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बजट-2023 में जीएसटी के लिए कुछ भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, हालांकि एक आम माफी योजना और जीएसटी के सरलीकरण के लिए कुछ उपायों के लिए उम्मीदें थीं जो कि पूरी नहीं हुई हैं।

माननीय वित्त मंत्री महोदया ने इस बजट में जीएसटी को लेकर क्या प्रस्तावित किया है इसका अध्ययन तो हमें करना ही है तो आइए इसे सरल हिंदी में समझने की कोशिश करते हैं कि बजट-2023 में जीएसटी के संबंध में क्या परिवर्तन है है। माननीय वित्त मंत्री महोदया द्वारा इस बजट में जीएसटी के सम्बन्ध में 17 संशोधन प्रस्तावित हैं। आइए बजट-2023 में प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों पर एक नजर डालते हैं।

वित्त विधेयक अर्थात फाइनेंस बिल में किए गए कुल संशोधन इस प्रकार हैं:-

कानून का नाम प्रस्तावित परिवर्तनों की संख्या
CGST 15
IGST 02

 इन संशोधनों में से हम इस लेख में सीजीएसटी कानून में प्रस्तावित “मुख्य परिवर्तनों” का अध्ययन करेंगे . 

1. इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से सामान की आपूर्ति करने वाले डीलर कंपोजीशन स्कीम का विकल्प चुन सकते हैं

धारा 10

अब कंपोजीशन डीलर इस संशोधन के लागू होने के बाद राज्य के भीतर ई-कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से माल की बिक्री कर सकते हैं।

वर्तमान जीएसटी कानून में एक प्रावधान है और इसके अनुसार जो डीलर इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से माल की बिक्री कर रहे हैं, वे कंपोजीशन स्कीम के लिए नहीं जा सकते हैं और अब इस संशोधन के माध्यम से इस प्रतिबंध को हटाने का प्रस्ताव है.

आइए वर्तमान जीएसटी कानून में दिए गए मौजूदा प्रतिबंध को देखें:-

धारा 10(2):- पंजीकृत व्यक्ति उप-धारा (1) के तहत चुनाव करने के लिए पात्र होगा, यदि – ……

(डी)। वह किसी इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से माल या सेवाओं की आपूर्ति करने में संलग्न नहीं है, जिसे धारा 52 के तहत स्रोत पर कर एकत्र करना आवश्यक है।

यहाँ इस संशोधन के माध्यम से “माल या” शब्द को हटाने का प्रस्ताव है इसलिए अब धारा 10(2) (डी) में वर्णित माल के संबंध में प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे।

यही संशोधन धारा10(2ए)(सी) में भी प्रस्तावित है।

अब इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से बिक्री करने वाले डीलर्स माल या वस्तु  के लिए कंपोजीशन स्कीम ले सकेंगे ।

यह उन छोटे माल डीलरों के लिए एक अच्छी राहत होगी जो इलेक्ट्रॉनिक ऑपरेटरों के माध्यम से माल बेचना चाहते हैं और कंपोजिशन के लिए जाना चाहते हैं।

यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि कंपोजिशन डीलर अंतरराज्यीय बिक्री नहीं कर सकते हैं, इसलिए यह राहत केवल राज्य के भीतर बिक्री के लिए होगी क्योंकि जीएसटी की बुनियादी योजना में कंपोजिशन डीलर द्वारा अंतरराज्यीय आपूर्ति संभव नहीं है। वैसे भी यह उन छोटे डीलरों के लिए बड़ी राहत होगी जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से उसी शहर या उसी राज्य में सामान बेचना चाहते हैं और कंपोजीशन स्कीम का लाभ लेना चाहते हैं।

Amazon और Flipkart जैसे ई-कॉमर्स ऑपरेटर अब हमारे देश के नागरिकों के जीवन का हिस्सा बन रहे हैं। बहुत सारे ई-कॉमर्स ऑपरेटर स्थानीय स्तर पर काम कर रहे हैं और अब छोटे डीलर उनका उपयोग इन ऑपरेटरों के माध्यम से स्थानीय बिक्री करने के लिए कर सकते हैं, साथ ही संरचना का लाभ भी।

GST परिषद ने अपनी 48वीं बैठक में कंपोजीशन डीलरों और अपंजीकृत डीलरों को ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से माल बेचने की अनुमति देने के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की है और इस संशोधन के माध्यम से कंपोजिशन डीलरों को सुविधा मिल गई है और उम्मीद है कि अपंजीकृत डीलरों को यह सुविधा जल्द ही मिल जाएगी या बाद में। GST काउंसिल ने संभावित तारीख 1 अक्टूबर 2023 तय कर दी है तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि अपंजीकृत डीलरों को भी यह सुविधा उस तारीख तक मिल ही जायगी और ऐसा नहीं होता है तो फिर इन डीलर्स को और भी इन्तजार करना होगा.

2. क्रेता द्वारा देर से भुगतान – 180 दिन

आउटपुट टैक्स में जोड़ने की जगह इसे ब्याज सहित रिवर्स करना पडा

धारा 16(2)

यदि डीलर ने 180 दिनों के भीतर अपने वेंडर को भुगतान नहीं किया है तो आउटपुट टैक्स देनदारी के साथ आनुपातिक ITC जोड़ने के बजाय, उसे इसे ब्याज सहित “रिवर्स” करना होगा या फिर DRC-03 के माध्यम से भुगतान करना होगा .

