GST प्रणाली में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुरक्षा व्यापारियों और व्यवसायिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह लेख GST में इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुरक्षा के चर्चे, उसके कारणों और उसके समाधान पर ध्यान केंद्रित करेगा।
जीएसटी कर प्रणाली में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुरक्षा को लेकर व्यापारियों और व्यवसायिकों के बीच कई सवाल और चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं और इस समय यह चिंता और भी बढ़ती जा रही है। जीएसटी का बेसिक यह है कि आप अपने क्रेता से एकत्र किये गए कर में से अपने विक्रेता को दिए हुए कर को घटा कर अपने कर का भुगतान करें. के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट तभी सुरक्षित मानी जाती है जब विक्रेता ने सही समय पर अपना रिटर्न दाखिल किया हो और उस पर टैक्स का भुगतान किया हो। लेकिन वास्तविकता में, कई बार ऐसा होता है कि खरीदार ने माल का भुगतान कर दिया होता है, लेकिन विक्रेता अपना रिटर्न दाखिल नहीं करता या सही समय पर टैक्स का भुगतान नहीं करता, जिससे खरीददार की ITC सुरक्षित नहीं रह पाती।
यदि विक्रेता ने समय पर रिटर्न भर भी दिया है और कर भी जमा करा दिया है और यह क्रेता के GSTR -2B में भी आ रहा है लेकिन अचानक एक नोटिस आता है कि आपका विक्रेता “अस्तित्वहीन” है या गड़बड़ियों में सलग्न है और उसका रजिस्ट्रेशन पुरानी तारीख से रद्द कर दिया गया है इसलिए क्यों ना आपकी इनपुट क्रेडिट रोक दी जाए या कभी कभी तो सीधे ही आपके क्रेडिट लेजर में इनपुट को डेबिट कर दिया जाता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि कई बार खरीद करने के दो साल बाद ऐसा होता है तो इससे यह तो सीधा – सीधा सवाल बनता है कि क्रेता की इनपुट क्रेडिट कभी भी बेकार या खारिज हो सकती है और वह भी बिना उसकी गलती के जो क्रेता ने की हो. आइये देखें कि क्यों आपकी इनपुट क्रेडिट सुरक्षित नहीं रह पाती है और आइये देखें कि इसके लिए सरकार को जीएसटी कानून और उसकी प्रक्रियाओं में क्या परिवर्तन करने चाहिए.
विक्रेता की ईमानदारी भी एक चुनौती है
इस प्रणाली में क्रेता के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कैसे सुनिश्चित कर सकता है कि उसका विक्रेता ईमानदार है और समय पर अपना रिटर्न दाखिल करेगा। व्यवसायिक संबंधों में विश्वास महत्वपूर्ण होता है, लेकिन केवल विश्वास के आधार पर व्यापार चलाना जोखिम भरा हो सकता है। विक्रेता की विश्वसनीयता को प्रश्न चिन्ह कई कारक लगाते है , आइये देखने क्या कारण हो सकते है जो कि विक्रेता की विश्वसनीयता को प्रश्चिन्ह लगाते है :-
1. विक्रेता की वित्तीय स्थिति: कई बार विक्रेता की वित्तीय स्थिति कमजोर हो जाती है और फिर उसके बाद सम्हलने का मौक़ा ही नहीं मिलता है , जिससे वह समय पर टैक्स का भुगतान नहीं कर पाता। यदि इस बारे में पहले से कोई खबर मार्केट में हो तो फिर ऐसे विक्रेता से अपनी दूरी बना लेने में ही समझदारी है. इस सम्बन्ध में विवेक पूर्ण निर्णय करना ही उचित रहता है . इसके अलावा यदि आपको किसी विक्रेता के सट्टेबाजी में शामिल होने की खबर हो या वह माल बाज़ार भाव् से सस्ता बेच रहा हो तो फिर आपको माल खरीदने से पहले सतर्कता बरतनी चाहिए . कुल मिला कर सार यह है कि व्यापार खुद ही एक फुल टाइम 24 घंटे की नौकरी है और हमेशा आंख्ने खुली रखनी चाहिए.
