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परिचय: वस्तु और सेवाओं कर (जीएसटी) के क्षेत्र में, डीलरों को कई चुनौतियाँ सामना करनी पड़ती है जो ध्यान की आवश्यकता है। संज्ञान द्वारा इनपुट क्रेडिट के जटिलताओं से लेकर उच्च ब्याज दरों तक, इस लेख में जीएसटी डीलरों की मुख्य समस्याओं और संभावित समाधानों पर चर्चा की गई है।

1. जीएसटी में एक एमनेस्टी स्कीम: जीएसटी में एक एमनेस्टी स्कीम लाई गयी थी जिसके तहत जिन डीलर्स के रिटर्न भरने से छूट गए थे उन्हें रिटर्न भरने की सुविधा दी गई थी लेकिन तब तक इनपुट क्रेडिट लेने की तिथि जो कि जीएसटी कानून की धारा 16(4) में दी गई है वह बीत चुकी थे. अब इन डीलर्स ने जो इनपुट क्रेडिट क्लेम की थी उसकी अवधि धारा 16(4) के तहत बीत चुकी थीइ इसलिए इसे निरस्त मानते हुए ब्याज सहित जमा कराने की मांग कायम की जा रही है.

यदि ऐसा ही होना था तो फिर इस तरह की एमनेस्टी स्कीम का फायदा ही नहीं हो पाया और इसके अतिरिक्त इस तरह से इनपुट क्रेडिट को निरस्त करने का अर्थ है कि यह एक दोहरा करारोपण है जो प्राकृतिक न्याय के भी विरुद्ध है क्यों कि सरकार को एक बार कर तो मिल चुका है जो कि डीलर ने अपने विक्रेता को जमा कराया और विक्रेता ने सरकार को.

अत; इस समस्या के व्यवहारिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए इस तरह के डीलर्स को राहत प्रदान की जाए.

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2. आरसीएम अर्थात रिवर्स चार्ज की परेशानियाँ: आरसीएम अर्थात रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म के तहत भुगतान किये जाने वाला कर अधिकाँश करयोग्य मामलों में एक ऐसा कर है यदि उसका भुगतान डीलर समय पर कर देता तो उसकी इनपुट क्रेडिट उसी समय मिल जाती और अगर ऐसा कर उस डीलर ने उस समय भुगतान नहीं किया तो डीलर ने उसकी क्रेडिट भी नहीं मिली और उसने दूसरी तरह से अपना बनने वाला कर का भुगतान कर दिया . यह इस प्रकार के ममलों में केवल एक प्रक्रियात्मक भूल थी लेकिन इसके कारण अब इस प्रकार के डीलर को यह कर एवं ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है और इस तरह की मांगे लाखों में है और अब इसका इनपुट क्रेडिट भी अब नहीं मिलेगा.

इस प्रकार की समस्या से विशेष तौर पर माइन्स ओनर एवं ट्रांसपोर्ट खर्च पर होने वाला आरसीएम् का भुगतना नहीं कर पाने वाले डीलर शामिल है अत; इस समस्या के व्यवहारिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए इस तरह के डीलर्स को राहत प्रदान की जाए .

3. जीएसटी में पेनाल्टी प्रबंधन: जीएसटी के तहत किसी डीलर को नोटिस मिलता है और वह कोई इस तरह की छोटी मांग भी जमा नहीं करा पाता है तो उसे न्यूनत्तम 20000.00 का भुगतना पेनाल्टी के रूप में करना होता है . आइये इसे एक उदहारण के जरिये समझने का प्रयास करें. मान लीजिये मान सिर्फ 100.00 रूपये राज्य कर एवं 100.00 रूपये केन्द्रीय कर की मांग थी लेकिन डीलर जानकारी के अभाव में इसे 30 दिन में जमा करा कर DRC-03 नहीं भर पाया तो उसकी पेनाल्टी 20000.00 रूपये हो गई . इस तरह से कर एवं ब्याज से भी ज्यादा पेनाल्टी से प्रभावित डीलर्स को राहत दी जाए.

4. डीलर के पास इनपुट क्रेडिट की दिक्कतें: क्रेता ने किसी डीलर से माल खरीदी और उसके बावजूद कि उस विक्रेता ने अपना रिटर्न समय पर भर दिया, क्रेता ने कर चुका कर विक्रेता से माल खरीदा लेकिन विक्रेता ने समय पर अपना रिटर्न नहीं भरा तो ऐसे में इसका जो भी दंड हो वह क्रेता को उसकी इनपुट क्रेडिट रोक कर दिया जाता है जो कि व्यवहारिक नहीं है क्यों कि क्रेता के हाथ में ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वो विक्रेता से समय पर कर जमा करवा कर रिटर्न भरवा सके और चूँकि सरकार क्रेता से तो उसकी खरीद की डिटेल्स तो मांगती ही नहीं है इसलिए विभागीय स्तर पर यह तो पता ही नहीं चलता है कि विक्रेता कौनसी बिक्री पर कर नहीं चुका रहा है . इस सारी प्रक्रिया में विक्रेता की हर गलती की सजा निर्दोष क्रेता को ही मिलती है और यह एक असम्भव एवं अव्यवहारिक कानून है जिसे व्यवहारिक बना कर दोषी डीलर को ही जो भी दंड हो दिया जाकर उनमें सुचार किया जाना चाहिए.