देखें कि धारा 16(2) में एक प्रावधान  है और उसके अनुसार यदि क्रेता ने बिल या इनवॉइस की तारीख से 180 दिनों के भीतर विक्रेता को भुगतान नहीं किया है…… प्राप्तकर्ता द्वारा प्राप्त इनपुट क्रेडिट , उस पर ब्याज सहित उसके आउटपुट टैक्स देनदारी में जोड़ी जाएगी. भुगतान हो जाने पर इस क्रेडिट को फिर से ले लिया जा सकता है लेकिन यहाँ ब्याज का नुक्सान तो है ही जो पहले भी था  .

यहाँ अब “उनकी आउटपुट टैक्स देनदारी में जोड़ा गया, उस पर ब्याज के साथ,” को निम्नलिखित से बदला जाना प्रस्तावित है :-

“धारा 50 के तहत देय ब्याज सहित उसके द्वारा भुगतान”

अब क्रेता द्वारा विक्रेता को निर्धारित समय के भीतर भुगतान न करने की राशि को आउटपुट टैक्स में जोड़ने के बजाय उसे ब्याज सहित रिवर्स किया जाना है। यह वर्तमान में चल रही रिटर्न फाइलिंग प्रणाली के अनुरूप है और इसे आप एक तकनीकी परिवर्तन कह सकते हैं .

धारा 16(2) में एक और संशोधन है और वह तीसरे प्रोविसो में है। आइए धारा 16(2) के तीसरे प्रोविसो पर एक नजर डालते हैं:-

बशर्ते यह भी कि प्राप्तकर्ता माल या सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के मूल्य के लिए उसके द्वारा किए भुगतान किये जाने पर उसके द्वारा देय कर सहित उस पर देय कर के साथ इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने का हकदार होगा।

यहाँ देखिये जहां भुगतान शब्द का प्रयोग किया उसकी जगह “सप्लायर को भुगतान” शब्द प्रयोग किया जाना है .

यह संशोधन बहुत महत्वपूर्ण नहीं है और इन दोनों संशोधनों का उद्देश्य क्या है यह केवल वित्त विधेयक एक साथ जारी मेमोरैंडम से ही खोजा जा सकता है और देखते हैं कि इस सम्बन्ध में मेमोरेंडम क्या दिया गया है:-

सीजीएसटी अधिनियम की धारा 16 की उप-धारा 16 (2) के दूसरे और तीसरे प्रोविसो को को उक्त अधिनियम में प्रदान की गई रिटर्न फाइलिंग प्रणाली के समकक्ष लाने  के लिए संशोधन किया जा रहा है।”

ऐसा लगता है कि यह संशोधन तकनीकी कारण से है लेकिन तीसरे प्रोविसो में संशोधन का कोई अर्थ नहीं लगता है जब “भुगतान किया जाता है” से लेकर “आपूर्तिकर्ता को भुगतान किया जाता है” जो वे कहना चाहते हैं वह कानून निर्माताओं को बेहतर मालुम होगा और इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए इस तरह का संशोधन क्यों किया गया है ? जैसा कि ज्ञापन में उल्लेख किया गया है, आपूर्तिकर्ता को भुगतान करने का यह प्रावधान रिटर्न फाइलिंग सिस्टम से कैसे संबंधित है तो “भुगतान सप्लायर को किया जाए” इसका रिटर्न फाइलिंग से क्या लेना देना है ? हाँ याद रखें कि नियम 37 में “भुगतान सप्लायर को किया जाए” अभी भी है लेकिन इसका असली अर्थ क्या होगा इसके बारे में भी स्पष्टीकरण होना चाहिए क्यों कि सप्लायर की सहमती से यदि भुगतान किसी अन्य को किया जाता है या अनिवार्य रूप से किसी बैंक या सरकारी विभाग को कर दिया जाए तब क्या यह इस प्रावधान उल्लंघन होगा ? 

3. आईटीसी पर और प्रतिबंध

धारा 17(3) एवं 17(5)

इनपुट टैक्स क्रेडिट या ITC न केवल करदाताओं के लिए ही नहीं  बल्कि कानून निर्माताओं के लिए भी एक बड़ी समस्या प्रतीत होती है, इसलिए जब भी उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट  को और प्रतिबंधित करने का हर संभव मौका मिलता है, वे अपना रुख बदल कर एक और प्रतिबन्ध लगा देते हैं  और यह सिलसिला शुरू से ही चलता आ रहा है . आइए देखें कि उन्होंने इस बार उन्होंने इस सम्बन्ध में क्या किया है:-

धारा 17(3) में उन्होंने धारा के साथ संलग्न स्पष्टीकरण के तहत  अतिरिक्त एक और प्रतिबंध लगाया है:-

(ii). ऐसी गतिविधियों या व्यवहार , जो तीसरी अनुसूची के Paragraph 8 के clause (ए) दिए गए है  में से ऐसी गतिविधियां या व्यवहार का मूल्य जो की अधिसूचित किये जायंगे. .