यहाँ यह समझने की कोशिश कीजिये कि विक्रेता यदि आपको बाज़ार से 5 प्रतिशत सस्ता माल दे रहा है तो फिर आप इसे सतर्क होकर ही खरीदें क्यों कि हो सकता है कि आपका यह 5 प्रतिशत सस्ता 18% की ITC ले जाए. सस्ता माल मिले तो आप थोड़ा सा रिसर्च कर लीजिये तो यह आपके भविष्य को सुरक्षित कर देगा.
2. तकनीकी समस्याएँ: GST पोर्टल पर तकनीकी समस्याओं के कारण भी कई बार रिटर्न दाखिल करने में विलंब होता है। इसके लिए सरकार को पोर्टल की उपलब्धता पर काम करना चाहिए . हर तीन – चार महीनो में एक बार तो ऐसा होता ही है .
3. अनुपालन का अभाव: कुछ विक्रेता जानबूझकर या अनजाने में अनुपालन नहीं करते, जिससे खरीदार की ITC पर असर पड़ता है। ऐसे विक्रेता लापरवाह किस्म के होते हैं लेकिन कर चोरी करना इनका मंतव्य नही होता है तो आप इन्हें भुगतान करते समय सतर्क रहें .
4. विक्रेता की बेईमानी : जब विक्रेता की योजना ही कर की चोरी करना हो तो फिर ऐसे में क्रेता यदि उसके बारे में जानता हो तो फिर ऐसे विक्रेता से माल नहीं ख़रीदे लेकिन इस तरहक के विक्रेता की योजना के बारे में क्रेता मालुम कर ले यह संभव नहीं है . लेकिन फिर भी सतर्कता यदि बरती जा सके तो क्रेता को ही फायदा है .
लेकिन इसमें से पूरी सतर्कता के बाद भी ITC रुक जाती है तो फिर आप इसे क्रेता का दुर्भाग्य ही मान सकते हैं क्यों कि इनमें से बहुत से कारक क्रेता की गलती के कारण नहीं है इसलिए यह बड़ी ही अजीब बात है कि जहाँ क्रेता का बस नहीं चलता है और उसकी गलती भी नहीं होती है फिर भी उसे नुक्सान होता है. अधिकाँश डीलर और विक्रेता कानून का पालन करते हैं लेकिन फिर भी सतर्कता जरुरी है .
विक्रेता की गलती के लिए खरीदार क्यों जिम्मेदार? – एक बड़ा सवाल
GST प्रणाली के अंतर्गत, यदि किसी विक्रेता को सरकार ने पंजीकरण दिया है और वह विक्रेता बाद में अनियमितताएँ करता है या टैक्स का भुगतान नहीं करता, तो इसका सीधा असर खरीदार की इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) पर पड़ता है। यह सवाल वाजिब है कि विक्रेता की गलती के लिए खरीदार को क्यों जिम्मेदार ठहराया जाए ?
विक्रेता की जिम्मेदारी
जब सरकार किसी विक्रेता को GST के तहत पंजीकरण देती है, तो वह विक्रेता को व्यवसायिक गतिविधियों को नियमानुसार संचालित करने की अनुमति देती है। इसका मतलब है कि विक्रेता पर यह जिम्मेदारी होती है कि वह समय पर रिटर्न दाखिल करे और टैक्स का भुगतान करे। यदि विक्रेता इन नियमों का पालन नहीं करता, तो यह सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह ऐसे विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई करे और उससे टैक्स की वसूली करे।
खरीददार की स्थिति
खरीददार, जो पहले ही माल या सेवा के लिए भुगतान कर चुका है, उसे विक्रेता के अनुपालन के बारे में जानकारी नहीं हो सकती। खरीददार की प्राथमिक जिम्मेदारी केवल यह सुनिश्चित करना है कि उसने सही तरीके से अपने हिस्से का टैक्स भुगतान किया है। विक्रेता के अनुपालन की निगरानी करना और उसकी गलती के लिए खरीदार को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।
क्या क्रेता के पास कोई अधिकार है कि वह अपने विक्रेता को अपने कर्तव्य पूरा करने के लिए बाध्य कर सके तो फिर यह तो क्रेता को एक असंभव कार्य करने के लिए कहा जा रहा है .
