर्तो का पालन होने पर मिल जायेगी और यदि फिर वास्तविकता में वह सेवा या वस्तु बिजनेस में काम नहीं आती है तो फिर यह इनपुट क्रेडिट रिवर्स हो जायेगी .

इस इनपुट क्रेडिट को प्राप्त करने की शर्ते हैं जिन्हें हम आगे अध्ययन करेंगे.

यह जीएसटी कानून की धारा 16(1) में लिखी है .

9.आइये अब देखें कि एक डीलर के पास इनपुट क्रेडिट लेने के लिए क्या -क्या दस्तावेज होने चाहिए:-

(a). तो सबसे पहले उसके पास अपने सप्लायर द्वारा जारी किया गया टैक्स इनवॉइस होना चाहिए और यदि इनपुट क्रेडिट डेबिट नोट से ली जानी है तो सप्लायर द्वारा जारी डेबिट नोट होना चाहिए.

(b). इस इनवॉइस अथवा डेबिट नोट की डिटेल्स सप्लायर द्वारा अपने आउटवर्ड सप्लाई के रिटर्न GSTR-1 में नियमानुसार दिखा दिया हो.

(c). खरीददार ने माल अथवा सप्लाई को प्राप्त कर लिया है . यहाँ यह ध्यान रखने कि डीलर ने यदि माल अथवा सर्विस को प्राप्त कर लिया हो यह इनपुट क्रेडिट प्राप्त करने के लिए यह एक जरुरी शर्त है. यदि खरीददार ने यदि माल या सर्विस की डिलीवरी किसी अन्य व्यक्ति को करने के निर्देश दिए है और विक्रेता ने ऐसा कर दिया ही तब भी यह माना जाएगा कि माल या सेवा खरीददार को प्राप्त हो गई है.

इस तरह के माल प्राप्त करने को बिल टू शिप टू के व्यवहारों में होते है जिसमें एक खरीददार तो होता है लेकिन माल की डिलीवरी उसके कहने पर किसी और व्यक्ति को दी जाती है और ऐसे में खरीददार को माल की डिलीवरी तो नहीं मिलती है लेकिन उसके कहने पर डिलीवरी किसी अन्य व्यक्ति को दे दी जाती है और ऐसे में डिलीवरी खरीददार को ही दी हुई मानी जाती है . ये किस तरह से व्यवहार होते हैं आइये समझने की कोशिश करें :-

X and Company ने Y and Company से 10 लाख रूपये माल खरीदा जिसकी डिलीवरी उसे A and Company को देनी है . अब X and Company के पास दो विकल्प है कि या तो वह माल पहले अपने पास मंगवाए और फिर वो स्वयम ही उस माल को A and Company को भेजे . दूसरा विकल्प यह है कि वह Y and Company को निर्देश दे कि वह माल A and Company को सीधे ही भेज दे . इस व्यवहार का बिल इस तरह बनेगा कि यह बिल टू तो X and Company को करगा और शिप टू A and Company को कर इस माल की डिलीवरी A and Company को कर देगा और इस प्राकर की डिलीवरी को भी X and Company को डिलीवरी माना जाएगा.

(d). जो रजिस्टर्ड डीलर इनपुट क्रेडिट लेना चाहता है उसे इसकी नियमानुसार सूचित कर दिया गया है . यह सूचना इस समय GSTR-2B के माध्यम से दी जाती है और इस इनपुट पर जीएसटी कानून के तहत कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए अर्थात यह प्रतिबंधित इनपुट क्रेडिट नहीं होनी चाहिए.

(e). इस सप्लाई पर सप्लायर द्वारा टैक्स का भुगतान कर दिया गया है . यह भुगतान केश में भी हो सकता है या उसकी खुद की इनपुट क्रेडिट से.

(f). सप्लायर ने नियमानुसार अपना रिटर्न GSTR-3B भर दिया है .

आइये इस इन सभी शर्तों को सरल व्यापारिक भाषा में एक ही बार में समझने का प्रयास करें तो इसके दो पक्ष है एक तो है खरीददार और दूसरा है विक्रेता . आइये देखें कि क्रेता से जुडी शर्ते क्या है तो वे हैं कि मुख्यरूप से क्रेता के पास टैक्स इनवॉइस होना चाहिए और उसे माल या सेवा प्राप्त हो जानी चाहिए . आइये अब दूसरा पक्ष देखें जो कि विक्रेता पक्ष है और उसके लिए शर्त है कि वह अपना बिक्री का रिटर्न समय से भरे , कर समय से चुकाए और आपने बिक्री के रिटर्न में क्रेता को की गई बिक्री को नियमानुसार दिखा दे अर्थात वह अपना GSTR-1 एवं GSTR-3B नियमानुसार भर दे.