आइये देखें कि तीसरी अनुसूची  के paragraph 8 के Clause (a) में क्या है  :-

(a) घरेलू खपत के लिए निकासी से पहले किसी भी व्यक्ति को गोदाम में रखे सामान की आपूर्ति। 

ध्यान रखें कि ऊपर जो सप्लाई लिखी है उसमें से किस व्यवहार या गतिविधी को धारा 17 के तहत करमुक्त में जोड़ा जाएगा इसे अधिसूचित या सूचित किया जाएगा.

यहाँ यह ध्यान रखें कि इस पूरी एंट्री को इस दायरे में नहीं लिया गया है बल्कि इन एंट्री के तहत आने वाली आपूर्ति या सप्लाई  में से जो “व्यवहार अधिसूचित किये जायेंगे”- “As may be prescribed” उनसे सम्बंधित सप्लाई को  ही करमुक्त वाली आपूर्ति के रूप में माना जाएगा इसलिए जो ITC प्रतिबंधित होगा उसकी गणना  इसलिए इसमें शामिल ITC को धारा 17(2) के प्रावधानों के अनुसार करमुक्त  वाली आपूर्ति में जोड़कर प्रतिबंधित ITC की गणना की जायेगी .

देखिये यदि  ऐसी आपूर्ति के लिए ITC पूर्ण रूप से संबंधित है, तो इसे उलट दिया जाएगा और उसकी क्रेडिट तो वैसे भी नहीं मिलती है  और यदि मिश्रित- Common अर्थात करयोग्य और करमुक्त दोनों में काम आने वाली ITC है तो इसकी करयोग्य और करमुक्त की सप्लाई को ध्यान में रखते हुए आनुपातिक गणना की जायेगी जितना मिश्रित  इनपुट क्रेडिट करमुक्त बिक्री के अनुपात में आता है उतना रिवर्स करना होता है , ऐसी गणना करते समय इस सप्लाई को कर मुक्त सप्लाई में यह नये प्रावधान के तहत आने वाली सप्लाई को भी जोड़ दिया जाएगा और इस कारण से उसी अनुपात में प्राप्त होने वाली ITC और भी कम हो जायेगी .

आइए हम संशोधन के प्रभाव को समझने की कोशिश करें और इस उद्देश्य के लिए हमें सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 17(2) को  पढ़ना होगा:-

जहां माल या सेवाओं या दोनों का उपयोग पंजीकृत व्यक्ति द्वारा आंशिक रूप से कर योग्य बिक्री को करने के लिए किया जाता है, जिसमें इस कानून  के तहत या आईजीएसटी कानून  के तहत जीरो रेटेड बिक्री शामिल है और आंशिक रूप से उक्त अधिनियमों के तहत करमुक्त बिक्री को करने के लिए है तो इनपुट टैक्स क्रेडिट की सीमा इतने इनपुट टैक्स तक सीमित होगी, जो शून्य-रेटेड आपूर्ति सहित उक्त कर योग्य आपूर्ति के कारण है।

आइये अब धारा 17(3) को देखें :-

उप-धारा (2) के तहत छूट की आपूर्ति का मूल्य निर्धारित किया जा सकता है, और इसमें आपूर्ति शामिल होगी, जिस पर प्राप्तकर्ता रिवर्स चार्ज के आधार पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, प्रतिभूतियों में लेनदेन, भूमि की बिक्री और, अनुसूची II के पैरा 5 के खंड (बी) के अधीन, भवन की बिक्री।

स्पष्टीकरण: – इस उप खंड के प्रयोजन के लिए अभिव्यक्ति “करमुक्त सप्लाई  का मूल्य” अनुसूची III में निर्दिष्ट मूल्य गतिविधियों या लेनदेन को शामिल नहीं करेगा, सिवाय उक्त अनुसूची के पैरा 5 में निर्दिष्ट के।

अब धारा 17(3) के तहत ITC की गणना और प्रतिबंधित करते समय उपरोक्त सप्लाई को अर्थात “घरेलू खपत के लिए निकासी से पहले किसी भी व्यक्ति को गोदाम में रखे सामान की आपूर्ति” में से अधिसूचित व्यवहार से जुडी सप्लाई भी करमुक्त सप्लाई में शामिल किया जाएगा, इसलिए यह ITC की राशि पर उपलब्धता की राशि पर यह एक और प्रतिबंध होगा।

4. CSR गतिविधियाँ ITC नहीं मिलेगी

अब एक और प्रतिबंध और यह प्रतिबंधित ITC से संबंधित है जैसा कि धारा 17(5) में उल्लेख किया गया है और इस में एक और क्लॉज़ जोड़ दिया गया है जो इस प्रकार है: –

(fa): – एक कर योग्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त माल या सेवाएं या दोनों, जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 में निर्दिष्ट “कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी”CSR के तहत अपने दायित्व से संबंधित गतिविधियों के लिए उपयोग या उपयोग करने के लिए अभिप्रेत हैं।

तो, सीएसआर गतिविधियों में काम में ली गई प्राप्त सप्लाई आईटीसी के लिए पात्र नहीं होंगी… क्यों? अब तक यह विवादित प्रश्न था लेकिन इस प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सीएसआर गतिविधियों के लिए उपयोग की जाने वाली इनवर्ड सप्लाई  पर लगे कर को आईटीसी के रूप में अनुमति नहीं दी जाएगी।

आइये देखें कि CSR गतिविधियाँ क्या है ?