समाधान के लिए उपाय
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
1. विक्रेता पर सख्त कार्रवाई: सरकार को उन विक्रेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करते या टैक्स का भुगतान नहीं करते। इसके लिए जुर्माना और अन्य दंडात्मक प्रावधान होने चाहिए।
2. खरीदार की ITC की सुरक्षा: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खरीददार की ITC सुरक्षित रहे, भले ही विक्रेता ने रिटर्न दाखिल नहीं किया हो। इसके लिए एक स्वचालित प्रणाली विकसित की जा सकती है।
3. विक्रेता की निगरानी: सरकार को विक्रेताओं की निगरानी और नियमित ऑडिट करनी चाहिए ताकि अनियमितताओं का पता चल सके और समय रहते कार्रवाई की जा सके।
4. पारदर्शी सूचना प्रणाली: GST पोर्टल पर विक्रेता की अनुपालन स्थिति की जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए ताकि खरीदार अपने विक्रेताओं के बारे में जागरूक रहें और सही निर्णय ले सकें।
5. शिकायत निवारण प्रणाली: एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली होनी चाहिए जहां खरीदार अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें और उनका त्वरित समाधान हो सके।
विक्रेता की गलती के लिए खरीदार को जिम्मेदार ठहराना न केवल अनुचित है बल्कि व्यापारिक हितों के खिलाफ भी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विक्रेता अपने दायित्वों का पालन करें और अनुपालन में कमी होने पर सरकार को ही कार्रवाई करनी चाहिए। खरीददार की ITC की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए, जिससे व्यापारिक समुदाय का विश्वास बना रहे और वे निश्चिंत होकर व्यापार कर सकें।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए सरकार और व्यवसायिक समुदाय को मिलकर काम करना होगा। कुछ अन्य संभावित उपाय निम्नलिखित हैं:
1. विक्रेता की विश्वसनीयता की जाँच: सरकार को विक्रेता की विश्वसनीयता की जाँच करनी चाहिए। इसके लिए GST पोर्टल पर विक्रेता की अनुपालन स्थिति को देखा जा सकता है। सरकार अपनी कार्यवाही इस सम्बन्ध में त्वरित गति से कर इस तरह के विक्रेता को चिन्हित करे ताकि क्रेता सावधान हो सके. जब जीएसटी लागु हुआ था तब सरकार ने वादा किया था कि वह जीएसटी कानून की अनुपालना के आधार पर विक्रेताओं की रेटिंग कर पोर्टल पर दिखाएगी लेकिन यह कभी हुआ नहीं . जिन विक्रेताओं के आगे लाल लाइन सरकार ही खीच दें क्रेता अपने आप ही उनसे माल लेना बंद कर देंगे और यह सब मुसीबत हल हो जायेगी बशर्ते कि जिन विक्रेताओं को सरकार ने ग्रीन सिग्नल दिया है उनके माल पर ITC पूर्ण सुरक्षित कर दी है. इससे विक्रेता भी प्रोहत्साहित होंगे.
2. रिटर्न दाखिल न करने पर पेनल्टी: सरकार को उन विक्रेताओं पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करते। इसके लिए पेनल्टी और दंड का प्रावधान और भी सख्त होना चाहिए और बार -बार ऐसा होने पर उनके रजिस्ट्रेशन हमेशा के लिए रद्द कर देने चाहिए. यह थोड़ा कठोर कदम तो होगा ही लेकिन इस वक्त जिस तरह से क्रेता की ITC पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं इसके अतिरिक्त कोई रास्ता भी नहीं है .
3. संसूचना तंत्र का विकास: एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जहां खरीददार और विक्रेता दोनों अपनी अनुपालन स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकें। इससे व्यापार में पारदर्शिता आएगी।
4. ITC की सुरक्षा के लिए कानून: सरकार को ITC की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि खरीददार की मेहनत की कमाई सुरक्षित रह सके। यह सबसे बड़ा प्रश्न है और सरकार की और से इस सम्बन्ध में अभी तक कोई कार्य किया ही नहीं गया है . कोई तो ऐसा दस्तावेज होना चाहिए जो कि क्रेता की इनपुट क्रेडिट को सुरक्षित कर सकता है .