अब देखिये यदि क्रेता अपनी शर्ते पूरी कर दे यह तो उसके स्वयं के हाथ में है लेकिन उसका विक्रेता अपना रिटर्न समय पर भरे और कर समय पर चुकाए यह क्रेता के हाथ में नहीं होता है लेकिन उसे क्रेडिट तब तक नहीं मिलती है जब तक कि विक्रेता अपने सभी दायित्व पूरे कर दे और इससे क्या समस्या आती है उसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके है . यहाँ एक विचारणीय प्रश्न है कि क्रेता के हाथ में क्या साधन है कि विक्रेता को मजबूर कर सके कि वह टैक्स जमा कराये और समय से रिटर्न भरे . यह शक्तियाँ तो सरकार को प्राप्त है तो फिर इसके लिए क्रेता की इनपुट क्रेडिट क्यों रोकी जाती है यह एक सवाल है जो हर ईमानदार खरीददार के दिमाग में आता है .

यह सभी शर्तें जीएसटी कानून की धारा 16(2) में लिखी है .

जीएसटी नियम 36(1) के अनुसार जीएसटी क्रेडिट लेने के लिए खरीददार के पास नियमानुसार इन्वोइस , डेबिट नोट इत्यादि होने चाहिए और उनमें वो सभी सूचनाएं दर्ज होनी चाहिए जो कि जीएसटी कानून की धारा 31 और 34 में निर्देशित है और इसके अतिरिक्त नियम 36(2) के अनुसार  विक्रेता ने इस बिक्री को GSTR-2 में भी दर्शा दी है.

यहाँ एक बात ध्यान रखें कि इसी नियम 36(2) के एक प्रोविसो के अनुसार यदि क्रेता के पास जो इन्वोइस इत्यादि में नियमानुसार सभी सूचनाएं नहीं है लेकिन उसमें क्रेता , विक्रेता का जीएसटी नम्बर है , माल का नाम , कीमत एवं टैक्स दर्ज है तो फिर इसकी क्रेडिट ली जा सकती है लेकिन ध्यान रखें कि यह छूट केवल बिल में दर्ज सूचनाओं के सम्बन्ध में है लेकिन बाकी शर्तें तो पूरी होना जरुरी है .

10. कई बार माल इन्स्टालमेन्ट में सप्लाई किया जाता है . आइये देखें ऐसा कब होता है जब कि लोट में आर्डर दिया जाता है और ऐसे में माल टैक्स इनवॉइस से नहीं बल्कि चालान से सप्लाई किया जाता है तो ऐसे में इस लोट की अंतिम सप्लाई के पूरा होने के बाद ही इनपुट क्रेडिट खरीददार मिलती है .

11. एक प्रावधान ऐसा भी है कि क्रेता और विक्रेता इनपुट क्रेडिट प्राप्त करने की सभी शर्तें पूरी होने पर इनपुट क्रेडिट तो मिल जाती है लेकिन क्रेता के एक अन्य कृत्य के कारण इस इनपुट क्रेडिट को उसके आउटपुट टैक्स में जोड़ कर ब्याज सहित भुगतान करना होता है . आइये देखें यह अनोखा प्रावधान क्या है और इसके व्यवहारिक प्रभाव क्या है ?

देखिये एक क्रेता ने माल खरीदा और उसका भुगतान कर सहित टैक्स इनवॉइस की तारीख से 180 दिन के भीतर नहीं किया है तो फिर उस क्रेता को अपनी इस तरह की इनपुट क्रेडिट को उस माह की आउटपुट टैक्स में जोड़ दिया जाएगा और इसके साथ इस पर ब्याज का भी भुगतान करना होगा. .

अब जब इस खरीद का भुगतान टैक्स सहित कर  दिया जाता है तो इसका इनपुट क्रेडिट फिर से मिल जाती है.

आइये इस प्रावधान को भी अच्छी तरह से समझ ले कि इस प्रावधान को हमने यहाँ अनोखा प्रावधान क्यों कहा है ;-

(i). यह प्रावधान ऐसा लगता है कि इसलिए बनाया गया है विक्रेताओं को समय पर भुगतान मिल जाये लेकिन जीएसटी कानून में विक्रेता इस बात की रिपोर्ट करे कि क्रेता ने उसे भुगतान नहीं किया है ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है और इसकी सूचना देने की जिम्मेदारी  भी क्रेता को दी गई है कि उसने विक्रेता को निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया है !!!

(ii). व्यवहारिक रूप से क्रेता इस प्रावधान का पालन कर रहें है या नहीं  ये तभी पता चलता है जब कि उसका सर्वे या जांच हो . इसके अलावा इस प्रावधान का पालन हो रहा है या नहीं इसको जांचने की कोई व्यवस्था है.