कंपनी अधिनियम की धारा 135(1) के तहत पिछले वित्तीय वर्ष में किसी कंपनी का वार्षिक टर्नओवर रूपये 1000 करोड़ से अधिक हो या उस कंपनी की नेट वर्थ रूपये  500 करोड़ से अधिक हो या शुद्ध लाभ रूपये 5 करोड़ से अधिक हो तो इनमें से कोई भी एक शर्त पूरी हो हाने पर उस कंपनी को अपनी पिछले तीन सालों के औसत लाभ की 2 प्रतिशत सीएसआर गतिविधियों में खर्च करना होता है .  यह एक “कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी” है जो कि अनिवार्य है .

अब एक और बिंदु है कि क्या अब तक अर्थात इस संशोधन के प्रभावी होने से पूर्व CSR गतिविधियों के सम्बन्ध में प्राप्त सप्लाई के ITC को लेकर जो विवाद है उनका क्या होगा ? तो इस परिवर्तन से यह स्पष्ट है कि इसका प्रभाव भूतलक्षी या पर्व से लागू नहीं है अर्थात यह परिवर्तन Retrospective नहीं है इसलिए पूर्व में जारी इस सम्बन्ध में सभी विवाद समाप्त हो जाने चाहिए और यह प्रतिबन्ध तभी से लगना चाहिए जब यह प्रभावी हो जाए.

कृपया आप इस संशोधन के पीछे तर्क को ढूढने मत जाइए क्योंकि अभी भी आप खोज रहे हैं कि उन्होंने स्कूटर, मोटर साइकिल, यात्री कार आदि के लिए आईटीसी को प्रतिबंधित क्यों किया है, इसलिए इसके कारणों की खोज करने के लिए यह आपकी सूची में एक और सप्लाई को जोड़ लीजिये जिस पर ITC को रोक दिया गया है।यहाँ यह हो सकता है कि इसे व्यापार चलाने के लिए अनिवार्य नहीं बल्कि आय का उपयोग है इसलिए इसकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलनी चाहिए और इसी राय को तजरीह देते हुए आईटीसी को ब्लाक करना प्रस्तावित किया गया है. लेकिन ऐसा लगता है कि यह अब से राय में परिवर्तन है क्यों कि दिनांक 1 जुलाई 2017 को आये कानून में इस तरह का कोई प्रतिबन्ध नहीं था .

5. करमुक्त डीलरों के लिए पंजीकरण से पूरी छूट

धारा 23

सीजीएसटी अधिनियम, 2017 में धारा 23 है और इसने पंजीकरण से कुछ डीलर्स को छूट दी है और मुख्य लाभार्थी वे डीलर हैं जो कि केवल करमुक्त या गैर-कर योग्य वस्तुओं का कारोबार कर रहे हैं। धारा 23 पहले से ही है लेकिन धारा 22 (पंजीकरण के लिए उत्तरदायी व्यक्ति) और धारा 24 (अनिवार्य पंजीकरण) थी और कुछ मामलों में धारा 23 में दी गई छूट साफ़ नहीं थी और विवादों से मुक्त नहीं थी।

अब धारा 23 को एक नई धारा 23 के द्वारा बदलने  का प्रस्ताव है और नई धारा 23 के प्रारंभिक शब्दों में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि धारा 23 एक और धारा 22 की उप-धारा (1) या धारा 24 में निहित किसी भी प्रावधान के विपरीत होने पर भी लागू होगी   ” .

अब धारा 23 का धारा 22(1) और धारा 24 पर व्यापक प्रभाव है इसलिए धारा 23 के तहत आने वाले डीलरों को पंजीकरण से पूर्ण छूट मिलेगी और इन पर धारा 22(1) और धारा 24 के प्रावधानों का कोई प्रभाव नहीं होगा ।

धारा 22(1) और धारा 24 में उल्लिखित अन्य प्रावधानों पर इसकी प्राथमिकता को बनाए रखने के लिए धारा 23 में एक गैर-बाधा प्रावधान  जोड़ा गया है जिसके कारण धारा 22(1) और धारा 24 में  विरोधाभासी प्रावधान होते हुए भी धारा 23 में दी हुई छूट अविवादित रहेगी.

यदि किसी व्यक्ति को धारा 23 के तहत पंजीकरण प्राप्त करने से छूट प्राप्त है, जिससे करमुक्त या गैर-कर योग्य वस्तुओं में व्यवहार करने वाले व्यक्तियों को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी, भले ही वे धारा 22(1) और धारा 24 के अंतर्गत आते हों।

यह संशोधन भूतलक्षी या पूर्व प्रभावी है अर्थात यह 1 जुलाई 2017 से ही लागु है . केवल  कर मुक्त वस्तुओं और गैर-कर योग्य वस्तुओं में व्यवहार करने वाले व्यक्ति के लिए यह एक बड़ी राहत है और चूंकि यह 1 जुलाई 2017 से प्रभावी करने का प्रस्ताव है इसलिए इससे पहले की कानून की विभिन्न और विपरीत व्याख्या के कारण उठी हुई इन डीलरों से जुड़ी समस्याओं को विशेष रूप से आरसीएम- रिवर्स चार्ज और अनिवार्य पंजीकरण या रजिस्ट्रेशन से जुडी है को भी हल करेगा।

यहाँ ध्यान रखें कि यह प्रावधान  सिर्फ और सिर्फ कर मुक्त सप्लाई देने वाले करदाताओं पर लागू होगा और यदि ऐसा करते हुए “कभी भी कितनी भी रकम की” करयोग्य सप्लाई की गई है तो इस प्रावधान का लाभ नहीं मिलेगा.