5. डीलर के ब्याज पर प्रतिबंध: एक डीलर जब बैंक में कर जमा करा देता है तब भी उसे उस पर ब्याज का भुगतान तब तक करना होता है जब तक कि वह अपना रिटर्न GSTR-3B नहीं भर देता है. ऐसा किसी भी कर प्रणाली में नहीं होता है . इनकम टैक्स में भी कर के बैंक में जमा होने की तारीख से ही ब्याज बंद हो जाता है और पहले लागू वेट में भी यही होता था . डीलर यदि समय पर कर जमा करा देता है लेकिन किसी कारण से वह रिटर्न देरी से भरता है तब उस पर जमा कराये गए कर पर ब्याज लेना उचित नहीं है इसलिए इस सम्बन्ध में प्रक्रिया एवं कानून में समुचित परिवर्तन कर इसे तार्किक बनाया जाना चाहिए.

6. इनपुट क्रेडिट की समस्याएँ: जीएसटी कानून के तहत बने नियमों के अनुसार यदि आईजीएसटी (IGST) के तहत कोई कर चुकाना है और यदि एक डीलर के पास यदि राज्य एवं केंद्र (SGST एवं CGST) दोनों के तहत इनपुट क्रेडिट उपलब्ध है तो पहले CGST को समाप्त करना होता है उसके बाद SGST की क्रेडिट ले सकते हैं . इस तरह से डीलर के पास इनपुट क्रेडिट को सेट ऑफ करने का अपना अधिकार नहीं ही जो की जीएसटी के प्राकृतिक स्वरुप के विरुद्ध है . इसका परिणाम यह होता है कि डीलर के पास SGST की क्रेडिट तो बच जाती है लेकिन CGST की क्रेडिट समाप्त हो जाती है और यदि इसके बाद वह डीलर राज्य में बिक्री करता है तो उसके SGST में काफी क्रेडिट पड़े रहने पर भी उसे CGST का भुगतान करना पड़ता है इस तरह टैक्स क्रेडिट लेजर में राशि पड़े होते हुए भी कर का अलग से कैश में भुगतान करना होता है जो कि डीलर की कार्यशील पूंजी को प्रभावित करता है . इस तरह के अतार्किक प्रतिबन्ध जीएसटी के बुनियादी स्वरुप और व्यापार एवं उधोग को इसके द्वारा होने वाले लाभों को कम से कम करते जा रहें हैं.

यहाँ भी कानून को तार्किक बनाने की जरुरत है ताकि इस तरह कार्यशील पूंजी और और उस पर लगने वाले ब्याज से बचाया जा सके .

7. इनवर्टेड ड्यूटी रिफंड के साथ सेवाओं से जुड़े इनपुट क्रेडिट की समस्या: इनवर्टेड ड्यूटी रिफंड के जरिये आने वाले रिफंड के साथ एक प्रावधान जुडा हुआ है कि इसमें सेवाओं से जुडी इनपुट क्रेडिट का रिफंड नहीं मिलता है जो कि एक ऐसा प्रावधान है जिससे एक बहुत बड़ी राशि रिफंड से रह कर सरकार के पास जमा रह जाती है . इस कानून के पीछे कोई तर्क नहीं है इसलिए इस कानून में परिवर्तन की आवश्यकता है .

8. कर देरी से चुकाने पर ब्याज की दर की समस्या: जीएसटी में कर देरी से चुकाने पर ब्याज का भुगतान करना पड़ता है और इसकी दर 18 प्रतिशत है जो कि बैंक दर से बहुत ज्यादा है. कर का देरी से भुगतान करने के पीछे हमेशा कोई कर बचाने की नियत नहीं होती है बल्कि अधिकांश समय यह एक व्यवसायिक मज़बूरी होती है . इस ब्याज की दर को कम कर बैंक ब्याज दर से 2 या 4 प्रतिशत बढ़ा कर तय की जानी चाहिए . 18 प्रतिशत की दर तब तय की गई थी जब कि बैंक ब्याज दर 12 प्रतिशत थी अब बैंक ब्याज दर बहुत कम हो गई है तो इस 18 प्रतिशत की दर को अब थोड़ा कम कर दिया जाना चाहिए.

9. डीलरों के लिए उद्योग धारा 10 में सुधार की समक्ष समस्याएँ: जीएसटी डीलर किसी एक डीलर से माल खरीदता है उसे भुगतान भी करता है , विक्रेता अपना रिटर्न भी भर देता है और यह खरीद और इससे जुडा कर भी क्रेता के GSTR-2A/ GSTR-2B में भी आ जाता है . अब किसी भी कारण से विक्रेता का रजिस्ट्रेशन पिछली तारीख से निरस्त हो जाता है तो क्रेता की इनपुट क्रेडिट निरस्त कर उससे इस राशि को ब्याज समेत जमा कराने की मांग की जाती है . इस के विरुद्ध कई माननीय उच्च न्यायालय कर दाताओं के पक्ष में फैसला कर चुके हैं . सरकार को इस सम्बन्ध में स्पष्ट सर्कुलर अर्थवा स्पष्टीकरण जारी कर इस दुविधा को समाप्त करना चाहिए.

निष्कर्ष: जीएसटी की दुनिया में डीलरों के लिए कई बाधाएँ सामने आती हैं। इनपुट क्रेडिट की असमानताओं, ब्याज दरों की ऊँचाइयों, और उलटी कर रिफंड जैसी समस्याओं को समझने के बाद ही उन्हें हल करना महत्वपूर्ण होता है। इन चुनौतियों को मानते हुए और प्रैक्टिकल समाधानों को लागू करके, जीएसटी डीलरों की प्रयासों का समर्थन करने में मदद की जा सकती

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