(iii). इस प्रावधान में लिखा है कि यदि खरीददार भुगतान नही किया है का अर्थ “पूरे भुगतान” से यदि है तो फिर कुछ भुगतान रह जाने पर भी क्या यह प्रावधान लागू हो जाएगा और ऐसे में भी क्या पूरी इनपुट क्रेडिट ही आउटपुट में जोड़ी जायेगी. यदि ऐसा है तो यह प्रावधान व्यवहारिक रूप से लागू होना थोड़ा मुश्किल है और कानून की मंशा भी यह नहीं हो सकती है .

आइये देखें कि यह समस्या कैसे खड़ी हुई कि भुगतान को पूरा भुगतान समझ लिया जाए . इस सम्बन्ध में एक नियम 37(1) है जो कि जीएसटी रूल्स 2017 का हिस्सा है और इस नियम में पहले तो आनुपातिक इनपुट क्रेडिट को रिवर्स करने को कहा गया था लेकिन अभी हाल ही में इस नियम में दिनांक 1/10/2022 संशोधन कर आनुपातिक शब्द हटा लिया गया है जिससे यह प्रतीत होता है कि अब पूरा ही इनपुट क्रेडिट रिवर्स करना होगा लेकिन कानून की यह मंशा प्रारम्भ से ही थी कि इस सम्बन्ध में आईटीसी को उतना ही रिवर्स करना होगा जितना भुगतान कम किया गया है . अब इस समस्या के बारे में जीएसटी कौंसिल ने भी अभी दिनांक 17 दिसम्बर को अपनी मीटिंग में भी स्पष्ट कर दिया है कि अब वे इस नियम 37(1) में दिनांक 01-10-2022 से ही “आनुपातिक” शब्द फिर से ला रहे हैं. इस तरह अब इस प्रावधान से यह समस्या अपने आप हट जायेगी.

12. इनपुट क्रेडिट को लेकर एक प्रावधान है जो कि आयकर से जुड़े डेपरीसिएशन से जुडा है और इस प्रावधान ने प्रारम्भ में बहुत सी भ्रान्तियां पैदा की थी और कई जगह इसका अर्थ यह लगाया गया कि जहाँ फिक्स्ड एसेट्स पर डेपरीसिएशन क्लेम किया है तो उस पर भुगतान किये गए जीएसटी का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा. लेकिन वस्तुस्तिथि यह नहीं है . इस प्रावधान का अर्थ यह है कि आप एसेट की कीमत में जीएसटी जोड़ कर उसे एसेट अकाउंट में लिया है और इस पूरी राशि पर डेपरीसिएशन ले लिया है तो आपको इनपुट इसलिए नहीं मिलेगा क्यों कि आपने जीएसटी की राशि को भी एसेट अकाउंट में डाल दिया है लेकिन व्यवहारिक रूप से कोई ऐसा नहीं करता है . सामान्य रूप से जब आप एक एसेट खरीदते है तो एसेट की कीमत को तो एसेट अकाउंट में और जीएसटी को जीएसटी अकाउंट में ले जाते हैं और आप ऐसा करेंगे तभी आपको इनपुट क्रेडिट मिलेगा.

इनपुट क्रेडिट और डेपरीसिएशन की एकाउंटिंग करने का सामान्य नियम यही है और इसी कारण यह प्रावधान बनाया गया है कि जो किसी एसेट में जुडा जीएसटी का अमाउंट है उसपर यदि इनपुट क्रेडिट लेनी है तो एसेट अकाउंट में केवल एसेट की कीमत ले जाकर उस पर ही डेपरीसिएशन क्लेम करना है और जीएसटी की राशी को आपको इनपुट क्रेडिट के रूप में लेना है.

आइये इस प्रावधान को एक उदाहरण के जरिये समझने का प्रयास करें – X ने एक मशीन खरीदी और इसकी कीमत 10 लाख रूपये है और इस पर 18 % की दर से 1.80 लाख रूपये का जीएसटी बना है और इस तरह कुल कीमत 11.80 लाख रूपये होती है .

अब यदि X 10 लाख रूपये मशीन खाते में लिखता है और 1.80 लाख जीएसटी खाते में ले जाता है तो फिर 10 लाख रूपये पर वह डेपरीसिएशन लेगा और उसे 1.80 लाख रूपये की इनपुट क्रेडिट मिलेगी .

लेकिन यदि X जीएसटी सहित समस्त 11.80 लाख रूपये को मशीन खाते में डेबिट किया है और 11.80 लाख रूपये पर डेपरीसिएशन लिया है तो फिर 1.80 लाख रूपये की जीएसटी क्रेडिट नहीं मिलेगी.