6. कुछ रिटर्न फ़ाइल करने की अंतिम समय सीमा

एक समय सीमा, जिसके बाद कुछ रिटर्न दाखिल नहीं किये जा सकेंगे , इस संशोधन के माध्यम से पहली बार पेश किया गया है।

यदि किसी डीलर ने कुछ रिटर्न दाखिल नहीं किया है, तो वह इसे विलंब शुल्क के साथ फाइल कर सकता है, लेकिन ये रिटर्न देय तिथि के बाद कभी भी दाखिल किया जा सकता है. लेकिन कब तक इसकी कोई अंतिम समय सीमा कोई नहीं थी तो अब यह समय सीमा को तय कर दिया जाना प्रस्तावित है .

आइये इसे और भी सरल शब्दों इसका कोई समय नहीं था जब तक रिटर्न दाखिल किया जा सकता है या दूसरे शब्दों में डीलर कितने समय के बाद लेट फीस चुकाने के बाद भी रिटर्न फाइल कर सकते हैं इसका कोई समय नहीं है । अब समय सीमा को सीमित करने के लिए कुछ संशोधन प्रस्तावित हैं जिसके बाद ये रिटर्न दाखिल नहीं किए जा सकते हैं।

इस तरह के रिटर्न भरने की नियत तारीख से 3 साल बाद निम्नलिखित रिटर्न दाखिल नहीं किए जा सकते हैं:-

मुख्य रिटर्न्स जिन पर यह समय सीमा लागू की जानी है
GSTR-3B
GSTR-1
GSTR-8
GSTR-9/9C

इसके अलावा, जीएसटी परिषद की सिफारिश पर इन रिटर्न को दाखिल करने के लिए इस समय सीमा को बढ़ाने के लिए सरकार को शक्ति दी गई है।

अब इस समय के बीत जाने के बाद इन रिटर्न को भरने की विंडो बंद हो जाएगी और डीलर इन रिटर्न को फाइल नहीं कर पाएंगे जो फिलहाल वे असीमित समय में फाइल कर सकते हैं।

यह समय सीमा उन डीलरों के संबंध में एक समस्या पैदा कर सकती है जो कर का भुगतान करने में विफल रहे हैं और इसीलिये सरकार ने राजस्व बचाने के लिए ऐसी स्तिथि में भी रिटर्न भरने का अवसर देने  का इन डीलर्स को अधिकार देने लिए लिए शक्ति अपने पास  बरकरार रखी है जिसे वह जीएसटी कौंसिल की सिफारिश पर काम में ले सकेगी.

7.ई -कॉमर्स ऑपरेटर्स के लिए नए दंडात्मक प्रावधान

धारा 122 (IB)

यदि ई-कॉमर्स ऑपरेटर “अपंजीकृत डीलर” को अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से बिक्री करने की अनुमति देता है और कंपोजिशन डीलर को अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से अंतरराज्यीय बिक्री करने की अनुमति देता है तो ऐसे ई-कॉमर्स ऑपरेटर पर  दंडात्मक कार्रवाई प्रस्तावित की जा रही है

निम्नलिखित उल्लंघनों के लिए ई-कॉमर्स ऑपरेटर नए दंडात्मक प्रावधान लागू करने का प्रस्ताव है:-

(1) “कंपोजिशन डीलर्स” द्वारा की गई कोई भी अंतरराज्यीय आपूर्ति।

(2) “अपंजीकृत डीलर्स” द्वारा की गई कोई भी आपूर्ति जहां ऐसे अपंजीकृत डीलर को अधिसूचना द्वारा विशेष रूप से पंजीकरण से छूट नहीं है।

(3) इस अधिनियम के तहत पंजीकरण प्राप्त करने से छूट प्राप्त व्यक्ति द्वारा इसके माध्यम से प्रभावित माल की किसी भी बाहरी आपूर्ति की धारा 52 की उप-धारा (4) के तहत प्रस्तुत किए जाने वाले विवरण में सही विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहता है।

अब जुर्माने की राशि रु. 10000.00 या कर की राशि जो भुगतान करने की आवश्यकता है यदि ऐसी आपूर्ति एक नियमित पंजीकृत डीलर द्वारा की जाती है, जो भी अधिक हो।

कंपोजीशन डीलर धारा 10 में संशोधन के बाद ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से अपनी बिक्री कर सकते हैं, जिसे हमने ऊपर समझाया है लेकिन यह सुविधा केवल सामानों की “राज्य के भीतर” बिक्री के लिए है और माल की अंतरराज्यीय आपूर्ति के लिए नहीं है और अपंजीकृत डीलरों ई-कॉमर्स ऑपरेटरों माल बेचने की अनुमति अभी भी नहीं है।

8. अभियोजन और इसकी मौद्रिक सीमाएँ

SEC. 132

कुछ अपराधों को अभियोजन सूची से हटा दिया गया है और फर्जी बिलों को छोड़कर सभी अपराधों की समग्र सीमा को 1 करोड़ से बढ़ाकर 2 करोड़ कर दिया गया है।  फर्जी बिलों के सम्बन्ध में अभी भी यह सीमा 1 करोड़ रूपये ही रहेगी.