विक्रेता यदि कर नहीं भरता है तो सरकार को कर का नुक्सान होता है और यह तो सरकार किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं कर सकती . यह सही बात है लेकिन इसकी वसूली तो विक्रेता से ही होनी चाहिए . यह चाहे उसकी प्रॉपर्टी से हो या कैसे भी हो . लेकिन सबसे आसान तरीका यह माना गया है कि व्यापार करते हुए उस क्रेता को पकड़ लिया जाए और उसकी इनपुट क्रेडिट को रोक दिया जाए और उसी से वसूली कर ली जाए. क्रेता तो एक बार कर का भुगतान विक्रेता को कर चुका है तो फिर उससे कर की वसूली तो एक तरह से दोहरा कर हुई जो कि न्यायपूर्ण नहीं है .
इसके अलावा एक और बात यदि कोई विक्रेता अपना GSTR -1 11 तारीख तक नहीं भरता है तो फिर क्रेता को उस माह क्रेडिट नहीं मिलती है तो सरकार को प्रावधान में परिवर्तन करना चाहिए और इसे इस प्रावधान को इस तरह से बनाना चाहिए कि क्रेता के GSTR -3B भरने के पूर्व उसका विक्रेता GSTR -1 भर देता है तो फिर क्रेता को इनपुट क्रेडिट मिल जानी चाहिए.
सरकार भी दोहरा कर वसूल कर रही है – क्या यह न्यायोचित है ?
आइये इसका एक पक्ष और देखें . जहाँ विक्रेता का रजिस्ट्रेशन किन्ही कारणों से रद्द हो जाता है तो सरकार सबसे पहले तो क्रेता की इनपुट क्रेडिट को रोक कर उससे वसूली कर लेती है लेकिन विक्रेता से वसूली के प्रयास भी चलते रहते हैं लेकिन इसका फायदा उस क्रेता को नहीं मिलता है जिसकी क्रेडिट रोक दी जाती है तो फिर ध्यान से यदि देखें तो इस पूरे मामले में सरकार को यदि विक्रेता से भी वसूली हो जाती है तो फिर यह सरकार को एक ही कर दो बार दो स्त्रोतों से मिल गया है . क्या सरकार को पूरी चेन में कंही भी कर की वसूली हो जाती है तो शेष का कर लौटा नहीं देना चाहिए ? क्या राजस्व एकत्रीकरण की इस दौड़ में प्राकृतिक न्याय कहीं पीछे रह गया है .
विक्रेता की गलती की खबर विभाग को कब लगती है
जब कोई खरीदार किसी विक्रेता से माल या सेवा खरीदता है और उसका भुगतान करता है, तो उस पर GST लागू होता है। खरीददार को इस GST का क्रेडिट तब मिलता है जब विक्रेता सही समय पर अपना रिटर्न दाखिल करता है और टैक्स का भुगतान करता है। लेकिन अगर विक्रेता ने ऐसा नहीं किया, तो खरीदार को ITC का लाभ नहीं मिल पाता। इसका मतलब यह है कि खरीदार को उस टैक्स की भरपाई खुद करनी पड़ती है, जिससे उसका वित्तीय बोझ बढ़ता है क्यों कि एक बार तो वह टैक्स की रकम विक्रेता को दे चुका है .
खरीददार की जिम्मेदारी
वर्तमान प्रणाली में खरीदार को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि उसका विक्रेता समय पर रिटर्न दाखिल करे और टैक्स का भुगतान करे। लेकिन यह जिम्मेदारी खरीददार पर डालना न केवल अनुचित है बल्कि अव्यवहारिक भी है। खरीददार के पास यह क्षमता नहीं होती कि वह विक्रेता की वित्तीय स्थिति और उसके अनुपालन की स्थिति की निगरानी कर सके।
विक्रेता ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है इसकी तुरंत जानकारी विभाग को नहीं मिलती है और यही इस पूरे सिस्टम की कमी है .