13. आइये अब इनपुट क्रेडिट से जुडा एक और विवादास्पद प्रावधान देखते है जो कि इनपुट क्रेडिट लेने की अवधि से सम्बंधित है कि किस अवधि तक इनपुट क्रेडिट ली जा सकती है . इस प्रावधान के अनुसार यदि क्रेता ने एक निश्चित तिथि तक क्रेडिट नहीं ली है तो फिर उसका यह क्रेडिट लेने का अधिकार ही समाप्त हो जाएगा. आइये देखें क्या है यह प्रावधान और क्यों हमने इसे दोहरे कर की संज्ञा दी है. देखिये किसी भी वित्तीय वर्ष की इनपुट क्रेडिट जीएसटी कानून की धारा 16(4) के अनुसार उस वर्ष के समाप्त होने के बाद आने वाले 30 नवम्बर तक ली जा सकती है . आइये इसे एक उदहारण से समझने की कोशिश करें –

X ने Y से माल खरीदा और यह माल था 10 लाख रूपये का और उस पर जीएसटी हुआ 1.80 लाख रूपये क्यों कि उस माल पर कर की दर 18 प्रतिशत है . X ने Y को भुगतान कर दिया है और Y ने भी इस टैक्स को पूरा भर दिया है और अपना रिटर्न भी समय पर भर दिया . माल की डिलीवरी भी X को मिल गई और यह प्रतिबंधित क्रेडिट भी नहीं है. अब तो यह क्रेडिट X को मिलनी ही है. लेकिन यदि जिस माह में माल खरीदा है उस माह में X यह क्रेडिट क्लेम नहीं करता है तो वह अगले माह कर सकता है और अंतिम रूप से वह इस क्रेडिट को जिस वित्तीय वर्ष से वह बिल सम्बंधित है उस  वितीय वर्ष की समाप्ति के बाद आने वाले 30 नवम्बर तक ले सकते हैं . यदि ऐसा नहीं किया है तो फिर यह क्रेडिट उस डीलर को नहीं मिलेगी.

सरकार का पक्ष यह है कि इनपुट क्रेडिट लेने के समय में कोई तो अनुशासन तो हो इसीलिये यह समय सीमा तय की गई है . लेकिन कई बार यह प्रावधान बहुत ही कठोर हो जाता है . डीलर का यह पक्ष है कि वह कर की राशी तो विक्रेता को दे ही चुका है और उसने जमा भी करा दी है और अब उसे उसकी इनपुट क्रेडिट नहीं दी जाएगी तो उसे फिर से यह रकम जमा करवानी होगी तो फिर यह तो दोहरा कर ही हुआ. ये स्तिथि तब भी उत्पन्न होती है जब कि कोई डीलर अपने रिटर्न किन्ही कारणों से भर नहीं पाता है और वे रिटर्न वो वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद आने वाले नवम्बर के बाद भरना चाहता है तो उसे ब्याज और लेट फीस तो भरनी ही पड़ेगी लेकिन उसके साथ ही उसकी इनपुट क्रेडिट भी नहीं मिलेगी तो इस प्रकार से उस डीलर को अपना पूरा आउटपुट टैक्स ही मय ब्याज के जमा कराना पडेगा.

यह ठीक है कि अपने रिटर्न सबको समय पर भरने चाहिए , लम्बे समय तक रिटर्न नहीं भरने पर रजिस्ट्रेशन भी कैंसिल हो जाते हैं लेकिन जीएसटी के पहले के सालों में कई डीलर्स के साथ यह दुर्घटना तो हुई ही है . अभी भी किसी कारण से कोई डीलर से इनपुट क्रेडिट लेना रह जाता है तो उसके लिए भी संकट भयंकर है  .

क्या है प्रतिबंधित इनपुट क्रेडिट

14. आइये अब देखें कि प्रतिबंधित क्रेडिट क्या है . देखिये ये सभी जीएसटी कानून की धारा 17 में दिया गया है कि किन -किन सेवाओं और वस्तुओं पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी या किन किन परिस्थितियों में इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी भले ही उनकी खरीद पर जीएसटी का भुगतान किया हो और यही जीएसटी की प्रतिबंधित क्रेडिट कहलाती है .

आइये हम इस धारा के विभिन्न प्रावधान एक एक कर देखते हैं. देखिये इन सबमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो धारा 17(5) में बताये गए प्रतिबन्ध है जिनमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किन -किन माल और सेवाओं की इनपुट क्रेडिट बिलकुल नहीं मिलेगी. लेकिन आइये पहले हम इस धारा 17 के अन्य प्रतिबन्ध या इनपुट लेने के तरीकों के बारे में देख लें :-

(a).  यदि आप कोई माल या सेवा खरीदते हैं और उसमें से कुछ हिस्सा तो आप व्यापार के लिए काम में लेते है और बाकी हिस्सा अन्य काम में लेते हैं तो ऐसे में  जितना हिस्सा बिजनेस में काम आया है उतने ही इनपुट क्रेडिट ही मिलेगी .