बजट-2023 में धारा 132(1) के तहत अभियोजन सूची से कुछ अपराधों को हटाकर डीलरों के तथाकथित उत्पीड़न के खिलाफ एक और राहत दी गई है। धारा 132(1) में वर्णित 3 अपराधों को कम करने का प्रस्ताव है। इन अपराधों का उल्लेख धारा 132(1) के (जी), (जे) और (के) में किया गया है। आइए जानते हैं इन अपराधों के बारे में:-

Sections Nature of offence
132(1)(g) इस अधिनियम के तहत किसी भी अधिकारी को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालना और रोकना।
132(1)(j) दस्तावेज़ों के किसी भौतिक साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ करना या उसे नष्ट करना।
132(1)(k) इस अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत आवश्यक किसी भी जानकारी को भेजने में विफल रहता है या (जब तक कि उचित विश्वास के साथ, यह साबित करने का भार कि उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी सत्य है) गलत जानकारी प्रदान करता है।

तीनों अपराध अब सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 132(1) के तहत दंडनीय नहीं होंगे, इसलिए इन अपराधों के लिए कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

इसके अलावा, अभियोजन शुरू करने के लिए न्यूनतम सीमा में परिवर्तन किया गया है जो कि इन आरोपों से जुडी कर की रकम से सम्बंधित है जिसे अब रु.1 करोड़ से बढ़ाकर रु. कर दिया गया है। फर्जी बिल जारी करने के मामले को छोड़कर जहां सीमा रुपये केवल 1 करोड़ पर बनाए रखने का प्रस्ताव है, को छोड़कर बाकि सभी पर 2 करोड़ की न्यूनतम सीमा लगाने का प्रस्ताव है ।

फर्जी बिल क्या होता है :-

“इस अधिनियम के प्रावधानों या उसके तहत बनाए गए नियमों के उल्लंघन में माल या सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के बिना कोई चालान या बिल जारी करता है जिससे गलत लाभ या इनपुट क्रेडिट का उपयोग या कर की वापसी अर्थात रिफंड होती है।”

ध्यान रखें कि ऊपर वर्णित अपराधों को अभियोजन से हटाया गया है लेकिन धारा 122 के तहत पेनाल्टी के प्रावधान तो इस तरह के कार्यों को दण्डित करने के लिए हैं ही

9.अपराध का प्रशमन या समझोता  कम्पौन्डिंग

धारा 138

अपराध का प्रशमन या कंपाउंडिंग क्या है?

क्या यह आगे की कानूनी कार्रवाई से बचने या अपनी रक्षा करने के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान कर किया गया यह एक समझौता है?

जवाब  – हाँ

आइए धारा 138(1) और 138(3) देखें यह समझने के लिए कि एक अपराध का प्रशमन क्या है?

Section 138(1)

इस अधिनियम के तहत कोई भी अपराध, अभियोजन के प्रारम्भ होने से पहले या बाद में, अपराध के आरोपी व्यक्ति द्वारा, केंद्र सरकार या राज्य सरकार, जैसा भी मामला हो, वह राशि जो की निर्धारित की गई है का भुगतान पर किया जाने पर कमीश्नर द्वारा वह अपराध कंपाउंड किया जा सकता है.

आखिर क्या है किसी अपराध की कंपाउंडिंग:- आप इसे समझौता भी कह सकते हैं .

Section 138(3)  

ऐसी प्रशमन राशि का भुगतान करने पर, जो आयुक्त द्वारा निर्धारित की जा सकती है, उसी अपराध के संबंध में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ अधिनियम के तहत आगे कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी और यदि उक्त अपराध के संबंध में पहले से ही कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई है, तो उसे समाप्त कर दिया जाएगा। .

ये दो प्रावधान यह समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि अपराध का कंपाउंडिंग क्या है। इसलिए, हम इसे एक निश्चित राशि के भुगतान के साथ समझौता मान सकते हैं ताकि आगे के नकारात्मक प्रभावों या दंड से बचा जा सके। देखें कि हर अपराध कंपाउंडिंग के लिए योग्य नहीं है, इसलिए स्पष्ट समझ के लिए सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 138 के लिए जाना होगा। यहां हम सिर्फ चर्चा कर रहे हैं कि बजट -2023 तक कंपाउंडिंग के इस खंड में क्या बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है।

प्रत्येक अपराध, कंपाउंडिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और और इसकी राशि भी थोड़ी व्यवहारिक होनी चाहिए  इन दो सिद्धांतों पर विचार करते हुए धारा 138 में संशोधन किए जाते हैं।

अपराध के प्रशमन के मामले में निम्नलिखित संशोधन प्रस्तावित हैं:-

क्रम स .