वर्तमान प्रणाली की कमियाँ
1. तकनीकी समस्याएँ: GST पोर्टल और अन्य तकनीकी साधनों में अभी भी कई कमियाँ हैं, जो विक्रेताओं की गतिविधियों की सही निगरानी करने में विफल रहती हैं।
2. डेटा एनालिटिक्स की कमी: पर्याप्त और त्वरित डेटा एनालिटिक्स का अभाव है, जिससे संदिग्ध गतिविधियों का तुरंत पता नहीं चल पाता।
3. मानव संसाधन की कमी: विभागों में पर्याप्त प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी है जो तेजी से निगरानी और अनुपालन सुनिश्चित कर सकें।
4. विलंबित कार्रवाई: किसी विक्रेता की जांच और कार्रवाई में बहुत समय लग जाता है, जिससे बेईमानी का पता चलने में देरी होती है।
सुधार के उपाय
1. उन्नत सूचना प्रौद्योगिकी: GST प्रणाली में उन्नत सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करना चाहिए ताकि संदिग्ध गतिविधियों का तुरंत पता लगाया जा सके।
2. रियल-टाइम डेटा एनालिटिक्स: रियल-टाइम डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जाना चाहिए जिससे विक्रेताओं की गतिविधियों की तुरंत निगरानी की जा सके और बेईमानी की पहचान हो सके।
3. निगरानी और जांच टीमों का गठन: एक विशेष निगरानी और जांच टीम का गठन किया जाना चाहिए जो नियमित रूप से विक्रेताओं की गतिविधियों की जांच करें और समय पर कार्रवाई करें।
4. ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम: एक ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए जो संदिग्ध गतिविधियों पर तुरंत अलर्ट भेजे और आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
5. सख्त दंडात्मक प्रावधान: जो विक्रेता बेईमानी करते पाए जाते हैं, उनके लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान लागू किए जाने चाहिए ताकि अन्य विक्रेताओं को भी चेतावनी मिल सके।
6. सहयोग और समन्वय: केंद्रीय और राज्य कर विभागों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि किसी भी बेईमानी का तुरंत पता चल सके और कार्रवाई की जा सके।
7. अधिकारी AI की मदद लें – अधिकारियों को AI का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और इस मामले में वे त्वरित कार्यवाही करें तो इस समस्या को सीमित किया जा सकता है .
वर्तमान GST प्रणाली में तकनीकी और प्रबंधन से जुड़ी कई कमियाँ हैं, जिनके कारण संदिग्ध विक्रेताओं की बेईमानी का तुरंत पता नहीं चल पाता। इन कमियों को दूर करने के लिए उन्नत तकनीक, रियल-टाइम डेटा एनालिटिक्स, विशेष निगरानी टीमों और सख्त दंडात्मक प्रावधानों की आवश्यकता है। यदि सरकार इन उपायों को अपनाती है, तो GST प्रणाली में सुधार संभव है और विक्रेताओं की बेईमानी को तुरंत पकड़ा जा सकेगा, जिससे खरीददारों और ईमानदार व्यापारियों का विश्वास बढ़ेगा।
GST में “CHOOSE YOUR VENDOR CAREFULLY” क्या व्यवहारिक रूप से सम्भव है ?
GST प्रणाली में “Choose Your Vendor Carefully” का महत्व एक प्रमुख तत्व है, विशेष रूप से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुरक्षा के संदर्भ में। सरकारी रूप से कई बार यह कहा जाता है कि क्रेता को हमेशा सावधान रहना चाहिए और यह नियम यह बताने का प्रयास करता है कि खरीददारों को उन विक्रेताओं का चयन करना चाहिए जो जीएसटी का सही तरीके से पालन करते हैं और समय पर रिटर्न दाखिल करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि खरीददार को उसका उचित इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त हो सके।