(b). आइये एक और स्थिति देखें कि कोई सेवा या माल खरीदा गया है और उसका उपयोग कर योग्य और कर मुक्त माल के लिए उपयोग किया जाता है तो फिर इनपुट क्रेडिट भी उतनी ही मिलेगी अर्थात जितना उपयोग कर योग्य माल या सेवा के लिए किया गया है . यहाँ एक बात ध्यान रखिये की कर योग्य माल में वह माल भी शामिल है जो की जीरो रेटेड है अर्थात एक्सपोर्ट किया गया है या SEZ में  सप्लाई किया गया है .. इस गणना को करते समय करमुक्त माल जो कि एक्सपोर्ट किया गया है या SEZ को बेचा गया है तो वह भी करयोग्य के समकक्ष माना जाएगा.

(c). धारा 17 में एक बैंकिंग कंपनी या फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन के सम्बन्ध में इनपुट क्रेडिट क्लेम करने का अलग प्रावधान किया गया है .  बैंकिंग कम्पनी यदि चाहे तो ऊपर बताये तरीके से आनुपातिक इनपुट क्रेडिट ले ले या फिर उनके लिए एक विकल्प और है और वह है कि वे अपने कुल इनपुट क्रेडिट का आधा ले ले और आनुपातिक इनपुट क्रेडिट का प्रावधान का पालन नहीं करे अर्थात एक बैंकिंग कंपनी अपनी माल की, सर्विस की और कैपिटल गुड्स की आधी इनपुट क्रेडिट ले सकते हैं.

लेकिन यह ध्यान रखें कि एक पेन से रजिस्टर्ड दो या अधिक जीएसटी नम्बर है और उनमें से किसी से बैंकिंग कम्पनी को सेवा प्राप्त होती है तो यह 50 प्रतिशत वाला प्रतिबन्ध लागू नहीं होता है .

यहाँ यह भी ध्यान रखें कि 50 प्रतिशत की यह इनपुट मासिक आधार पर लेनी है और शेष 50 प्रतिशत की इनपुट क्रेडिट निरस्त हो जायेगी . किसी एक वर्ष एक लिए इस विकल्प को पूरे वित्तीय वर्ष में पालन करना होगा.

आइये अब देखें कि इस धारा 17 की उपधारा 5 जो सबसे महत्वपूर्ण है उसमें क्या प्रतिबन्ध इनपुट क्रेडिट के सम्बन्ध में लगाये गए है :-

(a). पहला प्रतिबन्ध यह है कि यात्री वाहन की खरीद मरम्मत और बीमा पर किसी भी प्रकार की कोई इनपुट क्रेडिट नहीं दी जायेगी . इसके कुछ अपवाद भी दिए गए हैं जिनकी चर्चा हम अब आगे करेंगे लेकिन सामान्य रूप से आप यह मान कर चलें की मोटर कार, मोटर साइकिल , स्कूटर इत्यादि मोटर वाहन जो व्यक्तियों के परिवहन के काम आते हैं उनकी क्रेडिट नहीं मिलती है. यदि आप अपने बिजनेस में उपयोग के लिए कार ,स्कूटर , मोटर साइकिल खरीदी है और उस पर जीएसटी का भुगतान किया है तो भी उसका इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा. इसके साथ ही उस पर होने वाली सर्विस , मरम्मत और बीमा पर लगने वाले जीएसटी की इनपुट क्रेडिट भी नहीं मिलेगी.

अब आपका सवाल होगा की क्यों नहीं मिलेगी तो इसका कोई तार्किक जवाब नहीं है जब एसेट बिजनेस में उपयोग के लिए खरीदी गई है और उसमें उपयोग हो रही है तो फिर जीएसटी कानून के तहत सभी शर्तें पूरी होने पर उसकी क्रेडिट मिलनी चाहिए. हाँ आपका कहना बिलकुल सही है क्यों कि मान लीजिये कि इनमें से कुछ बिजनेस के साथ -साथ व्यक्तिगत या अन्य उपयोग में भी आती है तो फिर उसके लिए लिए आनुपातिक इनपुट क्रेडिट का प्रावधान है और वही  इन वाहनों पर भी लागू होना चाहिए लेकिन ऐसा है नहीं. आनुपातिक इनपुट क्रेडिट के प्रावधान जीएसटी कानून की धारा 17(1) और 17(2) में है लेकिन एक धारा 17(5) है जो कि इन वाहनों पर इनपुट क्रेडिट को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर देती है.