विवरण

1.  अब नकली चालान जारी करने से संबंधित मामले में अपराध की कोई कंपाउंडिंग नहीं होगी- इस अधिनियम के प्रावधानों या उसके तहत बनाए गए नियमों के उल्लंघन में माल या सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के बिना कोई चालान या बिल जारी करता है जिससे गलत लाभ या इनपुट क्रेडिट का उपयोग या कर की वापसी अर्थात रिफंड होती है।”  
2. धारा 132 के तहत अन्य अपराधों को केवल एक बार ही कंपाउंड किया जा सकता है।
3. कंपाउंडिंग की राशि में भी संशोधन करने का प्रस्ताव है और कंपाउंडिंग की नई दरें निम्नानुसार हैं:-

(i).शामिल कर का न्यूनतम 25% और

(ii). अधिकतम राशि शामिल कर के 100% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

वर्तमान में कंपाउंडिंग की राशि इस प्रकार है जिसे कम करने का प्रस्ताव ऊपर वर्णित अनुसार है:-

(i) न्यूनतम रु. 10000.00 या शामिल कर का 50% जो भी अधिक हो।

(ii). अधिकतम राशि रु. 30000.00 या शामिल कर का 150% जो भी अधिक हो।

कंपाउंडिंग की राशि को काफी कम करने का प्रस्ताव है ताकि यह प्रावधान थोड़ा व्यवहारिक हो सके ।

10.  जानकारी साझा करना

धारा  158A

यह एक नया प्रावधान है जिसे सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य प्रणाली के साथ डीलर की जानकारी साझा करने के लिए प्रस्तावित किया गया है। इस संशोधन के बाद अब निम्नलिखित जानकारी कुछ शर्तों के अधीन एवं डीलर की अनुमति के साथ साझा की जा सकती है: –

क्रम संख्या सूचना का प्रकार
1.  रजिस्ट्रेशन के लिए  REG-01 में दी गई सूचना .
2.  GSTR-3B एवं  GSTR-1 में दी गई सूचनाएं
3. GSTR-9 और 9C वार्षिक रिटर्न में दी गई सूचनाएं
4. ई – इनवॉइस में दी सूचनाएं
5. ई – वे बिल में दी गई सूचनाएं
6. जीएसटी पोर्टल पर दी गई अन्य सूचनाएं

सूचना साझा करते समय संबंधित पक्षों की सहमति की आवश्यकता:-

S.NO. Description of the information Consent Required
1.  रजिस्ट्रेशन के लिए  REG-01 में दी गई सूचना सप्लायर
2. GSTR-3B एवं  GSTR-1 में दी गई सूचनाएं सप्लायर  एवं यदि प्राप्तकर्ता की पहचान बतानी हो तो प्राप्तकर्ता.
3. GSTR-9 और 9C वार्षिक रिटर्न में दी गई सूचनाएं  सप्लायर
4. ई – इनवॉइस में दी सूचनाएं सप्लायर  एवं यदि प्राप्तकर्ता की पहचान बतानी हो तो प्राप्तकर्ता.
5. ई – वे बिल में दी गई सूचनाएं l सप्लायर  एवं यदि प्राप्तकर्ता की पहचान बतानी हो तो प्राप्तकर्ता.
6. जीएसटी पोर्टल पर दी गई अधिसूचित  अन्य सूचनाएं सप्लायर  एवं यदि प्राप्तकर्ता की पहचान बतानी हो तो प्राप्तकर्ता.

आगे धारा 158 A में एक नई उप-धारा 3  भी प्रस्तावित है जो निम्नलिखित प्रदान करती है:-

S.NO. Description
1. ऐसी सूचनाओं को साझा करने के कारण किसी भी दायित्व के संबंध में सरकार/सामान्य पोर्टल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।
2. सम्बंधित सप्लाई  पर या संबंधित रिटर्न के अनुसार कर का भुगतान करने की देयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

यह प्रावधान क्यों प्रस्तावित किया जा रहा है?

प्रत्यक्ष करों के मामले में हमारे पास बहुत स्पष्ट मेमोरेंडम है लेकिन अप्रत्यक्ष करों के मामले में विशेष रूप से जीएसटी के मामले में हम यह नहीं कह सकते कि मेमोरेंडम बहुत स्पष्ट है इसलिए यह अभी भी एक रहस्य है कि यह प्रावधान जीएसटी प्रावधानों में क्यों पेश किया जा रहा है।

पोर्टल पहले से ही आईटी पोर्टल के साथ विवरण साझा कर रहा है इसलिए इस प्रयोजन के लिए इस प्रावधान की आवश्यकता नहीं थी। चूँकि इस प्रस्तावित प्रावधान के तहत जानकारी केवल अन्य प्राधिकरणों और प्रणालियों पर डीलरों की सहमति से साझा की जा सकती है, इसलिए हम यह मान सकते हैं कि इससे डीलरों को मदद मिलेगी जहाँ उन्हें अपने प्रामाणिक डेटा को अन्य प्राधिकरणों के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है या फिर कानून निर्माताओं की इस प्रावधान को पेश करने की मंशा क्या है यह  स्पष्ट नहीं किया गया है ।

