माननीय उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने 09/09/2021 को एक अहम फैसले में यह बात कही जो सरकार को सोचने पर विवश करती है कि कराधान प्रणाली में व्याप्त खामियों को दूर करना क्यों जरुरी है.
सिविल अपील क्र 9606 आफ 2011 और इससे संबंधित 32761 आफ 2018 – साउथ इंडिया बैंक लिमिटेड बनाम आयकर कमीश्नर के केस में धारा 14ए के अंतर्गत खर्चे अमान्य करने पर विभाग के विरुद्ध फैसला दिया.
सरकार को फटकार लगाते हुए इस फैसले में माननीय उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्य और बातें रखीं:
1. अठारहवीं सदी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की किताब- वेल्थ आफ नेशन्स का जिक्र करते हुए कहा कि एक करदाता द्वारा दिए जाने वाला टैक्स निश्चित होना चाहिए न कि मनगढ़त.
2. करदाता को कब, कैसे और कितना कर देना है- यह सरकार और करदाता दोनों के लिए स्पष्ट और साफ होना चाहिए.
3. कर प्रणाली में अनुमान की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और न ही लेनदेन को निहित मानकर आय का निर्धारण करना चाहिए.
4. चाहे व्यक्ति हो या कंपनी करदाता- कर नियोजित करके ही दिया जाता है और इसलिए सरकार को पूरी कोशिश होनी चाहिए कि यह प्रक्रिया सुविधाजनक और सरल हो ताकि ज्यादा से ज्यादा अनुपालन संभव हो सकें.
5. कर अपवंचन और चोरी रोकने की पूरी जबाबदारी कर प्रणाली की होनी चाहिए और उसका फ्रेमवर्क ऐसा हो जिसे करदाता आसानी से टैक्स का बजट बना सकें और प्लानिंग कर सकें.
6. कर प्रणाली में यदि सरलता, सुविधा और स्पष्टता का सही संतुलन होगा तो बहुत सारे फिजूल के वाद नहीं उपजेंगे और राजस्व भी बढ़ेगा.
7. यदि करदाता की आय कर युक्त भी है और कर मुक्त भी है और उसके द्वारा करमुक्त आय से संबंधित खर्च का अलग से हिसाब नहीं है तो उसके खर्च को आयकर की धारा 14ए के अंतर्गत अनुमानित आधार पर अमान्य नहीं किया जा सकता.
आयकर अधिकारी को स्पष्ट और साफ तौर पर खर्च का संबंध करमुक्त आय से जोड़ना होगा, तभी वह उसे अमान्य कर सकता है अन्यथा नहीं.
माननीय उच्च न्यायालय के उपरोक्त फैसले और कथनों पर गौर करें तो हम पाऐंगे कि सरकार और कर विभाग को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई है कि कर प्रणाली को सुविधाजनक और सरल बनाने पर काम करने की जरूरत है ताकि कम से कम विवाद की जगह हो और ज्यादा से ज्यादा अनुपालन एवं राजस्व वृद्धि हो.
*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर 9826144965*