ध्यान रखें कि यह प्रतिबन्ध केवल यात्री वाहनों पर ही है माल वाहक वाहन इसके अपवाद है अर्थात यदि आप माल के परिवहन के लिए वाहन खरीदते हैं तो फिर यह प्रतिबन्ध लागू नहीं होगा और आप इनपुट क्रेडिट ले सकेंगे.

आइये यात्री वाहन ख़रीदे है तो उनपर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी यह तो हमने ऊपर देख लिया है लेकिन आइये इसके अपवाद देखें की कब आपक ओयः क्रेडिट मिल जाएगी –

1. उस यात्री वाहन की यात्री क्षमता ड्राईवर को मिलाते हुए 13 से अधिक होनी चाहिए अर्थात 14 या उससे अधिक क्षमता वाले यात्री वाहन की इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी .

2. यदि इस यात्री वाहन अर्थात मोटर कार , स्कूटर , मोटरसाइकिल इन्त्यादी की क्रेडिट तब ही मिलेगी जब कि डीलर इनके खरीदने – बेचने के बिजनेस में लगा है .

3. यदि डीलर यात्रियों को लाने -ले जाने के बिजनेस में लगा है.

4. यदि डीलर इन वाहनों को चलाना सिखाने के व्यवसाय में लगा है.

इस तरह से आपको समझ आ गया होगा की सामान्यतया यात्री वाहन के खरीद , बीमा , सर्विस और मरम्मत पर खर्च किये गए और चुकाए हुए जीएसटी की क्रेडिट नहीं मिलती है .

इसी तरह का प्रतिबन्ध जहाज और हवाई जहाज की खरीद , बीमा , सर्विस और मरम्मत इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है . इन पर भी अपवाद निम्नप्रकार से है :-

1. जहाज और हवाई जहाज की खरीद , बीमा , सर्विस और मरम्मत की क्रेडिट तब ही मिलेगी जब कि डीलर इनके खरीदने – बेचने के बिजनेस में लगा है .

2. जहाज और हवाई जहाज की खरीद , बीमा , सर्विस और मरम्मत की क्रेडिट तब ही मिलेगी यदि डीलर यात्रियों को लाने -ले जाने के बिजनेस में लगा है.

3. जहाज और हवाई जहाज की खरीद , बीमा , सर्विस और मरम्मत की क्रेडिट तब ही मिलेगी यदि डीलर इन वाहनों को चलाना सिखाने के व्यवसाय में लगा है.

(b) . निम्नलिखित माल और सेवाओं की खरीद पर दिए गए जीएसटी की इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है :-

क्रम संख्या

NAME OF SERVICE/GOODS हिंदी अनुवाद
1. Food and Bevrages खाना और पेय पदार्थ
2. Outdeoor catering बाह्य खान पान की सेवा
3. Beauty Treatment सौन्दर्य उपचार
4. Health Services स्वास्थ सेवाएं
5. Cosmetics and Plastic Surgery Service प्रसाधन और प्लास्टिक शल्य चिकित्सा
6. Leasing Hiring and of Motor Vehicles, Vessels and Aircrafts – Where ITC is restricted as mentioned above with exception there of. मोटर वाहन , जहाज  और हवाई जहाज की लीजिंग और किराए पर लेना .- जिनके बारे में ऊपर बताया गया है कि उनपर ITC नहीं मिलेगी और जिसके अपवाद भी ऊपर बताये गए है .
7. Life Insurance and Health Insurance जीवन एवं स्वास्थ बीमा

ये सात सेवाएं है जिनके ऊपर चुकाए जीएसटी की क्रेडिट नहीं मिलती है . इनका नाम हमने हिंदी और अंग्रेजी दोनों में दिए है ताकि आपको समझने में आसानी रहे.

यहाँ ध्यान रखें कि मोटर वाहन , जहाज  और हवाई जहाज की लीजिंग और किराए पर लेने की सेवा पर इनपुट क्रेडिट उन्ही वाहन की रुकेगी जो उस श्रेणी में जिनकी खरीद और मरम्मत बीमा इत्यादि पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है और यह सब हमने पहले समझा दिया है .

अब ये देखिये कि इन सेवाओं पर इनपुट क्रेडिट कब मिल सकती है तो फिर आप अगले पेरेग्राफ को एक बार ढंग से पढ़ लें और समझ लें –

इन सेवाओं या इन माल पर जो की ऊपर बताये गए हैं और जिन पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है उनकी खरीद पर इनपुट क्रेडिट तब मिलेगी जब कि जिस श्रेणी में इस माल या सर्विस की इनपुट सप्लाई है उसी श्रेणी की आउटपुट सप्लाई में यह माल या सेवा काम आये और यदि ऐसा है तो आपको इसकी इनपुट क्रेडिट मिल जायगी . इसके अलावा यह यदि किसी मिक्स्ड सप्लाई या कम्पोजिट सप्लाई का पार्ट है तब भी इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी .

मिक्स्ड और कम्पोजिट सप्लाई वह होती है जब एक से अधिक माल या सेवा को एक ही सप्लाई के अधीन एक ही मूल्य पर बेचा जाता है . मिक्स्ड और कम्पोजिट सप्लाई पर इसको पूरा समझना एक अलग विषय है लेकिन आप यह समझ लें कि ऊपर लिखे माल या सेवा को , जिनकी इनपुट क्रेडिट नही मिलती है , को यदि उसी श्रेणी में बेचा जाए या वे माल या सेवाएँ किसी कंपोजिट या मिक्स्ड सप्लाई का भाग है तो फिर यह इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी.

(c). किसी भी क्लब , हेल्थ क्लब या फिटनेस सेंटर की मेम्बरशिप की फीस पर चुकाए गए जीएसटी की इनपुट क्रेडिट नही मिलेगी. यदि आपने किसी क्लब , हेल्थ क्लब या फिटनेस सेंटर की मेम्बरशिप ली है या आपके बिजनेस में काम कर रहे किसी कर्मचारी को आपने  इसकी मेम्बरशिप दिलाई तो भी इनसे क्रेडिट आपको नहीं मिलेगी.

(d). छुट्टी या अपने घर जाने के लिए कर्मचारियों को दिया जाने वाला यात्रा लाभ  या यात्रा छूट पर किये गए खर्चे पर किये भुगतान की जीएसटी की इनपुट नहीं मिलेगी.

किसी कानून के तहत अपने कर्मचारियों यात्रा लाभ  या यात्रा छूट को उपलब्ध करना जरुरी हो तो फिर इनकी इनपुट क्रेडिट पर कोई प्रतिबन्ध नही रहेगा.

(e). स्थायी सम्पति (प्लांट एवं मशीन को छोड़ते हुए) के निर्माण में काम में ली गई वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस में लगे जीएसटी की क्रेडिट नहीं मिलेगी. लेकिन वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट में लगे जीएसटी की क्रेडिट तब मिल जायेगी जब कि ऐसी वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस किसी अन्य वर्क कॉन्ट्रैक्ट सर्विस के लिए इनपुट क्रेडिट का काम करती हो .

आइये देखें कि इसका क्या अर्थ है . इसके लिए एक उदहारण से अच्छी तरह समझ आ जाएग :-

X and Company अपने व्यापार के लिए एक स्थायी सम्पति का निर्माण किया और उसके लिए Y and Company से वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस ली है और इस वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस पर लगे हुए जीएसटी की क्रेडिट नहीं मिलेगी. लेकिन यदि यह वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस प्लांट एवं मशीनरी के निर्माण ली गई है तो उसकी इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी .

इसके अतिरिक्त आइये एक और उदाहरण देखें :-

X and Company खुद एक वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस देते है और इसके दौरान उन्होंने Y and Company से वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस ली है तो उन्हें उस सर्विस की इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी क्यों कि यह ली गई वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस एक अन्य वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट सर्विस के लिए इनपुट सर्विस है.

(f). स्थायी सम्पति (प्लांट एवं मशीनरी को छोड़कर ) के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री की खरीद पर लगे कर की इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है भले ही यह स्थायी सम्पति व्यापार में ही काम क्यों नहीं आती हो. इसे आप यों एक उदहारण से समझ लें कि यदि आप बिल्डिंग मटेरियल खरीदते हैं और उसे स्थायी सम्पति के निर्माण में काम में लेते हैं और यह स्थायी सम्पति आपके बिजनेस में काम आती है तब भी आपको यह क्रेडिट नहीं मिलती है.

यह एक अप्राकृतिक और अतार्किक कानूनन बंधन है जिसके कारण एक इनपुट टैक्स क्रेडिट रोक ली गई है और इसके पीछे कोई तर्क नहीं है बस यह एक कानून है और आपको इसका पालन करना है.

आप यहाँ एक सवाल पूछ सकते हैं की क्या बिल्डिंग मटेरियल जैसे सीमेंट इत्यादि की खरीद की इनपुट क्रेडिट कभी नहीं मिल सकती ?