11. अनुसूची  III – कुछ सप्लाई जो बाद में जोड़ी गई थी उन्हें 1st. JULY 2017 के पूर्व प्रभाव से लागू करना प्रस्तावित है

निम्नलिखित क्लॉज़ वित्त अधिनियम, 2018  द्वारा अनुसूची III में जोड़े गए थे लेकिन इस संशोधन के माध्यम से उन्हें पूर्वव्यापी प्रभाव से 1 जुलाई 2017 लागू किया जाना प्रस्तावित है :-

अनुसूची III का क्लॉज़ विवरण
7 भारत में प्रवेश किए बिना गैर-कर योग्य क्षेत्र में एक स्थान से गैर-कर योग्य क्षेत्र में अन्य स्थान पर माल की आपूर्ति।– हाई सीज सेल
8(a) घरेलू खपत की निकासी से पहले किसी भी व्यक्ति को माल की आपूर्ति।
8(b) भारत के बाहर स्थित मूल बंदरगाह से माल भेजे जाने के बाद लेकिन घरेलू उपभोग के लिए निकासी से पहले माल के स्वामित्व  दस्तावेजों के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को माल की आपूर्ति।

इन गतिविधियों को न तो माल या सेवाओं की आपूर्ति के रूप में माना जाएगा और अब यह 1 जुलाई 2017 से प्रभावी होगा . पहले यह 1 फरवरी 2019 से प्रभावी था लेकिन अब इसे तब से प्रभावी किया जाना प्रस्तावित है जब से भारत में जीएसटी लागू हुआ था .

यह भी स्पष्ट किया जाता है कि यदि इन ट्रांजेक्शन पर कर का भुगतान “1 जुलाई 2017 से 31 जनवरी 2019 के बीच किया गया है तो इस सम्बन्ध में  कोई रिफंड नहीं दिया जाएगा

यह बहुत ही अजीब प्रावधान है कि “यदि उप-धारा (1)  1जुलाई 2017 प्रभावी  होती तो इस तरह एकत्र किए गए सभी करों का कोई रिफंड नहीं किया जाएगा”। उन स्थितियों में रिफंड को रोकना कैसे संभव होगा जहां प्राप्तकर्ता से कोई कर एकत्र करना संभव नहीं था लेकिन सरकार को भुगतान किया गया था और यह एक ऐसा कर था जिसके भुगतान का करदाता का कोई दायित्व भी नहीं था  । यह एक अतार्किक  प्रावधान होगा और फिर से यह मुकदमेबाजी का कारण बन जाएगा।

इस प्रकार की आधी-अधूरी राहतें क्यों दी जाती हैं ? यदि कानून निर्माता अनुचित और विवादित करदेयता से राहत देना चाहते हैं तो उन व्यक्तियों को भी राहत दी जानी चाहिए जिन्होंने पहले ही कर का भुगतान कर दिया है जो की देय ही नहीं था । उनके रिफंड पर प्रतिबंध कोई अच्छा कानून नहीं है।

12. अब जीएसटी में आगे क्या !!!!

 जीएसटी की स्थापना के बाद से हमने इसमें कई बदलाव देखे हैं। डीलरों और पेशेवरों ने ऐसे संशोधनों, स्पष्टीकरणों, परिपत्रों और प्रेस विज्ञप्तियों की संख्या गिनना बंद कर दिया है। हर साल हमने बहुत कुछ बदलाव देखा है लेकिन जब तक कानून निर्माताओं ने खरीददार को यह दिखाने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं किया है कि उन्होंने किससे या किस डीलर से सामान खरीदा है, तब तक जीएसटी और आईटीसी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है।

यह प्रावधान या सुविधा  मूल जीएसटी में था और जब तक इसे व्यावहारिक रूप से लागू नहीं किया जाता है तब तक जीएसटी कानूनों में नए संशोधनों को पेश करने का कोई फायदा नहीं होगा। सरकार को कैसे पता चलेगा कि लोग माल या सेवा  बेच रहे हैं और अपने रिटर्न में इसे नहीं दिखा रहे हैं और कर का भुगतान नहीं कर रहे हैंऔर इसका खामियाजा खरीददार को भुगतना पड़ रहा है .

आइए जीएसटी प्रक्रियाओं को उद्देश्यपूर्ण और प्रभावी बनाने के लिए इस तरह के  संशोधन की प्रतीक्षा करें।

बजट-2023 में कुछ संशोधन प्रस्तावित हैं जो हमने अपनी विस्तृत चर्चा में ऊपर देखे हैं। क्या यह जीएसटी संशोधनों का अंत है ?

नहीं ऐसा नहीं है , शुरुआत से ही गुड्स एंड सर्विस टैक्स “ट्रायल एंड एरर” के आधार पर चलाया जा रहा है, इसलिए हम निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में बहुत सारे बदलाव देखेंगे।

राजस्व संग्रह के मोर्चे पर जीएसटी को स्थिरता मिल रही है लेकिन कोई “कानून और प्रक्रियात्मक” मोर्चे पर ऐसा नहीं है, इसे स्थिर होने में समय लगेगा और अब ऐसा लगता है कि जीएसटी का सरलीकरण तो बहुत दूर का सपना है।

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सुधीर हालाखंडी –  Sudhirhalakhadi@gmail.com

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