हालांकि, व्यवहारिक रूप से यह सिफारिश कितनी प्रासंगिक है और इसे कितनी सरलता से लागू किया जा सकता है, इस पर विचार करना आवश्यक है। क्रेता माल की गुणवत्ता देख सकता है , उसकी समय पर सप्लाई को देख सकता है , अपना भुगतान विक्रेता को समय पर कर सकता है लेकिन उसका विक्रेता उससे भुगतान लेकर क्या करता है , उसने माल कहाँ से खरीदा है , वह कर समय पर जमा कराता है या नहीं यह सब तो क्रेता कहाँ से देख पायेगा या उसका इस पर क्या बस है . यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:-
1. व्यापारिक व्यवहार और संबंध: किसी व्यवसाय के लिए, विशेष रूप से MSMEs (मध्यम और छोटे उद्यमों) के लिए, यह संभव नहीं है कि वे हर समय नए विक्रेताओं की खोज में रहें। वे आमतौर पर उन विक्रेताओं पर निर्भर होते हैं जिनके साथ उनके लंबे समय से संबंध हैं। पुराने और विश्वसनीय विक्रेताओं को छोड़कर नए विक्रेताओं की खोज करना व्यापारिक संबंधों को कमजोर कर सकता है।
2. जानकारी का अभाव: सभी खरीदारों के पास आवश्यक साधन और जानकारी नहीं होती कि वे अपने विक्रेताओं के जीएसटी अनुपालन की स्थिति की पूरी जांच कर सकें। जीएसटी पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी सीमित होती है और इसमें सभी आवश्यक विवरण शामिल नहीं होते हैं।
3. व्यवसायिक निर्भरता: कई बार व्यवसाय अपनी विशेष आवश्यकताओं के लिए विशेष विक्रेताओं पर निर्भर होते हैं। ऐसे में, उस विक्रेता को बदलना मुश्किल होता है, भले ही वह जीएसटी अनुपालन में कुछ कमजोर हो।
4. आईटीसी का नुकसान: यदि विक्रेता जीएसटी का सही तरीके से पालन नहीं करता है, तो खरीदार को इनपुट टैक्स क्रेडिट का नुकसान हो सकता है। यह खरीदार के लिए वित्तीय बोझ बन सकता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब विक्रेता के पास से माल या सेवाओं की खरीद एक बार हो चुकी होती है और भुगतान भी हो चुका होता है।
भले ही “Choose Your Vendor Carefully” की बात कहने को तो सही है लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह उतना आसान नहीं है। व्यापारिक संबंधों, आवश्यकताओं और जानकारी की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, खरीददारों के लिए अपने विक्रेताओं का चयन करना हमेशा उनके नियंत्रण में नहीं होता। अतः, यह आवश्यक है कि सरकार और जीएसटी प्राधिकरण इस दिशा में और अधिक जागरूकता और सहूलियत प्रदान करें ताकि खरीदार और विक्रेता दोनों ही जीएसटी नियमों का सही और प्रभावी पालन कर सकें।
खरीददार ने माल किससे खरीदा है, इसकी जानकारी देने का सिस्टम है ही नहीं यह सबसे बड़ी कमी है
GST प्रणाली के तहत, यदि विभाग को यह जानकारी हो कि खरीददार ने माल किससे खरीदा है, तो यह उसी महीने पता चल सकता है कि किस विक्रेता ने टैक्स भुगतान में गड़बड़ी की है। प्रारंभिक GST कानून में ऐसा सिस्टम था, लेकिन लागू ही नहीं किया गया . क्या सिस्टम इसके लिए तैयार ही नहीं था । इस वजह से विभाग को विक्रेता की चोरी पकड़ने में जो लंबा समय लगता है, उसका यही कारण है, और तब तक खरीददार को काफी नुकसान हो सकता है। एक बात ध्यान रखिये कि सिस्टम उस समय तैयार नहीं था तो फिर अब तो सात साल बीत गए हैं तब भी क्या यह सिस्टम अभी भी इसके लिए तैयार नहीं है यह बहुत ही आश्चर्य की बात है .
आइए इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करें।
प्रारंभिक कानून में व्यवस्था
जब GST कानून प्रारंभिक रूप में बनाया गया था, तब उसमें एक व्यवस्था थी जिसमें खरीददार को अपने विक्रेता की जानकारी विभाग को देनी होती थी और इसके लिए बाकायदा एक प्रावधान एवं प्रक्रिया बने गयी थी । इससे विभाग को तुरंत पता चल सकता था कि किस विक्रेता ने टैक्स भुगतान में गड़बड़ी की है। लेकिन जीएसटी के लागू होने के साथ ही इस व्यवस्था को हटा दिया गया, जिससे वर्तमान में कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि जीएसटी का सिस्टम इसके लिए तैयार नहीं था और वह इसके लिए आज भी तैयार नहीं है !!!!!