इसका जवाब यह है कि यदि बिल्डिंग मटेरियल स्थायी सम्पति के निर्माण के लिए उपयोग किया गया है तो इसकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी लेकिन यदि इसका सामग्री का उपयोग मरम्मत इत्यादि के लिए किया गया है तो फिर यह इनपुट क्रेडिट नहीं रुकेगी अर्थात इनपुट क्रेडिट तभी रुकेगी जब यह व्यय पूंजीगत हो . इसे इस तरह समझ लें कि यदि इस सामग्री के खर्च को मरम्मत इत्यादि के नाम से प्रॉफिट एंड लोस अकाउंट में डेबिट किया गया है तो उसकी इनपुट क्रेडिट मिल जाएगी. इस प्रॉफिट एंड लोस में डेबिट किये गए खर्च को हम निम्न नामों से जान सकते हैं जो कि इस सेक्शन में बताया गया है :-

Reconstruction
Renovation
Addition
Alteration

इन हेड्स में यदि खर्च किया जाता है और इसे प्रॉफिट एंड लोस अकाउंट में खर्च के रूप में डेबिट किया गया तो फिर बिल्डिंग मटेरियल की खरीद में शामिल इनपुट क्रेडिट मिल जायेगी . यह भी ध्यान दें कि यदि इस खर्च को भी स्थायी सम्पति में जोड़ कर बैलेंस शीट में ले लिया गया है तब फिर इसकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी.

(g). कम्पोजीशन डीलर्स से ख़रीदे गए माल या सेवा पर चुकाए गए कर की इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है . वैसे भी आप ध्यान दें कि धारा 10 के तहत आने वाले कम्पोजीशन डीलर्स अपने सप्लाई बिल में कर लगा ही नहीं सकते इसलिए इसकी इनपुट क्रेडिट वैसे भी नहीं मिल सकती है और फिर धारा 17 में भी इस इनपुट को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

(h). एक अनिवासी करयोग्य डीलर द्वारा खरीदी या प्राप्त की गई सेवाएं पर लगने वाले जीएसटी की क्रेडिट नहीं मिलेगी लेकिन अनिवासी करयोग्य डीलर कोई माल इम्पोर्ट करता है तो उसपर लगे जीएसटी की क्रेडिट मिल जायेगी.

(i). निजी उपयोग में काम में लिए गए माल या सेवा पर लगने वाले जीएसटी की इनपुट क्रेडिट नही मिलेगी.

(j). निम्नलिखित स्तिथियों में इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी :-

(i). माल खो गया हो

(ii). चोरी हो गया हो

(iii). टूट गया या नष्ट हो गया हो

(iv), बट्टे खाते (written off ) कर दिया गया हो

(v). गिफ्ट दे दिया हो

(vi). मुफ्त सैंपल में दिया हो .

जब कोई डीलर किसी वस्तु को खरीदता है तब उसे मालुम नहीं होता है कि वह उस वस्तु को गिफ्ट देने के काम में लेगा या वह वस्तु खो जाएगी इसलिए जब वह खरीदता है तब तो उसकी क्रेडिट ले लेता है लेकिन जब ऐसी कोई घटना हो जाती है जैसे माल खो जाता है , नष्ट हो जाता है या गिफ्ट में दे दिया जाता है तो फिर जो इनपुट क्रेडिट उस सम्बन्ध में ली गई है उसे रिवर्स करनी होती है .

(k). टैक्स जिसका भुगतान इस कानून की धारा 74 , 129 अथवा 130 के तहत किया गया हो .

जिस टैक्स का भुगतान कर चोरी के सम्बन्ध में इन धाराओं में किया जाता है जो कि फ्रॉड , जानबूझकर किये गए मिथ्या वचन या तथ्यों को छिपाए गए मामलों में किया जाता है उसकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है .

इनपुट क्रेडिट के सम्बन्ध में विभिन्न रूल्स भी है जिन्हें यहाँ क्रमवार दिया जा रहा है :-

Rule No.

Subject
36 Documentary requirement and conditions of claiming ITC
37 Resveral of Input tax credit in case of Non Payment of Consideration
38 Claim of credit by a Banking Company or a Financial Institution.
39 Procedure for Distribution of ITC by ISD
40 Manner of claiming Credit in special circumstances
41 Transfer of Credit on Sale, merger , amalgamation, Lease or trasnfer of a busienss
41A Transfer of Credit on obtaining seperate Registration for multiple places of business within a state or UT
42 Manner of Determination of ITC in respect of inputs or input services and reversal thereof
43 Manner of Determination of ITC in respect of capital goods and reversal thereof in certian cases
44. Manner of reversal of credit under special circumstances.
44A. Manner of reversal of credit of additional duty of customs in respect of Gold Dore Bar
45 Conditions and restrictions in resepct of inputs and capital goods sent to the job worker.

इनपुट टैक्स क्रेडिट जीएसटी में जितना विवादास्पद मामला है उतना ही अध्ययन की दृष्टी से रुचिपूर्ण भी है . इस अध्ययन का यह पहला भाग है.

इसके अगले भाग में इनपुट क्रेडिट से जुड़े अन्य विषयों का अध्ययन करेंगे. इसके लिए आप इंतजार करें. शीघ्र ही हम इसका दूसरा भाग जारी करेंगे .

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