वर्तमान समस्या
वर्तमान प्रणाली में विक्रेता की चोरी का पता लगाने में विभाग को लंबा समय लगता है। इसका कारण है कि खरीददार और विक्रेता के बीच के लेन-देन की जानकारी तुरंत विभाग को नहीं मिल पाती। इस कारण विभाग को विक्रेता की गतिविधियों की निगरानी और जाँच करने में काफी समय लग जाता है, जिससे खरीददार को नुकसान होता है। क्रेता को तो विक्रेता की इस गैर जिम्मेदारी की सूचना मिल जाती है क्यों कि उसकी खरीद GSTR -2B में नहीं आती है लेकिन विभाग को इसका पता नहीं लगता है तो ऐसा विक्रेता तब तक और भी क्रेताओं को धोखा दे चुका होता है .
समाधान के उपाय
1. प्रारंभिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना: वह प्रणाली पुनः स्थापित की जानी चाहिए जिसमें खरीदार को अपने विक्रेता की जानकारी विभाग को देनी होती थी। इससे विभाग को तुरंत जानकारी मिल सकेगी और गड़बड़ी का पता चल सकेगा।
2. रियल-टाइम डेटा साझा करना: खरीदार और विक्रेता दोनों के रिटर्न और लेन-देन की जानकारी रियल-टाइम में विभाग को साझा की जानी चाहिए। इससे विभाग को तुरंत पता चल सकेगा कि किसने टैक्स भुगतान में गड़बड़ी की है। विभाग खुद ही मिसमैच की एक लिस्ट प्रत्येक डीलर की बना सकता है और उसे पता लग सकता है कि कौनसे विक्रेता डीलर के डाटा उसके क्रेता डीलर से मैच नहीं कर रहे हैं .
3. उन्नत तकनीक का उपयोग: डेटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग कर विभाग को तुरंत संदिग्ध गतिविधियों का पता लगाने में सक्षम बनाया जाना चाहिए।
4. सख्त निगरानी और कार्रवाई: विभाग को विक्रेताओं की गतिविधियों की सख्त निगरानी करनी चाहिए और गड़बड़ी का पता चलते ही तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
5. सूचना प्रणाली का विकास: एक ऐसी सूचना प्रणाली विकसित की जानी चाहिए जिसमें खरीदार और विक्रेता दोनों के लेन-देन की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो और विभाग को तुरंत कार्रवाई करने में मदद मिल सके।
6. सशक्त शिकायत प्रणाली: एक प्रभावी शिकायत प्रणाली होनी चाहिए जहां खरीददार अपनी समस्याओं और संदेहों की रिपोर्ट कर सकें और विभाग तुरंत कार्रवाई कर सके।
यदि प्रारंभिक GST कानून की व्यवस्था को पूर्ण रूप से स्थापित किया जाए, जिसमें खरीददार को विक्रेता की जानकारी विभाग को देनी होती थी, तो विभाग तुरंत गड़बड़ी का पता लगा सकेगा और खरीदार को नुकसान से बचाया जा सकेगा। इसके लिए उन्नत तकनीक, रियल-टाइम डेटा साझा करने और सख्त निगरानी की आवश्यकता है। इस प्रकार, GST प्रणाली को और प्रभावी और पारदर्शी बनाया जा सकता है, जिससे सभी पक्षों का विश्वास बढ़ेगा।
यदि इनपुट क्रेडिट दावे की सुरक्षा पर संदेह है और वर्तमान में बने कानून सही नहीं हैं, तो इस संबंध में एक प्रभावी और न्यायसंगत कानून बनाने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:
1. स्पष्ट परिभाषाएँ:
- इनपुट क्रेडिट और इसके योग्यताओं की स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए और यदि क्रेता की खरीद उसकी परिभाषा में आती है तो फिर उसकी इनपुट अंतिम रूप से स्वीकार होनी चाहिए.
- उन परिस्थितियों को विस्तार से, पहले ही परिभाषित करना चाहिए जिनमें इनपुट क्रेडिट उपलब्ध नहीं होगी और उन्हें प्रचारित भी करना चाहिए ताकि इन घटनाओं के लिए क्रेता सतर्क रहे और तैयार भी रहे.
2. साक्ष्य आधारित दावे:
- इनपुट क्रेडिट के दावों के लिए ठोस साक्ष्य और दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकता होनी चाहिए।इस सम्बन्ध में अंतिम दस्तावेज तय होने चाहिए.
जब भी विवाद हो सभी दावों के समर्थन में खरीद चालान, भुगतान प्रमाण, और संबंधित कर चालान प्रस्तुत करने की अनिवार्यता होनी चाहिए। यह प्रमाण अंतिम होने चाहिए और यहाँ क्रेता की जिम्मेदारी समाप्त हो जानी चाहिए .
3. स्वचालित प्रणाली:
- एक स्वचालित प्रणाली होनी चाहिए जो वास्तविक समय में इनपुट क्रेडिट के दावों की जांच और सत्यापन कर सके।
इस प्रणाली को GST नेटवर्क (GSTN) से जोड़ना चाहिए ताकि सभी लेनदेन पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य हों।
4. विवरण की सटीकता:
- विवरण प्रस्तुत करने में सटीकता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम और दंड का प्रावधान हो।
- गलत या झूठे दावे करने पर कड़ी सजा और दंड का प्रावधान होना चाहिए।
5. पुन: जांच और विवाद निवारण:
इनपुट क्रेडिट दावों की पुन: जांच और समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन होना चाहिए।
- विवाद निवारण के लिए त्वरित और प्रभावी प्रक्रिया होनी चाहिए।
6. ट्रांसपेरेंसी और रिपोर्टिंग:
- करदाताओं को नियमित रूप से अपने इनपुट क्रेडिट के उपयोग और शेष राशि की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
- सरकार और कर विभाग को समय-समय पर इस डेटा का विश्लेषण और रिपोर्ट जारी करनी चाहिए।
7. क्रेता और विक्रेता के बीच तालमेल:
- खरीदार और विक्रेता के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए तकनीकी समाधान लागू किया जाना चाहिए ताकि दोनों पक्षों द्वारा किए गए दावे मेल खाते हों।
- इससे फर्जीवाड़े की संभावना कम होगी और पारदर्शिता बढ़ेगी।
8. सुधार और प्रशिक्षण:
- व्यापारियों और करदाताओं को इनपुट क्रेडिट दावों की प्रक्रिया और नियमों के बारे में नियमित प्रशिक्षण और जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
- कानून और प्रक्रियाओं में किसी भी बदलाव के बारे में समय पर जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
इन सुझावों को लागू करके, इनपुट क्रेडिट की सुरक्षा और विश्वसनीयता को बढ़ाया जा सकता है और इसके साथ ही, GST प्रणाली को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सकता है और ऐसा नहीं होता है तब तक विक्रेता की गलतियों के लिए क्रेता को दंड देना बंद करना चाहिए जब तक कि वह खुद टैक्स की चोरी में शामिल नहीं है या उसकी मिलीभगत नहीं हो।
जीएसटी की 53 वीं मीटिंग में कई तरह की राहत देनी शुरू की गई है तो फिर अब जल्द ही क्रेताओं की इनपुट क्रेडिट की सुरक्षा के उपाय और गारंटी के लिए भी काम शरू हो जाना चाहिए और विक्रेताओं से टैक्स वसूलने का एक अंतिम नियम बना ही देना चाहिए .
आइये अब अंत में देखें कि इस समय हो क्या रहा है. इस समय यह हो रहा है कि क्रेता के कंधो पर एक असंभव जिम्मेदारी दे दी गई है कि वह विक्रेता को कर जमा करने , रिटर्न भरने और ईमानदार बने रहने को बाध्य करे . यह Lax non cogit ad impossibilila – The Law does not compel the doing of impossibilities का अपवाद है . Lax non cogit ad impossibilila का अर्थ है कि कानून असंभव कार्यों को करने के लिए बाध्य नहीं करता है .
Conclusion: इस लेख ने दर्शाया कि GST में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की सुरक्षा व्यवसायिक समूहों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। खरीदारों को विक्रेताओं की वित्तीय स्थिति, तकनीकी समस्याएँ, और अनुपालन के माध्यम से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। सरकार को इन मुद्दों पर विचार करने और समाधान निकालने की जरूरत है, ताकि GST प्रणाली में सुधार किया जा सके और व्यवसायिक समूहों को अधिक सुरक्षित माहसूस हो सके।
– सुधीर हालाखंडी